Sakinama – 13
Sakinama – 13
खिड़की के पास खड़ी मैं आसमान में चमकते चाँद को देख रही थी कि तभी राघव की आवाज मेरे कानों में पड़ी,”पानी लेकर नहीं आयी तुम ?”
“नहीं”,मैंने पलटकर कहा
“जाओ लेकर आओ”,राघव ने लगभग आदेश देते हुए कहा। मैं चुपचाप नीचे चली आयी। किचन में रखा बॉटल उठाया और उसमे पानी भरने लगी। जहन में राघव की कही बात घूमने लगी “जब आप यहाँ आ जाओगे तब ढेर सारी बातें करेंगे”
बोतल भर चुकी थी और पानी सिंक में गिरने लगा तो मेरी तंद्रा टूटी। मैं पानी लेकर ऊपर चली आयी और राघव की तरफ बढ़ा दिया। उसने बोतल लिया और पानी पीने लगा। खिड़की में रखे पर्स पर मेरी नजर गयी तो मुझे याद आया। मैंने राघव को तोहफा ही नहीं दिया। मैंने बैग से वो बॉक्स निकाला और राघव की तरफ बढ़ा दिया। राघव ने बॉक्स देखकर कहा,”ये क्या है ?”
“आपके लिए तोहफा है , आपने पसंद किया था ना सिल्वर कड़ा”,मैंने कहा
राघव ने बॉक्स लिया और उसे साइड में रख दिया ,
उसने उस बॉक्स को एक बार खोलकर भी नहीं देखा ये देखकर मेरा मन एक बार फिर भारी हो गया। राघव ऐसा क्यों कर रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप आकर करवट बदल कर लेट गयी। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन आखिर में आँख में ठहरा आँसू बह गया और मैंने अपनी आँखे कसकर बंद कर ली। ये वही सिल्वर कडा था जिसे राघव ने खुद पसंद किया था और मुझसे खरीदने को कहा था। काफी देर कोशिश करने के बाद मुझे नींद आने लगी। जैसे ही आँख लगी राघव ने मेरा कंधा थपथपाया और कहा,”सो गयी क्या ?”
मैंने पलटकर देखा तो उसने अपना हाथ आगे करके कहा,”इसे बंद कैसे करते है ?”
मैंने देखा उसके हाथ में वही कडा था जो मैंने उसे दिया था। मैंने उसे बंद किया और वापस करवट बदल ली। मैं उस नाराज नहीं थी ना ही मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था बस उसे खरीदते वक्त जो ख़ुशी मेरी आँखों में थी वो अब नहीं थी। मेरी नींद उड़ चुकी थी और मैं खाली आँखों से बस सामने दिवार को देखते रही देर रात मुझे नींद आ गयी।
अगली सुबह फिर वही रूटीन शुरू हो गया। मैंने राघव के लिए दूध गर्म कर दिया और जब नाश्ते के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया। मम्मी फिर से कोई गलत बात ना करे सोचकर मैंने उस दिन अपने और उनके लिए नाश्ता बना लिया लेकिन उन्होंने नहीं खाया। मुझे अकेले खाने की आदत नहीं थी इसलिए मैंने बेमन से नाश्ता किया और अपना काम करने लगी।
राघव कब ऑफिस गया कुछ पता नहीं चला।
मैं गैलेरी में कपडे सूखाकर वापस आयी तो देखा मम्मी फोन पर किसी से बात करने में लगी है और फिर उन्होंने एकदम से मुझे सुनाते हुए कहा,”अपनी माँ के घर कौनसा मशीन में कपडे धोये है इसने , अभी अभी नया घर बना पहले ही बहुत खर्चा हो चुका है”
मैंने कुछ नहीं कहा बस अपना काम करती रही। कुछ देर बाद उन्होंने कहा,”जाओ तैयार होकर आ जाओ , तुम्हारी जेठानी के घर जाना है”
