Sanjana Kirodiwal

साक़ीनामा – 16

Sakinama – 16

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 16

सुबह सुबह राघव तैयार होकर ऑफिस चला गया। मैं अब बहुत कम हसती थी दिनभर खुद को घर के कामों में बिजी रखती या फिर अपने कमरे में बैठकर अपने हालात पर रोते रहती। मैं खुद को अकेला महसूस करने लगी। घर से , दोस्तों के फोन आते तो  झूठ पर झूठ बोलती की सब ठीक है , मैं अपनी नयी जिंदगी में खुश हूँ जबकि सच्चाई कुछ और थी।

मेरा वजन कम होने लगा था , पहले से शरीर थोड़ा कमजोर हो चुका था लेकिन घर में किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। ऐसा नहीं था कि घर में खाने पीने की कमी थी लेकिन खाया पीया शरीर को लग ही नहीं रहा था। राघव की बहनो के फोन आते रहते थे मेरे पास और वो सब भी बस मुझे समझाया करती , सलाह देती कि मैं राघव को अपने कंट्रोल में लू,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं अक्सर सोचती कि एक इंसान को कंट्रोल कैसे किया जा सकता है ?


एक हफ्ता गुजर गया और इस एक हफ्ते में दर्द को लेकर मुझे दो बार हॉस्पिटल जाना पड़ा। पहली बार मम्मी के कहने पर राघव लेकर गया और दूसरी बार पापा मैं समझ नहीं पा रही थी कि राघव अच्छा इंसान है या बुरा,,,,,,,,,,,,,,,,,,कभी कभी लगता उसे फर्क पड़ता है लेकिन अगले ही पल वह मुझे फिर नजरअंदाज कर देता। वो मुझसे क्या चाहता था मैं खुद नहीं जानती थी।

एक सुबह मेरी आँख खुली मैं उठकर बाथरूम में चली आयी। अचानक से किडनी में दर्द फिर होने लगा और आज दर्द के साथ साथ उल्टियां भी शुरू हो गयी। मेरी तबियत खराब होने लगी जैसे तैसे करके मैं बाथरूम से बाहर आयी। राघव बिस्तर पर बैठा अपने कपडे प्रेस कर रहा था। दर्द इतना ज्यादा था कि मैं अपना पेट पकड़कर घुटनो के बल जमीन पर बैठ गयी। मेरा चेहरा लाल हो चुका था और आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने एक नजर मुझे देखा और वापस अपना ध्यान प्रेस पर जमा लिया।

उस वक्त मैं कुछ कहने की स्तिथि में नहीं थी मैं बस रोते रही। राघव उठा और मुझे देखते हुए कमरे से बाहर चला गया। मैंने थोड़ी हिम्मत की , आपने आँसू पोछे और जैसे तैसे करके नीचे चली आयी। मुझे रोते देखकर मम्मी ने पूछा,”क्या हुआ ?”
“दर्द हो रहा है”,मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा
“एक काम करो थोड़ी देर गैलेरी में घूम लो , आराम आ जाएगा”,उन्होंने कहा और दूध उबालने लगी


मैं उनकी बात मानकर गैलेरी में चली आयी और घूमने लगी। दर्द कम नहीं हुआ और उस दर्द से भी ज्यादा दर्द था राघव की बेपरवाही का उसने एक बार भी जानने की कोशिश नहीं। गैलरी में घूमते हुए खिड़की के पास से गुजरते हुए मैंने सूना राघव की मम्मी राघव से कह रही थी “उस से जाकर पूछ हॉस्पिटल दिखाकर लाना है क्या ? ये रोज रोज का नाटक हो चूका है उसका”
उनकी बात सुनकर बहुत बुरा लगा लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा बस कोशिश करने लगी कि कैसे भी करके ये दर्द कम हो जाये।

जब सहन नहीं हुआ तो मैंने वही दिवार से अपना सर लगा दिया। राघव मेरी तरफ आया और कहा थोड़ा गुस्से से कहा,”एक दिन ऐसे ही मर जाएगी ये”
उसकी आवाज सुनकर मैंने जल्दी से अपने आँसू पोछ लिए। वह मेरे पास चला आया और मेरी बगल में खड़े होकर कहा,”हॉस्पिटल जाना है ?”


