Sakinama – 12
Sakinama – 12
गांव पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी और अँधेरा भी होने लगा था। राघव और उसकी फॅमिली गांव से थे लेकिन रहते गुजरात में थे। शादी उन्होंने गांव से ही की थी इसलिए पहले मुझे उनके साथ गांव आना पड़ा। कुछ रस्मो के बाद राघव ऊपर अपने कमरे में चला गया। मैं नीचे घर की औरतो के साथ थी। देर रात मैं उन लोगो के साथ नीचे ही रही और फिर मुझे ऊपर जाने को कहा। मैं ऊपर कमरे में आयी तो देखा राघव सो चुका है।
अगले पूरा दिन शादी के बाद की रस्मों में गुजर गया। शाम मे मैं राघव और कुछ रिश्तेदारो के साथ अपने घर पगफेरे के लिए आयी। दो दिन बाद मुझे गुजरात जाना था इसलिए सबसे मिलने के लिए बस आज का दिन था। देर रात हम सब वापस गांव लौट आये। गांव में होने की वजह से मेरी राघव से ज्यादा बात नहीं हुई। अगली सुबह मैं उठकर नीचे चली आयी। नहाकर तैयार हुयी तो राघव के छोटे भाई ने कहा,”आज तो सब नयी भाभी के हाथ की चाय पिएंगे”
मैंने भी उसकी बात मान ली और सब के लिए चाय बना दी। राघव अभी तक सो रहा था।
आँगन में दीदी ( राघव की बहन ) अपने कपडे धो रही थी। मैं भी वही बैठकर अपने कपडे धोने लगी। अभी कुछ ही वक्त गुजरा था कि बड़ी दीदी ने ढेर सारे कपडे लाकर मेरे सामने डालते हुए कहा,”जब कपडे धो ही रही हो तो ये भी धो दो”
शादी के बाद उस घर में मेरा दुसरा दिन था और मैंने एक साथ इतने कपडे कभी नहीं धोये थे लेकिन मैं उनको ना नहीं बोल पायी। मैंने चुपचाप वो कपडे धोने शुरू कर दिए। उन कपड़ो में ज्यादातर सफ़ेद रंग की पेण्ट और शर्ट थे जो कि बाकी कपड़ो से ज्यादा गंदे थे।
कपडे धोते हुए मेरी साड़ी पूरी खराब हो गयी क्योकि वो गांव था और वहा साड़ी के साथ साथ लंबा घूंघट भी करना था। जैसे तैसे मैंने कपडे धोये और उन्हें सुखा दिया। साड़ी चेंज की और अपने गीले बाल सूखाने लगी। गर्मी का मौसम था और ऐसे में मेरी तबियत खराब होने लगी। बार बार जी घबरा रहा था और सरदर्द भी,,,,,,,,,,,,,,,,ऐसे में किसी रस्म को लेकर घर से 1 किलोमीटर दूर पहाड़ो पर मंदिर भी जाना था। सबके साथ मैं मंदिर गयी , राघव को पता चला तो घर आने के बाद उसने मुझसे तबियत का पूछा और छोटे भाई के साथ दवा भिजवा दी।
दवा खाकर मैं ऊपर कमरे में चली आयी और आराम करने लगी। राघव अपनी मम्मी के साथ बाहर गया हुआ था। शाम में दीदी मुझे बुलाने आये और कहा,”बड़े जीजाजी और छोटे जीजाजी घर आ रहे है , उन्होंने कहा है वो तुम्हारे हाथ से बने ही दाल भात खाएंगे”
“जी दीदी ठीक है”,मैंने कहा और उनके साथ नीचे चली आयी।
नीचे आकर मैं किचन में चली आयी मैंने गैस पर चावल चढ़ा दिए , सब्जिया काटकर उन्हें पकाया , आटा गुंथा और रोटियां बनाने लगी।
