Shah Umair Ki Pari – 34
Shah Umair Ki Pari – 34
दूसरी दुनिया ”ज़ाफ़रान क़बीला ” :-
”अब्बा हुज़ूर आप इतनी सुबह सुबह यहाँ मेरे कमरे में सब खैरयत तो है न?” शहजादे इरफ़ान पूछते है !
”वो मैं कल रात में तुम्हे बता नहीं पाया था, इसलिए सोचा के तुम्हे सुबह में मैं खुद आकर खबर दे दूं बात यह है कि क़बीले फ़रीज़ के शाहशाह के बेटे और बेटी से मैंने तुम दोनों का निकाह तय कर दिया है। वो लोग आज ही आ रहे है एक छोटी सी रसम करने। वक़्त पर तैयार रहना !” शहंशाह ने कहा तो मरयम और इरफ़ान सकते में पड़ जाते है !
”अब्बा आप यह क्या कह रहे हो? आप को पता है ना मैं अमायरा से मोहब्बत करता हूँ और वही मेरी हमसफ़र बनेगी !” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
“मैं यहाँ तुम्हारे ये फ़िज़ूल की बातें सुनने नहीं आया हूँ, मुझसे ज्यादा बहस करने की जरुरत नहीं है और हाँ अमायरा किसी भी लेहाज से तुम्हारी बीवी बनने के लायक नहीं है। वैसे भी उसका खानदान धोखा देने वालों में से ही है। एक पहले से सजा काट रहा था काल कोठरी में अब सब के सब सजा काट रहे है। वैसे भी उनकी असल जगह वो काल कोठरी ही है समझे तुम !” शहंशाह ने गरजते आवाज़ में कहा !
”आप शहंशाह है तो कुछ भी करेंगे? क्या आप से गलतियां नहीं होती ? अगर होती है तो खुद को क्यों नहीं उस काल कोठरी में क़ैद करते है ? जहाँ आप ने मेरी अमायरा को क़ैद रखा है !” शहजादे इरफ़ान ने गुस्से में कहा !
“मैं यहाँ तुमसे बेकार के बहस करने नहीं आया हूँ। वक़्त पर तैयार रहना तुम दोनों !” शहंशाह कहते हुए चले जाते है बेचारी मरयम ख़ामोशी से सारे बहस को सुन रही थी बस !
”देखा तुमने इनकी मन मानी जो दिल में आता है करते है इनको मोहबब्त और उसके जज़्बात समझ क्यों नहीं आते ? बेचारे उमैर ने भी तो बस मोहब्बत की थी यह तो उसकी गर्दन उतारने पर तुले थे !” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
”इरफ़ान भाई आप शांत हो जाये। मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा के मैं क्या करूँ.? उस रोज बिना बताये उमैर से मंगनी कर दी थी और आज किसी और से रिस्ता जोड़ आये है अब्बा !” शहजादी मरयम ने कहा !
”जिनको आना है आये और जाये पहले चलो हम अपने दोस्तों से मिल कर आते है अगर मुनासिब लगा तो उन्हें छुड़ा लाएंगे !” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
शहजादे इरफ़ान और शहजादी मरयम सब की नज़रों से छिपते हुए कोठरी के गुप्त दरवाज़े के तरफ जाते है मरयम गुलरेज से इशारे में पूछती है तो वो हाँ में सर हिलाती है जिसका मतलब होता है रास्ता साफ़ है !
शहजादी मरयम अपने साथ कुछ खाने पीने के सामान ले लेती फिर दोनों ही ख़ामोशी से सीढ़ियों के नीचे से गुप्त दरवाज़ा खोल कर अंदर जाते है !
“इरफ़ान भाई यहाँ तो बहुत ज्यादा अँधेरा है यह दिवार पर टंगी मशाल उठाओ। आप गुलरेज ने कहा था के यह हाथ में उठाते ही खुद ब खुद रौशन हो जायेगी !” शहजादी मरयम ने कहा !
”ठीक है तुम ख़ामोशी से मेरे साथ चलो कहि कोई हमारी आवाज़ सुन ला ले !” शहजादे इरफ़ान ने कहा हाथ में मशाल लेते हुए मशाल हाथ में आते ही रौशन हो जाती है जिससे उन्हें चलने में आसानी हो रही होती है !
दोनों भाई बहन आहिस्ता आहिस्ता गलियारे में आगे बढ़ते है , वहाँ चारो तरफ गन्दी बदबू फैली होती है जिससे उनका दम घुट रहा होता है !
