Sanjana Kirodiwal

आ अब लौट चले – 2

Aa Ab Lout Chale – 2

Aa Ab Lout Chale
Aa Ab Lout Chale


Aa Ab Lout Chale – 2

अमर ओर सुमित्रा दोनो की जिंदगी में दर्द था लेकिन दोनो ही एक दूसरे के दर्द से अनजान थे l अमर सुमित्रा ही क्या बल्कि उस ओल्डएज होम में रहने वाले सभी लोगो की कोई न कोई कहानी थी जिसके चलते वे सब यहां थे l पुरुष विभाग में 12 लोग थे और महिला विभाग में 9 महिलाएं ,इन सबकी अपनी अपनी दर्दभरी कहानियां थी  , अपनी उन कड़वी यादों को भुलाकर सभी यहां अपनी बची खुची जिंदगी जी रहे थे l कुछ यहां खुश थे तो कुछ अभी भी अपने बच्चों के बारे में परेशान थे उन्ही में से दो लोग थे जो एक दूसरे को वहां देखकर हैरान थे और वो थे अमर ओर सुमित्रा l l  दोपहर के खाने के बाद सभी अपने अपने कमरों में सुस्ताने लगे l अमर के कमरे में मोहनराव ओर जगन्नाथ रहते थे , अमर को खोया हुआ देखकर मोहन ने कहा – क्यो भाई अमर सुबह से कहा खोए हो ? 
अमर ने कोई जवाब नही दिया l मोहन ने जगन्नाथ की ओर देखा तो उसने कंधे उचका दिए l मोहनराव बडा ही खुशमिजाज इंसान था उसने आगे कहा – लगता है अपनी किसी महिलामित्र के खयालो में खोए हो l इस उम्र में ये सब शोभा कहा देता है अमरनाथ ?
मोहनराव की बात सुनकर जगन्नाथ हसने लगा , अमर भी मुस्कुरा दिया और उठकर बाहर आंगन में चला आया , आंगन में पंछियों को देखकर उन्होंने पास ही पड़े बर्तन से अनाज उठाकर उनके बीच डाल दिया l पंछियों की मधुर आवाज ने उसकी बेचैनी को थोड़ा कम किया तो वह वही पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गया और उन्हें देखने लगा l तभी उसका ध्यान पास ही एक पंछी पर गया जिसका एक पैर धागे में उलझ गया था और वह उस से छूटने की कोशिश कर रहा था l अमर उठा और पंछी के पास आया और बड़े आराम से उसके पैर में फंसा धागा निकालने लगा l धागा निकालकर उन्होंने उसे आसमान में उड़ा दिया l जैसे ही पंछी आसमान में उड़ा अमर की यादें उसे चालीस साल पीछे ले गयी 

अपनी फूलों की दुकान पर बैठा अमर फूलों पंर पानी छिड़क रहा था l पीछे पिंजरे में बंद तोता बार बार आवाज कर रहा था जिसे अमर की माँ ने पकड़ा था और अब अच्छी कीमत पर उसे बेचने वाली थी l उसकी आवाज सुनकर अमर ने उसकी ओर देखा उसकी आंखों में कैद होने का दर्द था जिसे देखकर अमर पिघल गया उसने पिंजरा खोला और उसे बाहर निकाल कर आसमान में उड़ा दिया l जैसे ही तोता हवा में उड़ा पीछे से अमर की माँ चिल्लाई – ये क्या किया तूने , उसे आजाद कर दिया l उस से अच्छे खासे पैसे मिल जाते हमे 


“माफ करना माँ उसकी जान पैसे से ज्यादा कीमती है , इसे खरीदने वाला या तो इसे हमेशा के लिए पिंजरे में बंद रखता या फिर इसे पकाकर खा जाता l इसलिए मैने उसे छोड़ दिया”,अमर ने कहा ।।
“लेकिन बेटा पैसे ———-“,माँ कहते कहते रुक गयी
“कोई बात नही माँ पैसे हम ओर कमा लेंगे , आओ दुकान में चलते है आज सोमवार है दर्शनाथी आएंगे और ज्यादा फूल बिकेंगे”,अमर ने कहा और माँ के साथ अपनी दुकान में आ गया 