इस बीच बस घर की एक बुजुर्ग मौसीजी आये और उन्होंने मेरी थोड़ी सी मदद की और वहा से चली गयी। अकेले काम करना थोड़ा अजीब भी लगा फिर मैंने भी किसी को ज्यादा परेशान नहीं किया। सबके खाना खाने के बाद मैंने बर्तन धोये और नीचे बैठक में चली आयी। राघव की मम्मी , दीदी और मौसीजी भी वही मौजूद थे और पैकिंग कर रहे थे। अगली सुबह जल्दी ही उन्हें गुजरात के लिए निकलना था।
“अपने साथ ज्यादा सामान नहीं रखना है बस 4-5 साड़ी और जरुरी सामान रख लो गाड़ी में ज्यादा जगह नहीं है”,राघव की मम्मी ने अपना बैग जमाते हुए कहा
मम्मी ने मुझे कई अच्छी साडिया दी थी अपनी पसंद से लेकिन उनमे से बस कुछ ही अपने बैग में रखी और बाकि सब वही छोड़ दिया।
अगली सुबह सब तैयार थे। मम्मी पापा बाहर का खाना नहीं खाते इसलिए मैंने उनके लिए खाना बनाया और राघव के लिए नाश्ता लेकिन राघव ने नाश्ता नहीं किया। सामान गाड़ी में रखा गया। पापा आगे बैठ गए और राघव ड्राइवर सीट पर , पीछे मैं और राघव की मम्मी आ बैठे गाड़ी वहा से निकल गयी। गांव से बाहर निकलकर गाड़ी मेन रोड पर चलने लगी। आगे जाकर पापा के कहने पर राघव ने गाड़ी रोकी।
पापा और राघव की मम्मी कुछ सामान लेने के लिए नीचे उतर गए। गाड़ी में सिर्फ मैं और राघव थे इसलिए मैंने कहा,”गुजरात राजस्थान से कितनी दूर है ?”
“राजस्थान को अब भूल जाओ तुम , यहाँ वापस नहीं आना है अब गुजरात ही तुम्हारा घर है”,राघव ने सामने देखते हुए कहा
उसके बात करने का तरिका थोड़ा रूखा और अजीब लगा तो मैंने कहा,”वापस क्यों नहीं आना राजस्थान मेरा घर है”
“अब आओगी तो मुझसे पूछकर आओगी , मैं जब भेजूंगा तब आना”,राघव कहते हुए मुस्कुराया पर आज उसकी मुस्कराहट में मासूमियत नहीं थी। उसकी बातेँ सुनकर थोड़ा अजीब लगा मैं खिड़की से बाहर देखने लगी। कुछ देर बाद पापा और राघव की मम्मी वापस चले आये। राघव ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। पापा ने अपने पास रखे सेब में से एक सेब मेरी तरफ बढ़ा दिया , मैंने सेब लिया तो राघव की मम्मी अजीब नजरो से मुझे देखने लगी। गांव में रहने की वजह से राघव के घर में बड़ो से बात करने और उनके सामने घूंघट करने का नियम था।
मैंने उस सेब को अपने हाथ में रख लिया।
एक घंटे बाद गाड़ी आकर एक घर के सामने रुकी। सभी नीचे उतरे और अंदर चले आये। ये राघव की सबसे छोटी बहन का घर था। दीदी , जीजाजी और उनके बच्चे गुजरात में ही रहते थे इसलिए वो भी हमारे साथ उसी गाड़ी में जाने वाले थे। चाय-नाश्ते के बाद सभी आकर गाड़ियों में बैठ गए। जीजाजी राघव के बगल में बैठ गए , पापा मम्मी के साथ पीछे आ बैठे और उनके साथ राघव की बहन सपना आ बैठी। मुझे बच्चो के साथ सबसे पीछे बैठना पड़ा जहा ना कोई खिड़की थी ना बैठने की ठीक जगह लेकिन मैंने एडजस्ट कर लिया।
