Sakinama – 17
Sakinama – 17
राघव को अपने लिए मैंने चुना और उसके साथ ही चुनी थी अपनी किस्मत जो एकदम से बदल चुकी थी। मैं उसकी , बेरुखी , उसकी बदतमीजियां , उसका गुस्सा और उसकी बदसुलूकी सब बर्दास्त कर रही थी महज़ सिर्फ इसलिए क्योकि वो मेरा पति था और मैंने उसके साथ अग्नि के सात फेरे लिए थे। राघव के साथ साथ उसकी मम्मी का बर्ताव भी काफी अजीब था।
कहते है शादी के बाद ससुराल में सास ही “माँ” होती है पर क्या वो सास कभी हम बहुओ को अपनी “बेटी” समझ पाती है शायद नहीं। मैंने उन्हें हमेशा अपनी मम्मी जैसा ही समझा और अब तक उनकी हर बात मानते आयी थी।
कुछ दिन यू ही गुजर गए और एक शाम मैं किचन में थी तब राघव के छोटे भाई ने आकर मुझसे कहा,”भाभी ये कल के लिए दो मूवी टिकट्स है , तुम और भाई चले जाओ”
“वो नहीं जायेंगे”,मैंने कहा , मैं राघव को जानती थी वो मेरे साथ बाहर नहीं जाएगा
“तुम पूछ लेना अगर जाये तो मुझे बता देना मैं टिकट्स ला दूंगा”,छोटे भाई ने कहा और वहा से चला गया
उसी रात अपने कमरे में आने के बाद मैंने राघव से कहा,”आपके छोटे भाई 2 मूवी टिकट्स के लिए कह रहे थे , आप देखने चलेंगे ?”
“नहीं कल मुझे काम है”,राघव ने कबर्ड खोलते हुए कहा
“हम्म्म कोई बात नहीं”,मैंने उस से दोबारा नहीं कहा , ना जिद करने का मन किया
“कल सुबह मुझे ऑफिस जल्दी जाना है , रात में घर नहीं आऊंगा अगले दिन शाम तक आ जाऊंगा”,राघव ने कहा
“आप कही जा रहे है ?”,मैंने पूछ लिया
“हाँ अपने दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूँ , कल सुबह ऑफिस का काम खत्म करके शाम में जाऊंगा और परसो तक वापस आ जाऊंगा”,राघव ने कबर्ड से अपने कपडे निकालते हुए कहा
“आप दोस्तों के साथ जा रहे है , हम कब जायेंगे ?”,उसका जवाब जानते हुए भी मैंने पूछ लिया
“पहले तुम घर अच्छे से सेट कर लो , यहाँ के माहौल को समझ लो उसके बाद एक दिन चलेंगे”,राघव ने कहा
“मुझे जो आता है वो मैं खुद से कर लेती हूँ बाकि मैं मम्मी से सीख रही हूँ , घर भी धीरे धीरे सेट हो जाएगा”,मैंने धीमी आवाज में कहा जबकि आज तक कभी मुझे राघव या उसकी मम्मी से कुछ अच्छा सुनने को नहीं मिला , तारीफ तो बहुत दूर की बात है।
“हाँ कोई जल्दी नहीं है”,राघव ने कहा
राघव आज अच्छे मूड में था इसलिए मैंने उसके सामने अपने मन की बात रखते हुए कहा,”मैं आपसे कुछ मांग सकती हूँ ?”
