Haan Ye Mohabbat Hai – 7
छवि ने कमल जी के साथ गांव जाने से मना कर दिया। माधवी भी हैरानी से छवि को देखे जा रही थी आखिर उसने इतना फैसला क्यों लिया ? वे छवि के पास आयी कहा,”ये सब क्या है छवि तुम हमारे साथ क्यों नहीं जाना चाहती ?”
“माँ मैं जानती हु मेरे साथ जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ पर क्या हमे इस तरह मुंह छुपाकर यहाँ से भाग जाना चाहिये। जो हुआ उसमे मेरी क्या गलती थी माँ , मैं क्यों ये शहर छोड़कर जाऊ ?”,छवि ने दर्द भरे स्वर में कहा
“तो तुम क्या चाहती हूँ छवि की यहाँ रहकर तुम्हारी माँ लोगो की कड़वी बातो और तानो का जवाब दे ?
अभी तुम्हारी पूरी जिंदगी बाकि पड़ी है बेटा और ऐसे हालातो में इस शहर के लोग तुम्हे चैन से जीने नहीं देंगे , मेरी बातो मानो और चलो यहाँ से,,,,,,,,,देखो ट्रेन के चलने का वक्त हो गया है।”,कमल जी ने छवि को समझाते हुए कहा
“नहीं मामाजी , समाज के डर और लोगो के के तानो से डरकर मैं ये शहर नहीं छोड़ सकती , मेरे साथ जो हुआ उसमे मुझे इंसाफ तो ना मिल सका लेकिन मुझे इंसाफ दिलाते दिलाते “अक्षत व्यास” ने अपनी बेटी को खो दिया
, अपनी वकालत खो दी और आज वो मुझसे भी ज्यादा मजबूर और बेबस इंसान बन गया है। मुझे इंसाफ दिलाने के लिए वो आखिर तक मेरे साथ खड़ा रहा और आखिर में उसने वही चुना जो उस वक्त उसे सही लगा , अगर आप या माँ उसकी जगह होते तो क्या चुनते ? आप दोनों भी पहले अपनी औलाद ही चुनते ना मामाजी,,,,,,,,,,,,,,,हाँ मेरे साथ गलत हुआ है लेकिन उसमे अक्षत व्यास कोई गलती नहीं है ,
असली गुनहगार अब भी सलाखों के पीछे ही है और उसके बाहर आने से पहले मुझे इस सच्चाई को बाहर लाना ही होगा इसलिए मैंने फैसला कर लिया है मैं गांव नहीं जाउंगी बल्कि वकील साहिबा से मिलकर इस केस को रीओपन करवाउंगी और जो असली गुनहगार है उसे सजा दिलवाकर रहूंगी।”,छवि ने आँखों में गंभीरता के भाव लाकर कहा
“समझने की कोशिश करो छवि ये वक्त इन सब बातो का नहीं है , चलो अपना बैग उठाओ और चलो मेरे साथ,,,,,,,,,,,,!!”,कमल जी ने कहा
“भाईसाहब , आप जाईये मैं और छवि यही रहेंगे।”,माधवी ने अपनी चुप्पी तोड़ी
छवि ने सूना तो वह हैरानी से माधवी को देखने लगी माधवी ने एक नजर छवि को देखा और कहा,”हां भाईसाहब , मैं और छवि यही रहेंगे इसी शहर में , मैं अपनी बेटी के साथ कायरो की तरह मुंह छुपाकर नहीं भाग सकती ,, अक्षत के साथ जो हुआ बहुत बुरा हुआ एक माँ होकर मैंने उसे बद्दुआ दी कही ना कही उसके साथ हुए हादसे का कारण हम सब है।
आज मेरी बेटी मेरे पास है लेकिन छवि को इंसाफ दिलाते दिलाते उसने तो अपनी बेटी तक को खो दिया ऐसे पिता पर मैंने हाथ उठाया मुझे सोचकर ही बुरा लग रहा है। उसकी बेटी तो मैं उसे वापस नहीं लौटा सकती लेकिन हाँ उसका खोया हुआ सम्मान और वक़ालत लौटाने में मैं छवि की मदद जरूर करुँगी,,,,,,,,,!!”