गोरखपुर में एक छोटे से गांव में अमर अपनी माँ के साथ रहता था l बाप का साया सर से  बचपन में ही उठ गया तबसे उसकी माँ ने ही उसे पाल पोसकर बड़ा किया l गांव में करने को कुछ नही था इसलिए अमर ने कालिका मंदिर के पास फूलों ओर पूजा के समान की दुकान खोल ली जिस से दो वक्त की रोटी का इन्तजाम हो जाता था l दोनो माँ बेटे खुश थे l
दुकान पर लोग आने लगे अमर उन्हें फूल और पूजा का सामान देने लगा जैसे कि आज दर्शन करने वाले लोग ज्यादा थे इसलिए दुकान पर भीड़ लगी हुई थी l

कुछ देर बाद नरेंद्र वर्मा अपनी पत्नी और बेटी के साथ फूल लेने अमर की दुकान पर आए l जैसे ही अमर की नजर लड़की पंर गयी वह उसे देखता ही रह गया सुंदर नैन नक्श , गोरा रंग , काली आंखे ओर ललाट पर एक लाल बिंदी ,सादगी में भी वह बहुत सुंदर लग रही थी l 
माँ ने देखा अमर खोया हुआ है तो उसे कंधे से झंझोड़ कर कहा,”क्या देख रहा है ? फूल दे उन्हें l 
ये देखकर लड़की मुस्कुराने लगी अमर ने खिंसिया कर समान बांधा ओर नरेंद्र की ओर बढ़ा दिया l

पैसे देकर नरेंद्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ वहां से चले गए l अमर उन्हें जाते हुए देखता रहा l लड़की का चेहरा बार बार उसकी आँखों मे आता रहा ,सारा दिन वह उसी के बारे में सोचता रहा ,, रात में ठीक से सो भी नही पाया और उठकर बैठ गया l 
अगली सुबह अमर जल्दी ही दुकान पर चला आया और उस लड़की का इंतजार करने लगा लेकिन लड़की नही आयी , अब हर रोज अमर उसका इंतजार करता पंर लड़की नही आई l बैचैन सा वह रास्ता निहारता रहता l अगले दिन सोमवार था और अब तक अमर उम्मीद छोड़ चुका था l

बेमन से वह फूलों पर पानी छिड़क रहा था तभी एक मीठी सी आवाज उसके कानो में पड़ी – कुछ ताजा फूल और पूजा का सामान दे दीजिए l
अमर ने सामने देखा तो उसे विश्वास नही हुआ सामने वही लड़की खड़ी थी वह एक बार फिर उसकी आँखों मे खो गया कुछ देर बाद लड़की ने कहा – पूजा का सामान 
“हा हा एक मिनिट देता हूं”,अमर ने हकलाते हुए कहा 

लड़की से नजर बचाकर वह समान बांधने लगा बीच बीच मे वह लड़की की ओर देख भी लेता था और लड़की उसे l लड़की ने पैसे दिए और समान लेकर वहां से चली गयी l 
अमर का चेहरा खुशी से खिल उठा l अब उसे हर रोज सोमवार का इंतजार रहने लगा बाकी के 6 दिन उसे नागवार गुजरने लगे l महीनों निकल गए हर सोमवार लडकी उसकी दुकान पर आती और पूजा का सामान लेकर चली जाती l इसके अलावा दोनो में ना कोई बात होती ना ही वह मिलते l नजर बचाकर बस एक दूसरे को देख लेते l दोनो के बीच एक अनजाना रिश्ता बन चुका था l 


एक सोमवार की सुबह अमर ने अच्छे अच्छे फूल निकालकर अलग रख दिये ताकि उस लड़की को दे सके , उसकी माँ जैसे ही उन्हें उठाने लगी अमर ने टोकते हुए कहा – अरे माँ माँ ये सामान उस लड़की का है 
– किस लड़की का ? 
“उसी का जो हर सोमवार यहां से फूल लेती है 
– यहां से तो कई लोग फूल लेते है , ये किसका है ? 
“अरे माँ जो अकेले आती है , वही लड़की 
– बेटा उसका कोई नाम तो होगा ना 