इमरजेंसी जाकर इंजेक्शन और पैन किलर खाते मैं थक चुकी थी इसलिए मैंने मना कर दिया। उसे शायद मेरी ना का ही इंतजार था। उसने मेरी ना सुनी और वहा से चला गया। मैं वापस अपने कमरे में चली आयी और बिस्तर पर लेट गयी। मम्मी गुस्सा थी क्योकि मैंने आज घर का कोई काम नहीं किया था।

पापा को जब पता चला तो उन्होंने बिना किसी से कुछ कहे हॉस्पिटल में एक अच्छे डॉक्टर से मेरे लिए अपॉइंटमेंट लिया और राघव के छोटे भाई के साथ मुझे वहा बुला लिया। मेरे कुछ टेस्ट करवाए और दवा लेकर वो मेरे साथ घर चले आये। मम्मी को ये बात भी पसंद नहीं आयी लेकिन वो चुप रही। दोपहर में दवा लेकर मैं सो गयी। शाम में उठकर जब नीचे आयी तो देखा सपना दीदी और उनके दोनों बच्चे घर आये हुए है।  दीदी की बेटी आते ही मुझसे चिपक गयी , उनका बेटा भी मेरे पास चला आया और मैं मुस्कुरा उठी।


मुझे मुस्कुराते देखकर मम्मी ने दीदी से कहा,”पुरे 4 दिन बाद मुस्कुराई है ये”
“हाँ मुझे पता चला इसके किडनी स्टोन के बारे में , अब कैसा है दर्द ?”,सपना दीदी ने पूछा
“ठीक है , मैं आपके लिए चाय ले आती हूँ”,मैंने कहा तो उन्होंने मना कर दिया और हॉल में आ बैठी। जीजाजी आउट ऑफ स्टेशन गए थे इसलिए दीदी दो दिन के लिए यहाँ आ गयी। उन्हें और बच्चो को देखकर मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था।

शाम में राघव टीवी लेकर आया। उसने उसे हॉल में सेट कर दिया। रात के खाने के बाद मैं गैलरी में अकेले बैठकर बर्तन धो रही थी तभी सपना दीदी वहा आयी और दिवार के पास खड़े होकर मुझसे बात करने लगी। बातो बातो में उन्होंने कहा,”तू ना गुस्सा थोड़ा कम किया कर”
उनकी बात सुनकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई और मैंने कहा,”कैसा गुस्सा ? मैंने तो अभी तक कोई गुस्सा नहीं किया है”


“देख राघव का नेचर ही ऐसा है , वो थोड़ा गुस्से वाला है और हम सब से भी कम ही बात करता है तू उसे थोड़ा प्यार से बात करने की कोशिश किया कर , धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा”,दीदी ने कहा
“मम्मी जी या राघव जी ने आपसे कुछ कहा है ?”,मैंने पूछा
“नहीं मैं ये सब खुद से ही कह रही हूँ”,दीदी ने कहा और फिर जब तक सब बर्तन धुले तब तक वो मुझे नसीहतें देते रही जो मेरे किसी काम की नहीं थी।

वो नसीहते उस रिश्ते में काम आती जो दोनों तरफ से हो,,,,,,,,,,,, एकतरफा रिश्ते में वो नसीहते किसी काम की नहीं थी।
देर रात तक सभी हॉल में ही बैठे बातें करते रहे ,  राघव , दीदी और मम्मी के सामने भी मुझे घूंघट में बैठना पड़ा और कुछ बोलने की इजाजत तो मुझे बिल्कुल नहीं थी बस सिर्फ सुनना था। कुछ देर बाद उठकर मैं अपने कमरे में चली आयी।


अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट , अपने उसूल , अपनी सोच को साइड कर मैंने दीदी के कहने पर राघव से प्यार से बात करने का सोचा और उसके आने का इंतजार करने लगी। देर रात राघव कमरे में आया। आज रोजाना की तरह मैं खामोश नहीं थी , मैंने मुस्कुराते हुए राघव को देखा , मैं जान बुझकर उस से कुछ ना कुछ बात कर रही थी और उसके जवाब मेरे सीने में चुभ रहे थे। मैं उसके सामने जितना नरम हो सकती थी मैंने कोशिश की लेकिन वो कठोरता से ही जवाब देता रहा। वह बिस्तर पर आ बैठा और कहा,”तुम जाओ यहाँ से”


