शाह उमैर की परी – 32
Shah Umair Ki Pari-32
( पिछले भाग में आप लोगों ने पढ़ा कि जिस काल कोठरी में उमैर और उसका परिवार सजा के लिए जाता है, वहाँ उसे अपने दादा शाह कौनैन मिलते है। जो न जाने कितने सालों से इस क़ैद में है ! जब वो अपनी कहानी सब को बताते है, तब हमे पता चलता है कि परी की दादी ही वो इंसान है, जिससे उमैर के दादा मोहब्बत करते है ! आखिर इस पुरे परिवार को कब रिहाई मिलेगी क़ैद से? और वही दूसरी ओर शहर धनबाद में परी जहाँ एक तरफ अपने माँ बाप के लिए हर आसाइश(ऐशो-आराम) का इंतजाम करने में लगी होती है। इस बात से बेखबर की उमैर को सजा हो चुकी है। दूसरी ये कि आखिर आसिफ ऐसा कौन सा अमल कर रहा था, जिससे वो परी को हासिल कर सकता है? जानने के लिए आगे पढ़ते है- शाह उमैर की परी !)
दूसरी दुनिया ”ज़ाफ़रान क़बीला ” :-
“अब्बा क्या हम ऐसे ही रहेंगे यहाँ? ना यहाँ हमारी ताक़तें काम करती है और ना ही भर पेट खाना मिलता है। कपड़े भी मैले हो चुके है, मुझे घर जाना है !” नफिशा उदास हो कर कहती है !
“मत उदास हो मेरी बच्ची सब्र रख। अल्लाह कोई ना कोई रास्ता जरूर बनाएगा। वैसे तुम लोग अपने दादा से आगे की कहानी क्यों नहीं सुनते हो? जाओ सुन लो दिल लगा रहेगा !” शाह ज़ैद नफिशा को समझाते हुए कहते है !
“हाँ दादा अब्बू आप ने तो उस दिन के बाद से हमें कहानी सुनायी ही नहीं? हम भी भूख और प्यास की सिदत में दोबारा पूछना ही भूल गए !” उमैर ने कहा !
“मेरे बच्चो सजा ऐसी ही होती है, धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी तुम सब को भी। मैंने तो अब इसे ही अपना घर मान लिया है। यहाँ मैं नुरैन को सुकून से याद कर सकता हूँ , ना कोई शंहशाह है रोकने वाला ना कोई अलीम !” शाह कौनैन ने कहा !
उमैर अँधेरी कोठरी के चारो तरफ निकलने का रास्ता तलाश करने लगता है जब कुछ नहीं मिलता तो गुस्से में अपने बाल नोचता हुआ अपनी बहनों के पास आकर बैठ जाता है !”
‘’मिल गया आप को बाहर जाने का रास्ता ?” अमायरा ने पूछा !
‘’मुझे परी की याद आ रही है। ना जाने वो किस हाल में होगी? मुझे ऐसा लग रहा जैसे वो आईने के पास आकर मुझे आवाज़ दे रही है , वो रो रही !” उमैर ने बेचैन होते हुए कहा !
‘’शांत हो जा मेरे बच्चे ये इश्क़ ऐसा ही होता है, आशिक़ को बेचैन कर के रख देता है ! चलो अब सुनाता हूँ मैं अपनी कहानी ‘बे इन्तेहाँ बेचैनियाँ है इश्क़ में आशिक़ों के गले पड़े
मिल जाये महबूब तो सुकून है। वरना सज़ा है यह उम्र भर के लिए !
“हाँ तो मैं कहा था ?” शाह कौनैन ने कहा !
“दादा अब्बू, आप नुरैन से शादी के बाद मिलने गए थे ?” अमायरा ने कहा !