“हम्म्म बताओ”,राघव ने कहा
मेरे कमरे से लगकर ही एक छोटा स्टोर रूम था जहा मैं अपना रिकॉर्डिंग स्टूडियो और रायटिंग का काम सकती थी। मैंने राघव की तरफ देखा और कहा,”हमारे कमरे के बगल में जो स्टोर रूम है वो खाली है , मुझे वो स्टोर रूम चाहिए। मैं वहा अपना रायटिंग का काम करुँगी”
“ठीक है ले लेना लेकिन पहले घर सेट हो जाये उसके बाद”,राघव ने फोन चलाते हुए कहा
“हाँ हाँ बाद में ही , अभी तो मेरा लेपटॉप और सामान राजस्थान में है , मैं जब जाउंगी तब ले आउंगी”,मैंने खुश होकर कहा
आज मुझे राघव से कोई शिकायत नहीं थी , उसे मेरा सपना याद था मेरे लिए ये बहुत बात थी मैं ख़ुशी ख़ुशी सोने चली गयी। किताबे लिखना ही मेरा असली सुकून था और राघव ने मुझे इसकी परमिशन भी दे दी।
अगली सुबह राघव ऑफिस चला गया। दिनभर मैं ख़ुशी ख़ुशी घर के कामों में लगी रही। शादी को एक महीना हो चुका था शायद इसलिए छोटे भाई ने मूवी वाली बात की थी जिस से मैं राघव के साथ बाहर जा सकू पर राघव को तो ये सब याद ही नहीं था और याद होता तब भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। रात के खाने के बाद मैं अपने कमरे में चली आयी लेकिन खाली कमरा देखकर मन उदास हो गया।
मैं नीचे आकर मम्मी के कमरे में सो गयी। गर्मी की वजह से मम्मी पापा हॉल में सो रहे थे। आज पहली बार इस कमरे में मुझे अच्छी नींद आयी। सुबह मैं थोड़ा देर से उठी और अपने कामो में लग गयी। कपडे धोने के बाद मैं उन्हें सुखाने लगी तो मम्मी ने आकर कहा,”लो सपना तुमसे बात करना चाहती है”
मैंने साड़ी के पल्लू से अपने हाथ पोछे और फोन लेकर कान से लगाते हुए कहा,”हेलो ! जी दीदी नमस्ते”
“नमस्ते ! कैसी हो ? कर लिया काम ?”,उन्होंने पूछा
“हाँ बस हो गया”,मैंने कहा
“माँ बता रही थी राघव घूमने गया है , तुम भी चली जाती साथ में”,दीदी ने कहा
“वो अपने दोस्तों के साथ गए है , और वैसे भी जब वो अपने मन से कही लेकर जायेंगे तो मुझे ज्यादा ख़ुशी होगी”,मैंने कहा
“इसलिए राघव कह रहा था कि मृणाल बहुत समझदार है”,दीदी ने कहा
“क्या सच में उन्होंने ऐसा कहा था ?”,मैंने एकदम से पूछा मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था
“हाँ ! और मैं तो उसे बोलती भी हूँ कि तुझे कही बाहर लेकर जाये , घुमाकर लाये,,,,,,,,,,,अभी नयी नयी शादी हुई है तुम दोनों की ,, तुम दोनों खुश रहो , हँसते खेलते रहो हमे तो बस यही चाहिए”,दीदी ने अपनेपन से कहा
“घूमने फिरने के लिए अभी पूरी जिंदगी पड़ी है , अभी काम ज्यादा है ना उनके पास तो थोड़ा बिजी रहते है बाद में ले जायेंगे”,मैंने बुझे मन से कहा
दीदी कुछ देर मुझसे बात करती रही और फिर फोन काट दिया। फोन रखकर मैं एक बार फिर अपने काम में लग गयी।
कपडे सुखाते हुए एकदम से मन में ख्याल आया कि काश उन्हें मेरी याद आती और वो मुझे फोन करके पूछते कि तुम्हारे लिए क्या लेकर आउ ?”
मैं सब सोच ही रही थी कि तभी मेरा फोन बजा। मैंने फोन देखा राघव का ही था मेरी ख़ुशी और हैरानी का कोई ठिकाना ना था मैंने फोन उठाया तो राघव ने कहा,”तुम्हारे हाथ का नाप क्या है ?”
