Sanjana Kirodiwal

आ अब लौट चले – 1

Aa Ab Lout Chale – 1

Aa Ab Lout Chale – 1

कहते है बढ़ती उम्र में इश्क़ हो तो समझ जाना चाहिए , जिंदगी फिर से मुस्कुराना चाहती है l 
ओल्डएज होम के बरामदे की सीढ़ियों पर बैठे अमरनाथ जी सुबह का अखबार पढ़ रहे थे l घर के बंटवारे के बाद दोनो बेटों ओर बहुओं के बीच अमर को लेकर झगड़े होते रहते थे जिन्हें देखते हुए अमर ने खुद ही ओल्डएज होंम आने का मन बना लिया l यहां उन्हें अपने कुछ पुराने दोस्त भी मिल गए थे l जब घर से निकले तो हाथ मे सिर्फ एक बैग था जिसमे कुछ कपड़े और कुछ जरूरी सामान था l

बेटे बहु ने रोका तक नही ओर इस बात से आहत होकर अमर ने घर वापस ना आने का मन बना लिया l पिछले 6 महीनों से वह यही ओल्डएज होंम में थे , खुश थे लेकिन मन मे अभी भी एक खालीपन था l अमर के साथ यहाँ 11 लोग ओर थे सभी अपने बच्चों से आहत होकर यहां आए थे l इसी ओल्डएज होंम से जुड़कर एक ओर ओल्डएज होंम था जिसमे बुजुर्ग महिलाएं थी l दोनो एक ही घर मे बने थे जिन्हें एक शादीशुदा दम्पति जो कि अनाथ थे वह सम्हाल रहे थे l 


अखबार में छपी नकारात्मक घटनाएं पढ़कर अमर का मन कुंठित हो उठा उसने अखबार बंद कर दिया और उठकर जाने लगा तभी दरवाजे पर गाड़ी के रुकने की आवाज आई अमर पलटा ओर आंखो पंर नजर का चश्मा लगाकर देखने लगा l फीके रंग की साड़ी पहने कोई बुजुर्ग महिला गाड़ी से नीचे उतरी लेकीन अमर उसका चेहरा नही देख पाया उसने देखा महिला के सामने खड़ा लड़का महिला को कुछ समझा रहा था ओर वह बस हा में गर्दन हिलाये जा रही थी l कुछ देर बाद लड़के ने उस महिला को एक बैग थमाया ओर गाड़ी में बैठकर वहां से चला गया l महिला अंदर आयी जैसे जैसे वह आगे बढ़ी उसे देखकर अमर का दिल धड़कने लगा l

आंखे भय और पीड़ा से भर आईं , वह एकटक सामने से आती महिला लो देखता रहा 40 साल बाद वह उसके सामने इन हालातों में होगी ऐसा अमर ने सोचा नही था l जैसे ही महिला अमर के सामने आई अमर ने काँपते हुए स्वर में कहा – सुमि तुम यहां ?
महिला ने अमर की ओर देखा उस आवाज को वह बखूबी पहचानती थी उसकी आंखो में पीड़ा के भाव उभर आये और वह बिना अमर से कुछ कहे महिला विभाग की तरफ चली गईं l अमर उसे जाते हुए देखता रहा तभी पीछे से आकार जगन्नाथ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये कहा,”क्या बात है अमर ऐसे क्यों खड़े हो ? कौन है वो महिला ? होंम में नई आई लगता है”


अमर ने अपने दर्द और पीड़ा को आंखो में ही समेट लिया और कहा – हा जगन्नाथ आज एक बार फिर ममता अपने बच्चों पर बोझ बन यहां धकेल दी गयी l
अमर अंदर चला गया सुमि याने सुमित्रा वर्मा जिसे अमर जानता था उसे आज इस हालत में देखकर काफी परेशान था l उसके मन मे सवालों का अंबार लग गया लेकिन कैसे पूछे ? सुमि ने तो उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया था l अपने कमरे में आकर वह यहां से वहां चक्कर काटने लगा , कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे ? दिमाग मे सैंकड़ो सवाल आ जा रहे थे ओर सीने में एक पीड़ा का अहसास हो रहा था जिसे अमर खुद से दूर नहीं कर पा रहा था l थककर वह बिस्तर पर बैठ गया और बड़बड़ाने लगा 