वो दोनों काफी देर तक इधर उधर भटकते रहते है मगर उन्हें कोठरी का कोई दरवाज़ा नहीं दिखता है !
”उमैर अमायरा तुम सब कहा हो ? क्या तुम लोग मुझे सुन सकते हो ? ” शहजादे इरफ़ान ने आवाज़ देकर कहा !
”शहजादे इरफ़ान आप? आप यहाँ क्या कर रहे हो ? ” उमैर ने पूछा !
”हाँ मैं हूँ और मेरे साथ मरयम भी है हम दोनों तुम सब से मिलने आये है मगर मुझे कही पर भी कोठरी का दरवाज़ा नहीं दिख रहा !” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
”इन दिवारों में ही दरवाज़ा छुपा हुआ है शहजादे क्योंकि पहरेदार जब हमे खाना देने आते है तब वो इन्ही दीवारों के जरिये अंदर आते है!” उमैर ने जवाब दिया !
”इरफ़ान भाई हो सकता है यहाँ पर भी वैसा ही दरवाज़ा हो जैसा सीढ़ी के नीचे है आप दिवार पर अपना हाथ फेरो हो सकता है दरवाज़ा खुल जाये !” शहजादे मरयम ने कहा ! तो शहजादे इरफ़ान वैसा ही करते है तो उनको दिवार में एक मोटी किल दिखती है जिसको दबाने से अचानक एक दरवाज़ा खुलता है दोनों भाई बहन खुश हो जाते है जल्दी से अंदर की तरफ जाते है जहाँ उन्हें उमैर सामने उदास खड़ा मिलता है उसकी आँखों में आँसू भरे होते है ! मरयम उमैर को देखते ही उसके गले लग जाती है फिर कुछ सोचती हुई खुद को सम्भलती हुई खुद ही उससे अलग होकर खड़ी हो जाती है ! शहजादे इरफ़ान अमायरा की तरफ देखते है जो बे सूद आँख बंद किये ज़मीन पर पड़ी होती है !
”अमायरा अमायरा…… क्या हुआ है इसे ? ” शहजादे इरफ़ान अमायरा का सर अपने गोद में रखते हुए कहते है !
”इसकी तबीयत ठीक नहीं है कुछ रोज से ! इसने बहुत दिनों से सही से कुछ खाया भी नहीं है ! मैंने कई बार पहरेदारो को कहा के हकीम भेज कर इसका इलाज करवाए मगर वो कोई जवाब नहीं देते है। अब तो नफिशा के भी पेट में दर्द हो रहा है !” उमैर ने कहा !
”हुज़ूर आप को यहाँ नहीं आना चाहिए था आप अपने अब्बा के हुकुम के खिलाफ जा रहे है। जो आप के साथ साथ हम सब के लिए नुकसान दायक साबित होगी !” शाह ज़ैद ने कहा !
“ज़ैद चाचा आप कैसी बाते कर रहे हो? आप सब मेरे अपने हो और मैं आप लोग को यहाँ ऐसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकता अमायरा मेरी होने वाली बीवी है मैं उसे इस तरह नहीं छोड़ सकता!” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
”वो शहंशाह तो बे दिल का है , उसे रिश्तों और मोहब्बत की अहमियत क्या मालूम? उसने बस सजा देना सिखा है बेटे, तुम इन सब को यहाँ से निकाल दो मेरी तुमसे दरख्वास्त है !” शाह कौनैन ने कहा !
‘’बुजुर्गवार मगर आप कौन है ?” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
‘’मेरा नाम शाह कौनैन है ,मैं इन बच्चो का दादा हूँ और इस नालायक ज़ैद का बदनसीब बाप !” शाह कौनैन ने कहा !
‘’मगर आप यहाँ क्यों क़ैद है और कब से ?” शहजादी मरयम ने कहा !
‘’मैं सालों से इन अँधेरी कोठरी में सजा काट रहा हूँ सब कुछ बताऊँगा बच्चो पहले यहाँ से लेकर जाओ इनसब को और हाँ उस शहंशाह से दूर रखना सब को !” शाह कौनैन ने कहा !
‘’मरयम , उमैर तुम दोनों खड़े खड़े मुँह क्या ताक रही हो? नफिशा को उठाओ यह लोग अब यहाँ नहीं रहेंगे !” शाहजादे इरफ़ान ने अमायरा को अपनी गोद में उठाते हुए कहा !