“हाँ ?”,मैंने असमझ की स्तिथि में कहा
“अरे मतलब चूड़ी का नाप क्या है ?”,राघव ने फिर पूछा
“मुझे नहीं पता , मैं मैं मम्मी से पूछ के बताती हूँ,,,,,,,,,,,!!”,कहते हुए मैं भागकर अंदर आयी और कहा,”मम्मी मेरे कौनसे नाप की चूड़ी आएगी ?”
“मुझे क्या पता देख लो तुम अपने आप”,उन्होंने टीवी देखते हुए कहा
मैं फोन लेकर वापस बाहर आयी और कुछ सोचते हुए कहा,”सवा दो , सवा दो आ जाता है”
“ठीक है,,,,,,,,!”,राघव ने इतना कहकर फोन काट दिया
मैंने मुस्कुराते हुए फोन अपने होंठो से लगा लिया। कुछ देर पहले ही मैंने सोचा और सच भी हो गया। राघव मेरे लिए चूडिया खरीद रहा है सोचकर ही मेरा मन ख़ुशी से खिल गया। आज वो घर वापस आने वाला था , मैं बहुत खुश थी। उसे पालक पनीर बहुत पसंद था , मैंने रात के खाने में उसके लिए वही बनाया। सब खाना खा चुके थे 10 बजे राघव का फोन आया और उसने कहा कि वह लेट आएगा और खाना बाहर ही खायेगा।
मैंने उसकी पसंद का खाना बनाया था लेकिन उस रात भी वो नहीं खा पाया।
देर रात राघव घर लौटा। राघव कमरे में आया , मैंने उसे पानी दिया और फिर इंतजार करने लगी कि वो मुझे तोहफा देगा जो वो मेरे लिए लाया है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने कपडे बदले और बिस्तर पर आकर लेट गया। मैं बिस्तर के दूसरी तरफ अपनी जगह आ बैठी और कहा,”ठीक रहा आपका काम ?”
“हाँ !!”,राघव ने कहा और फिर अपनी आँखे मूंद ली।
मैंने थोड़ी हिम्मत करके पूछा,”आप मुझसे हाथ का नाप क्यों पूछ रहे थे ?”
“ऐसे ही”,राघव ने आँखे मूंदे मूंदे कहा
“ऐसे ही मतलब ?”,मैंने फिर झिझकते हुए कहा
“क्यों पूछ नहीं सकता क्या ?”,राघव ने इस बार थोड़ा गुस्से से कहा
“नहीं मुझे लगा आप मेरे लिए,,,,,,,,,,,,,!!”,मैं अपनी बात पूरी करती इस से पहले ही राघव ने आँखे खोली और मेरी तरफ देखकर थोड़ा चिढ़ते हुए कहा,”क्या लगा तुम्हे ? तुम ना ये सब सोचना बंद करो , मैंने बस ऐसे ही पूछ लिया। तुम्हे ना बड़ी जल्दी है तुम्हे सब आज ही चाहिए,,,,,,,,,,,,,सब्र नहीं है तुम में”
“आप गुस्सा क्यों हो रहे है मैंने ऐसा क्या कह दिया ?”,मैंने कहा
“तुम्हे सब पता है तुमने जो किया है मुझे बताने की जरूरत नहीं है।
मेरे सामने ज्यादा सीधी मत बनो तुम”,राघव ने कहा ऐसा लग रहा था जैसे वो जान बूझकर झगड़ा करना चाहता है
“आप मुझसे हमेशा ऐसे बात क्यों करते हो ? आप अच्छे से भी बात कर सकते हो ?”,मैंने राघव की तरफ देखते हुए कहा
“देखो मुझे तुमसे कोई बहस नहीं करनी है”,राघव ने कहा
“पर मुझे करनी है , मुझे जानना है कि आखिर ये सब क्या है ? क्यों कर रहे हो आप मेरे साथ ऐसा ? ना आप ठीक से बात करते हो ? ना आपको मेरी परवाह है,,,,,,,,,,,,
मैं रिक्वेस्ट करती हूँ आपसे मेरे साथ ऐसा मत कीजिये मुझे इन सबकी आदत नहीं है। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब आप ऐसे बात करते है”,मैंने लगभग रोते हुए कहा
“आदत डाल लो”,राघव ने बेपरवाही से कहा
मैं आगे कुछ नहीं बोल पायी बस कुछ देर उसे देखते रही और फिर लेट गयी। आँखों में ठहरे आँसू बहने लगे। राघव मुझसे क्या चाहता था ना खुद कुछ कह रहा था ? ना मेरी सुन रहा था ?