“सुमि यहां क्या कर रही है ? उसने कहा था शादी के बाद वह हमेशा खुश रहेगी फिर आज इन हालातो में वो यहां कैसे ? उसके पति , बच्चे घर बार आखिर इन सबके होते हुए वो अकेले , वो भी ओल्डएज होंम में l बीते 40 सालों में ऐसा क्या हुआ होगा सुमि के साथ ? उसने कभी बताया भी तो नही l l ना जाने क्या क्या हुआ होगा ? किन परेशानियों से गुजरी होगी वो ,,छः मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा है आखिर इतने सालों में मैंने उस के बारे में कभी जानने की कोशिश तक नही की ,, l


अमर की पीड़ा अब गुस्से में बदल चुकी थी अमर उठा और अलमारी में रखे अपने बैग को बाहर निकालकर बिस्तर पर रखा l बैग में रखे कपड़े ओर सामान निकालकर बाहर फेकने लगे जैसे कुछ ढूंढ रहे हो l आखिर में एक किताब मिली अमर ने जल्दी से उस किताब को खोला और पन्ने पलटने लगा पन्नो के बीच रखी तस्वीर निकालकर देखने लगा l पीले रंग के सूट में लाल फूलों वाला दुपट्टा लगाए एक 20-22 साल की लड़की की तस्वीर थी जिसमे उसकी मुस्कान उस तस्वीर को ओर आकर्षक बना रही थी l अमर अपलक उस तस्वीर को देखता रहा और धीरे से कहा,”ये तस्वीर तुम्हारी तरफ से दिया आखरी तोहफा था सुमि जब तुमने कहा था कि इस जिंदगी में हम फिर मिलेंगे ,, लेकिन तुमसे दोबारा मुलाकात इस तरह , इन हालातों में होगी मैने सोचा नही था l”


अमर काफी देर तक उस तस्वीर को हाथ मे लिए खड़े रहा कुछ देर बाद ही दरवाजे पर दस्तक हुई जगन्नाथ खड़ा था उसने कहा,”क्यों भाई अमर आज नाश्ता नही करना , चलो सब आ चुके है !”
जगन्नाथ की आवाज सुनकर अमर अपने वर्तमान में लौट आया और तस्वीर को वापस किताब में रख दिया और जगन्नाथ के साथ कमरे से बाहर चला आया l 
हॉल में सभी बुजुर्ग ओर महिला बुजुर्ग शामिल थे वही वह दम्पति अनुज ओर सुनिधि थे l सभी अपना अपना नाश्ता लेकर बैठ गए , अमर भी अपनी प्लेट लेकर बैठ गए लेकिन उसकी कमजोर आंखे सामने बैठी महिलाओं में सुमि को ढूंढ रही थी पर वो वहां नही थी l अमर को चुपचाप देखकर जगन्नाथ ने कहा,”अरे भई खाओ , सुबह से कहा खोए हो ? 


“ह्म्म्म”,कहते हुए अमर खाने लगा 
अनुज ने देखा सुमित्रा वहां नही है तो उसने सुनिधि से कहा,”सुनिधि आज सुबह जो माताजी आई थी वो यहां नही है l”
“अनुज वे थोड़ा परेशान है , उन्हें ये समझने में थोड़ा वक्त लगेगा की अब वो इस ओल्डएज होंम का हिस्सा है ! उनके बच्चों ने उनके साथ जो भी किया उस से उनका मन काफी आहत है”,सुनिधि ने उदास होकर कहा 
“तुम उनका ख्याल रखो , मैं सुनील (रसोईया) से कहकर उनके लिए नाश्ता उनके कमरे में ही भिजवा देता हूं”,अनुज ने कहा 


“उसकी जरूरत नही है अनुज मैं ले जाऊंगी l”,सुनिधि ने कहा और नाश्ता लेकर वहां से चली गयी l 
नाश्ता करने के बाद अमर बरामदे में आया उसने महिला विभाग की ओर नजर दौड़ाई सुमि उसे नही दिखी , उसने इधर उधर देखा तो पाया बगीचे में बनी बेंच पर सुमि खामोशी से बैठी है l उसकी उदास आँखे ओर मुरझाया चेहरा बया कर रहा था अमर के कदम उस ओर बढ़ गए वह बगीचे में आया और बैंच के दूसरे किनारे पर बैठ गया l सुमि अब भी किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी उसे अमर के आने का अहसास ही नही हुआ अमर काफी देर खामोश बैठा रहा और फिर हिम्मत करके कहा – सुमि मैं अमर मुझे पहचाना नही क्या ? 


