Sanjana Kirodiwal

मनमर्जियाँ – 46

Manmarjiyan – 46

”मनमर्जियाँ – 46”

पिंकी अपनी अगली चाल चल चुकी थी जिस से शगुन पूरी तरह अनजान थी। शाम में शगुन दादी माँ के पास बैठकर उन्हें भागवत-गीता का पाठ सूना रही थी। कुछ देर बाद गोलू वहा आया और कहा,”नमस्ते दादी”
“अरे गोलू गुड्डू की शादी के बाद तो तुम एकदम से गायब ही हो गए ,,, सब खैरियत तो है ?”,दादी ने पूछा
“अरे दादी सब बढ़िया है , गुड्डू भैया की नयी नयी शादी होय रही तो सोचा काहे परेशान करे उनको इहलिये नहीं आये”,गोलू ने बैठते हुए कहा
“अरे गोलू तुम कब आये ?”,मिश्राइन ने आँगन में आते हुए कहा
“बस चाची अभी अभी आये है”,गोलू ने कहा
“चाय पि हो ?”,मिश्राइन ने पूछा
“चाय तो हमहू जरूर पिएंगे लेकिन भाभी के हाथो से बनी”,गोलू ने कहा तो मिश्राइन हंस पड़ी और कहा,”भई देखो भाभी तुम्हारी अगर उह बनाकर पिलाये तो पि लो”
“का भाभी बनाओगी ना चाह हमाये लिए ?”,गोलू ने शगुन से कहा तो शगुन ने हाँ से सर हिला। गोलू तो बस इतने में ही खुश हो गया। शगुन ने किताब का अध्याय खत्म किया और किताब मंदिर में रखकर सबके लिए चाय बनाने चली गयी। शगुन चाय लेकर आयी तब तक वेदी भी कॉलेज से आ चुकी थी आज उसका आखरी पेपर था। शगुन ने सबको चाय दी , गोलू ने एक घूंठ भरा और शगुन की तारीफ में कहा,”वाह इसे कहते है चाय , मजा आ गया”
“देखा बहुरिया कैसे मक्खन लगाय रहा है गोलू ?”,दादी ने कहा तो शगुन मुस्कुरा दी
“अरे हम कोई मक्खन नहीं लगाय रहे है दादी , भाभी बहुते गुणवान है इहलिये तारीफ कर रहे है”,गोलू ने कहा
“अच्छा तुमने बताया नहीं कैसे आना हुआ ?”,मिश्राइन ने बैठते हुए कहा
“अरे चाची उह रौशनी के घर आये थे उसके पिताजी ने बुलाया था शादी में काम करने को , अब गुड्डू भैया को तो आप जानती ही है कही भी कुछ भी बोलकर आ जाते है उह दिन रौशनी के पिताजी को भी बोल दिया की रौशनी ब्याह में सारा काम वही करेंगे ,, बस फिर लग गए हमारे”,गोलू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“अरे गुड्डू का दिल बहुते बड़ा है गोलू तभी ना हां कह दिया ,, और रौशनी तो बचपन से उसके साथ खेलकर बड़ी हुई है तो उसकी शादी में काम करना तो बनता है ना”,मिश्राइन ने कहा तो शगुन वापस किचन की और चली गयी। जिस तरह से गुड्डू ने उसका दिल तोड़ा था उस हिसाब से शगुन को नहीं लगता था की गुड्डू का दिल बड़ा है। गोलू कुछ देर रुका और फिर चला गया। मिश्राइन ने शगुन को रसोई में काम करने से मना किया था लेकिन शगुन क्या करती दिनभर अकेले घर में बोर ही हो रही थी। शगुन सब्जिया काट रही थी की तभी उसका फोन बजा मिश्राइन भी रसोई में थी तो फोन बजता देखकर कहा,”शगुन बिटिया फोन उठाय ल्यो तुम्हारे घर से होगा ,, एक काम करो ऊपर जाकर आराम से बात कर लो”
शगुन ने देखा फोन प्रीति का था। शगुन का मन घबरा रहा था की आखिर प्रीति से क्या कहेगी जब उसे गुड्डू के बारे में पता चलेगा। शगुन फोन लेकर ऊपर कमरे में चली आयी। उसने प्रीति का नंबर डॉयल किया दूसरी और से प्रीति ने फोन और चहकते हुए कहा – हैलो दी कैसी हो ?