“जी”,मैंने कहा और ऊपर अपने कमरे में चली आयी। मम्मी मुझे अपने साथ लेकर भाभी के घर गयी साथ ही अपनी पहचान के कुछ और घरो में भी लेकर गयी। दोपहर तक हम वापस घर चले आये। दोपहर के खाने के बाद मैं अपने कमरे में चली आयी। शाम में फिर वही घर के काम करते करते कब 7 बज गए पता ही नहीं चला। राघव के ऑफिस से आने का वक्त हो चुका था इसलिए मैं ऊपर कमरे में आयी और पुरे कमरे को अच्छे से साफ कर दिया ताकि उसे बुरा न लगे।
सबके खाना खाने के बाद मैं अपने लिए खाना लेकर नीचे रूम में चली आयी।
यहाँ मैंने एक बात महसूस की और वो ये थी कि राघव के घर आने के बाद घर में एकदम से सब चुपचाप हो जाते थे। घर का माहौल एकदम से चेंज हो जाता था। मैं खाना खा ही रही थी कि तभी राघव के छोटे भाई ने आकर कहा,”भाभी भाई पूछ रहा है डी-मार्ट चलोगी क्या ? वो घर का कुछ सामान लाना है तो तुम भी चलो साथ”
उसका मुझे तुम कहकर बुलाना खटका लेकिन मैंने इग्नोर किया और कहा,”मैं खाना खा लू फिर चलते है”
“ठीक है आप आ जाना”,कहकर वो चला गया।
मैंने खाना खाया , बर्तन धोये और खुद को थोड़ा व्यवस्तिथ किया और बाहर चली आयी।
राघव और उसका छोटा भाई गाड़ी में आ बैठे और मैं उनके साथ पीछे आ बैठी। गाडी वहा से निकल गयी। मेरा मन अच्छा था , शांत था इसलिए मैं खिड़की से बाहर अपने नए शहर की सड़के , और वहा के नजारो को देख रही थी। रात का वक्त उस पर चमचमाती दुकाने और मॉल्स काफी अच्छे लग रहे थे। कुछ देर बाद हम डी-मार्ट पहुंचे।
अंदर आकर राघव और उसका छोटा भाई आगे बढ़ गए और राघव ने मुझसे ट्रॉली लाने को कहा। मैंने साड़ी पहनी थी , ऊपर से सर पर पल्लू था जो बार बार फिसल कर नीचे गिरा जा रहा था। मैं एक हाथ से उसे सम्हाले थी और दूसरे से खाली ट्रॉली लिए उन दोनों के पीछे चल पड़ी।
उन दोनों ने घर का सामान लिया , वो एक के बाद एक चीज उसमे रखते जा रहे थे। वो शहर , उस शहर के लोग , वो जगह मेरे लिए बिल्कुल नयी थी और इस वक्त मैं काफी असहज भी महसूस कर रही थी। ट्रॉली में सामान काफी ज्यादा हो चुका था। राघव और उसका भाई आगे बढ़ गए मैं पीछे ही रुक गयी क्योकि ट्रॉली के सामने एकदम से एक लड़का आ गया और मैं उसे साइड हटने को भी नहीं बोल पायी। राघव ने देखा तो मेरे पास आकर कहा,”ऐसे क्या चल रही हो ? थोड़ा एक्टिव रहो ,, ऐसे तो इतना बोलती हो उसे नहीं बोल सकती थी साइड हटने को”
“वो,,,,,,,,,,,!”,मैं कुछ बोल ही नहीं पायी मेरा कॉन्फिडेंस एकदम से लो हो चुका था
“अब चलो,,,,,,,,,,!”,राघव ने कहा और आगे बढ़ गया। घर का सब सामान हो चुका था इसलिए छोटे भाई ने मुझसे कहा,”तुम्हे अपने लिए कुछ चाहिए तो तुम ले लो”
मुझे कुछ नहीं चाहिए था मैं अपना सामान अपने घर से लेकर आयी थी। चलते हुए मेरी नजर एक रॉ पर पड़ी जहा कुछ स्क्रब्स रखे थे मैंने उनमे से एक अपने लिए रख लिया। हम तीनो काउंटर की तरफ चले आये।
मैं एक एक करके सामान काउंटर पर रखने लगी सामान रखते हुए राघव की नजर जब स्क्रब पर पड़ी तो उसने उठाकर देखते हुए कहा,”ये किसने लिया है ?”