”मगर इरफ़ान भाई अगर अब्बा को पता चल गया तो हम क्या करेंगे ?” शहजादी मरयम ने कहा !
“तुम फिक्र मत करो मुझे अब अच्छे से पता है मुझे क्या करना है ! और हाँ दादा जी आप भी हमारे साथ चल रहे हो। अब आप के खानदान के किसी भी फरद को सजा नहीं मिलेगी !” शहजादे इरफ़ान कहते है फिर वो सब को अपने साथ लेकर वापस उसी रस्ते से होकर महल के अंदर पहुँचते है ! शाह ज़ैद का दिल अंदर से बहुत ही घबरा रहा होता है मगर वो ख़ामोशी से उनके साथ शाह कौनैन का हाथ थामे चल देते है , शहजादे इरफ़ान सब को अपने साथ लिए महल के उन हिस्सों में जाते है जहाँ कोई भी आता जाता नहीं है !
”मरयम तुम इन सब के खाने पीने और नहाने का इंतजाम करो मैं जरा महल का जायज़ा ले कर आता हूँ और हाँ मेरे दो गुलाम यही दरवाज़े पर रहेंगे।
इन सब की हिफाज़त के लिए और मैं हनीफ को बोल कर हकीम को भेजता हूँ तुम सब अमायरा का ख्याल रखना !” शहजादे इरफ़ान अमायरा को पलंग पर लिटाते हुए कहते है फिर कमरे से बाहर चले जाते है !
”उमैर कहा था ना तुमसे दोस्ती की है तो साथ भी दूंगी। जाओ जाकर नहा लो गंदे लग रहे हो !” शहजादी मरयम ने उमैर की तरफ देखते हुए कहा ! उमैर उनकी आँखों में खुद के लिए प्यार साफ़ साफ़ देख पा रहा होता है आज उसके दिल में चिढ़ के बजाये शहजादी मरयम के लिए इज्जत रहती है !
Shah Umair Ki Pari-34
शहर धनबाद में :-
”अब्बा आप को पता है आज उस बेवक़ूफ़ लड़की ने सारे राज उगल दिए उसे लगता है मैं उसके आशिक़ जिन को छुड़ा कर यहाँ उसके पास लाऊँगा !” आसिफ ने कहा !
”तुम आखिर करना क्या चाहते हो ?” रफ़ीक साहब ने पूछा !
”वही जो मैं करना चाहता हूँ ! मुझे बस परी को हासिल करना है , उस जिन को तो मैं उसकी दुनिया से रिहा करा कर जरूर लाऊंगा, मगर वो यहां आकर मेरी क़ैद में रहेगा उसके बाद देखता हूँ यह परी मुझसे शादी कैसे नहीं करती है !” आसिफ मुस्कुराते हुए कहता है !
”बेगम दाल की पूड़ी बना दो और साथ में खीर खाने को दो। सर्दियों में दाल की पूड़ी के साथ खीर आह है ना बेटा परी !” हसन जी कहते है !
”आप तो खीर का नाम लो ही मत। याद है ना खीर के चक्कर में क्या हुआ था ?” नदिया जी कहती है !
”हाँ मालूम है तो क्या खीर खाना ही छोड़ दे? परी बेटा तुम अपनी मम्मी को समझाती क्यों नहीं हो ?” हसन जी ने परी से कहा मगर वो कोई जवाब नहीं देती है खमोशी से टीवी देखती रहती है !
”क्या हुआ है बेटा आज तुम इतनी चुप चुप क्यों हो ?” हसन जी ने पूछा !
”कुछ नहीं पापा बस वो ऐसे ही मम्मी पापा जो बोल रहे है आप बना दो किया दिक्कत है !” परी ने कहा !
”दिक्कत तो कुछ भी नहीं बेटा वैसे मैंने आज दाल की पूड़ी और खीर ही बनाया है खाने में !” नदिया जी ने मुस्कुरा कर कहा !
”भाई वाह बेगम तुम तो मेरे दिल का हाल बहुत अच्छे से समझती हो !” हसन जी ने कहा !
”समझूंगी कैसे नहीं इतने साल से आप के साथ रह रही हूँ अब तो बिन बोले ही की पसंद ना पसंद और साथ में आप के दिल का हाल समझती हूँ !” नदिया जी गरमा गरम दाल की पूड़ी और खीर डाइनिंग टेबल पर लगते हुए कहती है !