अमर सोच में पड़ गया इतने दिनों में उसने कभी उस लड़की का नाम जानने की कोशिश भी नही की l वह मुस्कुरा उठा और कहा – नाम नही पता पंर रहने दो तुम दूसरे फूल चुन लो 
माँ उन्हें छोड़कर दूसरे फूल चुनने लगी कुछ देर बाद लड़की आयी अमर ने उसे हमेशा की तरह सामान दीया लड़की पैसे देकर जाने लगी तो अमर ने हिम्मत करके कहा – सुनो , तुम्हारा नाम क्या है ?
लड़की ने बिना पीछे पलटे कहा – नाम जानना हो आज शाम 5 बजे मंदिर के पीछे वाली नदी पर मिलना 
लड़की वहां से चली गयी अमर मुस्कुराते हुए उसे जाते हुए देखता रहा l

शाम को 5 बजे अमर नदी किनारे पहुंचा लेकिन वहां कोई नही था , वह वहां पड़ी एक चट्टान पर बैठकर उसके आने का इंतजार करने लगा , लड़की नही आयी अमर ने कुछ कंकर हाथ मे उठाये ओर उन्हें नदी में फेंकने लगा कुछ देर बाद लड़की वहां आयी उसे देखते ही अमर का चेहरा खिल उठा और धड़कने सामान्य से तेज जिन्हें सामान्य करके अमर ने कहा – तुमने आने में इतनी देर क्यो की ? 
”पिताजी घर पर थे बड़ी मुश्किल से निकलकर आये है”,लड़की ने अपनी मीठी सी आवाज में कहा 


“अच्छा , अब बताओ तुम्हारा नाम क्या है ?”,अमर ने कहा 
“सुमित्रा , सुमित्रा नाम है मेरा ओर तुम्हारा ?”,लड़की ने अपनी पलके झपकाकर कहा 
“मेरा नाम अमर है , पहले तुम्हे कभी इस गांव में देखा नही”,अमर ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा 
सुमित्रा कुछ ही दूर पड़े पत्थर पर आ बैठी ओर कहा – मैं इस गांव की नही हु पड़ोस के गांव से हु l 
“तुम हर सोमवार मंदिर आती हो , भगवान को बहुत मानती हो”,अमर ने कहा 
सुमित्रा हंस पड़ी और कहा – मैं यहां तुम्हारे लिए आती हु मंदिर तो एक बहाना है तुमसे मिलने का


सुमित्रा की बात सुनकर अमर ने कहा – मतलब ?
“मतलब ये की तुम मुझे अच्छे लगते हो , तुम्हारे प्रति ये भावनाएं कैसी है ये मैं नही जानती पर तुम्हे ना देखु तो एक बेचैनी सी रहती है l कई महीनों से तुम्हे देखते आ रही हु पर तुम कभी कुछ कहते ही नही , आज कहा भी तो क्या मेरा नाम पूछा बुद्धू !”, कहते हुए सुमित्रा हंस पड़ी हंसते हुए वह बड़ी प्यारी लग रही थी अमर उसे एक टक देखता रहा तो सुमित्रा ने कहा – जबसे आयी हु मैं ही कुछ ना कुछ बोले जा रही हु तुम भी तो कुछ बोलो l 


“मैं भी तुम्हे पसंद करने लगा हु लेकिन कही मेरी किसी बात से तुम्हारा मन आहत न हो जाये सोचकर कभी कुछ कहा नही l आज तुमने आने को कहा तो भरोसा करके चला आया”,अमर ने कहा 
“तुम्हारी सादगी और तुम्हारा भोलापन इतना भा गया कि मैं खुद को रोक नही पाई l मैंने कुछ गलत तो नही किया ना ?”,उसने अपनी आंखें झपकाते हुए कहां 
“नही इसमें गलत कैसा कीसी को पसंद करना भला कहा गलत होता है l तुम्हारे घर मे कौन कौन है ?”,अमर ने कहा 