“मैंने लिया है”,मैंने धीरे से कहा
“इसकी क्या जरूरत है , फालतू का खर्चा है”,राघव ने मुंह बनाते हुए कहा
“मैं इसे वापस रख देती हूँ”,मैंने धीरे से कहा
“अब ले लिया है तो रख लो”,राघव ने कहा और वहा से साइड में चला गया। मुझे एकदम से उन लड़कियों का ख्याल आ गया जिन्हे हर छोटी छोटी चीज के लिए अपने पति पर निर्भर रहना पड़ता है और कई बार बदले में कठोर शब्द भी सुनने पड़ते है। छोटे भाई की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी वह मुझे सामान ट्रॉली में रखने को कह रहा था। मैंने उसकी हेल्प की और फिर मार्ट से बाहर चले आये। राघव पर उसका भाई गाड़ी की तरफ बढ़ गए। मुझसे सामान की वो ट्रॉली सम्हाले नहीं सम्हल रही थी ऊपर से साड़ी का पल्लू,,,,,,,,,,,,,,,,,,राघव ने पलटकर देखा तो मेरी तरफ चला आया।
उसे अपनी ओर आते देखकर मुझे ख़ुशी हुयी लेकिन अगले ही पल वो ख़ुशी गायब हो गयी जब उसने कहा,”तुम से ये एक ट्रॉली नहीं सम्हल रहा , चलो आओ”
उसके शब्दों में परवाह कम और ताना ज्यादा था। मैं चुपचाप उसके पीछे चली आयी और सामान निकालकर पीछे सीट पर रखने लगी। सब सामान रखकर मैं पीछे आ बैठी और हम लोग वापस घर के लिए निकल गए। घर से आते वक्त मेरी आँखों में जो ख़ुशी थी वापसी में वो अब उदासी में बदल चुकी थी।
मैं ख़ामोशी से पीछे बैठी एक बार फिर खिड़की के बाहर देखते रही और इस बार उस शहर की रौशनी मुझे अपनी आँखों में चुभती हुयी महसूस हो रही थी।
अगली सुबह मैं धुलने वाले कपडे लेने ऊपर आयी देखा राघव नहा चुका है। इस घर में आने के बाद मैंने उसे मुस्कुराते हुए भी नहीं देखा , उसे अपसेट देखकर मैंने आज पूछ लिया,”क्या हुआ है आपको ? आप सुबह सुबह ऐसे मुंह बनाकर क्यों घूमते है ?”
“सुबह सुबह मेरा दिमाग खराब करने की जरूरत नहीं है”,उसने उखड़े स्वर में कहा
“मैंने ऐसा क्या कर दिया ? आप ठीक से बात क्यों नहीं करते हो ? जब देखो तब ऐसे ही गुस्से में रहते हो”,मैंने कहा
“हाँ तो आदत डाल लो”,राघव ने शर्ट पहनते हुए कहा
“ऐसे कितनी चीजों की आदत डालनी होगी मुझे , अगर मुझसे कोई गलती हुई है तो एटलीस्ट आप मुझे बताओ तो सही”,मैंने रोआँसा होकर कहा
“तुम्हे नहीं पता तुमसे क्या गलतिया रही है , और कितनी ही गलतियों को इग्नोर कर देता हूँ मैं कि अभी नयी नयी है सीख जाएगी”,राघव ने थोड़ा गुस्से से लेकिन दबी आवाज में कहा
“पर मैंने किया क्या ? मैं जब से यहाँ आयी हूँ आप ऐसे ही बर्ताव कर रहे हो”,मैंने कहा ये कहते हुए मेरी आँखों में लगभग आँसू आ चुके थे
“कपडे ठीक से धोने आते भी है तुम्हे मेरी बनियान को कलर लगा दिया”,उसने गुस्से से मेरी तरफ देखकर कहा