“लेकिन माधवी,,,,,,,,!!”,कमल जी ने कहना चाहा लेकिन माधवी ने उनकी बात पूरी नहीं होने दी और कहा,”बस भाईसाहब , आपने हमारे लिए बहुत किया है और ये मैं कभी नहीं भूलूंगी।”
“ठीक है माधवी , तुमने अगर फैसला कर ही लिया है तो मैं तुम्हे साथ चलने को नहीं कहूंगा और छवि बेटा तुम , तुम बहुत बहादुर हो बच्चे , मेरा आशीर्वाद और दुआए हमेशा तुम्हारे साथ है।”
“थैंक्यू मामाजी !”,छवि ने नम आँखों के साथ कमल जी के गले लगते हुए कहा
ट्रेन का हॉर्न बजा। कमल जी ने अपने बैग्स उठाये और माधवी से कहा,”अपना और छवि का ख्याल रखना और हाँ जब भी जरूरत हो मुझे फोन करना मैं तुरंत आ जाऊंगा।”
“हाँ , ध्यान से जाना भैया,,,,,,,,,,,,!!”,माधवी ने कहा
कमल जी अपना बैग उठाये ट्रेन की तरफ बढ़ गए और छवि माधवी के बगल में खड़ी अपना हाथ हिलाते रही। ट्रेन आगे बढ़ गयी और छवि अपना और माधवी का बैग उठाये स्टेशन से बाहर आ गयी
स्टेशन से बाहर आकर छवि ने ऑटो रुकवाया और माधवी के साथ उस में आ बैठी। छवि ख़ामोशी से गुजरते रस्ते को देख रही थी वही माधवी जी के मन में कई ख्याल चल रहे थे।
उन्हने कमल जी से तो कह दिया कि वह समाज और लोगो के तानो का सामना कर लेगी लेकिन कैसे ? माधवी जी अपनी सोच में डूबी थी कि तभी ऑटो आकर ट्रेफिक में रुका। माधवी जी ने अपने दांयी तरफ देखा तो गुस्से से उनके चेहरे के भाव बदल गए। ऑटो के बगल में खड़ी कार की पिछली सीट पर गौतम सिंघानिया अपने वकील चोपड़ा जी के साथ बैठे थे।
माधवी गुस्से से उन्हें घूरे जा रही थी। चोपड़ा जी से बात करते हुए सिंघानिया जी की नजर ऑटो में बैठी माधवी पर पड़ी तो उन्होंने गाड़ी का शीशा नीचे किया और कहा,”मुझे लगा तुम और तुम्हारी बेटी अब तक ये शहर छोड़कर जा चुकी होंगी पर नहीं तुम दोनों तो बेशर्मो की तरह अब भी यही हो , मेरे बेटे को तो छवि ने फंसा लिया अब और किसे फ़साने का इरादा है ?”
माधवी ने सुना तो उनका खून खौलने लगा उन्होंने जैसे ही जवाब देना चाहा पास बैठी छवि ने उनके हाथ पर हाथ रखा और धीरे से कहा,”माँ ! इस वक्त इन्हे जवाब देने का कोई फायदा नहीं है , शांत हो जाईये प्लीज,,,,,,!”
