Aa Ab Lout Chale – 3
अमर उस रात खाली पेट ही सो गया l पार्टी देर रात तक चलती रही और सभी खा पीकर अपने अपने घर चले गए l सुबह अमर जल्दी उठ गया और नहा धोकर बाहर आया दोनो बेटे बहुओं के साथ नाश्ता कर रहे थे नोकर ने उनके लिए भी नाश्ता लगा दिया अमर ने नाश्ता करने से मना कर दिया और कहा – कल रात तुम लोगो ने जो बर्ताव किया है उसके बाद यहां बैठकर खाना मेरे लिये मेरा अपमान है ,, इस से अच्छा तुम लोग मुझे वापस अनाथाश्रम छोड़ आओ “
अमर की बातों से गुस्सा साफ झलक रहा था
“ठीक है पापा छोड़ आएंगे लेकिन उस से पहले हमे आप से एक छोटा सा काम है ववो कर दीजिए”,विकास ने हाथ पोछते हुए कहा
“कैसा काम ?”,अमर की आँखे फैल गयी
विकास के इशारे पर रवि कुछ कागज ले आया और अमर को देकर कहा – मैंने ओर भैया ने ये घर बेचने का फैसला किया है
अमर ने जैसे ही सुना उसका दिल धक से रह गया उन्होंने कागज पढ़े और दोनो बेटों की ओर देखकर कहा – ओह्ह तो इसलिए तुम दोनो को कल अपने बूढ़े बाप पर तरस आ गया था l मैंने ये घर तुम दोनो के नाम करके बहुत बडी गलती की थी और आज तुम इसे बेचने की बात कर रहै हो ,, इस घर की एक एक ईंट मैंने अपने इन्ही हाथों से लगाई है l मेरे जीते जी मैं ये कभी नही होने दूंगा समझे तुम लोग”
अमर ने कहते हुए पेपर दोनो बेटों के मुंह पर दे मारे , विकास और रवि का चेहरा तमतमा उठा विकास ने गुस्से से कहा – आप पागल हो गए है क्या ? एक डील के बदले हमने ये घर बेचना तय किया है ,, वैसे भी हम ओर हमारा परिवार फ्लैट्स में रहेगा आखिर रखा क्या है इस घर मे ? चुपचाप इन कागजो पंर साइन कीजिये”
अमर ने क्रोधभरी नजर से विकास को देखा और कहने लगे – अब तक मैं तुम लोगो की खुशी के लिए चुपचाप सब सुनता रहा , जो तुम लोगो ने चाहा करता रहा लेकिन अब नही l क्या रखा है इस घर मे ये तुम पूछ रहे हो विकास ? (कहते कहते भावुक हो जाते हैं अमरनाथ) इस घर से तुम्हारी माँ की यादे जुड़ी है , तुम दोनो का बचपन जुड़ा है , इस घर को बनाने संवारने में मैंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी और आज तुम कहते हो इस घर मे रखा क्या है ? इतने ओछे संस्कार तो ना दीये थे मैंने”
“पर पापा जब माँ ही नही है तो उनकी यादों का क्या ?”,बड़ी बहू ने कहा
अमर को पीड़ा हुई तो वह बोल पड़े – क्या अपने माँ पिता के लिए भी तुम्हारे यही विचार है बहु ?