“हाँ याद आ गया , तो उस रोज नुरैन ने मुझे बताया कि-
“कौनैन तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत बिमार रहने लगी थी, अब्बा ने डॉक्टर से बहुत इलाज कराया मेरा। मगर, मेरी हालत नहीं सुधर रही थी हर वक़्त बुखार रहता था मुझे। कोई सुधार ना देख कर एक रोज उन्होंने मुझे एक अलीम को दिखाया ! उन्होंने मुझे देखा तो अब्बा को बताया कि मेरे ऊपर कोई जिन आशिक़ है, जो अभी इस वक़्त तो मौजूद नहीं है मगर जितनी जल्दी हो आप अपनी बेटी की शादी कर दे, वरना वो इसे अपनी दुनिया में ले जायेगा ! फिर क्या? अब्बा ने तुरंत ही मेरी शादी कर दी। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पायी और अब तो मेरे तीन बेटे भी है। बस यही है मेरी कहानी, मगर हाँ मैं तुम्हे कभी भूल नहीं पायी। चलो अब तुम बताओ कहा चले गए थे बिना बताए? बिन कुछ कहे। बिन मिले?” नुरैन ने रोते हुए पूछा !
“नुरैन मेरे दुनिया के शहंशाह को किसी ने खबर दे दी थी कि मैं किसी इंसान से मोहब्बत करने लगा हूँ। बस फिर उन्होंने वहाँ मुझे बुला कर पहले तो मेरी सारी तक़ातें छीन ली। फिर मुझे धमकी दी कि अगर मैं अपने क़बिले में शादी नहीं करूँगा, तो वो तुम्हे क़त्ल करवा देंगे। बस इसी डर से मैंने शादी कर ली और हाँ मेरा भी एक बेटा है !” शाह कौनैन ने कहा !
“तो अब कौनैन क्या करेंगे हम? हमारी मोहब्बत तो अधूरी ही रह गई।” नुरैन ने कहा !
“करना क्या है नूर, जैसे आज छुप कर आया हूँ तुमसे मिलने, वैसे हमेशा आया करूँगा ! मगर इस बार कोई और तरकीब लगाऊँगा !” शाह कौनैन ने कहा !
“मेरे बच्चों सालों बाद हम दोनों को एक दूसरे की क़ुरबत हासिल हुई थी, तो हमने जी भर कर एक दूसरे का हाथ थामे बातें की। बहुत सारा सुकून समेटे मैं घर वापस आ गया !”
“तो फिर आप कब गए नुरैन से मिलने? दुबारा? ” नफिशा ने पूछा !
“इंसानी दुनिया में हम जिन कई तरीके से जा सकते है। वैसे मेरे बच्चो मैं तुम्हे बता दूँ हमारी दुनिया और इंसानो की दुनिया दोनों एक दूसरे से काफी दूर है इतनी की तुम सोच भी नहीं सकते !
कई तिलिस्मी रास्ते है दोनों दुनियां को जोड़ने के। अगर मैं उन रास्तों से होकर नुरैन से मिलने जाता तो शहंशाह को कोई ना कोई खबर दे ही देता। इसलिए मैंने खुद का तिलिस्मी रास्ता तैयार किया। नुरैन तक जाने का और वो रास्ता था आईना। वही आईने जो अब तुम्हारे पास है !” शाह कौनैन ने कहा !
“आप ने वो रास्ता कैसे बनाया? जो दो दुनिया को जोड़ दे !” उमैर ने पूछा !
“उमैर मेरे बच्चे इस जहां में कुछ भी मुश्किल नहीं। अगर तुम सच्चे दिल से ठान लो करने की ! मैंने दोनों दुनिया की धातु और लकड़ियों को मिला कर दो आईने बनाये, एक नुरैन के लिए और दूसरा अपने लिए बिलकुल एक जैसे। देखने में जो हमारी दुनिया का के शीशे से बना हुआ आईना था, उसे नुरैन को दिया और उसकी दुनिया का अपने पास रखा !
फिर अक्सर मैं और नुरैन अपनी अपनी दुनिया में रह कर भी एक दूसरे से बातें किया करते थे ! वो मेरे सामने बैठ कर अपने बाल सवारती, हमेशा नयी नवेली दुल्हन की तरह तैयार रहती मानो उसकी नयी शादी हुई हो ! नुरैन के बच्चे और उसका शौहर उसे थोड़ा पागल समझने लगे थे। मगर उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था किसी की बातों से ! उसे आम बेहद पसंद थे, वो बहुत ही शौक से खाती थी आम। तो मैं उसे साल भर अपनी दुनिया के आम खिलाता था !