“माँ पिताजी दो बड़े भाई और मैं , ओर तुम्हारे घर मे ?”,उसने अपनी चूड़ियों को आगे पीछे करते हुये कहा 
“मेरे घर मे सिर्फ माँ और मैं , पिताजी सालों पहले गुजर गए”,अमर ने उदास होकर कहा 
उसे उदास देखकर सुमित्रा भी उदास हो गयी दोनो वही खामोश बैठे नदी के पानी को देखते रहे कुछ देर बाद दूर से एक लड़की ने सुमित्रा को आवाज दी और चलने का इशारा किया l सुमित्रा उठी और अमर से कहा – अब मुझे जाना होगा 
“फिर कब आओगी ?”,अमर ने कहा 


“जब तुम बुलाओगे , आज से हम दोस्त जो है”,सुमित्रा ने मुस्कुरा कर कहा 
“ठीक है , ध्यान से जाना”,अमर ने कहा तो सुमित्रा जाने के लिए आगे बढ़ गयी अमर ने उसे आवाज दी – सुनो 
वह पलटी ओर कहा – हा 
“आज से मैं तुम्हे सुमि कहकर बुलाऊंगा”,अमर ने कहा 
“ठीक है “,उसने कहा ओर वहां से चली गयी अमर वही खड़े उसे देखता रहा l 

अमर——-अमर——अमरनाथ 

आवाज कानों में पड़ी तो अमर वर्तमान में लौट आया और देखा सामने खड़े मोहनराव उसे आवाज दे रहे थे l अमर उनके पास आया ओर कहा – क्या बात है मोहन ? 
मोहनराव ने एक रुकी सी सांस ली और कहा – बाहर तुम्हारा बेटा तुम्हे लेने आया है l 

अमर ने जब सुना कि उसका बेटा उसे लेने आया है तो उसे गुस्से के साथ साथ हैरानी भी हुई l वह अनुज के ऑफिस नुमा कमरे में आया और वहां अपने दोनो बेटों को एक साथ देखकर चौंक गया , उन्हें देखते ही अनुज ने कहा – अमर अंकल आपके बेटे आपसे मिलने आये है आप बैठिए मैं आप सब लोगो के लिए चाय भिजवाता हु ! 
“उसकी जरूरत नही है अनुज , इनसे कहो यहां से चले जाएं”,अमर ने गुस्से से कहा 
”लेकिन क्यो पापा ? मैंने ओर भैया ने एक नई कंपनी खोली है उसी की खुशी में शाम को घर पर पार्टी है ,, सभी मेहमान आएंगे आप वहां होंगे तो अच्छा लगेगा”,अमर के छोटे बेटे रवि ने कहा 


“ओह्ह तो मेहमानों के बीच तुम्हारी बेइज्जत नही हो इसलिए आज बाप की याद आ गईं”,अमर ने कहा 
“ऐसी बात नही है पापा सब आपसे मिलना चाहेंगे तो उन्हें हम क्या कहेंगे ? चलिए आप चाहे तो कल सुबह ही यहां वापस आ जाना”,बड़े बेटे विकास ने कहा 
“कितने स्वार्थी हो चुके हो तुम लोग , नही आना मुझे अब यही मेरा घर है और यही मेरे अपने !”,अमर ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया गुस्सा इतना आ रहा था कि अभी के अभी दोनो को धक्के मारकर यहां से निकाल दे वैसे ही जैसे उन्हें निकाला गया था अपने ही घर से लेकिन अमर ऐसा नही कर सका l विकास और रवि ने अनुज से रिक्वेस्ट की के वो अमर को समझाए लेकिन अमर ने किसी की नही सुनी l

निराश रवि ओर विकास अपनी गाड़ी में आकर बैठ गए l 
“पापा ने तो हमे बेइज्जत करने की ठान ली है ,कितना कहा लेकिन देखो वे आने को तैयार नही है l”,विकास ने स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए कहा 
“हा भैया आखिर ऐसा क्या कर दिया हमने उनके साथ ? यहां आने का फैसला भी तो उनका ही था ना फिर वो ऐसा क्यों कर रहे ?”,रवि ने कहा
“कुछ भी हो रवि लेकिन हमें उन्हें आज की पार्टी में लाना ही होगा वरना मिस्टर मित्तल से हमे वो डील कैसे मिलेगी ?”,विकास ने सोचते हुए कहा 