“आप जानते है मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती , आप मुझसे बात करे या ना करे मैं अपना फर्ज निभाती रहूंगी। मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए , ये ऐशो आराम की जिंदगी , गाड़ी , पैसा , घर कुछ भी नहीं मैं बस आपको खुश देखना चाहती हूँ। आप जब ऐसे मुंह बना के घूमते हो तो लगता है मेरी वजह से अपसेट हो और फिर मेरा मन भी खराब हो जाता है।

मुझे कोई और नहीं चाहिए आप काफी हो मेरे लिए,,,,,,,,,,,,,मैं सिर्फ आपके साथ रहना चाहती हूँ , मुझे ज्यादा नहीं चाहिए बस थोड़ा सा वक्त चाहिए आपका , आप मुझसे अच्छे से बात भी कर लेंगे तो मेरे लिए काफी होगा।”,कहते कहते ना जाने क्यों मैं भावुक होने लगी भले ही ये सब बाते मैंने दीदी की नसीहत के बाद कही हो लेकिन कही ना कही थी तो ये मेरे दिल का हाल ही
“हाँ क्योकि तुम मुझसे प्यार करती हो”,राघव ने मेरी तरफ देखकर कहा तो सहसा ही मेरी आँखों में नमी उतर आयी


मैं एकटक उसे देखते रही कितनी आसानी से उसने मेरी आँखों को पढ़ लिया। हाँ मुझे उस से प्यार हो चुका था और यही बात मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी। मैंने राघव से कभी इस बात जिक्र नहीं किया था। मैं उसकी बात का जवाब देती इस से पहले ही उसने आगे कहा,”लेकिन मेरे दिल में कोई फीलिंग्स नहीं थी पहले कभी रही होगी लेकिन अब वो मैं फ्लश में बहा चुका हूँ”
उसकी बात सुनकर दिल टूट गया , कोई इंसान ऐसे कैसे बदल सकता है मैं बस बैठकर यही सोच रही थी।

मुझे खामोश देखकर वह हसने लगा। उसकी हंसी मुझे अपने सीने में चुभती महसूस हुयी। आँखों में भरे आंसुओ को आँखों में ही रोक लिया और सोने चली गयी। ये सच था कि मैं एक गलत इंसान से प्यार की उम्मीद कर रही थी लेकिन मेरा दिल,,,,,,,,,,,,मेरा दिल ये मानने को तैयार ही नहीं था कि राघव बदल सकता है , वो इंसान बदल सकता है जिसे मैंने खुद चुना था। रातभर मन में यही सब बातें चलती रही और नींद आ गयी।

सुबह राघव जल्दी ऑफिस चला गया। मेरा मैं नीचे चली आयी सबके लिए नाश्ता बनाया और घर के कामों में लग गयी। दीदी बच्चो के साथ बड़े भैया के घर चली गयी। दोपहर बाद उन्होंने मुझे भी वहा आने को कहा। घर का काम खत्म कर मैं बड़े भैया के घर चली आयी। मम्मी और राघव जी ने मुझे पहले ही मना कर दिया था कि मैं उन्हें घर की बातें ना बताऊ ना उनसे ज्यादा बात करू इसलिए मैं उनसे कम ही बात किया करती थी।

भाभी और दीदी ने बाहर जाने का प्लान बनाया और मुझे भी साथ चलने को कहा हालाँकि मम्मी ने मुझे जल्दी घर आने को कहा था लेकिन वो लोग जिद करने लगी तो मुझे उनके साथ जाना पड़ा। शाम में सभी वापस लौट आये। घर आये तो मम्मी का चेहरा देखकर ही समझ आ गया कि वो गुस्से में है इसलिए मैं चुपचाप अंदर चली आयी और किचन में काम करने लगी।
दीदी , बच्चे और मम्मी हॉल में बैठे थे। कुछ देर बाद राघव भी ऑफिस से आ गया और हॉल में ही बैठ गया।