“लेकिन छवि उसने,,,,,,,,,,,,!!”,माधवी ने तड़पकर कहा
“मैंने सब सूना माँ , आप भी अब इन सब की आदत डाल लीजिये,,,,,,,,,!!”,छवि ने कहा
“छवि,,,,,,,,!!”,माधवी ने कहा छवि के आखरी शब्द उन्हें पीड़ा जो पहुंचा रहे थे लेकिन इसके आगे छवि ने कुछ नहीं कहा उसकी नम आँखों को देखकर माधवी ने छुप रहना ही सही समझा और वे सिंघानिया जो को नजर अंदाज करके दूसरी तरफ देखने लगी।
ट्रेफिक क्लियर हुआ और सिंघानिया जी की गाड़ी तेजी से वहा से निकल गयी। ऑटो भी अपनी दिशा में आगे बढ़ गया
“चोपड़ा ये लड़की और इसकी माँ इस शहर में क्या कर रही है ?”,सिंघानिया जी ने गुस्से से अपने बगल में बैठे अपने वकील चोपड़ा से कहा
“सिंघानिया जी , इस वक्त हमे इनके बारे में ना सोचकर विक्की के बारे में सोचना चाहिए,,,,,,,,,,,,,,!!”,चोपड़ा जी ने उलझन भरे स्वर में कहा
“विक्की के बारे में , अब विक्की ने क्या किया वो अपनी सजा काट तो रहा है चोपड़ा अब तुम क्या चाहते हो वो जेल में पत्थर तोड़े या फिर बोझा उठाये,,,,,,,,,!!”,सिंघानिया जी ने कहा
“नहीं मिस्टर सिंघानिया मेरे कहने का मतलब है जेल जाने के बाद से विक्की कुछ बदला बदला नजर आ रहा है। जिस तरह से आज वो आपके नौकर रॉबिन के लिए चिंता जाता रहा था कही सजा खत्म होते होते विक्की ये कुबुल ना कर ले रेप उसने किया है।
अगर उसने ऐसा कुछ किया तो फिर मैं तो क्या इस शहर का कोई भी वकील उसे जेल से बाहर नहीं निकाल पायेगा।”,चोपड़ा जी ने कहा
चोपड़ा जी की बात सुनकर सिंघानिया जी सोच में पड़ गए और कहा,”नहीं चोपड़ा विक्की ऐसा कुछ नहीं करेगा , रॉबिन के लिए वो चिंता इसलिए कर रहा था क्योकि रॉबिन सालों से हमारे साथ रहा है।
“फिर मैं आपसे कहूंगा ध्यान रखे,,,,,,,,,इस केस से मैंने विक्की को कैसे निकाला है ये सिर्फ मैं जानता हूँ।”,चोपड़ा ने कहा
“तुम्हे तुम्हारा चेक मिल जाएगा चोपड़ा,,,,,,,,!!”,सिंघानिया जी ने कहा और खिड़की के बाहर देखने लगे।
कोर्ट में अक्षत के चेंबर में अपनी कुर्सी पर बैठा सचिन किसी फाइल को देखने में बिजी था तभी अखिल वहा आया। अक्षत की खाली पड़ी कुर्सी को देखकर अखिल का मन भारी हो गया। अक्षत के साथ जो हुआ उसका दुःख अखिल को भी था वह अक्षत से मिलना चाहता था लेकिन अक्षत ने सबसे मिलने से मना कर दिया। अखिल अक्षत की टेबल की ओर चला आया जहा आज भी अक्षत की नेम प्लेट रखी हुई थी और बिल्कुल साफ सुथरी थी।
अखिल ने उसे छूकर देखा। अखिल को वहा पाकर सचिन की तंद्रा टूटी। वह अपनी कुर्सी से उठा और अखिल के पास आकर कहा,”अरे अखिल सर आप यहाँ ?”
“ओह्ह्ह हाय सचिन , कैसे हो ?”,अखिल ने नेम प्लेट से हाथ हटाकर कहा
“मैं ठीक हूँ सर,,,,,,,,,!!”,अखिल ने कहा
“मैंने देखा अक्षत की नेम प्लेट अभी भी उसकी टेबल पर रखा है क्या वो वापस आ रहा है ? क्या तुम्हारी उस से कुछ बात हुई ?”,अखिल ने बेचैनी से पूछा जबकि वह जानता था 2 महीने के लिये अक्षत का लाइसेंस रद्द कर दिया है।
सचिन ने सूना तो फीका सा मुस्कुराया और कहा,”नहीं सर ! आप तो जानते ही है बार काउन्सिल ने 2 महीने के लिये सर का लाइसेंस केंसल कर दिया है वो चाहे तब भी कोर्ट नहीं आ सकते , लेकिन मुझे पूरा यकीन है वो जरूर आएंगे बस इसलिए मैं रोज उनकी टेबल जमाता हूँ और उनके नाम पर धूल जमने नहीं देता।
उनके साथ बहुत बुरा सर , इतना बुरा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती हम सब उनका दर्द कम नहीं कर सकते लेकिन उनके साथ खड़े तो रह ही सकते है।”
सचिन की बात सुनकर अखिल उसकी तरफ देखने लगा और कहा,”आज जहा सारे वकील एक के बाद एक अक्षत के केस लेकर पैसे कमा रहे है वही तुम आज भी उसके लिये इतना सब सोच रहे हो सचिन , अक्षत न इस कोर्ट में रहकर भले कुछ ना कमाया हो लेकिन तुम जैसे सच्चे साथी जरूर कमाए है। एक दिन तुम बहुत आगे जाओगे,,,,,,,,,,!!”