सफर काफी लम्बा था और सुबह जल्दी निकले थे इसलिए मैं सीट से सर लगाकर सो गयी। दोपहर बाद गाड़ी एक होटल के सामने सामने आकर रुकी। सभी खाना खाने नीचे उतरे मैं काफी थक चुकी थी , आज से पहले इतना लंबा सफर मैंने कभी नहीं किया था। थकान मेरे चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। राघव , मैं , सपना ,जीजाजी और उनके बच्चे एक टेबल पर आकर बैठ गए और मम्मी पापा दूसरी तरफ,,,,,,,,,,,,,,सबने खाना खाया और एक बार फिर गाड़ी में आकर बैठ गए। इस बार दीदी का बेटा मेरे पास बैठा बातें कर रहा था,,,,,,,,,,
उस से बात करते हुए मेरी उदासी थोड़ी कम हो गयी और मैं भी उसके साथ बातें करने लगी। रास्ते में बारिश होने लगी और मौसम भी काफी अच्छा हो गया था। शाम में एक बार फिर गाड़ी एक होटल के बाहर रुकी। सभी चाय नाश्ते के लिए नीचे उतरे। राघव अपनी बहन और जीजाजी के साथ खड़े होकर बातें करते हुए खा पी रहा था। मैं उन सबसे कुछ दूर साइड में खड़ी थी। राघव की मम्मी ने मुझसे कुछ खाने का पूछा तो मैंने बस एक कप चाय माँगा।
राघव मेरे लिए चाय रखकर वापस दूसरी तरफ चला गया और राघव के मम्मी पापा भी दूसरी तरफ चले गए। मैं वही पड़ी कुर्सी पर बैठकर अपनी चाय पीने लगी। सब के होते हुए भी एक अकेलापन सा महसूस हो रहा था और घर की भी बहुत याद आ रही थी। कुछ देर वहा वक्त बिताने के बाद सभी घर जाने के लिए निकल गए। रास्ते में मेरी तबियत फिर खराब होने लगी मैंने सीट से सर लगा लिया और वापस सो गयी
देर रात गाड़ी राघव के घर पहुंची। ये नया घर राघव ने बनवाया था जहा वह अपने मम्मी पापा और मेरे साथ रहने वाला था। राघव के बड़े भैया और भाभी वहा पहले से मौजूद थे। सभी अंदर चले आये। दरवाजे पर भाभी ने चावल का कलश रखा था। उन्होंने मुझे और राघव को तिलक किया और फिर मुझसे कलश गिराकर अंदर आने को कहा। मैं अंदर चली आयी मैंने देखा उनके चेहरे पर ख़ुशी के कोई भाव नहीं थे।
कुछ देर वहा रुकने के बाद भैया ने सबको अपने घर चलने को कहा। सभी वहा से भैया के घर के लिए निकल गए। उनके घर आकर भाभी ने एक बार फिर दोनों को तिलक किया और अंदर आने को कहा। सभी अंदर चले आये मैं सपना दीदी के साथ अंदर कमरे में चली आयी। भाभी किचन में थी उन्हें अकेले काम करते देखकर मैं भी उनके पास चली आयी और मदद करने लगी। सबने खाना खाया। मैं , भाभी और सपना दीदी किचन में बैठकर खाना खा रहे थे कुछ देर बाद मम्मी किचन में आये और मुझसे कहा,”ये सब बर्तन तुम धो देना”
