Sanjana Kirodiwal

साक़ीनामा – 19

Sakinama – 19

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 19

भाभी की बेटी मेरे पास चली आयी। वो बिल्कुल मेरे जैसी ही थी जैसे मैं हुआ करती थी बचपन में,,,,,,,,,,,वो वही मेरे पास बैठकर बातें करने लगी। रात 11 बजे भाभी मैं और उनकी बिटिया पास ही सोसायटी में गरबा देखने चले आये। वहा काफी भीड़ थी मुझे गरबा करना नहीं आता था इसलिए मैं और भाभी की बिटिया आकर कुर्सी पर बैठ गए और भाभी सामने मैदान में गरबा करने चली गयी।

वहा कई लड़के थे जो अपनी अपनी पत्नी को साथ लेकर आये थे और उनके साथ गरबा कर रहे थे , उन्हें देखकर मन में राघव का ख्याल आया। रंग बिरंगे कपड़ो में लड़कियों को हँसते मुस्कुराते देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने राघव को ऑनलाइन देखा तो मैसेज किया “आप मुझे लेने आएंगे ?”
“नहीं !” राघव ने लिख भेजा
“क्यों ?” मैंने भेजा
“आज रात वही रुक जाओ कल सुबह आ जाना ” राघव ने लिख भेजा


“लेकिन इस तरह इनके घर पर रहना ठीक नहीं लगता , आप मुझे लेने आ जाना” मैंने लिख भेजा
“क्यों वहा क्या प्रॉब्लम है ?” राघव ने भेजा
“प्रॉब्लम कुछ नहीं है पर मुझे नहीं रहना यहाँ , आपका मन हो तो आप आ जाईये वरना कोई बात नहीं” मैंने भेजा क्योकि मैं जानती थी राघव नहीं आएगा
राघव ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया।

कुछ देर बाद मैंने राघव को वर्किंग टेबल का डिजाइन भेजा और साथ में लिखा “मुझे ऐसा टेबल चाहिए” उसने मैसेज देखकर भी इग्नोर कर दिया।
“आप एटलीस्ट जवाब दे सकते हो”,मैंने लिखकर भेजा
“पहले घर सम्हालना सीख ले , बाद में ला दूंगा” राघव ने लिख भेजा
“क्या घर नहीं सम्हाला मैंने ? मुझसे जितना होता है मैं करती हूँ बाकी सीख रही हूँ,,,,,,,,,,,,,और घर का मेरे काम से क्या कनेक्शन है ?” मैंने लिख भेजा


“जब मुझे लगेगा सीख गयी है तब ला दूंगा” राघव ने भेजा
“अगर आपको मुझसे कोई शिकायत है तो आप मुझसे कहिये , अगर कोई काम सही नहीं है तो मुझे बताईये मैं सही कर लुंगी पर मुझे मेरे काम से दूर मत कीजिये” मैंने लिखकर भेजा मेरी आँखों में लगभग आँसू आ चुके थे
“हाँ तो पहले घर में ध्यान दो उसके बाद देखेंगे” राघव ने कहा और ऑफलाइन हो गया
मेर आँखों में आंसू तैरने लगे राघव मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा था मैं समझ नहीं पा रही थी।

ऐसा क्यों होता है कि शादी के बाद एक लड़की की अपनी कोई जिंदगी नहीं होती है , उसे घर में आये कुछ वक्त नहीं होता और सब उस से परफेक्ट होने की उम्मीद करने लगते है। जिस घर को उसने ठीक से अपनाया तक नहीं उस घर को वह अकेले कैसे सम्हाल सकती है ? हमारे समाज की सबसे बड़ी विडम्बना ही ये है कि शादी के बाद एक 25 साल की लड़की से हम 50
साल वाली मैचोरिटी की उम्मीद करने लगते है और जब वह खरी नहीं उतरती तो उसपर तानो की बौछार कर देते है।  

मैंने अपने आँसू पोछ लिए क्योकि मेरे आस पास बैठे लोग मुझे ही देख रहे थे। वहा बैठे हुए ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मैं किसी और दुनिया में आ गयी हूँ। सब नया था , नयी जगह , नए लोग , नए चेहरे,,,,,,,,,,,,,कुछ देर बाद भाभी हम लोगो के पास आयी तो मैंने उनसे घर चलने को कहा।
हम तीनो पैदल ही घर के लिए निकल गए। मैं चुपचाप भाभी के साथ चल रही थी। भाभी कुछ न कुछ बोलते जा रही थी। घर के नजदीक पहुँचते ही उन्होंने मुझसे कहा,”तुमने राघव को फोन किया ?”