‘’परी बेटा अब रिमोट रखो चलो आओ खाना लग गया है !’’ हसन जी ने कहा !
‘’आयी पापा !” परी ने कहा फिर हाथ धो कर खाने के लिए बैठ जाती है !
रात के वक़्त जब परी के मम्मी पापा सो जाते है परी आहिस्ते से दरवाज़ा खोल कर आसिफ को अंदर आने देती है जो के पहले से ही दरवाज़े पर खड़ा होता है !
”आसिफ अब क्या करना है? देखो, मुझे डर लग रहा है कहि मम्मी पापा उठ गए तो गलत सोचेंगे मेरे बारे में !” परी परेशान होकर कहती है !
”उफ्फो परी मैं हूँ ना तुम खामखा का परेशां होती हो भला मेरे होते तुम्हे कोई कुछ कह सकता है ?” आसिफ ने अपने हाथो से परी के कंधो को छूते हुए कहा तो वह पीछे हट जाती है और कहती है !
”आसिफ जिस काम के लिए आये हो वो करो ”
आसिफ थोड़ा मुँह बना कर आईने के सामने हाथ बांध कर खड़ा हो जाता है फिर बहुत देर तक कुछ पढ़ता रहता है तभी एक भयानक शकल वाला एक जिन हाज़िर होता है जिसके सर पर दो सिंघ, लाल अंगारा आँखे काला रंग होता है परी उसे देख कर खौफ से बेहोश होजाती है !
”बताओ कि क्या खबर लाये हो ?” आसिफ ने जिन से पूछा !
”मेरे आक़ा उस जिन जादे और उसके परिवार को तहखाने से शहंशाह के बेटे ने निकाल लिया है। वो सब अब उसी महल के पिछले हिस्से में है आज उनके महल में कोई दावत का भी माहौल बना हुआ है काफी लोग जमा है वहाँ !” आसिफ के गुलाम जिन ने कहा !
“मैं वहाँ खुद जाना चाहता हूँ इस लड़की के साथ इस आईने के जरिये मुझे बस देखना यह है कि क्या वाकई में यह आईना तिलिस्मी है या नहीं? अगर ऐसा हुआ तो यह मेरे बहुत काम है तुम बस मेरी हिफाज़त करना उस दुनिया के जिनो से !” आसिफ ने कहा !
”जैसा आप कहे मैं तैयार हूँ !” आसिफ के गुलाम जिन ने कहा !
”तुम ऐसा करो के इस लड़की के नज़रों के सामने से गायब रहो वरना यह दोबारा डर कर बेहोश हो जायेगी मैं इसे होश में लाता हूँ !” आसिफ ने कहा फिर वो पास में रखे बोतल से पानी अपने हथेलियों पर लेकर परी पर पानी के छींटे मरता है कुछ पढ़ पढ़ कर उसपर दम करता है तो वो थोड़ी ही देर में होश में आजाती है !
“जिनो से मोहब्बत करने वाली, मेरे जिन को देख कर बेहोश हो गयी !” आसिफ ने परी को होश में आते देख कहा !
”मेरा उमैर इतना खौफनाक नहीं है !” परी ने कहा !
”चलो हमे इस आईने से उनकी दुनिया में भी चलना है !” आसिफ ने कहा !
”मगर मैं क्यों जाऊं और उमैर ने मुझे उसके बगैर उसकी दुनिया में आने से मना किया है आसिफ!” परी ने कहा !
”देखो परी वैसे तो मेरा गुलाम जिन ही उसे वहाँ से उठा कर ला सकता है मगर उसमे फिर बात बिगड़ सकती है इसलिए मैं चाहता हूँ के तुम साथ चलो ताके वो मुझ पर भरोसा कर सके !”आसिफ ने कहा तो परी मान जाती है बेचारी कर भी किया सकती थी उसे बस उमैर और उसके परिवार की सलामती चाहिए होती है इसलिए वो आसिफ के साथ आईने से उमैर की दुनिया में चली जाती है !
क्रमशः shah-umair-ki-pari-35
Previous Part – shah-umair-ki-pari-33
Follow Me On – instagram / youtube / facebook
Written By- Shama Khan
” हर एक को किसी ना किसी से इश्क़ जरूर होता है ,
कोई सह जाता है जुदाई ज़माने की खातिर
तो कोई उसे हासिल करने को सारे हदें तोड़ देता है !
होगा मंजूर अगर किस्मत को तो मिलेंगे जरूर
परी को तो आखिर उमैर का ही होना है !”