पिछले एक महीने से यही सब हो रहा था और ये सब देखते देखते मैं परेशान हो चुकी थी। किसी से अपनी तकलीफ कह नहीं सकती थी , किसी से कहती तो कोई समझता नहीं,,,,,,,,,,,,,!!
दो दिन बाद से ही नवरात्री शुरू होने वाली थी। स्थापना से एक दिन पहले मैंने मम्मी के साथ मिलकर सब तैयारियां कर ली। मेरी ईश्वर में बहुत श्रद्धा है इसलिए मैं हर साल नवरात्री उपवास रखती और इस बार वो उपवास मैं अपने नए घर में रखने जा रही थी लेकिन मेरी तकदीर में ना जाने क्या लिखा था। स्थापना से एक रात पहले ही राघव और मेरे बीच झगड़ा हो गया और ये अब तक का सबसे बुरा झगड़ा था। उसे गुस्से में देखकर मैंने नीचे आकर मम्मी पापा को बता दिया।
पहली बार मैंने हमारे बीच हुयी बात उन्हें बताई और इस वजह से राघव और ज्यादा गुस्सा हो गया। उसके हिसाब से मैंने उसके माँ बाप को परेशान किया। अगली सुबह स्थापना थी और राघव नाराज था। पूजा के बाद वह ऑफिस चला गया और मैं घर के कामों में लग गयी। शाम में सोसायटी में खाने का प्रोग्राम था मेरी तबियत ख़राब थी इसलिए मैंने जाने से मना कर दिया।
मैंने पहली बार राघव का गुस्सा देखा था और उस गुस्से ने मुझे काफी डरा दिया था। आज से पहले मैंने कभी किसी को ऐसे नहीं देखा था। खाना खाकर मैं अपने कमरे में चली आयी। राघव ने मुझसे कोई बात नहीं की , पहले हमारे बीच बहुत कम बात होती थी और अब वो बातें भी बिल्कुल बंद हो चुकी थी।
अगली सुबह पूजा के दौरान मेरी नजर राघव के हाथ पर पड़ी उसकी दो उंगलियों में प्लास्टर बंधा था। ये देखकर मेरा मन घबरा उठा। मैंने राघव का हाथ देखने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया उसने अपना हाथ पीछे कर लिया और वहा से चला गया। मैं दिनभर उसी के बारे में सोचती रही , उसने जो बुरा बर्ताव किया मैं वो भूल चुकी थी और उसके हाथ की परवाह कर रही थी। मैंने राघव को फोन किया
“हाँ बोलो”,उसने फोन उठाकर कहा
“खाना खाया आपने ?”,मैंने पूछा
“नहीं अब जाऊंगा खाने”,राघव ने कहा
“वो आपके हाथ पर कैसे लगी ?”,मैंने पूछ लिया
“जिसकी वजह से लगी है उसे पता होना चाहिए कैसे लगी ?”,राघव ने कहा
“मेरी वजह से ? पर मैंने तो,,,,,,,,,,,!”,मैंने कहना चाहा
“गुस्सा तुमने दिलाया था”,राघव ने मेरी बात बीच में काटते हुए कहा
“मुझे माफ़ कर दीजिये,,,,,,,,,,,मैंने जान बूझकर नहीं किया , आप ,,,,,,,,,आप डॉक्टर को दिखा लीजिये और दवा ले लीजिये”,मैंने कहा
“मैं रखता हूँ मुझे काम है”,राघव ने कहा
“मेरी बात,,,,,,,,,,,,,!!!”,मै आगे कुछ कहती इस से पहले ही राघव ने फोन काट दिया
मेरा मन और उदास हो गया। मेरी वजह से राघव ने खुद को चोट पहुंचा ली सोचकर बुरा लग रहा था।
मैं हॉल में चली आयी तो मैंने सूना मम्मी फोन पर किसी से बात कर रही है और उन्हें मेरे बारे में काफी गलत बोल रही है। मुझे सब बर्दास्त था लेकिन झूठ और गलत बातें नहीं इसलिए जब वो फोन रखकर हॉल में आयी तो मैंने उनसे पूछ लिया,”आप मेरे बारे में गलत बातें क्यों फैला रही है ? मैंने राघव को नहीं मारा है वो गलती से उन्हें लगा है”