वक़्त और साल गुज़रता गया। हमारे बच्चों के भी बच्चे बड़े होने लगे और हम दोनो के बाल सफेद पड़ने लगे। मगर हम दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए जो जज़्बात थे, वो हमेशा जवान रहे ना जाने क्यों? मगर कभी भी हम एक दूसरे से बातें कर के ना थकते थे, ना ही बोर होते थे। फिर एक रोज ऐसा दिन आया जब हम दोनों के ही हमसफ़र। तुम्हारी दादी और नरेन के पति, वो दोनों ही मौत के आगोश में चले गए ! उसके बाद मैं अक्सर उस आईने से उसकी दुनियाँ में जाया करता था उसके साथ रहा करता था।
एक रोज मुझसे नुरैन ने कहा, कौनैन क्या तुम मुझसे शादी करोगे? मैं अपनी बाकी की बची ज़िन्दगी तुम्हारे साथ तुम्हारी सरीके हयात के बन कर गुज़ारना चाहती हूँ !”
“हाँ क्यों नहीं? मैं भी तो यही चाहता हूँ ! मगर उससे पहले मैं अपने बच्चे ज़ैद से इसकी इजाजत लेना चाहता हूँ। मुझे यक़ीन है वो मान जायेगा फिर तुम्हारा हमारी दुनिया में रहना आसान होगा !”
“मैंने कहा तो मान गयी फिर मैं एक रोज मौका देख कर नुरैन को आईने से अपनी दुनिया में लाकर तुम्हारी माँ और अब्बा से मिलवाया ! वैसे तुम्हारी माँ तो नुरैन से कई बार मिल चुकी थी, मगर ज़ैद ने पहली बार यह सब देखा और सुना तो काफी नाराज़ हुआ। मगर इस कम्बख्त को मनाना पड़ा।अगर ये नही मानता तो इसकी खैर नहीं थी !” शाह कौनैन ने शाह ज़ैद की तरफ देख कर घूरते हुए कहा !
” जिस उम्र में इन्हे इबादत पर ध्यान देना चाहिए उस उम्र में इन्हे शादी करनी थी तो सजा तो मिलनी ही थी। वैसे तुम्हारी माँ से मैंने भी मोहब्बत वाली शादी की थी, इसलिए मैं इनके ज़ज्बात को समझ सकता था। इसलिए मैं इनका साथ देने के लिए हाँ कर दिया आपसे डरकर नहीं!” शाह ज़ैद ने कहा !
”वाह अब्बा आप की और अम्मी की शादी पसंद की थी ?” नफिशा ने कहा !
“तो क्या फिर दादा और नुरैन का निकाह हो गया था ?” अमायरा ने पूछा !
‘’हाँ मेरी शादी तुम्हारी अम्मी से पसंद की ही हुई थी। मगर कहते है ना कि खुशियाँ ज्यादा दिन नसीब नहीं होती, तो वो तुम्हारे जन्म होने के साथ इस दुनिया में मुझे तुम तीनो के साथ अकेला छोड़ कर चली गयी। उसे कोई बिमारी थी जिसका इल्म मुझे नहीं था !” शाह ज़ैद नाम आँखों से कहते है ! तीनो पहली बार अपने अब्बा को इस तरह बात करते सुन रहे होते है !
“सुनो बच्चों! नुरैन और मेरी शादी भी अधूरी ही रही जिस रोज शादी थी, हमने निकाह पढ़ाने के लिए एक कारी जिन को एतमाद में लिया। मगर, बच्चो उस कम्बख्त ने हमे धोखा दे दिया। उसने यह सारी बातें शहंशाह को बता दी !” शाह कौनैन कहते हुए थोड़ा रुक जाते है !
“फिर क्या हुआ दादा अब्बू?” नफिशा हैरान होते हुए कहती है !
“फिर यह के हम दोनों को ही शहंशाह के दरबार में मुज्लिमों की तरह पेश किया गया ! मुझे सौ कोड़े मारे गए नुरैन के सामने और हमे तहीखाने में क़ैद कर दिया गया ! नुरैन के घर वाले उसे तलाश करने लगे मगर जब वो उन्हे नहीं मिली तो सब ने सोचा के वो पागल हो गयी होगी इसलिए कही चली गयी ! मगर नुरैन के बेटों में से एक बेटा, जिसका नाम हसन था उसने एक आलिम की मदद से यह पता कर लिया था कि उसकी माँ जिनो की दुनिया में क़ैद है ! फिर उसने उस पहुँचे हुए अलीम की मदद से नुरैन को शहंशाह के क़ैद से रिहा करवा लिया। तब से आलिम और शहंशाह के बीच काफी दुश्मनी बढ़ गयी और मेरी नुरैन एक बार फिर मुझसे बिछड़ गयी। वो भी ऐसे के फिर कभी नहीं मिली एक आखरी दिदार भी नसीब नहीं हुआ, मुझे उसका ! फिर दो साल बाद उसके मौत की खबर मुझे, तेरे बाप से मिली !