“लेकिन कैसे ? क्या करे ?”,रवि ने कहा 
“घी जब सीधी उंगली से ना निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है”,कहकर विकास ने सामने पड़ी पानी की बोतल से पानी निकाला और अपनी आंखो को भिगो लिया , उसने बोतल रवि की ओर बढ़ाकर कहा,”ये ले तू भी आंखे गीली कर ले और चल मेरे साथ !”
“लेकिन इस से क्या होगा ? “,रवि ने आंखो में पानी मारते हुए कहा 
“दुनिया में ऐसा कोई बाप नही बना जो बच्चों के आंसू देखकर न पिघले”,विकास ने गाड़ी से नीचे उतरते हुए कहा और रवि के साथ एक बार फिर ओल्डएज होंम चला लाया l

अमर उस वक्त पौधों में पानी दे रहे थे विकास और रवि उनके पास आये ओर दुखी स्वर में कहने लगे,”चलिए ना पापा बच्चों से हमने प्रॉमिस किया है कि आपको साथ लेकर आएंगे , आप नही चलेंगे तो वे लोग दुखी होंगे l” 
उनके मुंह से बच्चों का नाम सुनकर ओर उनकी आंखो में आंसू देखकर अमर का दिल पिघल गया लेकिन अभी भी उसके मन मे गुस्सा भरा था इसलिए वह वहा से चले गए लेकिन सामने से आती सुमित्रा को देखकर रूक गये l 
सुमित्रा ने दोनो लड़को के उदास चेहरे देखकर अमर से कहां – नसीब वाले हो अमर जो बच्चे लेने आये है तुम्हे जाना चाहिए l

 
आज पहली बार था जब सुमित्रा ने खुद अमर से बात की थी l अमर ने अपना मन शांत किया तो महसूस हुआ कि उसे भी बच्चों की याद आ रही थी कुछ दिनों से , उसने सुमित्रा की ओर देखकर कहा – हम्म्म्म 
सुमित्रा वहां से चली गयी ओर अमर अपना झोला लेने अंदर चला गया l कुछ देर बाद वह अपने एक जोड़ी कपड़े को झोले में डालकर ले आया और विकास रवि के साथ घर के लिए निकल गया l 
घर पहुंचा तो देखा घर को बहुत सजा रखा था , सारा घर जगमगा रहा था l अमर को देखते ही उसके दोनो पोते ओर पोती दौड़ते हुए उसके पास चले आये l बहुओ ने बेमन से उनके पैर छुए ओर तैयार होने चली गयी l

पार्टी शाम को थी इसलिय अमर भी बच्चों के साथ उनके कमरे में चला आया और सुस्ताने लगा l यहां आकर बच्चों से मिलकर उसे बहुत खुशी हुई l अमर घर को निहारने लगा , एक एक ईंट लगाकर उसने ये घर बनाया था लेकिन आज इसी घर पर उसका कोई हक नही था l यहां आने के बाद बहुओं ने खाना तो दूर पानी तक नही पूछा उन्हें ,, अमर ने किसी से कुछ नही कहा बस शाम का इंतजार था l 

पार्टी मे सभी बड़े बड़े लोग शामिल हुए , सबने चमचमाते कपड़े पहने थे इन सबके बिच अमर को अपना सफेद कुर्ता पजामा थोड़ा अजीब ही लगा जो कि अब पुराना हो चला था l विकास के बॉस जब उनसे मिले तो उन्होंने कहा – क्या ये तुम्हारे पापा है ? लगता है किसी गरीबखाने से उठकर आये है !”
“दरअसल सर वो पापा जमीन से जुड़े आदमी है ना इसलिए इन्हें ऐसे ही रहना पसन्द है ,, मै तो अक्सर कहता हु सोसायटी के साथ मिल जुलकर रहो लेकिन ये सुनते ही नही है ,, आइए मैं आपको कुछ और मेहमानों से मिलाता हु l”,कहते हुए विकास उन्हें वहां से ले गया अमर अपमान का घूंट पीकर रह गए l 