शगुन – मैं ठीक हूँ , तुम कैसी हो ?
प्रीति – मैं तो बहुत ज्यादा ठीक हूँ अच्छा ये सब छोडो और मुझे ये बताओ जीजू ने आपको मुंह दिखाई में क्या दिया ? आई नो जीजू थोड़े यूनिक है ना तो उन्होंने आपको कुछ स्पेशल ही दिया होगा ,, बताओ ना दी (एक्साइटेड होकर कहती है)
शगुन जैसे ही गुड्डू का नाम सुनती है उदास हो जाती है उसका गला भर आता है और आँखों में आंसू भर आते है। शगुन कैसे बताये प्रीति को की उसकी शादी,,,,,,,,शादी नहीं बस एक समझौता है जिसे उसे अब जिंदगीभर निभाना। शगुन को खामोश देखकर प्रीति ने कहा – दी क्या हुआ ? कुछ तो कहिये
शगुन – हम्म्म हां ,,
प्रीति – आप बताना नहीं चाहती , कही जीजू ने आपसे कुछ कह दिया हो
शगुन – नहीं प्रीति उन्होंने कुछ नहीं कहा वो तो बहुत अच्छे है , सुबह-शाम मेरे आस पास ही रहते है। कुछ काम नहीं करने देते है बस दिनभर अपनी बातो से हसाते रहते है (शगुन ने अपना दिल मजबूत करके पहली बार प्रीति से झूठ कहा जबकि उसकी आँखों में भरे आंसू उसके गालो पर लुढ़क आये)
प्रीति – हाउ स्वीट मुझे पता था गुड्डू जीजू बहुत अच्छे है और वो आपका बहुत ख्याल भी रखेंगे ,,,, अब मैं खुश हूँ दी,,,,,,,,,,,,,,,,,एक मिनिट पापा बात करना चाहते है (प्रीति ने फोन लेजाकर गुप्ता जी को दे दिया)
गुप्ता जी – हेलो शगुन !! कैसी हो बेटा ? ससुराल जाते ही अपने पापा को भूल गयी
शगुन ने अपने पापा की आवाज सुनी तो उसकी आँखों से आंसू बहने लगी , उसने भरे गले से कहा,”नहीं पापा मैं भला आपको कभी भूल सकती हूँ क्या ?”
गुप्ता जी – बेटा तुम्हारी आवाज को क्या हुआ ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,शगुन तुम रो रही हो बेटा ?
शगुन – नहीं पापा वो मौसम बदलने की वजह से थोड़ी तबियत खराब है (शगुन ने एक बार फिर झूठ कहा)
गुप्ता जी – अरे बेटा तो बताया क्यों नहीं ? रुको मैं अभी दामाद जी से बात करता हूँ
शगुन – नहीं पापा उन्हें फोन मत कीजियेगा
गुप्ता जी – अरे बेटा लेकिन तबियत खराब है तुम्हारी , मुझे पता है तुम खुद से कुछ नहीं कहोगी उन्हें
शगुन – पापा आप चिंता मत कीजिये मामूली जुखाम है , मैं ठीक हूँ
गुप्ता जी – अच्छा ठीक है , ससुराल कैसा लगा ?
शगुन – अच्छा है पापा , बहुत अच्छा है सब मुझे बहुत प्यार करते है ,, माजी तो मुझे कुछ काम ही नहीं करने देती है और पापाजी वे भी बहुत अच्छे है
गुप्ता जी – और गुड्डू जी ? वो कैसे है , ख्याल रखते है ना तुम्हारा ?