“अक्षत सर मेरी प्रेरणा है सर मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और अगर मैं थोड़ा भी उनके जैसा बन पाया तो मुझे खुद पर बहुत प्राउड फील होगा।”,सचिन ने कहा
अखिल कुछ देर वहा रुका और फिर सचिन के कंधे पर हाथ रखकर कहा,”अक्षत यहाँ नहीं है तो क्या हुआ मैं यहाँ हूँ तुम्हे कोई भी परेशानी हो मुझे कहना , ठीक है।”
“जी सर ! थैंक्यू !”,सचिन ने कहा।
अखिल जाने लगा जाते जाते उसकी नजर अंदर आती चित्रा पर पड़ी तो उसने कहा,”हेलो चित्रा !”
“हेलो सर !”,चित्रा ने कहा और अंदर चली आयी
अखिल वहा से चला गया। आज कितने दिनों बाद चित्रा को कोर्ट में देखकर सचिन को अच्छा लगा। वह चित्रा को देखकर हल्का सा मुस्कुराया और कहा,”मुझे लगा नहीं था तुम वापस कोर्ट आओगी।”
“ऐसे हालातों में अगर हमने सर को अकेला छोड़ दिया तो फिर लानत है हमारे वकील होने पर,,,,,,,,,,!”,चित्रा ने अपना बैग कुर्सी पर रखते हुए कहा
चित्रा की नजर टेबल पर रखी अक्षत की नेम प्लेट पर चली गयी। चित्रा एकटक उसे देखते रही अक्षत के लिये उसके मन में भावनाये अभी भी थी। अक्षत शादीशुदा है ये जानने के बाद भी चित्रा का प्रेम उसके लिए नहीं बदला था बल्कि उसे अब अक्षत से और हमदर्दी होने लगी थी। चित्रा को खोया हुआ देखकर सचिन ने कहा,”सर के पास जो के थे वो सब जा चुके है बस एक केस बचा है जिसकी सुनवाई आज है,,,,,,,,,,!!”
“तुम्हे उनकी जगह इस केस को लड़ना चाहिए सचिन,,,,,,,,,,,,!!”,चित्रा ने पलटकर कहा
“लेकिन ये केस सर का है मैं उनकी जगह कैसे ले सकता हूँ ? और इस से पहले मैंने कभी अदालत में बहस नहीं की है मैं बस सर के साथ खड़ा रहा हूँ।”,सचिन ने कहा
“तो आज तुम्हारे लिये मौका है सचिन , तुम्हे लोगो को दिखा देना है , सर का सिर्फ लायसेंस रद्द हुआ है उनके थॉट्स और स्किल्स आज भी यहाँ है।
मैं तुम्हारे साथ हूँ तुम ये कर सकते हो,,,,,,,,,,,,!!”,चित्रा ने सचिन के कंधे पर हाथ रखकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा
चित्रा का यू भरोसा जताना सचिन को अच्छा लगा उसने हामी में गर्दन हिलायी और अपने पास बचे उस आखरी केस पर काम करने लगा।
दोपहर बाद केस की सुनवाई थी जिसमे अक्षत की जगह सचिन था और सामने कोई दुसरा वकील था एक अच्छी खासी बहस के बाद भी सचिन ये केस हार गया। कोर्ट ने फैसला सामने वाले वकील के हक़ में सुनाया और सचिन उदास होकर सर झुकाये टेबल से अपने पेपर और फाइल्स को उठाने लगा। अपना सामान उठाकर सचिन जैसे ही जाने लगा साथी वकील उसके पास आया और कहा,”अक्षत व्यास की तरह खड़े होकर बोलने से कोई अक्षत व्यास नहीं बन जाता ,
आई नो अक्षत मेरा कॉम्पिटिटर है लेकिन कुछ तो बात है उस में,,,,,,,,,,,,,,,,तुम्हे अभी उस से और सिखने की जरूरत है। गुड लक।”
सचिन को अपने साथी वकील की बातो का बुरा नहीं लगा बल्कि वह अक्षत की तारीफ सुनकर खुश ही हुआ और वह खुश था कि उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी। सचिन अपनी फाइल्स उठाये कोर्ट रूम से बाहर जाने लगा तो आखरी बेंच पर बैठे माथुर साहब और चित्रा उसके पास चले आये।
चित्रा को देखकर सचिन ने कहा,”मुझे माफ़ करना मैं ये केस हार गया,,,,,,,,,,,,,आई ऍम सॉरी सर।”
कहते हुए सचिन ने माथुर साहब की तरफ देखा तो उन्होंने सचिन के कंधे पर हाथ रखा और रखा,”ये तुम्हारा पहली बार था और पहली बार में ही तुमने काफी अच्छी बहस की , तुम्हे ये केस हारना ही था क्योकि सामने वाले वकील का क्लाइंट सही था।
हार जीत मायने नहीं रखती है सचिन कुछ लोग तो हार जाने के डर से कोशिश भी नहीं करते , तुमने कोशिश की वही बड़ी बात है। गुड वर्क,,,,,,,!!”
