Haan Ye Mohabbat Hai – 45
कोर्ट का काम ख़त्म करके अक्षत बाहर किसी से मिलने के लिये निकल गया। अक्षत के वापस आने की वजह से कुछ लोग खुश थे और कुछ दुखी और इस बार तो अक्षत किसी को भी बक्शने के मूड में नहीं था। अक्षत के आने से सबसे ज्यादा खुश चित्रा थी लेकिन अक्षत ने उसे कोई भाव नहीं दिया उलटा उसे माथुर साहब के साथ काम करने को कह दिया। अक्षत के जाने के बाद शाम में चित्रा घर चली आयी। चित्रा काफी उदास थी आज कितने दिनों बाद वह अक्षत से मिली थी लेकिन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
किचन में आकर चित्रा अपने लिये रात का खाना बनाने लगी। उसने अपने लिए दाल चावल बनाया और प्लेट में लेकर घर के बरामदे में चली आयी। घर का ये कोना चित्रा का पसंदीदा कोना था। दोपहर तक मौसम सही था लेकिन शाम होते होते आकाश में काले बादल घिर आये। चित्रा कुर्सी पर आ बैठी और पास पड़ा म्यूजिक सिस्टम ऑन कर गाने सुनते हुए खाना खाने लगी। खाते हुए चित्रा का ध्यान गाने की लाईनो पर गया
“कौन मेरा ? मेरा क्या तू लागे ? क्यों तू बांधे मन से मन के धागे,,,,,,,,,बस चले ना क्यों मेरा तेरे आगे,,,,,,!!”
चित्रा को महसूस हुआ ये गाना उसकी सिचुएशन से बिल्कुल मैच हो रहा है। उसने खाने की प्लेट साइड में रख दी और खुद से कहने लगी,”क्या तुम्हे मेरी आँखों में अपने लिये बेइंतहा मोहब्बत नजर नहीं आती अक्षत ? क्या तुम मेरे इंतजार को नहीं देख पा रहे,,,,,,,,,,,हाँ मानती हूँ तुम्हारी जिंदगी में कोई थी लेकिन अब ,
अब तो तुम्हारे साथ नहीं है ना,,,,,,,,,,,,,,मैं तुम्हारी जिंदगी में उसकी जगह लेना नहीं चाहती , मुझे बस थोड़ी सी जगह चाहिए तुम्हारे दिल में,,,,,,,,,!!”
ना जाने क्यों ये सब कहते हुए चित्रा की आँखों में आँसू भर आये वह उठी और अंदर चली गयी। बादल जोरो से गरजे और फिर बरसने लगे।
अपना सब काम ख़त्म कर अक्षत घर के लिये निकल गया लेकिन रास्ते में ही बारिश होने लगी। अक्षत ने गाड़ी की स्पीड धीमी कर दी म्यूजिक सिस्टम पर बजते गाने ने अक्षत का ध्यान अपनी तरफ खींचा
“किस तरह छिनेगा मुझसे ये जहा तुम्हे,,,,,,,,,,,,,तुम ही हो मैं क्या फ़िक्र अब हमे,,,,,,,,,,!!”