“जी ठीक है”,मैंने धीरे से कहा क्योकि मैंने अपने घर में सीखा था शादी के बाद अपने जूठे बर्तन ससुराल में किसी से नहीं धुलवाते,,,,,,,,,,,,,,,,हालाँकि ये सब बातें आज के जमाने में बेतुकी लगती है लेकिन माँ-बाप के दिए संस्कार अभी भी मुझमे कायम थे। मैंने जूठे बर्तन उठाये और किचन से बाहर चली आयी। बाहर आकर मैंने देखा नल के पास और भी ढेर सारे बर्तन रखे हुए थे। भाभी ने देखा तो कहा,”मैं मदद कर देती हूँ”
भाभी मुझे अच्छी औरत लगी , शादी से पहले या शादी से बाद मेरी उनसे ज्यादा बात भी नहीं हुयी थी क्योकि राघव और उसकी मम्मी ने पहले ही मना कर दिया था उनसे ज्यादा बात करने से और ऐसा क्यों था मैं नहीं जानती थी,,,,,,,,,,,,,,,,ना मैंने कभी उनसे पूछा।
कुछ देर बाद राघव , मैं और मम्मी पापा वापस अपने घर चले आये। दीदी , जीजाजी और बच्चे वही भैया के रुक गए। राघव का कमरा ऊपर था और आज से वो राघव के साथ मेरा भी कमरा था। थकान और गर्मी की वजह से मैं नहाने चली गयी। नहाने के बाद काफी अच्छा लग रहा था। मैंने कपडे बदले और बाथरूम से बाहर चली आयी। राघव वही कमरे में मौजूद था और अपने फोन में बिजी था।
मैंने उस से कुछ बाते की तो उसने बस हां ना में जवाब दिया और वापस फोन में बिजी हो गया। घर में अभी फर्नीचर का काम पूरा नहीं हुआ था इसलिए घर अस्त-व्यस्त था। मैं आकर बिस्तर पर लेट गयी , दिनभर की थकान के कारण मुझे जल्दी नींद आ गयी।
सुबह 6 बजे मेरी आँख खुली। राघव सो रहा था। मैंने बैग से अपने कपडे निकाले और नहाने चली गयी। ससुराल में मेरा पहला दिन था मैंने साड़ी पहनी और तैयार होकर नीचे चली आयी।
मम्मी पापा और अपने लिए चाय बनायीं। चाय पीकर मैंने कप नीचे रखा ही था कि सास ने आकर कहा,”धोने वाले कपडे नीचे ले आओ और उन्हें सर्फ़ में भिगो दो , बाकि काम बाद में करना”
“जी ठीक है”,मैंने कहा और ऊपर चली आयी। राघव उठ चुका था वह बिस्तर पर बैठा अपनी शर्ट प्रेस कर रहा था। उसे प्रेस करते देखकर मैंने कहा,”मैं कर देती हूँ”
“नहीं मैं कर लूंगा , मुझे दुसरो के प्रेस किये कपडे पसंद नहींआते “,राघव ने प्रेस करते हुए कहा
सुबह सुबह उसके चेहरे पर अजीब भाव थे , उसके चेहरे पर ख़ुशी का नामों-निशान तक नहीं था। वो काफी बुझा बुझा सा लग रहा था और उसे ऐसे देखकर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने बिस्तर पर बैठते हुए कहा,”सुबह सुबह आपने मुंह क्यों बना रखा है ?”
“मैंने कोई मुंह नहीं बना रखा”,राघव ने रुखा सा जवाबा दिया
“अच्छा आप ये प्रेस क्यों कर रहे है ? कही जा रहे है क्या ?”,मैंने सवाल किया
“हाँ ऑफिस जा रहा हूँ”,राघव ने उठते हुए कहा और कबर्ड से कपडे निकालकर बाथरूम की तरफ बढ़ गया
“आज आज रुक जाते”,मैंने झिझकते हुए कहा
“नहीं जाना पडेगा , काम बहुत पेंडिंग है और पिछले 15 दिन से छुट्टी पर ही हूँ”,कहकर वह बाथरूम में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया। मैं कुछ देर वही बैठी रही और फिर धोने वाले कपडे लेकर नीचे चली आयी।