अमर की आवाज सुनकर सुमित्रा ने उसकी ओर देखा लेकिन खामोश रही l उसकी खामोशी अमर को एक टिस पहुंचा रही थी उसने सुमि को देखा चेहरे पर अब पहले जैसा नूर नही था , ना आंखो में पहले जैसी चमक थी l फूलों सा नाजुक चेहरा झुर्रियों से फीका पड़ चुका था l गले की हड्डियां बाहर झांकने लगी थी ,, हाथ कमजोर पड़ चुके थे , बालो से सफेदी झड़ रही थी l l अमर को अपनी ओर देखता पाकर सुमि वहां से उठकर जाने लगी कुछ कदम चली ओर रुक गयी , शायद कुछ कहना चाहती थी लेकिन जबान ने उसका साथ नही दिया l अमर बेंच से उठा और कहा – मैं जानता हूं तुमने मुझे पहचान लिया है , क्या अब मैं जान सकता हु की तुम यहाँ इस हाल में कैसे ? 
“कुछ सवालों के जवाब नही हुआ करते है अमर , मुझे नही पता था मेरी किस्मत में तुमसे फिर से मिलना लिखा होगा”,सुमि ने पहली बार कुछ कहा 


अमर को इतने सालों बाद सुमि की आवाज सुनकर एक खुशी का अहसास हुआ उसने धीरे से कहा,”क्या मेरा तुम पर अब कोई हक नही है ?”
“वो सब हक 40 साल पहले ही दफन हो चुके है अमर , इस बेदर्द जिंदगी के कुछ साल ओर बचे है इसमें अब ओर दर्द नही चाहती”,उसकी आवाज भर आयी और वह बिना अमर की बात सुने वहां से चली गयी l

सुमित्रा के जाने के बाद अमर उसे जाते हुए देखता रहा और फिर वापस अपने कमरे में चला आया l मन में उथल पुथल थी सुमि का उस से इस तरफ बात करना उसे संमझ नही आ रहा था जबकि आखरी मुलाकात में सुमि ने कहा था,”जिंदगी में अगर कभी किसी मोड़ पर सामना हुआ तो हम अच्छे दोस्तो की तरह मिलेंगे” 
अमर बेचैनी से कमरे में यहां से वहां घूमने लगा कि सामने पडी कुर्सी से उसका पैर टकराया ओर उस पर रखा उनका चश्मा नीचे आ गिरा जिसमें दरार आ गयी l अमर ने उसे उठाया तो चश्मे का पुराना शीशा चरमरा कर गिर गया l अमर उसे देखने लगा ये काफी पुराना चश्मा था उनके पास लेकिन आज ये भी जवाब दे गया l

उन्होंने टुकड़ो को उठाया और जोड़ने की कोशिश करने लगा l तभी उधर से गुजरते हुए अनुज ने देखा तो उनकी ओर चला आया और उनके हाथ मे टूट हुआ चश्मा देखकर कहा,”अरे अमर अंकल , लाइये मुझे दीजिए मैं बाहर ही जा रहा हु ठीक करवा देता हूं” 
“अरे नही बेटा , ये ठीक है मैं इसे जोड लेता हूं”,अमर ने कहा 
“अरे अंकल ये कैसे जुड़ेगा इसके एक साइड का शीशा तो पूरा खराब हो चुका ओर दूसरा टूट गया l मैं सुनिधि की दवाइयां लेने बाहर जा रहा हु लाइये मैं सही करवा देता हूं”,अनुज ने अपनेपन से चश्मा लेकर देखते हुए कहा 
“नही बेटा तुम खामखा परेशान हो रहे हो , फिजूलखर्ची होगी l”,अमर ने कहा 
“लो इसमें कैसी फिजूलखर्ची , आप कोई पराए थोड़े हो ,, अगर आपने अब ना कहा तो मैं बुरा मान जाऊंगा”,अनुज ने कहा तो अमर मुस्कुरा उठा और हामी भर दी l अनुज चश्मा लेकर वहां से चला गया अमर बाहर बरामदे की सीढ़ियों पर आकर बैठ गया उसे कुछ महीनों पहले की घटना याद आ गयी