“चलो बैठकर बात करो”,उन्होंने कहा और हॉल की तरफ चली आयी।
वे खुद सोफे पर आ बैठी और मुझे अपने सामने जमीन पर बैठने का इशारा किया। मैं उनके सामने आ बैठी। उन्होंने मुझे देखा और कहा,”तुम मुझे अपनी माँ समझो और जो बात है वो साफ साफ बता दो , खुलकर बताओ तुम्हे किसी से डरने की और कुछ सोचने की जरूरत नहीं है”
पहली बार मुझे उन में एक औरत नजर आयी जिसके सामने मैं अपने मन की बात कर सकती थी। मैंने उन्हें सब बता दिया , अब तक राघव ने जैसा बर्ताव मेरे साथ किया था ,
उसके और मेरे रिश्ते की सच्चाई सब एक एक करके उनके सामने कह दिया। ये सब कहते हुए ना जाने कितनी ही बार मेरी आँखों से आँसू बहे लेकिन मैंने उन्हें सब बता दिया। मेरी बात सुनने के बाद उन्होंने मुझे एक झूठी कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि उनके गांव में जवानी में किसी औरत की मौत हो गयी थी इसलिए वह आत्मा बनकर सब मर्दो को परेशान करती है। तभी पति पत्नी में झगड़ा होता है और अच्छी नहीं बनती।
मैं इन बातो में विश्वास नहीं करती लेकिन जो मेरे साथ हो रहा था उसके बाद उनकी बातो पर यकीन करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। मैंने अपने आँसू पोछे और उठकर जाने लगी तो उन्होंने मुझे वापस बैठने को कहा। मैं एक बार फिर उनके सामने आ बैठी तो वे कहने लगी,”पति अगर मारे पीटे , गाली दे , बात करे या ना करे , वो जैसे रखे वैसे पत्नी को रहना चाहिए। अब यही तुम्हारा घर है और तुम्हे यही रहना है इसलिए शाम में जब वो आये तो उसके पैर पकड़कर उस से माफ़ी मांग लेना और कहना कि मुझे आपके साथ ही रहना है
वरना वो तुम्हे घर से निकाल देगा। तुम गरीब घर से हो , अगर यहाँ से जाओगी तो तुम्हारे माँ-बाप किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे , तुम्हारी बदनामी होगी , तुम पर दाग लगेगा। वो तो लड़का है उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन तुम्हे लोग जीने नहीं देंगे। मेरी बात मानो और उस से माफ़ी मांग लो सब ठीक हो जाएगा”
मम्मी की बात सुनकर मैं सोच में पड़ गयी। मै ये कैसे भूल गयी कि मेरे साथ मेरे माँ-बाप की इज्जत भी जुडी है। मैं उठी और अपने कमरे में चली आयी।
मम्मी की कही बातें मेरे जहन में घूमती रही। शाम में राघव घर आया , मैं उसके लिए पानी लेकर गयी तो उसने मना कर दिया। वह हॉल में बैठकर टीवी देखने लगा। खाना बनाने के बाद मैं उसके पास चली आयी मैंने उसका हाथ देखना चाहा तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैं समझ गयी कि वो मुझसे बहुत ज्यादा नाराज है। मैं घुटनो के बल वही उसके बगल में बैठ गयी और कहा,”जो कुछ भी हुआ उसमे आपकी और मेरी दोनों की गलती थी ,
