Sanjana Kirodiwal

साक़ीनामा – 18

Sakinama – 18

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 18

मेरे बार बार माफ़ी मांगने के बाद भी उसने मुझे माफ़ नहीं किया। वो अपने घमंड में चूर था और मैंने उसकी मोहब्बत में अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट तक गवा दी। मेरा उपवास था। सब खाना खा चुके थे लेकिन मेरा खाना खाने का मन नहीं हुआ। मैंने जूठे बर्तन समेटे और उन्हें धोने के लिए गैलेरी में ले आयी। मैंने खुद को हिम्मत देनी चाही लेकिन नहीं दे पायी और नल के पानी के साथ मेरी आँखों से आँसू भी बहने लगे।

वो तब तक बहते रहे जब तक सब बर्तन ना धूल गए। मुझे बार बार बस मेरा उसके सामने गिड़गिड़ाना याद आ रहा था , एक माफ़ी के लिए उसके सामने हाथ जोड़ने – पैर पकड़ने याद आ रहे थे। अगर ये उसकी मोहब्बत है तो फिर उसकी नफरत कैसी होगी ? मैं खुद को बेबस और लाचार महसूस कर रही थी। एक ऐसा इंसान जो सही होकर भी खुद को सही साबित नहीं कर पा रहा था।
मैंने बर्तन समेटे और अंदर चली आयी। रोने से मेरा चेहरा और आँखे लाल हो चुकी थी।


किचन के प्लेटफॉर्म पर मैंने अपने लिए खाना निकालकर रखा था खाने का मन नहीं हुआ तो उसे ढककर रख दिया। उस घर की गैलरी मेरी सबसे पसंदीदा जगह थी , उस घर में मैंने सबसे ज्यादा समय वही बिताया था। मैं एक बार फिर वहा चली आयी सामने दूर तक फैला जंगल था और कुछ ही दूर एक घर। मैं आँसुओ से भरी आँखों से उस अँधेरे को देखती रही। वैसा ही अँधेरा मेरी जिंदगी और मेरे मन में भी था और अब ये अँधेरा मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था।


राघव की मम्मी ने खाने की प्लेट देखी तो जाकर राघव से कहा,”उसने उपवास रखा है , जाकर उसे खाना खाने के लिए बोल दे वरना वो भूखी रही तो उसका पाप तेरे सर पर चढ़ेगा”
राघव खुद से नहीं आना चाहता था लेकिन मम्मी के कहने पर उसे आना पड़ा। वह मेरे पास आया और कहा,”खाना खा ले”
“मुझे भूख नहीं है”,मैंने सामने देखते हुए कहा


उसने मेरी बांह पकड़कर मुझे अपनी तरफ किया और गुस्से से दबी आवाज में कहा,”खाना खा ले और आज के बाद ऐसा कुछ किया तो तेरा बोरिया बिस्तर उठाकर बाहर फेंक दूंगा”
मैंने कुछ नहीं कहा बस नम आँखों से उसे देखते रही। मैं अंदर चली आयी मैंने खाने की थाली उठायी और वही किचन में बैठकर खाने लगी। गुस्से और तकलीफ की भावना से भरकर मैंने जल्दी जल्दी दो तीन निवाले खाये और फिर मेरा हाथ एकदम से रूक गया। आँखों में भरे मोटे मोटे आँसू गालों पर लुढ़क आये। मैंने थाली को साइड कर दिया मुझसे आगे नहीं खाया गया। मैंने पानी पीया और ऊपर अपने कमरे में चली आयी।

राघव कमरे में नहीं था वह शायद नीचे ही था। मैंने बाथरूम में आकर हाथ-मुंह धोया और बाहर चली आयी। कुछ देर बाद मम्मी कमरे में आयी और कहा,”गरबा देखने चलोगी ?”
“नहीं मेरा मन नहीं है”,मैंने कहा वो कुछ देर मुझे देखते रही और फिर वहा से चली गयी।
मैं कमरे में लगे शीशे के सामने चली आयी मैंने गौर से खुद को देखा , मेरा शरीर पहले से कमजोर हो चुका था , आँखों में कोई चमक नहीं थी , चेहरे की रंगत जैसे कही खो सी गयी थी और चेहरा पहले से सांवला हो चुका था।