“थैंक्यू सर,,,,,,,,!!”,सचिन ने कहा और फिर तीनो कोर्ट रूम से बाहर निकल गए। चलते चलते चित्रा ने पलटकर देखा और लगा जैस कोर्ट रूम में खड़ा अक्षत अभी भी किसी केस पर साथी वकील से बहस कर रहा है और फिर एकदम से वो साया गायब हो गया।
व्यास हॉउस से निकलकर सौंदर्या किसी से मिलने शहर से बाहर चली गयी और दोपहर बाद घर पहुंची। गाड़ी से उतरकर सौंदर्या अंदर चली आयी। अंदर आकर उसने नौकर से मीरा के बारे में पूछा तो नौकर ने कहा,”मीरा मैडम ने कहा कि वो अपने चाइल्ड होम जा रही है।”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है , तुमने उसे घर से बाहर जाने क्यों दिया ? क्या तुम जानते नहीं मीरा इस वक्त बीमार है और तुमने उसे अकेले इस घर से बाहर भेज दिया ,,
किसकी इजाजत से तुमने उसे बाहर भेजा ?”,सौंदर्या नौकर पर एकदम से चिल्ला उठी
“वो मैडम,,,,,,,,,,,,!!”,घबराया हुआ नौकर इतना ही बोल पाया कि सौंदर्या उस पर फिर चिल्ला उठी,”क्या मैडम , जाने से पहले मैंने कहा था मीरा का ध्यान रखना वो घर से बाहर ना जाये लेकिन तुम लोगो से एक काम ढंग से नहीं होता , अगर मीरा को कुछ हुआ तो याद रखना मैं तुम सबको यहाँ से निकाल दूंगी,,,,,,,,,,,!!”
“रिलेक्स सौंदर्या , मीरा को घर से बाहर जाने की परमिशन हमने दी है,,,,,,,,,,,,,,,!!”,गेस्ट रूम से बाहर आते आदमी ने कहा
सौंदर्या ने उस तरफ देखा तो उसके चेहरे से गुस्सा एकदम से गायब हो गया लेकिन उसने परेशानी भरे स्वर में कहा,”लेकिन भाईसाहब आपने उसे अकेले बाहर जाने क्यों दिया ? वो अभी बीमार है,,,,,,,!!”
“वो तो उसे देखकर ही समझ आ गया था इसलिए तो उसे घर से बाहर भेजा है ताकि खुली हवा में जाकर वो थोड़ा अच्छा महसूस करे , चिंता मत करो वरुण उसके साथ है।”,विवान राजपूत सिंह ने कहा जो कि रिश्ते में मीरा के चाचा लगते है और सौंदर्या का भाई
सौंदर्या ने सूना तो उसने नौकरो को वहा से जाने को कहा और खुद विवान के पास चली आयी।
“आप अचानक से यहाँ क्यों चले आये ?”,सौंदर्या ने बेचैनी भरे स्वर में लेकिन धीमी आवाज में विवान से कहा
“क्यों ? क्या हमे यहाँ नहीं आना चाहिए ? और हमे यहाँ देखकर तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया सौंदर्या ?”,विवान ने शकभरी निगाहो से सौंदर्या को देखते हुए पूछा तो सौंदर्या कुछ देर विवान को देखते रही और फिर एकदम से हंस पड़ी,,,,,,,,,,,,,,,!!
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