अक्षत की गाडी की स्पीड और धीरे हो गयी और अक्षत को ना जाने क्या सुझा उसने गाडी साइड में लाकर रोक दी और गाड़ी से बाहर चला आया। गाडी इस वक्त पुल पर थी और जोरो से बारिश हो रही थी। अक्षत पुल पर बनी दिवार के पास आया और हाथ बांधकर खड़े हो गया। बारिश का पानी अक्षत को भिगाने लगा और अक्षत खामोश खड़ा बारिश में भीगता रहा। अतीत की यादे उसकी आँखों के सामने किसी फिल्म की भांति चलने लगी
“अक्षत जी क्या कर रहे है आप ? बारिश में मत जाईये भीगे तो बीमार पड़ जायेंगे”,मीरा ने अक्षत को बारिश में भीगने से मना करते हुए कहा
“कुछ नहीं होगा मीरा तुम भी आओ कितना मजा आ रहा है यहाँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!”,अक्षत ने बच्चो की तरह बारिश में कूदते हुए कहा
“हमे बारिश में भीगने का कोई शौक नहीं है।”,मीरा ने मना करते हुए कहा
“अरे मीरा आओ ना , एक मिनिट मैं तुम्हे लेने आता हूँ”,कहते हुए बारिश में भीगा अक्षत मीरा की तरफ आया और उसे गोद में उठाकर बारिश में भीगने लगा। मीरा ने भी अक्षत की बाँहो में आकर अपने हाथो को हवा में खोल दिया और अपना चेहरा आसमान की तरफ उठाकर आँखे मूंद ली
बारिश में भीगती मीरा और भी खूबसूरत नजर आ रही थी ,अक्षत ने देखा तो उसकी निगाहे मीरा के चेहरे पर ठहर गयी।
मीरा के चेहरे पर गिरती बारिश की बुँदे किसी मोती की भांति धीरे से नीचे लुढ़क जाती और ये मंजर उसे और भी खूबसूरत बना रहा था। अक्षत ने मीरा को अपनी गोद से उतारा। मीरा ने बारिश के पानी से भीगी अपनी पलकों को उठाया और अक्षत की तरफ देखा तो अक्षत ने कहा,”तुम बारिश में भीगने से मना कर रही थी मीरा लेकिन इस बारिश में तुम और भी दिलकश नजर आ रही हो इतनी कि तुम्हे देखते हुए आँखों आँखों में ये पूरी रात निकल जाए”
अक्षत की बात सुनकर मीरा का दिल धड़क उठा उसने अक्षत की आँखों में देखा जिनमे एक आकर्षण था , आँखों में शरारत थी और होंठो पर मुस्कराहट , मीरा वहा से जाने के लिये पलटी और उसके लम्बे भीगे बाल अक्षत के चेहरे पर आ लगे। अक्षत ने उन्हें हटाया और मीरा जैसे ही आगे बढ़ी उसके बाल भी अक्षत की उंगलियों से निकल गए। मीरा की इस अदा पर अक्षत मुस्कुराये बिना ना रह सका।
बिजली की कड़कड़ाहट से अक्षत की तंद्रा टूटी। उसने खुद को अकेले पुल पर पाया। बारिश जारी थी अक्षत ने अपने हाथो को खोला और हवा में फैला दिया। उसने अपनी आँखे बंद की और सर ऊपर आसमान की तरफ उठा दिया। बारिश की तेज फुहारे अक्षत को भिगाने लगा। अक्षत चाहकर भी मीरा और उसकी यादो को अपने दिल से निकाल नहीं पा रहा था। वह काफी देर तक वही खड़ा भीगता रहा।
अपने घर की छत पर खड़ी मीरा , आँखे मूंदे अपना चेहरा आसमान की ओर उठाये थी। बारिश की फुहारे उसे भीगा रही थी। मीरा ने साड़ी पहनी थी जिसका पल्लू लंबा होने की वजह से कंधे से हाथ पर फिसलकर जमीन को छू रहा था लेकिन मीरा को इसकी परवाह नहीं थी वह बस आँखे मूंदे बारिश को खुद में महसूस करने की कोशिश कर रही थी। बिजली की कड़कड़ाहट से मीरा की तंद्रा टूटी उसने भीगी पलकों को उठाया और देखा दूर दूर तक बस बारिश का नजारा था इसके अलावा कुछ नहीं
मीरा की आँखों के सामने अक्षत का चेहरा आने लगा। अक्षत से हुई वो पहली मुलाकात से वो बारिश की शाम याद आ गयी जब अक्षत 2 साल बाद दिल्ली से लौटकर आया था और मीरा से मिला था। मीरा की आँखों में नमी तैरने लगी बारिश में भीगती मीरा धीमे कदमो से चलकर छत की दिवार के पास आयी और सामने खाली पड़े मैदान को देखने लगीं। ठंडी हवाएं चल रही थी और उस पर बारिश का पानी रह रह कर यादो के थपेड़े उसके चेहरे पर मार रहा था।
मीरा का दिल धड़कने लगा उसे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया और वह अक्षत को देखने के लिये तड़प उठी। वह जानती थी अक्षत उस से मिलना नहीं चाहता फिर भी मीरा का दिल चाहता था वह एक बार अक्षत के सामने जाये और जी भरकर उसे देख ले। आँखों में भरे आँसू अब बारिश की बूंदो के साथ ही बहने लगे जिन्हे मीरा चाहकर भी नहीं रोक पायी और जैसे ही जाने लगी उसके कानों में किसी के गाने की मधुर आवाज पड़ी।