राघव की नजर टीवी पर पड़ी तो वह उठा और जेब से रुमाल निकालकर उसे पोछने लगा। दीदी ने देखा तो कहा,”ये तू क्यों कर रहा है , मृणाल को बोल दे वो कर देगी”
“वो करती तो ये निशान रहता क्या ?”,राघव ने बेरुखी से कहा
“कर देगी , वो गांव से आयी है ना तो उसने अपने घर में ये सब नहीं देखा है इसलिए उसे नहीं पता कैसे करना होता है। धीरे धीरे सब सिख जाएगी”,दीदी ने ताना मारते हुए कहा


उनके कहने का क्या मतलब था मैं समझ रही थी। मैं मिडिल क्लास फॅमिली से थी और राघव थोड़े अच्छे घर से पर यहाँ फर्क स्टेटस का नहीं था यहाँ फर्क था सोच का जो दीदी और राघव की बातो से साफ झलक रही थी। खैर मैंने उनकी बातो को नजरअंदाज किया और अपना काम करने लगी क्योकि ससुराल आकर एक लड़की को सबसे पहले यही सीखने की जरूरत है वरना वो ससुराल में निबाह नहीं कर पायेगी। मैं मुस्कुराते हुए अपना काम करने लगी।

अगली सुबह राघव फिर जल्दी उठ गया और उसे मीटिंग में जाना था। दीदी की कुछ नसीहते अभी भी मेरे दिमाग में थी इसलिए मैंने उसके साथ बहुत बहुत प्यार से पेश आने की कोशिश की लेकिन राघव में कोई बदलाव नहीं था। वो ऐसे दिखा रहा था जैसे उसकी जिंदगी में मेरा होना या ना होना बराबर है। मैंने उसे उसकी मीटिंग के लिए बेस्ट ऑफ लक कहा और उसे छोड़ने गेट तक चली आयी। उसने पलटकर भी नहीं देखा और चला गया।


मुझे घर और अपने लिए कुछ सामान खरीदना था इसलिए दीदी और बच्चो के साथ मॉल चली आयी। सामान खरीदते हुए मेरी नजर चॉकलेट्स और ओरिओ बिस्किट्स पर चली गयी। राघव मेरे साथ कितना भी बुरा बर्ताव करे मेरे मन में अभी भी उसके लिए इज्जत और प्यार था। मैंने उसके लिए वो सब खरीदा जो उसे पसंद था और लेकर घर चली आयी।


शाम में दीदी और बच्चे अपने घर चले गए। मेरा मन एक बार फिर उदास हो गया बच्चो के साथ से ही सही मैं कुछ वक्त के लिए अपना दर्द भूल चुकी थी। सब खाना खाकर सोने चले गए। मैंने राघव को फोन लगा दिया। उस से घर आने का पूछा तो उसने आधे घंटे बाद आने की बात की।
“जब राघव आएगा तब साथ में ही खाना खा लेंगे”,मैंने खुद से कहा और हॉल में ही बैठकर उसका इंतजार करने लगी। एक घंटा बीत गया लेकिन वो नहीं आया मैंने फिर फोन किया तो एक घंटे का कहा।

मैं फिर बैठकर इंतजार करने लगी। रात के 11 बजने लगे और साथ ही मेरी भूख भी मर चुकी थी। मैंने वही सोफे के हत्थे से अपना सर लगा लिया और मेरी आँख लग गयी।
कुछ देर बाद फोन बजा राघव बाहर खड़ा था। मैंने उठकर दरवाजा खोला। राघव अंदर चला आया मैंने खाने का पूछा तो राघव ने कहा कि वह बाहर से खाकर आया है और ऊपर कमरे में चला गया।
मैं खाने के लिए उसका इंतजार कर रही थी , रात बहुत हो चुकी थी और खाना खाने का मन नहीं हुआ।

मैंने एक ग्लास पानी पीया और ऊपर कमरे में चली आयी। राघव खिड़की के पास खड़ा बोतल से पानी पी रहा था। मैंने बिस्तर पर बैठते हुए पूछा,”कैसी रही आपकी मीटिंग ?”
“हम्म्म ठीक थी , लगता है इस बार काम हो जाएगा”,राघव ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा
“महादेव की कृपा से सब हो जाएगा”,मैंने मुस्कुरा कर कहा
“यार भूख लग रही है मैं शाम में बहुत जल्दी खाना खा लिया था”,राघव ने पलटकर कहा