उस भीड़ में उनका दम घुटने लगा था , वे वहां से साइड में चले आये पार्टी शुरू हुई तो खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी 11 बज रहे थे लेकिन खाना शुरू नही हुआ था , सभी बस शराब का लुफ्त उठा रहे थे यहां तक के रवि ओर विकास की पत्नियां भी ये देखकर अमर को बहुत ठेंस पहुंची l भूख से उनकी आंते कुलबुलाने लगी उन्होंने एक प्लेट उठाई और उसमे कुछ खाना रखकर सीढ़ियों की साइड आकर बैठ गये एक निवाला तोड़कर जैसे ही उन्होने मुंह की ओर बढ़ाया छोटी बहू ने आकर उनका हाथ पकड़कर रोकते हुई कहा – ये क्या कर रहे है आप ? मेहमानों ने अभी तक खाना शुरू भी नही किया और आप यहां खाने बैठ गए , जरा भी शर्म नही है आप मे थोड़ी देर नही खाओगे तो मर नही जाओगे !” 


बहु के मुंह से ऐसी बाते सुनकर अमर अवाक था उसने कहा – बहु मुझे भूख लगी थीं दोपहर से कुछ खाया नही था इसलिए ,, माफ करना !” 
“हुंह थोड़ी देर में खा लेना जितना खाना है”,कहते हुए बहु ने प्लेट छीन ली अमर उस से कुछ कहते इस से पहले ही विकास आया और उनकी बाँह पकड़कर कहा,”इस हाल में पार्टी में क्यों आये ? मेरी कितनी बेइज्जती हुई वहा जानते है आप ? आपकी तो कोई इज्जत नही कम से कम हमारे बारे में तो थोडा ख्याल किया होता l अपने कमरे में जाओ खाना वही भिजवा दूंगा मैं”
बेबस अमर क्या कहता ? उसके पास बोलने के लिए कुछ नही था जिस खुशी से वह आया था अब वह खुशी धूमिल हो चुकी थी , बिना कुछ कहे ही अमर वहां से बच्चों के कमरे में चला आया तीनो बच्चे सो चुके थे , अमर आकर बिस्तर पर बैठ गया मन भारी हो चुका था ,, उसे बीते वक्त की यादों ने घेर लिया 

“एक चपाती ओर लीजिए ना”,अमर की पत्नी शांति ने थाली में चपाती रखते हुए कहा 
“अरे नही शांति , पेट भर चुका l तुम भी खाना खा लो बैठो”,अमर ने कहा 
“आपसे पहले मैं खाना कैसे खा सकती हूं ? आप इस घर के मुखिया है , पहले आपको खाना चाहिए और वक्त पर खाना चाहिए”,शांति ने पानी का ग्लास उनकी ओर बढ़ाकर कहा 
“तुम हो ना शांति वक्त पर खिलाने के लिए”,अमर ने कहा 
“मैं ना भी रही तब भी हमारे बच्चे आपको वक्त पर ही खाना खिलाएंगे ओर इस से भी अच्छा अच्छा”,शांति ने कहा 

अमर वर्तमान में लौट आया कमरे में इधर उधर नजर दौड़ाई ओर देखा तो टेबल पर नजर गयी जहां पानी का जग रखा हुआ था अमर में ग्लास मे पानी उड़ेला ओर एक सांस में पी गया लेकिन पानी से भुख कहा मिटती है , वे बच्चों के बगल में लेट गए , घंटा बीत गया लेकिन किसी ने अमर के लिए खाना नही भेजा अमर ने एक बार फिर पानी पीकर भूख मिटानी चाही ओर लेट गया l उसकी आँखों से आंसू बह गए और मन ही मन कहा  “बच्चे वक्त से खिला रहे है शांति”

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क्रमशः – Aa Ab Lout Chale – 3

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संजना किरोड़ीवाल

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