मीरा ने पलटकर देखा कुछ दूर सड़क पर पेड़ के नीचे बैठा आदमी इकतारा पर कोई गाना गुनगुना रहा है।
इकतारे की धुन ने मीरा के दर्द को और बढ़ा दिया। हुए छत से नीचे आयी और अपने कमरे में आकर दरवाजा बंद कर अपनी पीठ दरवाजे से लगा ली। मीरा ने अपनी आँखे मूंद ली , उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। मीरा आज भी अक्षत से उतनी ही मोहब्बत करती थी , वह आज भी अक्षत के लिये प्रार्थना करती थी पर अक्षत को शायद अब अहसास नहीं था या मीरा की तरह वो भी सिर्फ मीरा से नफरत करने का दिखावा कर रहा था।
रात के खाने पर सिंघानिया जी ने विक्की की पसंद का खाना बनवाया था। केस रीओपन होने की वजह से सिंघानिया जी कुछ परेशान जरूर थे लेकिन उन्हें विश्वास था कि चोपड़ा जी सब सम्हाल लेंगे। विक्की नीचे आया और डायनिंग के पास आकर बैठ गया। सिंघानिया जी ने नौकर से विक्की की प्लेट में खाना परोसने को कहा।
उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर सिंघानिया जी ने कहा,”विक्की ! क्या बात है तुम कुछ परेशान नजर आ रहे हो ? ज्यादा मत सोचो जब तक मैं हूँ कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
विक्की ने सिंघानिया जी की तरफ देखा और कहा,”मेरी गलतियों पर परदे डालना बंद कीजिये डेड , मैं जानता हूँ मुझसे गलती हुई है लेकिन उस गलती की सजा आपने रॉबिन को क्यों दी ? वो तो आपका वफादार था फिर उसे,,,,,,!!”
“विक्की,,,,,,,,,,,,तुम्हे बचाने के लिये मुझे जो सही लगा मैंने वो किया। तुम मेरे इकलौते वारिश हो तुम्हे जेल जाते नहीं देखता मैं,,,,,,,,,,,ये सब बातें छोडो और खाना खाओ,,,,,,,!!”,सिंघानिया जी ने कहा
विक्की ने प्लेट में रखा खाना शुरू किया और एक दो निवाले खाने के बाद कहा,”क्या माँ यहां आयी थीं ?”
विक्की के मुंह से अर्चना का जिक्र सुनकर सिंघानिया जी ने हैरानी से विक्की को देखा और गुस्से से कहा,”क्या वो घटिया औरत तुमसे मिलने जेल आयी थी ?”
अर्चना के लिये घटिया शब्द सुनकर विक्की को अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने कहा,”डेड वो मेरी माँ है।”
“अगर वो माँ होती तो तुम्हारे बचपन में वो तुम्हे छोड़कर अपने प्रेमी के साथ नहीं जाती,,,,,,,,,,,,उस औरत ने मेरी जिंदगी के कितने ही साल बर्बाद कर दिये , उसने तो जाने से पहले तुम्हारे बारे में भी नहीं सोचा और चली गयी अपने आशिक़ के साथ,,,,,,आईन्दा से इस घर में उस घटिया औरत का नाम नहीं लोगे तुम।”,कहते हुए सिंघानिया जी गुस्से से उठे और वहा से चले गए। विक्की ख़ामोशी से खाने को देखने लगा और फिर प्लेट खिसकाकर वहा से चला गया।
रात के खाने के बाद बारिश शुरू होने लगी। बारिश का मौसम देखते हुए दादू चुपचाप अपना गिलास और छोटी बोतल लेकर ऊपर छत पर चले आये। दादू ने टेबल पर गिलास और बोतल रखा और कुर्सी पर आ बैठे। अक्सर ऐसा होता था जब कभी कभार दादू ड्रिंक किया करते थे तब उन्हें कम्पनी देने और सम्हालने के लिये अक्षत उनके साथ होता था। आज दादू अकेले थे लेकिन उनके पास पीने की कई वजह थी। पिछले कुछ महीनो से घर का जो माहौल था उसे देखते हुए दादू को अब टेंशन ज्यादा रहने लगी थीं।
दादू ने बोतल खोलकर शराब को जैसे ही गिलास में डाला अर्जुन और सोमित जीजू वहा पहुँच गए। सोमित जीजू ने सोडा रखते हुए कहा,”अरे दादू नीट पिएंगे तो चढ़ जाएगी आपको , ये लीजिये मैं आपके लिये सोडा लेकर आया हूँ।”
“और इसके साथ गरमा गरम प्याज के पकौड़े हो तो मजा ही आ जाएगा,,,,,,,,,,,क्यों दादू ?”,अर्जुन ने पकोड़े से भरी प्लेट दादू के सामने रखते हुए कहा
“क्या बात है आज तुम दोनों मेरी इतनी आवभगत कर रहे हो ,, आखिर बात क्या है ?”,दादू ने प्लेट से पकोड़ा उठाकर खाते हुए कहा
“बकरे को हलाल करने से पहले खिलाना पिलाना जरुरी होता है।”,सोमित जीजू ने दबी आवाज में कहा लेकिन दादू को सुन गया तो उन्होंने चिढ़ते हुए कहा,”तुम लोगो को क्या मैं बकरा दिखता हूँ ?”