“किचन में खाना रखा है , मैं गर्म करके ले आउ”,मैंने उठते हुए कहा
“नहीं खाना तो नहीं खाऊंगा , और कुछ है क्या ?”,राघव ने पूछा
“मैं कुछ और बना दू , वैसे नमकीन भी रखा है नीचे और फल है वो ले आउ”,मैंने पूछा
“दूध रखा है क्या ?”,राघव ने पूछा उसे शाम में हमेशा ठंडा दूध पीने की आदत थी


“हाँ रखा है मैं अभी लाती हूँ”,मैंने कहा और नीचे चली आयी। मैंने फ्रीज से दूध का पैकेट लेकर ग्लास में निकाल दिया। साथ ही एक बिस्किट का पैकेट भी ले लिया क्योकि उसे दूध के साथ ओरियो खाना पसंद था।
राघव ने दूध बिस्किट खाया और कुछ देर बाद सोने चला गया। वह खुद से कभी मुझसे बात नहीं करता था और अब मैंने भी उस से जिद करना छोड़ दिया था।

एक सुबह हॉल की सफाई करते हुए टीवी के ऐड ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा। मैं रूककर उसे देखने लगी। वह किसी पाकिस्तानी सीरियल का ऐड था।
एक लड़की जो दुनिया की सबसे बड़ी राइटर बनना चाहती है , उसे देखने जो लड़का आता है वह कहता है कि शादी के बाद वह उसके इस सपने को पूरा करेगा लेकिन शादी के बाद पहली ही रात वही लड़का उस लड़की से कहता है “ये किताबे लिखना बंद करो और घर सम्हालो , अब यही तुम्हारी दुनिया है और यही तुम्हारा काम”


उस ऐड को देखकर ना जाने क्यों उस लड़की में मैंने खुद को देखा और मन में अजीब सा ख्याल आया। मैं खुद से ही कहने लगी,”यहाँ आने के बाद मैंने कभी रायटिंग के बारे में सोचा ही नहीं। मैं अपने सपनो को कैसे भूल सकती हूँ ? अगर राघव ने भी मेरे साथ ऐसा ही कुछ किया तो,,,,,,,,,,,,,,,,नहीं राघव ऐसा नहीं है वो मेरे साथ कभी ऐसा नहीं करेगा ,, उसने मुझसे वादा किया था कि वो रायटिंग में मेरा साथ देगा”
ऐसी बातें करके मैं सिर्फ खुद को कुछ वक्त के लिए बहला सकती थी लेकिन कही ना कही मन में ये ख्याल बार बार आ जा रहे थे।  

शाम में राघव घर आया। मैंने हमेशा की तरह पानी का ग्लास ले जाकर उसे दिया उसने ग्लास लिया और साइड में रख दिया। मुझे दवा लेनी थी इसलिए मैंने ड्राप को पानी से भरे गिलास में डाला और मिक्स करने लगी। राघव पानी का गिलास लिए मेरी तरफ आया और मुंह में भरा पानी किचन सिंक में थूक दिया। ये देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने कहा,”आपको वहा नहीं थूकना चाहिए था , वो किचन का सिंक है। वहा पीने का पानी भी रखते है”
मेरी बात राघव को इतनी बुरी लगी कि वह जाते जाते पलटा और मेरी तरफ आया।

उसने एक बार फिर अपने मुंह में भरा पानी मेरे हाथ में पकडे ग्लास में थूक दिया , वो गिलास जिसमे पानी के साथ मेरी दवा भी थी। उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और बेशर्मी से मुस्कुराते हुए वहा से चला गया। उसकी इस हरकत पर मैंने अपने दाँत भींच लिए और आँखे मूँद ली। एक शाम मैंने उस से सम्मान मांगा था और आज ये करके उसने मुझे अहसास दिला दिया कि इस घर में मेरी यही औकात है।

जिस सेल्फ रिस्पेक्ट की मैंने राघव के सामने बात की थी वह उसी सेल्फ रिस्पेक्ट की धज्जिया उड़ाकर चला गया। मेरा आत्म सम्मान नीचे गिरा मुझ पर हंस रहा था।
अगले ही पल राघव की मम्मी वहा किसी काम से आयी मैंने पहली बार हिम्मत करके उन्हें ये बताया और कहा,”आप उन्हें समझा दीजिये मैं ऐसी हरकत दोबारा बर्दास्त नहीं करुँगी”
उन्होंने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा कर चली गयी।

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