“उन्होंने आने से मना कर दिया है , कहा मैं आज रात आपके यहाँ ही रुक जाऊ”,मैंने साथ चलते हुए धीरे से कहा  
“नहीं उसे फोन करके आने को कहो , कौनसा घर दूर है जो वो आ नहीं सकता तुम्हारे जेठजी ने देखा तो वो गुस्सा करेंगे। तुम्हारे यहा रुकने से हमे दिक्कत नहीं है लेकिन राघव की गैर जिम्मेदारी से है। फोन करो उसे”,भाभी ने कहा  
उनकी बात सुनकर मैं उनके चेहरे की तरफ देखने लगी और मन ही मन सोचने लगी,”क्या मैं कोई सामान हूँ जिसे जब चाहा जिसके घर छोड़ दिया।

राघव ने कह दिया मैं इनके घर रुक जाऊ और इन्होने कहा कि मेरे लिए यहाँ कोई जगह नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,ये सब मेरा ऐसे तमाशा क्यों बना रहे है ?”
“क्या हुआ फोन करो उसे ? वो बहुत लापरवाह है उसे थोड़ा कंट्रोल में रखा करो”,भाभी ने फिर कहा तो मेरी तंद्रा टूटी और मैंने कहा,”मैंने उन्हें फोन किया तो वो गुस्सा करेंगे”


“मैं फोन करती हूँ”,कहते हुए भाभी ने अपने फोन से राघव के छोटे भाई को फोन लगाया और कहा,”रघु से कहो मृणाल को घर लेकर जाए , इतनी रात में मैं इसे घर लेकर नहीं जा सकती। तुम्हारे भैया ने इसे यहाँ देखा तो गुस्सा होंगे उसे कहो अभी इसे अपने साथ लेकर जाये”
दूसरी तरफ से जवाब पाकर भाभी ने फोन काट दिया और मुझे साथ लेकर अपने घर से कुछ दूर खड़ी होकर राघव का इंतजार करने लगी। मुझे बहुत अजीब लग रहा था मैं इन लोगो को नहीं समझ पा रही थी। ऐसा नहीं था कि भाभी अच्छी नहीं थी वो बहुत अच्छी थी और वो चाहती थी कि राघव मुझे लेकर अपनी जिम्मेदारी समझे।

मुझे चुप देखकर उन्होंने कहा,”ज्यादा मत सोचो राघव थोड़ा सा लापरवाह है इसलिए ये सब हो रहा है , तुम उसे थोड़ा कंट्रोल में रखने की कोशिश करो। धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा”
उन्हें अपनी परवाह करते देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। कुछ देर बाद राघव गाड़ी लेकर आया मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे जाने का इशारा किया। मैं राघव के बगल में आ बैठी और गाड़ी वहा से निकल गयी। भाभी के घर से राघव के घर का रास्ता 2 मिनिट की दूरी पर था।

गाड़ी घर के सामने पहुंची और मैं अंदर चली आयी। मम्मी पापा सो चुके थे मैं ऊपर अपने कमरे में चली आयी। राघव को देखकर ही समझ आ गया था कि वह गुस्से में है। मैंने कपडे बदले और बिस्तर की तरफ चली आयी। राघव अपने फोन में बिजी था मैंने उस से डरते डरते कहा,”आज के बाद आप मुझे ऐसे उनके घर मत छोड़िएगा”
“क्यों क्या दिक्कत है ? वो घर नहीं है क्या ?”,राघव ने गुस्से से मेरी तरफ देखकर कहा


“दिक्कत है आपने कहा वहा रह जाओ और भाभी कहती है अपने घर जाओ,,,,,,,,,,,,,,,मैं कोई सामान नहीं हूँ जो मेरे साथ ऐसा बिहेव किया जा रहा है”,मैंने आँखों में आँसू भरते हुए कहा
“तो क्या अब तुमसे पूछकर तुम्हे कही भेजेंगे , तुम फोन नहीं भी करती ना तो भाई कर देता”,राघव ने गुस्से से उठकर बैठते हुए कहा
“ऐसे तो आप लोग कल को कही भी भेज देंगे,,,,,,मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता है। कितना बुरा लगा जब उन्होंने कहा कि मैं उनके घर नहीं रुक सकती।

मैं आपको नहीं समझ पा रही हूँ आप मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे है ? मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ?”,कहते हुए मेरी आँखों से आँसू बहने लगे।    
“मुझे नहीं पता”,राघव ने बेरुखी से कहा
“आपको नहीं पता तो फिर किसे पता होगा ? आप मुझसे ठीक से बात नहीं करते , कुछ पूछो तो गुस्से में जवाब देते है ,, अगर यही सब करना था तो फिर मुझसे शादी क्यों की ?”,मैंने रोते हुए कहा