********* कुछ काम करते हुए अमर ने चश्मा उतार कर बिस्तर पर रखा और अपना काम करने लगा तभी उनका 10 साल का पोता भागते हुए आया और बिस्तर पर चढ़ गया लेकिन जैसे ही वह बिस्तर पर चढ़ा वहां रखे अमर के चश्मे पर पोते का पैर पड़ गया और चश्मे का शीशा टूट गया l ये देखते ही पोते ने घबराकर कहा,”आई एम सॉरी दादाजी , प्लीज मम्मी पापा को मत बताइएगा वरना वो मुझे बहुत डाटेगे प्लीज दादाजी प्लीज दादाजी”
अमर ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा ओर कहा,”हम्म , नही कहूंगा जाओ खेलो” 


बच्चा वहां से चला गया अमर ने चश्मे को देखा वो टूट गया था उसने उसे साइड में रख दिया l अगले दिन जब अमर का बेटा विकास ऑफिस जा रहा था तो अमर ने उसे चश्मा देते हुए कहा,”बेटा ये चश्मा जरा टूट गया है , इसे ठीक करवा दोगे ?” 
विकास जो कि पहले ही झुंझलाया हुआ था उसने कहा,”मैं ऑफिस का काम करू या फिर आपका चश्मा ठीक करवाता फिरूँ l आप तो दिनभर घर मे पड़े रहते है मुझे दिन में ना जाने कितने ही लोगो से मिलना जुलना लगा रहता है l”
“संमझ सकता हु बेटा लेकिन क्या करूँ चश्मे के बिना अखबार में छपे बारीक अक्षर दिखाई नही देते”,अमर ने धीरे से कहा 


“दो चार दिन अखबार नही पढ़ेंगे तो कौनसा कुछ हो जाएगा ? सुबह सुबह दिमाग खराब मत कीजिये ये रोज का है आपका कभी कुछ चाहिए कभी कुछ ,, अभी पिछले महीने ही मैंने आपको नए चप्पल लेकर दिए थे पैसे क्या पेड़ पर उगते है ! कुछ दिन काम चला लीजिए फिर बनवा दूँगा नया चश्मा”,विकास ने गुस्से से कहा और वहां से चला गया l अमर की आंखो में नमी तैर गयी जिस बच्चे की जरूरतें ओर ख्वाहिशें पूरी करते वक्त अमर ने कभी बजट नही देखा आज वही बेटा उन्हें पैसे की अहमियत समझा रहा था l

अमर चुपचाप वापस अपने कमरे में चले आये और चश्मे को देखने लगे कुछ देर बाद उनका पोता दौड़ता हुआ आया और ग्लू की बोतल देकर कहा – ये लीजिए दादाजी इस से आपका चश्मा वापस चिपक जाएगा l 
बच्चे की बात सुनकर अमर मुस्कुरा दिया और चश्मे को चिपकाने लगा , उस से वह कामचलाऊ तो बन ही गया लेकिन उसके बाद न कभी अमर ने चश्मे का जिक्र किया ना ही विकास ने वह चश्मा कभी ठीक करवाया l*********

अमर पुरानी यादो में खोया था तभी सामने से मोहनराव आता दिखाई दिया उसके हाथ मे रंगीन डिब्बा था जिसे अमर के सामने खोलकर उसने कहा – लो अमरनाथ मिठाई खाओ
अमर ने एक टुकड़ा मिठाई का उठाया और कहा,”ये किस खुशी में मोहनराव ?”
“आज मेरे बेटे का जन्मदिन है , अभी अभी घर का नोकर मिठाई देकर गया है l भगवान उसे लंबी उम्र दे”,मोहनराव ने बगल में बैठते हुए कहा 
अमर ने सुना तो गुस्से से उसकी भँवे तन गयी और उसने कहा,”जिस बेटे ने तुम्हे यहां मरने के लिए छोड़ दिया उस बेटे के जन्म की खुशियां मना रहे हो तुम ?”