“कल आपके कपडे मैंने नहीं धोये थे वो मम्मी ने उन्हें भिगोया,,,,,,,,,,,,,,,!!”,मैंने कहना चाहा लेकिन राघव ने मेरी बात ही पूरी नहीं होने दी और मेरी तरफ आकर कहा,”ये ध्यान रखना तुम्हारा काम है , अब जाओ यहा से मेरा दिमाग खराब मत करो”
मैंने आगे कुछ नहीं कहा बस चुपचाप धुलने वाले कपडे उठाये और उन्हें लेकर नीचे चली आयी।
गैलरी में आकर जैसे ही कपडे भीगाने लगी मम्मी ने आकर कहा,”रघु के कपड़ो को अलग से भिगो देना , जरा सा भी दाग लगा तो वो तेरा खाया पीया निकाल लेगा”
उनकी बात सुनकर मुझे कुछ देर पहले घटी बात याद आ गयी और मैं बहुत ध्यान से अपना काम करने लगी। राघव नीचे आया और ऑफिस चला गया। दिनभर मम्मी ने मुझे अपने साथ घर की साफ सफाई में लगाए रखा। नया घर बना था और इसमें फर्नीचर का काम चालू था।
दोपहर के 3 बजने को आये मेरे हाथ अब दर्द करने लगे थे और मम्मी भी थक चुकी थी इसलिए उन्होंने मुझसे जाकर आराम करने को कहा।
रात के खाने के बाद राघव अपने किसी दोस्त से मिलने बाहर चला गया। मैंने देखा मम्मी दर्द से परेशान है मैंने उनके लिए तेल गर्म किया और लेकर उनके पास चली आयी।
“ये क्या है ?”,उन्होंने हैरानी से पूछा
“वो आपके पैर दर्द कर रहे होंगे ना , मैं ये तेल लगा देती हूँ इस से आपको थोड़ा आराम मिलेगा”,मैंने नीचे बैठते हुए कहा और तेल से उनके पैरो की मालिश करने लगी। उनके चेहरे पर सुकून के भाव थे। रात के 9 बजने को आये तो उन्होंने मुझे अपने कमरे में जाने को कहा तब तक राघव भी वापस घर आ चुका था।
राघव को कमरे में देखकर मम्मी बाहर पापा की तरफ चली गयी। मैं बिस्तर पर पड़े मम्मी पापा के कपड़ो को कबर्ड में रखने लगी। राघव ने मम्मी के कमरे का कबर्ड खोला उसमे रखे अपने सूट को बाहर निकाला। उसमे रखे अपने सफ़ेद शर्ट को निकाला और मेरी तरफ फेंककर कहा,”इसे धो दो”
“अभी इस वक्त , मैं इसे कल धो दूंगी”,मैंने कहा
“नहीं मैं इसे कल ऑफिस पहनकर जाऊंगा , अभी धो”,राघव ने कहा
मैंने देखा वो शर्ट काफी गंदा हो चुका था और उसकी बाजू पर रंग लगा था जो कि काफी गहरा पड़ चुका था। मैंने उसे देखते हुए कहा,”इस पर रंग लगा है , ये आसानी से नहीं जाएगा मैं कल दिन इसे ब्लीच से साफ करके धो दूंगी”
“जितना बोला है उतना कर”,राघव ने मेरी तरफ देखकर गुस्से से कहा
मैंने कुछ नहीं कहा और लेकर वही बाथरूम में चली आयी।
मैंने उसे धोना शुरू किया लेकिन वो दाग निकलने को तैयार ही नहीं थे। राघव वहा से चला गया। मेरे हाथ दर्द करने लगे थे पर वो दाग नहीं छूटे। रात के 10 बजने को आये मैं थक चुकी थी। मम्मी कमरे में आयी उन्होंने मुझे बाथरूम में देखा तो कहा,”इतनी रात में किस के कपडे धो रही हो तुम ?”