गुप्ता जी के मुंह से गुड्डू का नाम सुनकर शगुन की आँखों में एक बार फिर नमी लौट आयी और उसने कहा,”जी पापा वे भी बहुत अच्छे है”
गुप्ता जी – बस बेटा ऐसे ही खुश रहना और अपने पापा का सर झुकने मत देना।
शगुन – मैं आपका सर कभी झुकने नहीं दूंगी पापा , अच्छा अभी मैं रखती हूँ
गुप्ता जी – हाँ बेटा ठीक है , अपना ख्याल रखना
शगुन ने फोन काट दिया क्योकि अपने पापा के सामने और ज्यादा झूठ बोलने की हिम्मत उसमे नहीं थी। शगुन बाथरूम में आयी और मुंह धोया बाहर आकर मुंह पोछा और वही बैठकर अपनी आने वाली जिंदगी के बारे में सोचने लगी। शगुन ने देखा उस कमरे में एक भी खिड़की नहीं है , उसे अजीब लगा। सवाल तो और भी बहुत थे शगुन के मन में लेकिन उसके सवालो का जवाब किसके पास था ? बैठे बैठे शगुन बोर होने लगी तो उठी और गुड्डू का कबर्ड खोला और उसमे ठुसे हुए सब कपडे बाहर निकाले। शगुन ने सब कपड़ो को अलग अलग किया जिसमे शर्ट अलग , टीशर्ट अलग , जींस अलग और जुराबे अलग थी। शगुन ने देखा सब कपडे सलवटों से भरे थे और आधे से ज्यादा शायद धुले भी नहीं थे। शगुन ने बिना धुले कपड़ो को तह करके पास पड़े सोफे पर दिया। जब उसने
गुड्डू की शर्ट गिनी तो हैरान रह गयी गुड्डू के पास 42 शर्ट और 25 पेंट्स थी ,, टीशर्ट ज्यादा नहीं बस 8-10 थी। शगुन ने सब कपड़ो को समेटकर सोफे पर रखा और कबर्ड की और आयी उसने देखा कबर्ड के लास्ट में एक मुड़ा हुआ कागज पड़ा था। शगुन ने उस कागज को उठाया और जैसे ही देखने लगी गुड्डू ने आकर उसके हाथ से कागज लिया और कहा,”इह हमारा है”
शगुन ने देखा गुड्डू वहा आ गया है वह साइड हो गयी गुड्डू ने देखा पूरा कबर्ड खाली है तो कहा,”हमाये कपडे कहा है ?”
शगुन ने सोफे की और इशारा किया तो गुड्डू ने कहा,”इह सब करने को किसने कहा तुमसे ?”
“ये सब बिना धुले हुए कपडे है , ज्यादा दिन ऐसे पड़े रहे तो खराब हो जायेंगे इसलिए मैंने बाहर निकाल दिए”,शगुन ने सहजता से कहा तो गुड्डू उसके सामने आया और कहा,”हमाये लिए परवाह दिखाने की कोई जरूरत नहीं है , और इह सब जो तुमहू कर रही हो उस से हमे कोई फर्क नहीं पडेगा”
“आपको फर्क पड़े या ना पड़े हम सिर्फ अपना पत्नीधर्म निभा रहे है”,शगुन ने शांत लहजे में बिना गुड्डू की और देखे कहा
“ऐसा है तो फिर एक काम करना कल इन्हे धो भी देना , बहुते शौक है ना पत्नी धर्म निभाने का,,,,,,,,,,,,,,,,,निभाईये फिर”,गुड्डू ने कहा तो शगुन वहा से चली गयी। गुड्डू ने एक नजर समेटे हुए कपड़ो को देखा और फिर बाथरूम की और चला गया।
शगुन नीचे चली आयी उसे देखते ही मिश्राइन ने ट्रे शगुन की और बढाकर कहा,”गुड्डू आया है इह चाय नाश्ता उसके लिए ले जाओ”
“मैं लेकर जाऊ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!”,शगुन का बिल्कुल मन नहीं था दोबारा गुड्डू के सामने जाने का। उसकी बात सुनकर मिश्राइन शगुन के पास आयी और कहा,”पति जब बाहर से आता है तो उह चाहता की उसकी दुल्हिन उसके आस पास रहे ,, नयी नयी शादी हुई है दोनों साथ साथ रहो काम का का है उह करने के लिए हम है , लाजो है वेदी है ,, इह लो पकड़ो और जाओ”