‘इतना बदनसीब था मैं जो उसको पा ना सका ,
बस मोहब्बत ही की उनसे दिलो जान से मैंने ,
वादा साथ देने का निभा ना सका
एक जैसी खवाहिश लिए जी रहे थे दोनों
उसने मौत को गले लगा लिया मेरे खातिर ,
मैं जीते जी खुद को मार ना सका
वो रुखसत हो गया मुझसे मिलने की आरज़ू दिल में लिए।
आखरी वक़्त था उसका और मैं जा ना सका
वो तो समझता होगा मजबूरी मेरी।
मैं मजबूर था जो उसके जनाज़े को भी काँधा ना दे सका
हम एक दूसरे के जान हुआ करते थे ,
मैं अपनी जान को पा ना सका
मोहब्बत अपनी अज़ीयत बन गयी
मैं अपने महबूब को अपनी ज़िन्दगी में ला ना सका !‘ “
शाह कौनैन कहते हुए फूट फूट कर रोने लगते है ! वहाँ पर बैठा कोई भी ऐसा नहीं होता जो उस वक़्त मोहब्बत और जुदाई के एहसास को समझ ना सके! सब ही अपने अपने महबूब से जुदा होते है इसलिए सब ही शाह कौनैन के साथ गमगीन हो जाते है !
‘’मरयम मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा? कैसे अब्बा को समझाऊँ? एक हफ्ते हो गए है मगर मैं उनके लिए कुछ भी नहीं कर पाया ! मैं उन सब को इस तरह सजा काटते नहीं देख सकता। अभी अभी तो मेरे और अमायरा के बीच एक रिस्ता बन रहा था !” शहजादे इरफ़ान परेशान होते हुए कहते है !
“हाँ इरफ़ान भाई अजीब है इस दुनिया के कानून भी। न जाने काल कोठरी में क्या हाल होगा उनका? मुझे खुद भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा, दोस्त है वो सब मेरे। हमे एक बार फिर अब्बा से बात करनी चाहिए क्या पता अब वो बात को समझें और मान जाये !” शहजादी मरयम ने कहा !
‘’नहीं अब्बा से बात करने से पहले मैं एक बार उन सब को जाकर देख आता हूँ। ना जाने किस हाल में होंगे?” शहजादे इरफ़ान ने कहा !
“इरफ़ान भाई मैं भी आप के साथ चलूँगी उन सब से मिलने !” “ठीक है तुम भी चलना, मगर रात में जब अब्बा सो जाएंगे !
शहर धनबाद में :-
परी का ऑनलाइन काम काफी तेज़ी से कामयाबी के साथ चल रहा होता है उसकी कंडीशन इतनी अच्छी हो जाती है कि वो नया घर भी ले सकती है, मगर उससे पहले उसे ये पता करना होता है के आखिर एक हफ्ते से उमैर और उसकी फैमिली कहा है? आईना भी आम आईने की तरह हो गया था, कोई हरकत नहीं थी अब उसके शीशे में और कभी ऐसा नहीं हुआ इतने महीनों में कि उमैर उस से मिलने ना आया हो। कभी खवाब तो कभी हक़ीक़त में जरूर आता था ! इन्ही ख्यालों में टहलती हुई परी हॉल रूम में आती है तो सामने सोफे पर उसे आसिफ बैठा दिखता है तो उसके पास आकर बैठ जाती है !
“परी मैं सोच रहा हूँ क्यों ना हम लोग खुद का शॉप खोल ले? माशाल्लाह अब हमारा ऑनलाइन काम भी अच्छा चल रहा है आप क्या कहते हो अंकल ?” आसिफ ने चाय की चुस्किया लेते हुए कहा !