“मुझे नहीं पता था तू ऐसी है , और मैं करना भी नहीं चाहता था शादी ,, दिवाली के बाद का इसलिए बोला ताकि बाद में मना कर सकू लेकिन भैया और जीजाजी ने जबरदस्ती ये शादी करवा दी”,गुस्से में राघव ने अपने दिल की बात बोल दी  
 राघव की बात सुनकर मैं हैरानी से उसे देखने लगी। गुस्से में ही सही लेकिन वो बहुत बड़ी बात बोल रहा था। क्या सच में ये रिश्ता एक जबरदस्ती का रिश्ता था।

अगर जबरदस्ती थी तो फिर शादी से पहले जो मेरे साथ वो क्या था ? माना शादी करने के लिए जबरदस्ती की जा सकती है लेकिन शादी से पहले मुझसे मिलना , बाते करना , मेरी परवाह करना वो सब क्या था ?
मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा,”तो फिर आपने मेरी जिंदगी बर्बाद क्यों की ?”
“मैंने क्या बर्बाद की ? इस घर में तुम्हे खाना कपडे सब मिल तो रहा है , ख़ुशी ख़ुशी रहो और अपनी जिंदगी जिओ”,राघव ने बिस्तर से उठते हुए कहा और खिड़की के पास चला गया


“खाना और कपडे तो मुझे शादी से पहले अपने घर में भी मिलता था , और जब अपनी अपनी जिंदगी जीनी थी तो फिर आपको ये शादी नहीं करनी चाहिए थी। बाहर लोगो के सामने ये दिखावा करना कि हम पति पत्नी है और बंद कमरे में ऐसा बर्ताव,,,,,,,,,,,,,,क्या ये सही है ?”,मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा
“मुझे नहीं पता क्या सही है और क्या गलत ? तुम्हे जैसे रहना है वैसे रहो , और ज्यादा शौक है ना बाहर बताने का तो जाकर बता दो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन एक बात याद रखना मैंने कुछ अच्छा किया तब भी बात तुम पर आएगी और गलत किया तब भी तुम पर ही आएगी।

यहाँ रहना है तो मेरे हिसाब से रहो , जैसे मैं रखू वैसे रहोगी तो खुश रहोगी वरना अपना बोरिया बिस्तर उठाओ और चली जाओ यहाँ से,,,,,,,,,,,,,,,!!”,राघव ने मुझे लगभग धमकाते हुए कहा
मैं उसका दुसरा ही रूप देख रही थी। मेरे सामने खड़ा शख्स वो राघव था ही नहीं जिस से मैं अपने शहर में मिली थी , जिस से मैंने फोन पर घंटो बाते की थी , जिस से मैंने मोहब्बत की थी। आज पहली बार वो मुझे अजनबी इंसान लग रहा था , एक ऐसा अजनबी इंसान जिसकी आँखों में मेरे लिए प्यार नहीं बल्कि नफरत थी।

मैं खामोश खड़ी उसे देखते रही और फिर मेरी आँखों में ठहरे आँसू गालों पर लुढ़क आये। राघव वापस बिस्तर पर आया और आँखे मूंदकर लेट गया। उसने आगे कोई बात नहीं की बल्कि अपनी बात से मुझे खामोश कर दिया।
मैं खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रही थी कमरे में घुटन होने लगी तो मैं बाहर बालकनी में चली आयी। आसमान में चाँद चमक रहा था और चारो तरफ शांति फैली हुयी थी। धीमी हवा चल रही थी जो सुकून पहुँचाने के बजाय चुभन का अहसास करवा रही थी। मैं भीगी पलकों से आसमान में चमकते चाँद को देखते रही।

बहुत कोशिश की खुद को समझाने की लेकिन सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। आँखों में ठहरे गर्म आँसू बहने लगे मैंने आसमान की तरफ देखते हुए अपने हाथ जोड़ लिए और रोते हुए कहने लगी,”राघव ने जो कहा उसे झूठ कर दीजिये ना महादेव,,,,,,,,, मेरा दर्द कम कर दीजिये मैं इस दर्द में अब और नहीं रह सकती। मैं किसी से कुछ कह नहीं सकती , अपना दर्द नहीं बाँट सकती , यहाँ कोई मुझे नहीं समझता है पर आप तो मुझे समझते है ना महादेव,,,,,,,,,,आप तो जानते है ना कि सब गलत हो रहा है।

मैं चाहकर भी राघव को नहीं समझा सकती , वो मेरी कोई बात सुनने को तैयार नहीं है वो ऐसा नहीं था महादेव आप तो सब जानते है ना , उसे पहले जैसा कर दीजिये,,,,,,,,मुझे अब और दर्द मत दीजिये मैं नहीं सह पाऊँगी , आप तो अपने सब बच्चो का ख्याल रखते है उनकी प्रार्थना सुनते है ना महादेव,,,,,,,इस बार मेरी प्रार्थना भी सुन लीजिये , ये सब अब मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।”


कहते कहते मेरा गला रुंधने लगा था। मेरा रोना अब सिसकियों में बदल चुका था मैं वही दिवार से पीठ लगा अपने आप में सिकुड़ कर बैठ गयी और अपना सर अपने घुटनो से लगा लिया। मैं एक ऐसे दर्द में थी जिसकी कोई दवा नहीं थी मैं पूरी रात नहीं सो पायी और वही बैठी रोते रही , सिसकती रही मेरे दर्द का किसी को अहसास तक नहीं था मेरे महादेव को भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,!!