“अरे नहीं नहीं दादू बकरे नहीं आप तो शेर हो शेर और यही याद दिलाने के लिये तो मैं और सोमित जीजू आपके पास आये है।”,अर्जुन ने दादू के बगल में पड़ी कुर्सी खिसकाकर बैठते हुए कहा
दूसरी तरफ पड़ी कुर्सी पर सोमित जीजू आ बैठे और कहा,”हाँ दादू हम दोनों तो बस चेक कर रहे थे कि वो सुबह वाला शेर जाग रहा है या साले साहब के आने के डर से सो गया है।”
दादू ने गिलास में भरी शराब को एक साँस में गटक लिया और कहा,”शेर , शेर होता है चाहे वो कही भी रहे और मैं नहीं डरता किसी से,,,,,,,,,,,,,अरे वो आपका साला है तो क्या हुआ मैं भी उसका दादा हूँ , उसके बाप का भी बाप हूँ मैं,,,,,,,,,,,,,,,आज घर आने दो उसे फिर बात करता हूँ उस से,,,,,,,,,,,
अगर वो सख्त है तो मैं उस से ज्यादा सख्त हूँ।”
“ये की ना आपने मर्दो वाली बात,,,,,,,,,,,,,,,दादू मैं तो देखो आपकी तरफ हूँ , दिखा दीजिये आज अपना असली शेर वाला रूप दिख जाये और इस घर के गीदड़ आपके सामने टिक ना पाए”,जोश जोश में कहते हुए सोमित जीजू ने अर्जुन की तरफ देखा
“आप क्या मुझे गीदड़ बोल रहे है ?”,अर्जुन एकदम से भड़क गया
“अरे शांत हो जाओ आपस में नहीं लड़ना है,,,,,,,,,,,,,,,तुम दोनों जाओ यहाँ से मेरी पार्टी खराब मत करो , अक्षत को आज मैं देख लूंगा”,दादू ने दुसरा पैग बनाते हुए कहा
“दादू भूलना नहीं आज आपको दिखा देना है इस घर में सिर्फ एक ही शेर है,,,,,,,!!”,अर्जुन ने उठते हुए कहा और सोमित जीजू को लेकर वहा से नीचे चला आया।
बारिश कुछ कम हुई तो अक्षत ने गाड़ी स्टार्ट की और घर के लिये निकल गया। अक्षत की गाड़ी देखते ही रघु ने घर का मेन गेट खोल दिया। अक्षत अपनी गाड़ी लेकर अंदर आया। उसने गाड़ी को पार्किंग में लगाया और अंदर चला आया। अक्षत भीग चुका था इसलिए उसने अपने जूते नीचे ही गेट के पास उतारे और सीढ़ियों से ऊपर चला आया। सोमित जीजू और अर्जुन ऊपर अर्जुन के कमरे के पास खड़े अक्षत का ही इंतजार कर रहे थे लेकिन जैसे ही अक्षत ऊपर आया
दोनों एक दूसरे से बाते करते हुए खुद को ऐसे बिजी दिखाने लगे जैसे कोई बहुत जरुरी डिस्कशन चल रहा हो। दादू भी तब तक अपना कोटा पूरा करके नीचे आ चुके थे। अक्षत ने एक नजर उन्हें देखा और जैसे ही अपने कमरे की तरफ जाने लगा दादू ने चुटकी बजाकर कहा,”ए मिस्टर अक्षत व्यास,,,,,,,,,,,,,,जनानियो की तरह मुँह छुपाकर कहा जा रहे हो,,,,,,,,,,,,,,यहाँ आओ मेरे सामने”
अक्षत ने सूना तो ख़ामोशी से पलटा। दादू को ऐसे बात करते देखकर अर्जुन और जीजू ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराये।
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