घर के पीछे बानी गैलरी में आकर मैंने कपड़ो को सर्फ में भिगो दिया। कुछ देर बाद मम्मी आयी और ढेर सारे कपडे मेरे सामने डालते हुए कहा,”इन्हे भी भिगो दो”
“जी ठीक है”,मैंने कहा और उन्हें भी अलग करके भिगो दिया।
कपडे भिगोकर अंदर आयी तो देखा मम्मी किचन एरिया में खड़ी गैस पर दूध उबाल रही है।
“ये आप क्या कर रही है ?”,मैंने पूछा
“रघु के लिए दूध उबाल रही हूँ , चाय-नाश्ता करके नहीं जाता है इसलिए एक ग्लास दूध पीकर जाता है। ध्यान से देख लो कल से ये तुम्हे करना है”,मम्मी ने दूध को बड़े कटोरे में छानते हुए कहा
“हम्म्म ठीक है , मैं आप लोगो के लिए नाश्ता बना देती हूँ , क्या खाएंगे आप ?”,मैंने पूछा
“मैं और तेरे ससुर तो कुछ नहीं खाएंगे , दोपहर में खाना ही खाएंगे। तुम्हे कुछ खाना हो तो बनाकर खा लो और फिर कपडे धो लो”,मम्मी ने कहा और वहा से चली गयी
नए घर में मेरा पहला दिन था और ऐसे में थोड़ी झिझक मुझ में अभी भी थी इसलिए मैंने अपने लिए कुछ नहीं बनाया और वापस गैलेरी में आकर कपडे धोने लगी। कपडे धोते धोते 2 घंटे गुजर गए। एक साथ इतने कपडे धोने की आदत मुझे नहीं थी। धुले हुए कपडे तार पर सूखने के लिए डाल दिए। कपडे धोने से पहनी हुई साड़ी भी थोड़ी भीग गयी मैं उसे सुखाते हुए अंदर चली आयी। मैंने देखा राघव कही नजर नहीं आ रहा तो मैंने मम्मी से पूछ लिया,”वो ऑफिस गए क्या ?”
“हाँ वो तो कब का ही चला गया , तुमने कपडे धो लिए ?”,मम्मी ने पूछा
“हाँ सब धूल गए”,मैंने कहा
“ठीक है फिर जल्दी से घर की सफाई कर लो उसके बाद खाना भी बनाना है”,मम्मी ने कहा और वहा से चली गयी।
मैंने झाड़ू उठाया और सफाई में लग गयी। सफाई करते हुए एकदम से राघव का ख्याल आ गया।
वह मुझसे मिले बिना ही ऑफिस चला गया। खैर शाम में आएगा तब उस से बात करुँगी सोचकर मैं ख़ुशी ख़ुशी सफाई करने लगी।
साफ सफाई करते करते दोपहर हो चुकी थी और खाने का वक्त भी हो चूका था। मैंने हाथ मुंह धोये और किचन की तरफ चली आयी। मैं खाने की तैयारी करने लगी तभी मम्मी की आवाज मेरी कानों में पड़ी वे फोन पर सपना दीदी से कह रही थी,”अरे वाह यहाँ से जाकर तुमने नाश्ता भी कर लिया और घर की सफाई भी , यहाँ तो ना नाश्ते का कोई ठिकाना है ना खाने का ,, अब तो खाना बनेगा तब ही मिलेगा”
उनकी ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी लेकिन मैं खामोश रही और अपना काम करती रही। खाना बनकर तैयार हो चूका था। राघव ऑफिस में था , राघव का छोटा भाई घर पर कम ही रहता था बस मैं और मम्मी पापा थे। उनके खाना खाने के बाद मैंने खाना खाया , बर्तन धोये और ऊपर अपने कमरे में चली आयी। मैंने अपना फोन उठाया और आदतन राघव को मैसेज करके पूछ लिया “खाना खाया आपने ?”