“पापा जी ?”,बड़ी बहू चिल्लाई
“क्यों बुरा लगा ? शांति मेरी पत्नी है मुझे कितना बुरा लगा होगा , कान खोल कर सुन लो चारो जब तक मैं जिंदा हु इस घर की एक ईंट तक नही हिलेगी समझे तुम लोग ,, फिर इसके लिए चाहे मुझे अपनी ही औलाद के खिलाफ क्यो ना जाना पड़े l”
अमर का गुस्सा देखकर सभी शांत हो गए , अमर ने दिवार पर लगी अपनी पत्नी की तस्वीर को उतारा और लेकर जाने लगे तो पोते पोतियों ने उनके पैरो से लिपटकर रोते हुए कहा – मत जाईये ना दादाजी
उनके आंसू देखकर अमर का दिल भर आया उन्होंने उनके आंसू पोछे ओर कहा – इस घर से मेरा बसेरा कब का उठ चुका है मेरे बच्चों बस इतना याद रखना जो तुम्हारे माँ बाप ने किया वो तुम कभी उनके साथ मत करना l
अपने दोनो बेटों के लालच को रौंदकर अमर वहां से निकल गया l आंखो में आंसू भर आये l सड़क तक पैदल ही चले आये वहां से ओल्डएज होंम के लिए बस मिल जाती थी अमर में जेब में हाथ डालकर देखा सिर्फ 50 रुपये का एक फटा पुराना नोट मिला , किराया 35 रुपये था अमर ने वही पास की दुकान से चाय ली और एक डिब्बा बिस्किट लेकर खाने लगा l बेचारगी ओर बेबसी के भाव उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहे थे l कुछ देर बाद बस आयी अमर उसमें चढ़ गया और खाली सीट देखकर बैठ गया l कुछ देर बाद के महिला अपनी 10 साल की बेटी के साथ आई और अमर की बगल में बैठ गयी l अमर खिड़की से बाहर देखने लगा बस चलती रही अचानक अमर की नजर बच्ची के हाथों पर गयी उसके हाथों में रंग बिरंगी कांच की चूड़ियां देखकर अमर अपने अतीत में खो गया
सुमित्रा का इंतजार करते हुए अमर नदी किनारे बेचैनी से टहल रहा था l दोनो एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे और घंटो यहां बैठकर बाते किया करते थे l अमर कमाने के लिए शहर जा रहा था उसे शहर की एक मिल में काम जो मिल गया था लेकिन जाने से पहले वह सुमित्रा से मिलना चाहता था और इसलिए उसका इंतजार कर रहा था ll। कुछ देर बाद सुमित्रा आती दिखाई दी तो उसके जान में जान आयी सुमित्रा अपने हाथ मे कांच की चूड़ियां पहने आई और अपने दोनो हाथों को अमर के सामने करते हुए कहा,”कैसी है मेरी चूड़ियां ?”
“सुमि तुम ये कांच की चूड़ियां क्यो पहनती हो ? किसी दिन तुम्हारे हाथों को घायल कर देंगी ये”,अमर ने बेचैनी से कहा
“ये मैं इसलिये पहन्नती हु क्योकि ये बहुत प्यारी आवाज करती है”,सुमित्रा ने अपने दोनो हाथों की चूड़ियों को बजाकर कहा
अमर ने उसके दोनो हाथों को थाम लिया और कहा,”लेकिन ये तो सिर्फ कांच की चूड़ियां है , हमारी शादी के बाद मैं तुम्हे सोने कि चूडिया बनवाकर दूंगा , जो कि आवाज भी करेंगी और तुम्हारे हाथों को नुकसान भी नही पहुंचायेगी”
“क्या सच मे ?”,सुमित्रा ने आंखो में चमक भरते हुए कहा
“हा सच मे , बस कल से तुम ये कांच की चूड़ियां मत पहनना”,अमर ने कहा
“अच्छा तो फिर कर लो शादी और पहना दो सोने के कंगन”,सुमित्रा ने कहा
“तुम्हारे लिए ही शहर जा रहा हु ताकि तुम्हारे लायक बन तुम्हारे पिताजी से शादी के लिए तुम्हारा हाथ मांग सकू , तुम मेरा इंतजार करोगी न सुमि ?”,अमर ने उसकी आंखो में देखते हुए कहा
”हा अमर , मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी अभी चलती हु किसी से देख लिया तो परेशानी हो जाएगी कहते हुए सुमित्रा वहां से भाग गई
अमर मुस्कुराते हुए उसे देखता रहा , अगले दिन अमर शहर के लिए निकल गया ll
अचानक गाड़ी को ब्रेक लगा तो अमर अपने वर्तमान में लौट आया l बच्ची के हाथों में कांच वाली चूड़ियां अभी भी चमक रही थी l अमर ने ऑंखे बंद कर सर सीट से लगा लिया कुछ देर बाद बस रुकी ओर शांति की तस्वीर ओर अपना सामान सम्हाले अमर नीचे उतर गया ओल्ड ऐज होंम पास ही में था l अमर हताश ओर निराश चलते हुए आया उसके कानो में बेटों के नफरत भरे लफ्ज गूंज रहे थे l गेट से अंदर आते हुए कुछ ही दूर चला कि लड़खड़ा के गिर गया l सुमित्रा पास ही कुछ काम मे लगी थी जब उसने देखा तो दौड़कर आयी और अमर को सहारा देकर उठाते हुए कहा – तुम ठीक तो हो ना अमर ?