मोहनराव मुस्कुराया ओर कहा – क्या फर्क पड़ता है अमरनाथ आखिर है तो अपने ही बच्चे तुम मिठाई खाओ l
“फर्क क्यों नही पड़ता मोहनराव , आज के दिन भी वह तुमसे मिलने नही आया बस नोकर के हाथ मिठाई का डिब्बा भेज दिया l हुंह कैसा जमाना आ गया है जिम्मेदारियों को बच्चे अब बोझ समझने लगे है क्या उनके पास हमसे मिलने को 5 मिनिट भी नही है ?”,अमर के होंठ गुस्से से कांप रहे थे l 
“गुस्सा मत करो अमरनाथ उसने याद रखा इतना ही काफी है l अपनी ही औलाद से भला कैसी नफरत ?”,मोहनराव ने भावुक होकर कहा 
अमर ने मिठाई का टुकड़ा वापस डिब्बे में रखा और उठकर जाने लगा जाते जाते रुका ओर पलटकर कहा – ऐसी औलाद से तो अच्छा हम बेऔलाद रहते l

अमर वहां से चला गया कुछ ही दूर खड़ी सुमित्रा खामोशी से सब देख रही थी l मोहनराव ने जाते हुए अमर को देखा ओर फिर खुशी खुशी सबको मिठाई खिलाने लगा l ऐसा ही था ये ओल्डएज होंम जहां बच्चों के बुरे व्यवहार के बाद भी ये बुजुर्ग उनकी सलामती की दुआ कर रहे थे l 
सुमित्रा अपने कमरे में चली आयी उनके कमरे में राधा और सुरुपा नाम की दो औरते ओर थी l सुमित्रा खामोशी से आकर अपने बिस्तर पर बैठ गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी l बाहर सड़क पर एक ठेले वाला कांच की चूड़ियां बेंच रहा था l उन रंग बिरंगी चूड़ियों को देखकर सुमित्रा का मन अतीत में भटकने लगा 

********* सुमित्रा अपने हाथ मे कांच की चूड़ियां पहने आई और अपने दोनो हाथों को अमर के सामने करते हुए कहा,”कैसी है मेरी चूड़ियां ?”
“सुमि तुम ये कांच की चूड़ियां क्यो पहनती हो ? किसी दिन तुम्हारे हाथों को घायल कर देंगी ये”,अमर ने बेचैनी से कहा 
“ये मैं इसलिये पहन्नती हु क्योकि ये बहुत प्यारी आवाज करती है”,सुमित्रा ने अपने दोनो हाथों की चूड़ियों को बजाकर कहा 


अमर ने उसके दोनो हाथों को थाम लिया और कहा,”लेकिन ये तो सिर्फ कांच की चूड़ियां है , हमारी शादी के बाद मैं तुम्हे सोने कि चूडिया बनवाकर दूंगा , जो कि आवाज भी करेंगी और तुम्हारे हाथों को नुकसान भी नही पहुंचायेगी”
“क्या सच मे ?”,सुमित्रा ने आंखो में चमक भरते हुए कहा 
“हा सच मे , बस कल से तुम ये कांच की चूड़ियां मत पहनना”,अमर ने कहा
“अच्छा तो फिर कर लो शादी और पहना दो सोने के कंगन”,सुमित्रा ने कहा और वहां से भाग गई l******

चूड़ी वाले कि आवाज कानो में पडी तो सुमित्रा की तन्द्रा टूटी ओर सहसा ही उसका ध्यान अपने हाथों पर गया जिसमें कुछ कांच वाली चूड़ियां थी जिनका रंग फीका पड़ चुका था l
उन चूड़ियों को देखते हि मन फिर अतीत में भटक गया पति की मौत के कुछ दिन बाद उसके हाथों में सोने के कंगन देखकर उसकी बहु ने कहा – माजी इस उम्र में ये कंगन आपके हाथों में शोभा नही देते , आप इन्हें निकालकर कुछ सिंपल चूड़ियां पहन लीजिए l


बहु के कहने पर सुमित्रा ने वो कंगन निकाल दिए लेकिन सिंपल चूड़ियों के नाम पर उसे ये कांच की चूड़ियां मिली जो आज भी इन हाथों में थी l उसकी आंखो में आंसू भर आये चूड़ी वाले कि आवाज उसके कानों को पीडा पहुंचा रही थी उसने आंसू पोछे ओर खिड़की बंद कर दी l 

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क्रमशः – Aa Ab Lout Chale – 2

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संजना किरोड़ीवाल 

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