Sanjana Kirodiwal

साक़ीनामा – 25

Sakinama – 25

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

पुरे दो महीने बाद मैं अपने शहर में थी। मैं कितनी बीमार थी ये मुझे अपने घर आने के बाद अहसास हुआ। अपने घर आने के बाद मेरी हिम्मत टूट चुकी थी। मैं दिनभर बिस्तर पर रहने लगी , मुझमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उठकर बाहर जा सकू। मम्मी और जिया बस मेरी हालत देखकर रोये जा रही थी।

वे मेरी बच्चो की तरह देखभाल कर रही थी। पड़ोस से सब लोग मुझसे मिलने आ रहे थे। मेरी हालत देखकर हर कोई हैरान था। जितने मुंह उतनी बातें ,, मम्मी जो हमेशा हर बात पर कहती थी ना कि चार लोग क्या कहेंगे ? वो चार लोग मेरे सामने खड़े थे  

मेरे दर्द का अहसास मुझसे ज्यादा किसी को नहीं था ना ही हो सकता था,,,,,लोग जो सुन रहे थे वो मैंने अपने जिस्म पर अपनी आत्मा पर झेला था। मेरे हालात देखकर हर कोई हैरान था। किसी ने सोचा नहीं था कि हसते खेलते इस शहर से जाने वाली मृणाल एक दिन वापस ऐसे लौटेगी।

अगले दिन दिवाली थी , घर में किसी के चेहरे पर ख़ुशी नहीं थी बस सबके सामने मुस्कुराने का दिखावा कर रहे थे।

मैं सुबह से बिस्तर में थी शाम में पूजा के समय मम्मी ने आने को कहा। मेरी आँखे सूजकर लाल हो चुकी थी , चेहरा काला पड़ चुका था और शरीर में जैसे जान ही नहीं थी। मम्मी ने पूजा की सहसा ही राघव के जीजाजी की कही बात मेरे जहन में आ गयी “दिवाली से पहले शादी इसलिए कर रहे है ताकि इस साल मृणाल बहू बनकर वहा लक्ष्मी की पूजा करे”
जिस नियत के साथ ये शादी हुई थी उसका फल आज सबके सामने था। जिस मृणाल को लक्ष्मी बताकर वो दिवाली मनाना चाहते थे आज वही मृणाल अपने घर में थी। उनके घर की लक्ष्मी जा चुकी थी।

मेरी आँखों में आँसू भर आये मैं वहा से उठी और अपने कमरे में चली आयी। राघव और उसके घरवालों को मेरे चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ा उन्होंने अपनी दिवाली मनाई और वे लोग खुश थे शायद,,,,,,,,,,,,,,,,,राघव भी यही चाहता था कि मैं खुद इस घर से चली जाऊ , और वो घर छोड़कर मैंने उसका काम आसान कर दिया।  
मेरी तबियत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी , डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ ड्रिप्स और दवाये लिख दी।

हॉस्पिटल के खर्चे से बचने के लिए मैंने घर पर ही अपना ट्रीटमेंट शुरू करवा दिया। 28 सालो में पहली बार मेरे हाथ में ड्रिप लगी। वो दर्द उस दर्द के सामने कुछ भी नहीं था जो मुझे राघव और उसके परिवार से मिला था। एक के बाद एक ड्रिप चढ़ते जा रही थी लेकिन तबियत में कोई सुधार नहीं होता भी कैसे डॉक्टर ने मुझे अच्छी नींद लेने को कहा और मैं रातभर  बैठकर बस ये सोचते रहती कि मेरे साथ ही ये सब क्यों हुआ ?  

मेरी क्या गलती थी ? जिस इंसान से मैंने इतनी मोहब्बत की उस इंसान ने मुझे इतना दर्द क्यों दिया ? इन सवालो ने मुझे ना जाने कितनी ही रातो तक सोने नहीं दिया। राघव और उसके घरवालों ने मेरी कोई खबर नहीं ली और लेते भी क्यों उनके हिसाब से तो मैंने गुनाह किया था,,,,,,,,,,,,,,गुनाह वो घर छोड़कर आने का।

मेरा आत्मविश्वास एकदम से खत्म हो चुका था। मैं लोगो से मिलने में , उनसे बात करने में कतराने लगी थी। कोई आकर मुझसे प्यार से बात भी करता तो मैं रो पड़ती,,,,,,,,,,,,,,,मैं खुद ही खुद को नहीं समझ पा रही थीं। अपनी जिंदगी को पहले जैसा जीना आसान नहीं था। मैं अब वो मृणाल नहीं रही थी , सब बदल चुका था और सब बर्बाद हो चुका था लेकिन उम्मीद की एक किरण अभी भी बाकि थी। राघव के लिए मेरे मन में भावनाये अभी भी थी।

मैं हमेशा सोचती की एक दिन उसे अपनी गलतियों का अहसास होगा और वो मुझसे मिलने आएगा। दिन गुजरे , हफ्ते गुजरे , महीना गुजर गया पर वो नहीं आया। इंतजार जब लंबा हो जाता है तो मिलने की तलब भी कम होने लगती है,,,,,,,,,,,,,पर मेरे साथ ऐसा नहीं था , मैं अब भी उस से एक बार मिलना चाहती थी और पूछंना चाहती थी कि उसने ये सब क्यों किया ? दोनों परिवारों में कई बार बातें हुयी। राघव की मम्मी मुझ पर जितना कीचड़ उछाल सकती थी उछाला , मम्मी राघव को जितना गलत बोल सकती थी बोला बस हम दोनों खामोश थे,,,,,,,,,,,,,,,!!