“ह्म्म्म हा , हा”,अमर ने हांफते हुए कहा सुमित्रा ने उसे बरामदे में बैठाया ओर उसका सामान लाकर रखा l शांति की तस्वीर उठाई उसका शीशा टूट चुका था तस्वीर लेकर वह अमर के पास आई ओर कहा – ये तस्वीर ?
“ये तस्वीर मेरी पत्नी शांति की है , कुछ साल पहले ही उसका देहांत हो गया !”,अमर ने फ़ोटो पर लगी धूल साफ करते हुए कहा
ये सुनकर सुमित्रा को एक अजीब सी पीड़ा का अहसास हुआ और उसने कहा – कल तुम्हारे जाने के बाद मुझे लगा कि तुम खुशनसीब हो तुम्हारे बच्चे तुम्हे लेने आये लेकिन आज तुम्हे यहां देखकर अच्छा नही लग रहा है l तुम भले खुशनसीब ना हो लेकिन वो बच्चे सच मे बदनसीब है अमर जिन्होंने तुम्हारा साथ छोङ दिया l
अमर ने सुमित्रा के चेहरे की ओर देखा जो दुख और पीड़ा से भर उठा था l आज भी उसकी सुमि की आंखो में उसके लिए अपनापन था l l अमर की आंख से आंसू बहकर शांति की तस्वीर पर आ गिरे l
अमर को उदास बैठा देखकर सुमित्रा कुछ ही दूरी पर बैठ गई और कहा – तुम ऐसे तो ना थे अमर , हमेशा हसने मुस्कुराने वाले , जिंदादिली की बाते करने वाले आदमी थे फिर आज बच्चों के सामने इतने कमजोर क्यो पड़ गए ?