“उनका शर्ट है उन्होंने कहा इसे अभी धोना है लेकिन ये दाग नहीं जा रहा है , मैंने सब करके देख लिया पर ये नहीं निकल रहा”,मैंने लगभग रोआँसा होकर कहा
“ठीक है अभी तो इसे धोकर सूखा दो , कल ब्लीच मंगवा लेना उस से चला जाएगा ये दाग”,मम्मी ने कहा तो मैं उस शर्ट को लेकर ऊपर चली आयी। मेरे कमरे से लगकर बालकनी थी मैंने शर्ट वहा सूखा दी और जैसे ही अंदर आयी राघव ने पूछा,”दाग निकल गया ?”
“मैंने बहुत बार कोशिश की लेकिन पूरा नहीं निकला”,मैंने कहा
“किसी काम की नहीं तुम”,राघव मुंह बनाते हुए धीरे से बड़बड़ाया पर मुझे सुन गया। मैंने उस से कुछ नहीं कहा बस बिस्तर पर आकर लेट गयी। हाथो में दर्द होने की वजह से मैं पूरी रात करवटें बदलती रही।
बहुत कोशिश करने के बाद भी आँखों से आँसू बह गए। मैं धीरे धीरे कमजोर पड़ते जा रही थी , राघव के सामने मैं क्यों हमेशा खामोश हो जाती थी मैं खुद नहीं समझ पा रही थी। मैं बिना आवाज के रो रही थी और अपनी सिसकियों को दबाने की कोशिश कर रही थी लेकिन नहीं हो पाया। राघव की नींद खुली और उसने कहा,”क्या हुआ तुम्हे ?”
“कुछ नहीं”,मैंने कहा मेरी आवाज सुनकर वह समझ गया कि मैं रो रही हूँ
“कुछ नहीं हुआ तो फिर ये सब क्या है ? मैंने पहले भी कहा है कि मुझे ये रोना धोना पसंद नहीं है लेकिन तुम्हे नहीं समझ आता”,राघव ने गुस्सा होते हुए कहा
“मैं रो नहीं रही , वो जुखाम की वजह से मेरा नाक बंद है इसलिए मेरी आवाज चेंज है”,मैंने जैसे तैसे करके आपने आँसुओ को पोछते हुए कहा
“तुम ये सब करती हो ना तो मुझे घुटन महसूस होती है”,राघव ने चिढ़ते हुए कहा
“पर मैंने ऐसा क्या किया है ? आप मेरे साथ ये सब मत करो मुझे अच्छा नहीं लग रहा , मुझे बहुत तकलीफ होती है”,ना चाहते हुए भी मैंने राघव से अपने मन की बात कह दी
“क्या किया मैंने ? सब मिल तो रहा है तुम्हे इस घर में , किस चीज की कमी है ? तुम जैसे चाहो वैसे रहो कौन मना कर रहा है ?”,उसने गुस्से से कहा
“मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए बस मुझसे ठीक से बात कर लोगे मेरे लिए वही काफी है”,मैंने सिसकते हुए कहा
राघव मेरी तरफ पलटा और मुझे गले लगाकर कहा,”तुम्हे मुझसे जबरदस्ती वाला प्यार चाहिए या वो प्यार चाहिए जो मैं अपनी ख़ुशी से दू ?”
“मुझे बस आपसे सम्मान चाहिए”,मैंने हिम्मत करके कहा
मेरी बात सुनकर राघव ने मुझे एकदम से खुद से दूर कर दिया और करवट बदलकर सो गया। ऐसा मैंने क्या मांग लिया उस से जो वो इतना कठोर बन गया।
मैंने उस से बात करने के लिए जैसे ही अपने हाथ से उसके कंधे को छुआ उसने मेरा हाथ झटक दिया और कहा,”क्या तुम चाहती हो मैं इस कमरे से बाहर चला जाऊ ? तुम्हे प्यार नहीं चाहिए तुम्हे इज्जत चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,इसका जवाब दे दूंगा तुम्हे”
राघव की बात सुनकर मैं उस से दूर हट गयी और किनारे आकर करवट बदलकर सोने की कोशिश करने लगी लेकिन नींद आँखों से कोसो दूर थी। मैं उसे समझ नहीं पा रही थी वो मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था ?
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