मैंने जान बूझकर कुछ नहीं किया ये सब गलती से हो गया मैं आपको चोट नहीं पहुँचाना चाहती थी। मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ मुझे माफ़ कर दीजिये”
ये जानते हुए भी कि मेरी कोई गलती नहीं है मुझे राघव से माफ़ी मांगनी पड़ी। राघव ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया वह बस टीवी देखता रहा।
“मैं जानती हूँ मुझसे गलतिया हुयी है , मैं वैसी नहीं बन पा रही हूँ जैसा आप लोग चाहते है पर मैं कोशिश कर रही हूँ।
मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती ना ही मैं आपको ऐसे दर्द में देख सकती हूँ। प्लीज मैं मैं हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी मांगती हूँ,,,,,,,,,,,,,,,मुझे माफ़ कर दीजिये”,कहते हुए लगभग मेरी आँखों में नमी तैरने लगी थी। राघव ने एक नजर मुझे देखा और कहा,”ये सब पहले सोचना चाहिए था”
“मैं प्रॉमिस करती हूँ आगे से ऐसा नहीं होगा , मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी ,, मैं मैं अपने महादेव की कसम खाकर कहती हूँ
मैं आज के बाद आपसे कुछ नहीं कहूँगी , बस आप मुझे माफ़ कर दीजिये , मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है , मैं कल से बहुत परेशान हूँ प्लीज”,मैंने राघव की बांह थामते हुए कहा
“हाँ ठीक है”,राघव ने बेरुखी से कहा
“आपने मुझे माफ़ कर दिया ना , अब अपना हाथ दिखा दीजिये , बहुत ज्यादा लगी होगी मुझे एक बार देखने दीजिये”,जिस हाथ को मैंने पहली बार थामा उसी हाथ की उंगलियों पर प्लास्टर लगा था।
“मैंने कहा ठीक है ये नहीं कहा कि मैंने माफ़ कर दिया”,राघव ने नफरत से कहा
मैं उसकी आँखों में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती थी उसके बाद मैंने वो किया जो मैंने अपनी जिंदगी में किसी के लिए नहीं किया था। अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट को साइड में रखकर मैंने काँपते हाथो से उसके पैरो को छुआ और कहा,”मैं आपके पैर पकड़कर आपसे माफ़ी मांगती हूँ , मुझे माफ़ी कर दीजिये। आपकी माफ़ी के लिए मैं इस से ज्यादा और क्या कर सकती हूँ आप बताये मैं सब करने के लिए तैयार हूँ बस आप मुझे माफ़ कर दीजिये”
ये मेरे सब्र की आखरी सीमा थी ये करते हुए मेरी आँखों में ठहरे आँसू बहने लगे। मैंने रोते हुए ना जाने कितनी बार उसे सॉरी कहा , माफ़ी मांगी लेकिन उसका दिल नहीं पिघला। वो इंसान इतना कठोर कैसे हो सकता था ? मैंने माफ़ी मांगी क्योकि मुझे उसके साथ रहना था उस घर में ताकि मेरे माँ-बाप शर्मिन्दा ना हो , मैंने माफ़ी मांगी क्योकि मुझे ये रिश्ता निभाना था ताकि लोग मुझ पर ना हँसे , मैंने माफ़ी मांगी क्योंकी मैं उस से प्यार करने लगी थी और ये सच था कि किसी के प्यार ने आज पहली बार मुझे इतना कमजोर बना दिया कि किसी की माफ़ी मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट से भी ऊपर थी।
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