सुबह 5 बजे आँख खुली तो मैंने खुद को बालकनी में पाया मैं उठकर अंदर चली आयी और आकर बिस्तर पर लेट गयी। कुछ देर के लिए ही सही मेरी आँख लग गयी। दूधवाले ला हार्न सुनकर मेरी आँख खुली। मैं उठी और नहाने चली गयी। नहाते हुए एक बार फिर राघव के कहे शब्द याद आ गए और मेरी आँखे फिर बहने लगी। तैयार होकर मैं नीचे किचन में चली आयी और अपना काम करने लगी। गैस पर दूध रखा था और मैं पास ही खड़ी किचन का प्लेटफॉर्म साफ कर रही थी।

उसे साफ करते हुए जहन में एक बार फिर से राघव का ख्याल आने लगा और उसकी कही बातें याद आने लगी। मुझे ध्यान नहीं रहा और गैस पर रखा दूध उफनकर गिर गया। मम्मी ने देखा तो गुस्से में मेरी तरफ आयी और कहा,”ध्यान कहा रहता है तुम्हारा ? रोज रोज दूध गिरा देती हो”
“गलती से गिर गया मैं साफ कर देती हूँ”,मैंने कहा और गैस साफ करने लगी। राघव ऑफिस चला गया।  
 सब काम खत्म करके मैं अपने कमरे में चली आयी। गर्मी की वजह से चिपचिपाहट होने लगी तो नहाने चली गयी।

नहाकर वापस आयी। मन को थोड़ा बदलने के लिए फोन में गाने चला दिए। शीशे के सामने बाल बनाते हुए मैं बिल्कुल खामोश खड़ी थी , मेरे चेहरे पर कोई ख़ुशी नहीं थी और आँखों में बस खालीपन पसरा हुआ था। तभी फोन में बजते गाने की लाईनो ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा
“ये इश्क़ तुम ना करना , ये रोग ही लगाए ,, दफ़न खुद करे है , फिर शौक भी मनाये”
गाने के ये बोल सुनते ही मुझे एकदम से अपनी कही बात याद आ गयी “”कितना अजीब गाना है। एक ही गाने में ख़ुशी और गम दोनों शामिल है। लिखने वाले ने इसे क्या सोचकर लिखा होगा ?”


इस गाने का मर्म मैं आज समझ पा रही थी। लिखने वाले ने उस गाने को शायद बहुत सोच समझकर लिखा था। जब हम प्यार में होते है तो हम ऐसे कितने ही गाने सुनते है पर जब हम दर्द में होते है तब हमे इन गानों का असली मतलब समझ आता है। मैंने अपने बाल समेटे और आकर बिस्तर पर बैठ गयी। राघव के साथ बिताया एक एक पल मेरी आँखों के सामने किसी फिल्म की तरह चल रहा था। मन भारी होने लगा और आँखों में नमी तैरने लगी।


रात में राघव घर नहीं आया सुबह जल्दी में आया , मैंने उसके लिए नाश्ता बनाया लेकिन वह बिना खाये चला गया। ये जानते हुए भी कि उसके लिए की जाने वाली मेरी हर कोशिश बेकार है मैं फिर भी उसके लिए वो सब कर रही थी। राघव की बेरुखी ने मुझे अंदर से काफी कमजोर बना दिया था। मैं वो मृणाल नहीं रही थी जो हंसती मुस्कुराती थी , गाने गाती थी , कविताये लिखती थी। सुबह से ही मन बहुत उदास था मैं अपने जहन से राघव की कही बातों को निकाल नहीं पा रही थी।

आख़िरकार मैंने एक फैसला किया और राघव की मम्मी को सब बता दिया। मुझे लगा वो औरत है मेरे जज्बात समझेगी , मेरा दर्द समझेगी लेकिन ये मेरी भूल थी। मेरी बात सुनकर वो घर में हंगामा करने लगी , अपने सीने पर हाथ रखकर ऐसे दिखाने लगी जैसे उन्हें तकलीफ हो रही है ,, उन्हें ऐसे देखकर मैं काफी घबरा गयी मैंने उन्हें डॉक्टर के पास चलने को कहा तो उन्होंने मेरा हाथ झटक दिया मुझे लगा मेरी वजह से ये सब हो रहा है।

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