मैं इन सब चीजों में इतना उलझ चुकी थी कि अजीबो गरीब लोगो से मिलने लगी , उन्हें अपनी कुंडली , अपना हाथ , अपने ग्रह दिखाने लगी और सबने मुझे ना  जाने कितने ही इलाज , उपाय बताए। राघव और इस रिश्ते को लेकर सबने एक ही बात कही कि ये रिश्ता सही नहीं है , आगे नहीं चलेगा। कुछ गलत बातें राघव को लेकर थी तो कुछ मुझे लेकर,,,,,,,,,,,,,,

और मैं बैठकर उनकी बातें सुनते हुए बस यही सोचती रहती जिस रिश्ते की शुरुआत इतनी खूबसूरत थी क्या सच में उसका अंत ऐसा होगा ? इस रिश्ते के टूटने की बात कभी मेरे मन में नहीं आयी , मैं हमेशा इस रिश्ते के बने रहने की दुआ करती रही पर मैं बेवकूफ थी कोई भी रिश्ता सिर्फ दुआ के भरोसे नहीं चलता,,,,,,,,,!!

राघव और उसके घरवालों की बेपरवाही देखते हुए मम्मी और मेरे कुछ रिश्तेदारों ने इस रिश्ते के भविष्य को लेकर बात करने के लिए एक मीटिंग रखी।  राघव के भैया ने एक बात कही थी जो मुझे चुभ रही थी और उसी बात को गलत साबित करने के लिए मैं इस रिश्ते को और राघव को एक मौका देना चाहती थी। राघव और उसकी फॅमिली किसी रिश्तेदार की शादी के सिलसिले में गांव आये हुए थे मीटिंग वही रखी गयी।

ये सोचकर की शायद राघव को अपनी गलतियों का अहसास हो मैं भी वहा गयी लेकिन अहसास तो दूर की बात है उसकी आँखों में ना शर्म थी ना ही बातो में तमीज,,,,,,,,,,,,,,,उसने सबके सामने मुझ पर कीचड़ उछाला , गलत बातें कही और साथ ही बहुत कुछ जो सुनना मेरे लिए आसान नहीं था पर ये तो होना था उस से मोहब्बत करने की सजा तो आखिर मुझे मिलनी ही थी। मैं बस खामोश रहकर सब सुनती रही राघव ने इस रिश्ते को बचाने की एक कोशिश तक नहीं की बल्कि सबके सामने इस रिश्ते की धज्जिया उड़ा दी।


उसके कहे आखरी शब्दों ने मेरे मन में उसके लिए बचे अहसासों को भी खत्म कर दिया जब उसने कहा”,इसे उस घर में रहना है तो वैसे ही रहना होगा जैसे मैं रखूंगा , मैं इसका पति हूँ , पति मारे-पीटे जैसे चाहे रखे इसे वहा रहना चाहिए।”
क्या ये होता है “पति” , पति जो अपनी पत्नी पर हाथ उठाये , पति जो अपनी पत्नी के आत्मसम्मान को अपने पैरो तले कुचल कर आगे बढ़ जाये , पति जो ना खुद अपनी पत्नी का सम्मान करे ना दुसरो से सम्मान दिला पाए ,

वो पति जिसके लिए एक औरत सिर्फ घर का काम करने वाली दासी है , पति जिसके लिए पत्नी सिर्फ बिस्तर पर साथ सोने और बच्चे पैदा करने की मशीन है , क्या एक औरत की जिंदगी बस सिर्फ घर की चार दीवारी में कैद होने के लिए है ? उसकी इस बात का मेरे पास सिर्फ एक जवाब था और वो था “ना”


2 महीने के इस रिश्ते में आज पहली बार घर , परिवार , समाज , रिश्तेदार , इज्जत सबको साइड कर मैंने अपने लिए फैसला किया और वो फैसला था इस रिश्ते को खत्म करने का,,,,,,,,,,,,,क्योकि इस रिश्ते का खत्म हो जाना ही सही था।  

राघव ने इस रिश्ते को बचाने की एक कोशिश भी नहीं की और इस बार मैंने भी इस रिश्ते की डोर को अपने हाथ से जाने दिया क्योकि कई बार रिश्तों की जिन डोर को हम अपने हाथो में थामे होते है वो हमारे ही हाथो को जख्मी कर देती है। जितनी जल्दी वो रिश्ता बना था उतनी ही जल्दी वो रिश्ता खत्म भी हो चुका था। मैं वापस अपने घर चली आयी।