सुमि की बातों में अपने लिए परवाह देखकर अमर ने अपनी आंखों का गीलापन साफ किया और कहने लगा – सालों पहले तुम्हारी शादी की बात सुनकर मैं पहली बार कमजोर पड़ा था सुमि , उस वक्त कुछ समझ नही आ रहा था उस वक्त मैं इतना सक्षम था की तुम्हारी जिम्मेदारी उठा सकता था लेकिन तुम नही चाहती थी कि तुम्हारे पिता का अपमान हो , उन्हें किसी के सामने सर झुकाना पड़े l तुम्हारा आखरी फैसला सर आँखों पर था और मैं हमेशा हमेशा के लिए चला गया l कुछ वक्त बाद अपने ही दूर के रिश्ते में एक लड़की से मेरा रिश्ता तय हो गया l शांति नाम था उसका उसने मुझे पसंद कर लिया ,, मै उस वक्त टूटा हुआ था इसलिए मेरी पसंद से कोई फर्क नही पड़ता मैंने इसे ही अपनी किस्मत मान लिया l
शादी के बाद शांति मेरे घर रहने लगी मैं हर वक्त उस से कटा कटा सा रहता था पर उसने कभी शिकायत नही की ओर फिर मुझे एहसास हुआ कि अपने टूटे मन के चलते मैं उस भली औरत की भावनाओ को ठेस पहुंचा रहा हु l मैंने उसे अपना लिया और अपना पति धर्म निभाने लगा l तुम हमेशा मेरे मन मे रही क्योकि हमारा रिश्ता अपवित्र नही था मैने शांति को तुम्हारे बारे में बताया तो वह तुमसे मिलने की जिद करने लगी लेकिन तुम कहा थी मैं नही जानता था l (एक गहरी सांस लेता है और कुछ देर की खामोशी के बाद फिर बोलने लगता है)
वक्त सभी जख्म भर देता है सुमि , धीरे धीरे मैं अपने गृहस्थ जीवन मे व्यस्त हो गया l माँ के खत्म होने के बाद गांव से हमेशा के लिए शहर आ गया l यहां मेहनत से अपना घर बनाया जिसमे मैं शान्ति और मेरे दोनो बच्चे खुशी खुशी जिंदगी जी रहे थे l
वक्त गुजरता गया बच्चे बड़े होने लगे अच्छी लड़कीया देखकर उनका रिश्ता तय किया शादी की कुछ साल बाद ही मुझे दादा बनने का सुख प्राप्त हुआ और उस वक्त मुझे लगा जैसे मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हु l लेकिन ज्यादा खुशियों को भी हम इंसानों की नजर लग जाती है l एक बीमारी के चलते शांति का देहांत हो गया बच्चों में झगड़े न हो इसके चलते मैंने उनके बीच बटवारा कर दिया पर मैं भूल गया था कि ये बंटवारा जमीन और पैसे का नही बल्कि मेरा था l कुछ महीने बड़े बेटे के घर तो कुछ महीने छोटे बेटे के घर रहने लगा l धीरे धीरे मेरा अस्तित्व खत्म होने लगा था l बेटों ओर बहुओं के असली रंग दिखने लगे थे l जलील करना , ताने देना , मुझे बार बार ये अहसास दिलाना की मैं उन पर अब बोझ बन चुका हूं मुझे अंदर ही अंदर काटने लगा था l l मैं उनके साथ होकर भी नही था सब छूट चुका था दोस्त , घर , मेरे अपने जो सिर्फ कहने को मेरे अपने थे l
जब सह नही पाया तो उन दोनों के घर को छोड़कर मैं यहां चला आया l ( कहते कहते रुक गया उसकी आंखो में नमी तैर गयी , आंसुओ को आंखो में ही रोक लिया ओर आगे कहने लगा ) यहां आकर अपनो के किये बुरे बर्ताव को भूलने की कोशिश करने लगा पंर जब तुम्हे देखा तो मन फिर पीड़ा से भर गया ,तुम्हे यहां इस तरह इस हाल में देखूंगा मैंने कभी सोचा नही था सुमि ,, उस शाम जाने से पहले तुमने कहा था कि तुम हमेशा खुश रहोगी लेकिन अगर सच मे तुम खुश थी तो फिर यहां कैसे ?”