“हाँ ! आपने खाया ?” राघव ने लिख भेजा
“अभी खाना खाकर ऊपर कमरे में आये है” मैंने लिख भेजा
“क्या कर रही हो ?” राघव ने लिख भेजा
“कुछ नहीं बस घर की सफाई कर रहे है” मैंने लिख भेजा
“ठीक है अपने रूम की भी कर लेना” राघव ने लिख भेजा
“हाँ , आप बिजी है क्या ?” मैंने लिख भेजा
“हाँ थोड़ा सा” राघव ने भेजा
“ठीक है आप काम कीजिये” मैंने लिख भेजा उसके बाद राघव का कोई मैसेज नहीं आया। मैंने कमरे की थोड़ी साफ सफाई की और बिस्तर पर आकर लेट गयी। नींद आँखों से कोसो दूर थी। बिस्तर पर लेटे मैं बस राघव के बारे में सोचे जा रही थी। यहाँ आने के बाद मुझे वो काफी बदला बदला नजर आ रहा था।
शाम में राघव आया तो मेरा उदास चेहरा खिल उठा।
नीचे मम्मी पापा के सामने वह बहुत कम बात करता था और मुझसे तो बिल्कुल भी नहीं। खाना खाने के बाद वह कुछ देर नीचे रुका और फिर ऊपर कमरे में चला आया। मैं उसके धुले हुए कपडे तह करके कबर्ड में रख रही थी वह एकदम से मेरी तरफ आया और कहा,”ये क्या है ?”
“क्या हुआ ?”,मैंने उसकी तरफ देखकर पूछा
“ये,,,,,,,,!!”,उसने नीचे जमीन की तरफ इशारा करके कहा
मैंने नीचे देखा फर्श पर एक दो बाल गिरे हुए थे ये शायद मेरे ही थे जब शाम में जल्दबाजी में मैं बाल बनाकर नीचे गयी थी।
“मैं उठा देती हूँ”,मैंने कहा और उन बालों को उठाकर बाहर फेंक दिया।
“मुझे ये सब पसंद नहीं है , मुझे घर में साफ सफाई चाहिए”,राघव ने थोड़ा रूखे स्वर में कहा। आज से पहले उसके बात करने का तरिका ऐसा बिल्कुल नहीं था पर एकदम से उसे ये क्या हुआ था मैं नहीं जानती थी।
वह बिस्तर पर आकर बैठ गया और अपने फोन में बिजी हो गया। मैं उस से कुछ दूरी बनाकर बिस्तर पर आ बैठी और कहा,”कैसा रहा आपका दिन ?”
“ठीक था”,उसने फोन में नजरे गड़ाए हुए कहा
“मुझे आपसे कुछ बात करनी है”,मैंने धीरे से कहा
“हाँ बोलो”,इस बार भी उसकी नजरे फोन पर थी
“आप थोड़ी देर के लिए फ़ोन साइड में रख दीजिये”,मैंने कहा
“क्यों फोन से क्या प्रॉब्लम है ? तुम पूछो मैं जवाब ना दू तो कहना”,राघव ने फोन में देखते हुए कहा
उसका जवाब सुनकर उस से आगे बात करने का मन नहीं किया। उसकी बातों से लगा जैसे वह जान बुझकर मुझे इग्नोर कर रहा है। मैंने उसकी तरफ देखा और कहा,”ठीक है फिर रहने देते है , ऐसे मुझे बात नहीं करनी है”
मेरी बात से शायद उसे थोड़ा गुस्सा आ गया इस बार उसने मेरी तरफ देखकर कहा,”तो मत करो मुझे तो ऐसे बात करने में कोई दिक्कत नहीं है , तुम पूछो तुम्हे जो पूछना है मैं जवाब दे दूंगा”
“मुझे ऐसे बात करने की आदत नहीं है”,मैंने कहा
“तो आज से आदत डाल लो”,राघव ने बहुत ही रूखे स्वर में कहा।
उसका जवाब सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा , मैंने आगे कोई बात नहीं की वहा से उठकर खिड़की के पास चली आयी। मन भारी हो चूका था और आँखों में नमी तैर गयी लेकिन मैं रोना नहीं चाहती थी। मैं खिड़की से बाहर देखने लगी सामने दूर तक खाली मैदान था और आस-पास कोई घर नहीं था। जो भी घर थे काफी दूर थे।
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संजना किरोड़ीवाल