मैं काफी देर तक वहा खड़े होकर खुद को देखते रही , मुस्कुराने की कोशिश की तो आँखों में आँसू भर आये। वो लड़की जो दिनभर बिना बात के मुस्कुराती रहती थी , गुनगुनाती रहती थी आज उसे मुस्कुराने के लिए भी मेहनत करनी पड़ रही है। मैं आकर बिस्तर पर लेट गयी , आँखों में नींद नहीं थी पर मैंने जबरदस्ती आँखे मूँद ली। आँखों के किनारे से निकलकर आँसू तकिये को भिगाने लगे। मुझे कब नींद आयी पता नहीं चला।


कुछ दिन गुजर गए। मैंने अब राघव से शिकायत करना छोड़ दिया था। मैं बस उसका और घरवालों का ख्याल रखती , दिनभर अपना काम करती , और खामोश रहती। उस दिन के बाद से राघव को मौका मिल गया मुझे ताने मारने का पर मैं कभी पलटकर जवाब नहीं देती। जो मेरे साथ हो रहा था उसे मैंने अपनी किस्मत मान लिया। उपवास का 5वा दिन था। सुबह से तबियत खराब थी इसलिए मैंने घर का काम करने के बाद मम्मी से आकर कहा,”मम्मी मेरे साथ हॉस्पिटल चलिए मुझे डॉक्टर को दिखाना है”


“मैं यहाँ किसी डॉक्टर को नहीं जानती , अपनी जेठानी को लेकर चली जा”,उन्होंने सोफे पर लेटे लेटे कहा
मैंने भाभी को फोन किया। कुछ देर बाद उन्होंने फोन उठाया और कहा,”हेलो !!”
“हेलो भाभी ! मुझे लेडीज डॉक्टर से मिलना है आप मेरे साथ चलेंगी ?”,मैंने पूछा
“मम्मी नहीं है क्या उन्हें लेकर चली जाओ ?”,उन्होंने प्यार से कहा
“उन्होंने कहा वो यहाँ किसी लेडीज डॉक्टर को नहीं जानती है”,मैंने कहा


“क्यों नहीं जानती ? मुझे भी तो डॉक्टर के पास लेकर वही जाती थी। अगर वो नहीं जा रही तो राघव को लेकर जाओ”,भाभी ने कहा
“वो ऑफिस में है , आप चलिए ना प्लीज”,मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा
“मैं चली जाती मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन ऐसे ये लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे , तुम जहा भी जाओ राघव को साथ लेकर जाओ। मैं बिजी हूँ तो जा नहीं पाऊँगी”,भाभी ने कहा
“ठीक है कोई बात नहीं , मैं उनसे बात कर लेती हूँ”,मैंने कहा


“अगर वो नहीं जाये तो फिर मैं चलूंगी”,भाभी ने कहा और फोन रख दिया।
मैं अपने कमरे में चली आयी और राघव को मैसेज किया “क्या आप आज शाम थोड़ा जल्दी आ सकते है ?”
“क्यों ?” राघव ने भेजा
“मुझे लेडीज डॉक्टर के पास जाना है” मैंने भेजा
“पर मैं किसी लेडीज डॉक्टर को नहीं जानता , तुम जानती हो क्या ?” राघव ने लिख भेजा
एक अनजान शहर , जिसमे मैं कभी सोसायटी से बाहर तक नहीं निकली , मुझे कैसे पता होता ?


“नहीं मैं चेक करके बताती हूँ” मैंने लिख भेजा और ऑनलाइन चेक करने लगी। उसी शहर में एक अच्छी डॉक्टर का अड्रेस मिल गया। मैंने राघव को अड्रेस भेजा और कहा “इस अड्रेस पर जाना है”
“ठीक है , मैं जल्दी आजाऊंगा” राघव ने लिख भेजा और ऑफलाइन हो गया। मैं बिस्तर पर लेट गयी और सोचने लगी “घर में सबका बर्ताव अजीब क्यों है ? ना किसी को मेरा दर्द दिखाई देता है ना ही मेरे आँसू,,,,,,,,,,,,,,क्या सच में ये लोग इतने पत्थर दिल है या फिर दिखावा करते है।

बाकि सब लोगो के लिए मुझे हैरानी नहीं होती पर राघव,,,,,,,,,,,,,,,क्या उसे भी मेरा दर्द दिखाई नहीं देता ? सच क्या है ? शादी से पहले जो था वो या अब जो हर रोज मैं देखती हूँ वो,,,,,,मैं इतना कमजोर कैसे हो गयी कि आज मैं किसी से सवाल भी नहीं कर सकती , और राघव,,,,,,,,उस से मैं क्यों डरने लगी हूँ। जिसके सामने मैं बेझिझक सब बोल  देती थी अब उसके सामने कुछ भी बोलने से पहले कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है मुझे ,