अपनी बात खत्म कर अमर सुमि की ओर देखने लगा अमर की कहानी सुन सुमित्रा की आंखो में आंसू थे जिन्हें देखकर अमर ने कहा – संमझ गया तुम्हारे साथ भी बेटे और बहुओं ने ऐसा ही किया होगा , ये आजकल की लड़कियां समझती क्यो नही ? जितना प्यार ये अपने माँ पिता से करती है उतना सास ससुर से क्यो नही ? बुजुर्गों के वृद्धाश्रम होने की सबसे बड़ी वजह ये बहुये ही है सुमि वरना कोई भी बेटा अपनी माँ को वृद्धाश्रम नही भेजेगा l
उनकी बातों से गुस्सा साफ झलक रहा था सुमि को चुप देखकर आगे कहने लगे – कभी कभी मैं सोचता हूं कि बेटों से अच्छा काश मुझे एक बेटी होती तो आज सुख दुख में मेरे साथ होती
अमर की इस बात पर सुमि का दिल पीड़ा से भर गया और उसने कहा – नही अमर , सब बेटियां ऐसी नही होती है l अगर बेटियों में ये भावना होती तो वो कभी अपने सास ससुर को यहां नही भेजती , बहुओं से पहले बेटियों को ये सिखाना बहुत जरूरी है ताकि आगे चलकर जब वो बहु बने तो ऐसा कुकृत्य नही करे l”
“मैं कुछ समझा नही सुमि”,अमर ने कहा
“कैसे समझोगे अमर तुम किसी बेटी के बाप जो नही हो ?”,सुमि ने गीली आंखो को पोछते हुए कहा और वहां से चली गयी l
अमर अपनी कहानी तो सुमि को सुना दी पंर सुमि के बारे में नही जान सका , सुमि कुछ खुलकर बताना नही चाहती थी और अमर पूछकर उसे ओर दुखी करना नही चाहता था l अमर अपना सामान लेकर कमरे में चला आया l
उसे देखकर जगन्नाथ ओर मोहनराव उसके पास आये और कहा – तुम तो घर गए थे वापस कैसे चले आये ?
“वो घर अपना था ही कब मोहनराव , अब यही मेरा घर है और तुम सब मेरे अपने हो ! बची खुची ये जिंदगी तुम सबके साथ बितानी है”,अमर ने कहा तो जगन्नाथ उसके गले आ लगा और कहा – तू अकेला कहा है रे अमर हम सब है ना तेरे साथ ,, चल चलकर कुछ खा ले”
तीनो कमरे से बाहर चले आये और नाश्ता करने चले गए सामने से आते अनुज ने देखा तो उनके पास चले आया और कहा – अरे अमर अंकल आ गए आप , चलिए पहले कुछ खा लीजिए फिर आप सबके लिए एक खुशखबरी है l
सबके नाश्ता करने के बाद अनुज ने सभी को हॉल में इकट्ठा किया ओर कहने लगा – आप सभी काफी दिनों से यहां है और आपसे मुझे ओर सुनिधि को बहुत प्यार मिला है , हम दोनों तो अनाथ थे पंर आप लोगो ने वह कमी भी पूरी कर दी ,, आज आप सबको मैं एक खुशखबरी देना चाहता हु वो ये की मैंने ओर सुनिधि ने आप सबके नाम से पेंशन फॉर्म भरा है अबसे हर महीने सरकार की तरफ से आपको 500 रूपये महीना मिलेंगे और वो आपके होंगे , उन्हें आप जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकते है l”
सबने सुना तो उनके चेहरे पर खुशी आ गयी लेकिन अमर ने कहा – नही बेटा वो सब पैसे आप ओर सुनिधि जी रखिये , आप दोनो हम सबके लिए इतना कर रहै है वो ही बहुत है बेटा
“हा अमर सही कह रहा है”,सबने अमर की बात का समर्थन किया
अनुज अमर के पास आया और उनका हाथ दोनो हाथों में थामकर कहा – अंकल आपने जो प्यार जो अपनापन मुझे ओर सुनिधि को दिया है उसके सामने ये पैसे कुछ भी नही है , माँ बाप के प्यार का कर्ज इंसान एक जन्म में भला कैसे उतार सकता है ? मुझे बहुत खुशी होगी अगर मैं आप सबके लिए कुछ कर पाया l
अमर ने अनुज को गले लगा लिया और कहा – अगर सारे बेटे तुम जैसे हो जाये तो दुनिया मे कही कोई वृद्धाश्रम नही होगा बेटा l
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क्रमशः – Aa Ab Lout Chale – 4
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संजना किरोड़ीवाल