शगुन ने ट्रे ली और एक बार फिर ऊपर चली आयी। गुड्डू कपडे बदलकर आ चुका था और शीशे के सामने खड़ा अपने बालो में हाथ घुमा रहा था। जब उसने शगुन को आते देखा तो वहा पड़ी बॉल को अपने पैर से शगुन के सामने कर दिया जिस से शगुन उसमे उलझकर गिर जाये। शगुन ने भी बॉल नहीं देखा लेकिन गनीमत वह उसके साइड से निकली और ट्रे लाकर स्टूल पर रखते हुए कहा,”माजी ने आपके लिए चाय नाश्ता भिजवाया है”
“हमे नहीं चाहिए”,कहकर गुड्डू जैसे ही जाने लगा वह अपनी ही बीच में रखी बॉल पर उसका पैर पड़ा और वह लड़खड़ाया। गुड्डू कुछ समझ पाता इस से पहले ही उसने बचने के लिए शगुन का हाथ पकड़ा और उसे भी अपने साथ लेकर नीचे आ गिरा। दोनों हाथ के बल एक दूसरे के सामने आ गिरे शगुन गुड्डू की और देखने लगी अभी थोड़ी देर पहले सेट किये हुए गुड्डू के बाल बिखर कर उसकी आँखों पर आने लगे। शगुन एकटक गुड्डू को देखती रही
बैकग्राउंड म्युजिक -:
“आ रहे है पास हम क्यों ? , दूरिया जब दरमियान
फाँसलो में बट चुका है , तेरा और मेरा जहा
साथ तेरे रहना है अब , जिंदगी है संग तेरे
दूरियों की बारिशो में , धूल चुके सब रंग मेरे
सांसे है बेदम , धड़कने चलती है
कुछ तो ये आँखे तुमसे कहती है
सुनती है न कुछ , अब ना समझती है
कुछ तो ये आँखे तुमसे कहती है
ना साथ हो , ना पास हो , अब ना कोई अहसास हो ,,, फासले हो दरमियान
मनमर्जियाँ , मनमर्जियाँ , मनमर्जियाँ , कैसी ये मर्जियाँ ?
मनमर्जियाँ , मनमर्जियाँ , मनमर्जियाँ , कैसी ये मर्जियाँ ?
शगुन और गुड्डू एक दूसरे की आँखों में देखते रहे। दोनों के दिल की धड़कने इतनी साफ थी की दोनों को महसूस हो रही थी। शगुन को होश आया तो वह उठी और कहा,”जो लोग दुसरो के लिए गड्ढा खोदते है सबसे पहले वही आकर उसमे गिरते है”
गुड्डू ने शगुन को घुरा और मन ही मन कहा,”गड्ढा नहीं तुम्हाये लिए तो पूरी सुरंग खोदनी पड़ेगी हमे ,,, हाय मर गया किती जोर से गिरे है हम और इह आराम से खड़ी है इह नहीं की उठने में हमायी मदद कर दे”
शगुन ने देखा गुड्डू नीचे पड़े पड़े बड़बड़ा रहा है तो उसने अपना हाथ गुड्डू की और बढ़ा दिया जिस से वह उठ सके लेकिन गुड्डू तो ठहरे गुड्डू भैया इतनी आसानी से शगुन के सामने हार थोड़े मान लेंगे। गुड्डू ने शगुन के हाथ को अपने हाथ से साइड में किया और खुद ही उठ खड़ा हुआ।। टेबल के पास आकर चाय का कप उठाया और पीने लगा शगुन वहा से चली गयी उसके जाते ही गुड्डू ने अपनी कमर को पकड़ा और रोने वाली शक्ल बनाकर कहा,”अये ददा का जोर से लगी है”

Manmarjiyan - 46
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संजना किरोड़ीवाल

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