मैं ऐसी तो नहीं थी,,,,,,,,,,,,मेरा दर्द कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है मैं इसे कैसे कम करू ?,,,,,,,,,,,,,,,मुझे फिर से लिखना शुरू कर देना चाहिए , खुद को उसमे बिजी रखूंगी तो बार बार राघव से सामना नहीं होगा और मैं , मैं ये सब भी नहीं सोचूंगी,,,,,,!!” सोचते सोचते नींद आ गयी।  

फोन की रिंग से नींद खुली। फोन राघव का था मैंने फोन उठाया तो उसने कहा,”मैं 10 मिनिट में घर पहुँच जाऊंगा , तैयार रहना”
“ठीक है”,मैंने कहा और उठकर कपडे बदलने लगी। मैंने साड़ी पहनी , बाल बनाये , और थोड़ा सा खुद को व्यवस्तिथ किया। राघव नीचे आ चुका था। मैं नीचे चली आयी मेरे हाथ में किडनी स्टोन वाले कुछ पुराने पेपर्स थे। मम्मी के सामने से गुजरी तो वो मुझे घूरकर देखने लगी। मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया और राघव से कहा,”चलिए !”
राघव उठा और गाड़ी की तरफ बढ़ गया। मैं उसके बगल में आ बैठी।

गाड़ी वहा से निकल गयी। रास्तेभर हम दोनों ही खामोश रहे , ना उसने कुछ पूछा ना मैंने कुछ कहा। गाड़ी ट्रेफिक में आकर रुकी। मैं खिड़की से बाहर देखने लगी। नजर स्कूटी पर बैठे कपल और आगे खड़े बच्चे पर चली गयी। मैं खाली आँखों से उन्हें देखने लगी। स्कूटी पर थे लेकिन खुश थे और मैं एक बड़ी आलिशान गाड़ी में थी लेकिन खुश नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,इंसान की जिंदगी में जब प्यार और सुकून होता है तो वह साइकिल पर खुश दिखाई देता है और अगर प्यार नहीं है सुकून नहीं है तो बड़ी बड़ी गाड़ियों में भी उसे घुटन होने लगती है।

गाड़ी आगे बढ़ गयी और कुछ देर बाद ही क्लिनिक के बाहर पहुंची। मैं राघव के साथ साथ चल रही थी कि तभी मम्मी की कही बात जहन में आ गयी “औरत को आदमी के पीछे ही चलना चाहिए , ज्यादा पढ़ी लिखी होने का मतलब ये नहीं अपने संस्कार ही भूल जाओ”
मैं राघव से थोड़ा पीछे चलने लगी। क्लिनिक ऊपर 3rd फ्लोर पर था। सीढ़ियों से हम ऊपर पहुंचे। क्लिनिक में आकर मैंने डॉक्टर से मिलने का अपॉइंटमेंट लिया और वहा पड़ी बेंच पर आकर बैठ गयी।

राघव को नहीं पता था मैं यहाँ क्यों आयी थी ना उसने पूछा वह मेरे बगल बैठा मेरे नंबर का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद डॉक्टर ने मुझे बुलाया। राघव ने मुझे जाने का इशारा किया मैं उठकर डॉक्टर के केबिन में चली आयी।
डॉक्टर ने मेरा चेकअप किया और मुझे अपना वजन चेक करने को कहा। मैंने वजन चेक किया और डॉक्टर को बताया,”63 kg”
“वजन तो ठीक है , 1 महीने पहले कितना था ?”,डॉक्टर ने स्लिप पर कुछ लिखते हुए पूछा


“75 kg”,मैंने उनके सामने आकर कहा
“व्हाट ? एक महीने में इतना कम कैसे हो सकता है ? एक महीने में 12 kg वजन कम हुआ है ये नार्मल बात नहीं है ,, कोई दवा या डायटिंग ली थी”,डॉक्टर ने हैरानी से पूछा
“नहीं कुछ भी नहीं ऐसे ही हो गया”,मैंने परेशानी भरे स्वर में कहा
“ऐसे नहीं होता है , शादी को कितना टाइम हुआ है ?”,डॉक्टर ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा


“एक महीना”,मैंने जवाब दिया
“सब ठीक चल रहा है ?”,डॉक्टर ने पूछा
एक अनजान डॉक्टर के सामने भला मैं क्या कहती इसलिए झूठ बोलना पड़ा और मैंने कहा,”हाँ सब ठीक है , मैं यहाँ से नहीं हूँ दूसरे स्टेट से हूँ तो पानी सेट नहीं हुआ और खाना भी,,,,,,,,,,,,,,,फिर माहौल भी चेंज है ना यहाँ का तो इस वजह से कम हो गया होगा”,मैंने एक झूठी कहानी बनाकर सूना दी
“ऐसा कुछ नहीं है यहाँ का और आपके वहा का माहौल एक जैसा ही है।

अब आप ध्यान से मेरी बात सुनिए आपको अपने खाने पीने पर ध्यान देना है , इस तरह से वजन कम होना अच्छी बात नहीं है। दूसरा आप स्ट्रेस में है और अगर ज्यादा दिन ऐसे रही तो डिप्रेशन में भी जा सकती है इसलिए खुश रहने की कोशिश कीजिये ज्यादा स्ट्रेस मत लीजिये,,,,,,,,,,,,,,,अभी मैं 5 दिन की दवा लिख देती हूँ उसके बाद वापस दिखाना आपके कुछ टेस्ट करवा के देख लेते है। ज्यादा टेंशन नहीं लेनी है और टाइम से खाना पीना है”,डॉक्टर ने स्लिप पर दवाये लिखते हुए कहा


स्ट्रेस , डिप्रेशन , हार्मोनल इशूज ये सिर्फ नाम सुने थे लेकिन आज इनसे खुद गुजर रही थी तो महसूस हुआ कि ये सब कितनी बुरी चीजे है। मैंने डॉक्टर को थैंक्यू कहा और वहा से बाहर चली आयी। मैंने स्लिप राघव को दे दी वह स्टोर से दवा लेने चला गया। मैं बेंच पर आकर बैठ गयी दिमाग में डॉक्टर की कही बात घूमने लगी “इस तरह से वजन कम होना अच्छी बात नहीं है। दूसरा आप स्ट्रेस में है और अगर ज्यादा दिन ऐसे रही तो डिप्रेशन में भी जा सकती है इसलिए खुश रहने की कोशिश कीजिये ज्यादा स्ट्रेस मत लीजिये”


राघव कब दवा लेकर आया मुझे पता ही नहीं चला। उसने फाइल मेरी तरफ बढ़ाई तो मेरी तंद्रा टूटी मैं उठी। दवा और फाइल को बैग में डालने लगी लेकिन मेरे हाथ काँप रहे थे और चेहरे पर परेशानी के भाव आ जा रहे थे। मेरी बगल में खड़ा राघव एकटक मेरे चेहरे को देखे जा रहा था। मैंने कितनी बार कोशिश की लेकिन वो फाइल मैं बैग में नहीं रख पा रही थी। जहन में बस एक ही शब्द घूम रहा था “डिप्रेशन”
मैंने जैसे तैसे फाइल और दवा बैग में रखी और राघव से चलने को कहा।


राघव ने गाड़ी निकाली और घर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ा। गाड़ी में एक बार फिर ख़ामोशी फ़ैल गयी। कुछ देर बाद राघव ने पूछा,”क्या कहा डॉक्टर ने ?”
“उन्होंने कहा कुछ हार्मोनल इशूज है और 12 kg वजन कम हो गया है इस वजह से वीकनेस है। 5 दिन बाद वापस बुलाया है कुछ टेस्ट करने के लिए “,मैंने राघव से डिप्रेशन वाली बात छुपाते हुए कहा
ना जाने क्यों राघव को मेरी इस बात पर हंसी आने लगी ,

फिर महसूस हुआ कि वो इस बात नहीं बल्कि मेरे हाल पर हंस रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा तो वह सामने देखते हुए मुस्कुराने लगा कहा,”वजन कम क्यों हुआ खाना तो खाती हो तुम ?”
“पानी सूट नहीं हुआ यहाँ का शायद इसलिए हो गया होगा , हो जाएगा ठीक”,मैंने धीमी आवाज में कहा
“हम्म्म”,राघव ने कहा और गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। कुछ दूर आकर उसने पूछा,”तुम्हे कुछ लेना है ?”