मेरे इस फैसले से सब दुखी थी , शायद मैं खुद भी लेकिन मैं उस शहर में , उस घर में वापस नहीं जा सकती थी। जिया और मम्मी के साथ सभी मुझे दिलासा दे रहे थे। उनके दिलासो से मेरा दर्द कम नहीं हुआ बस तसल्ली मिल गयी की वो मेरे साथ है।
अगली सुबह मैं नहाकर अपने कमरे में आयी। बाल बनाये और सामने रखा सिंदूर का डिब्बा उठाकर जैसे ही माँग में सिंदूर भरने लगी मेरा हाथ रुक गया।

मेरी आँखों में नमी तैर गयी , मैंने डिब्बे को वापस रख दिया। एक स्त्री के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है उसके श्रृंगार का छीन जाना,,,,,,,,,,,,वो त्रासदी मेरे जीवन में भी आयी। मेरी हसती खेलती जिंदगी एकदम से उजड चुकी थी। मैं दिनभर अपने कमरे में कैद रहती , खुद से सवाल करती , मैं लिखना भूल चुकी थी , हँसना भूल चुकी थी , सपने देखना भूल चुकी थी , बस याद था तो राघव का दिया धोखा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वो धोखा ही था जिसे मैंने मोहब्बत समझ लिया।

मेरी वजह से मम्मी और जिया को काफी कुछ सुनने को मिल रहा था। अपने ही घर में , अपने शहर में अब मेरा दम घुटने लगा था। मेरे पास खुश रहने की , जिंदगी जीने के लिए अब कोई वजह ही नहीं थी। मुझे लगता जैसे सब खत्म हो चुका है,,,,,,,,,,,,,,,,,उस बीते वक्त और बुरी यादो को मैं अपने जहन से निकाल ही  नहीं पाई। जो जख्म राघव ने मुझे दिया वो वक्त के साथ नासूर बनता जा रहा था।

मैं चाह कर भी उस से नफरत नहीं कर पा रही थी। मैंने सबसे किनारा कर लिया , सबको माफ़ कर दिया और कुछ वक्त बाद मैं वही खड़ी थी जहा से मैंने ये सफर शुरू किया था,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

समाप्त !

सागर की आँख से टपककर आँसू किताब के पन्ने पर लिखे समाप्त पर आ गिरा। वह पिछले 5 घंटे से लगाकर इस किताब को पढ़ रहा था। राघव को महसूस हुआ कि ये मृणाल की अपनी कहानी थी जिसे आपबीती कहा जाये तो बेहतर होगा और इसे उसने खुद लिखा है। सागर ने नम आँखों के साथ किताब बंद कर दी। उसका दिमाग शून्य हो चुका था। जहन में बस मृणाल का हँसता मुस्कुराता चेहरा आने लगा। सागर के हाथ ठंडे पड़ चुके थे और होंठ काँप रहे थे।

उसका गला भर आया वह किताब को हाथ में लिए दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया। आँखों में ठहरे आँसू बहने लगे और सागर के चेहरे पर एक दर्द उभर आया। ट्रेन अपनी रफ़्तार में चली जा रही थी और उसी रफ़्तार के साथ सागर का दिल धड़क रहा था। बीते एक साल में मृणाल के साथ जो हुआ वो सब उसकी आँखों के सामने आ रहा था और राघव के ख्याल ने उसकी पीड़ा को एकदम से गुस्से में बदल दिया।

उसने अपना हाथ जोर से ट्रैन की दिवार पर मारा और तड़पकर खुद से कहने लगा,”तुम्हे कोई हक़ नहीं था उसे इतना दर्द देने का,,,,,,,,,,,,,,,,कोई हक़ नहीं था।”
लेकिन अगले ही पल सागर का गुस्सा फिर पीड़ा में बदल गया और वह हाथ में पकड़ी किताब को देखते हुए कहने लगा “इस वक्त तुम कहा होगी मृणाल ?

मुझे तुम से मिलना है , तुम्हे बताना है कि इस कहानी में तुम गलत नहीं थी। मुझे हमेशा महसूस होता था जैसे तुम किसी दर्द में हो , परेशान हो लेकिन मैं कभी तुम तक पहुँच ही नहीं पाया। तुमने जिसे चुना वो तुम्हारे लायक नहीं था मृणाल वो तुम्हे डिजर्व ही नहीं करता पर तुम,,,,,,,,,,,तुमने उस इंसान के खुद को कैसे खो दिया ? तुमने ये कैसे सोच लिया कि इस दुनिया में तुम्हारा कोई नहीं है। तुम कहा हो काश मैं जान पाता,,,,,,,,,,पर मुझे यकीन है मृणाल मैं तुम्हे ढूंढ लूंगा , तुम इतनी जल्दी हार नहीं मान सकती,,,,,,,,,,!!!”


देर रात ट्रैन किसी स्टेशन पर रुकी और सागर बीच रास्ते में ही अपना बैग लेकर उस स्टेशन पर उतर गया।

संजना किरोड़ीवाल 

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