“सही ख्याल है आसिफ बेटा मुझे भी यही लगता है !” हसन जी ने टीवी पर चैनल बदलते हुए कहा !
”मगर अभी मेरा मूड बिलकुल भी कुछ नया करने का नहीं है ! आसिफ अगर तुम्हे कुछ नया करना है तो तुम कर सकते हो। मुझसे उम्मीद मत रखना फिलहाल !” परी उखड़े हुए मन से कहती है !
“ठीक है तुम्हे जैसा ठीक लगे मैं तुम्हे फ़ोर्स नहीं कर रहा हूँ !” आसिफ ने मुँह बनाते हुए कहा !
“अच्छा आसिफ एक बात पूछनी है तुमसे क्या…. ?” परी ने कहा !
”हाँ परी पूछो ना? मैं तो चाहता ही हूँ के तुम कुछ ना कुछ पूछती रहो मुझसे !” आसिफ खुश होते हुए कहता है !
”उस रोज जब मैं तुम्हारे घर मिठाई और तुम्हारी पहली पेमेंट लेकर गयी थी, तुम लोबान वगैरह जला कर क्या पढ़ रहे थे ?” परी ने अपने गाल पर हाथ रखते हुए कहा !
”परी बेटा तुम्हे नहीं पता क्या ?” हसन जी ने कहा !
”क्या पापा ?” परी ने कहा !
”यही के आसिफ एक आलिम खानदान से है और वो खुद भी अमल सिख रहा है। इसके दादा परदादा सब ने जिनो को अपना गुलाम बना कर रखा था !” हसन जी ने कहा !
”क्या जिनो को गुलाम बना कर रखा था ? आप लोगों ने कभी बताया ही नहीं !” परी ने अनजान बनकर कहा !
”अंकल यह सब परी को बताने की जरुरत क्या है ? वो ऐसे ही मुझसे चिढ़ती है अब और कटी कटी रहेगी !” आसिफ मज़ाकिये अंदाज में कहता है !
”अरे नहीं बेटा मेरी बेटी ऐसी नहीं है, कि वो बिना वजह चिढ़े। उसे तुम अपने खानदान की हिस्ट्री क्यों नहीं बताते हो ?” हसन जी ने आसिफ से कहा !
”तुम दोस्त हो मेरे तुमसे कटी कटी क्यों रहूंगी ? बल्की यह तो अच्छी बात है कि मुझे पता चल गया, अब तुमसे काम ले सकती हूँ मैं। अगर कभी जरुरत पड़ी तो और हाँ मुझे तुम्हारी हिस्ट्री जानना है अब !” परी ने कहा !
”हाँ बिलकुल मैं तुम्हारी हर मुमकिन कोशिश करूँगा एक बार भरोसा कर के तो देखो और हिस्ट्री ही क्यों जियोग्राफी, फिजिक्स, बायोलॉजी सब बताऊँगा !” आसिफ ने परी को मोहब्बत भरी नज़रों से देखते हुए कहा !
”ज्यादा कुछ नहीं बस हिस्ट्री ही बता दो। बाकी के सब्जेक्ट्स में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है !” परी ने हंसकर कहा !
”ठीक है फिर चलो छत पर अंदर बहुत सर्दी है आराम से धूप सेकते हुए तुम्हे सारी कहानी सुनाता हूँ !” आसिफ ने कहा !
”ठीक है तुम चलो मैं आती हूँ !” परी ने कहा तो आसिफ उठ कर चला गया ! परी के दिमाग में हज़ारों सवाल एक साथ आने लगे
“क्या मैं आसिफ की मदद लूँ? उमैर के बारे में पता करने में ? नहीं नहीं परी अगर उसे पता चला कि मैं किसी जिन से इश्क़ करती हूँ तो कंही वो उमैर को भी…. उसे अपना गुलाम ना बना ले ? न न न न…. नहीं।” परी सोचते हुए छत पर जाती है जहा पहले से आसिफ उसका इंतज़ार कर रहा होता है !
क्रमशः shah-umair-ki-pari-33
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Written by – Shama Khan
”बहुत मुश्किल है यहाँ किसी खवाहिश का मुकम्मल होना ,
कई लोग हर रोज अपने सपनो को आँखों में मूंदे
ज़िन्दगी को अलविदा कह जाते है !”