“नहीं,,,,,,,,,,,!!”,मैंने कहा और खिड़की से बाहर देखने लगी क्योकि मुझे जो चाहिए था वो देना राघव के बस में नहीं था। कुछ देर बाद गाड़ी घर के सामने आकर रुकी। मैं गाड़ी से उतरी और राघव के पीछे अंदर चली आयी। राघव अंदर हॉल में चला गया और मैं बाहर ही रुक गयी और बेंच पर आ बैठी। मन बैचैन था। मुझे इतने हेल्थ इशू क्यों हो रहे थे मैं नहीं समझ पा रही थी ?

इन दिनों मेरे शरीर में बिल्कुल जान नहीं थी , मैं खुद को अंदर से बीमार महसूस करने लगी थी। मैं अपनी ही सोच से उलझ रही थी कि मम्मी ने आकर कहा,”राघव को फोन तुमने किया ?”
“मैंने किया”,मैंने उनकी तरफ देखकर कहा
“क्यों किया ? उसे ऑफिस में काम नहीं होता क्या ? वो कौनसा फ्री रहता है”,उन्होंने थोड़ा गुस्से से कहा
“आपने और भाभी ने साथ जाने से मना कर दिया तो मुझे उन्हें बोलना पड़ा”,मैंने अपनी बात रखी


“क्या बोला डॉक्टर ने ?”,मम्मी ने पूछा
मैंने उन्हें वही बताया जो राघव से कहा था और मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा,”वजन कैसे कम हुआ ? तुम्हे यहाँ खाना नहीं मिलता क्या ?”
“मिलता है पर फिर भी हो गया”,कहते हुए मैं उठी और अंदर चली आयी क्योकि मुझे रात का खाना भी बनाना था।

देर रात मैं अपने कमरे में चली आयी। डॉक्टर ने कुछ दवाईया लिखी थी वो खायी और बिस्तर पर आकर लेट गयी। मुझे अकेले रहने की अब आदत हो चुकी थी। जिन हालातो से मैं गुजर रही थी वो सिर्फ मैं ही जानती थी और मेरे पास कोई नहीं था जिसके साथ मैं ये बाँट सकू,,,,,,,,,,,,,,,,वो दर्द मुझे अकेले सहना था।
मुझे नींद नहीं आती थी बस मैं आँखे बंद करके सोने का नाटक किया करती थी।

सुबह जल्दी उठ जाती और अपने महादेव से प्रार्थना किया करती कि वो मुझे हिम्मत दे , मेरी परेशानिया दूर कर दे पर यहाँ महादेव भी मुझसे मुँह फेरकर बैठे थे।
नवरात्री के 9 दिन पुरे हो चुके थे। आखरी दिन भैया भाभी ने हम सबको रात के खाने पर बुलाया। सभी तैयार होकर वहा पहुंच गए। बाकि सब हॉल में रुक गए और मैं भाभी के पास चली आयी। वो किचन में खाना बना रही थी मैं भी उनकी मदद करने लगी। सबके खाना खाने के बाद मैं भाभी के साथ गैलेरी में चली आयी और उनके साथ बर्तन धोने लगी।

बर्तन धोकर हम जैसे ही अंदर आये मैंने देखा राघव और उसके मम्मी पापा वहा नहीं है। वो लोग फिर मुझे बिना बताये भाभी के घर छोड़कर चले गए ताकि मैं भाभी के साथ गरबा देखने जा सकू।
उनकी बात का मान रखते हुए मैं वहा रुक गयी। मुझे उदास देखकर भाभी ने पूछ लिया,”क्या हुआ तुम्हे इतनी परेशान क्यों हो ?”
“कुछ नहीं भाभी बस थोड़ी थकान है ना इसलिए”,मैंने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा


“अच्छा ठीक है तुम बच्चो के पास बैठो मैं तुम्हारे जेठजी को देखकर आती हूँ , गरबा शुरू होने में तो अभी काफी टाइम है चलेंगे आराम से”,उन्होंने कहा और चली गयी। मैं दूसरे कमरे में आकर अकेले बैठ गयी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इस शहर में आने के बाद यही अकेलापन तो था मेरा अच्छा और सच्चा दोस्त  

Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18

Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18 Sakinama – 18

Continue With Sakinama – 19

Read Previous Part साक़ीनामा – 13

Follow Me On facebook

संजना किरोड़ीवाल 

Sakinama by Sanjana Kirodiwal
Exit mobile version