हर कोई दे रहा बधाई नए साल की पर इस साल भी वो मेरे साथ नही वो सोचते है कि उन्हें भूल चुके है हम इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही जनवरी की सुबह अब भी वैसी ही है वही घर का बंद आंगन जहाँ धूप दोपहर बाद आती थी ! ठंडी हवाएं अब भी मेरे हाथों को छूकर जाती है वैसे ही जैसे कभी अनजाने में छू लिया करते थे तेरे हाथ मेरे हाथ को शाम का ढलता सूरज अब भी उतना ही खूबसूरत है पर सर्दी की वो ठिठुरती रात नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही
वो माह फरवरी भी आएगा तेरे बगैर जिसके हर पल हर लम्हे में सिर्फ प्यार नजर आएगा जहाँ फिर कोई प्रेमिका अपने प्रेमी से अपनी मोहब्बत का इजहार करेगी ! वैसे ही जैसे तुम किया करते थे कभी बार बार हर बार उन प्यार के शब्दों की मेरे पास अब कोई सौगात नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही मार्च का वो फाल्गुन इस साल भी आएगा वैसे ही रंगों से सराबोर मदमस्त झूमता हुआ दुनिया से बेखबर मुझे अब भी याद है तुम्हारा वो पसंदीदा रंग जिसे देखकर यू ही खिल उठता था तुम्हारा चेहरा वो रंग जो घोल गए थे तुम मेरी सांसो में वो रंग जो लाख कोशिश के बाद भी छूटा नही पाई मैं हाँ वो मोहब्बत के रंग जो बेजान से पड़े है किसी कोने में क्योंकि तुम मेरे साथ नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही
देखते देखते अप्रैल भी आएगा साल का वो महीना जिससे तुम्हे बहुत प्यार है तुम्ही ने कहा था एक रोज की इस महीने में किसी ने सिर्फ तुम्हारे लिए जन्म लिया था ! हां मुझे याद है महीने की वो तारीख जिसका तुम्हे बेसब्री से इंतजार होता था शहर की सारी रोशनी समेट कर छोटे से घर मे उड़ेल दिया करते थे तुम ओर फिर उन्ही सितारों की रोशनी में जीभरकर देखते थे मुझे एकटक महीने की वो तारीख मुझे अब याद ही नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही मई , जून ओर जुलाई ये तीन महीने तुम्हे नागवार से गुजरते थे l गर्मियों के वो लंबे दिन जिन्हें काटकर तुम्हे उन शामों का इंतजार रहता था जब मैं सहसा ही गुजर जाती थी तुम्हारे घर की गलियों से ओर चौखट पर खड़े होकर तेरा यू इंतजार करना आह ! कितना सुकून दे जाता था उन उमस भरे दिनों में भी ओर मैं भूल जाया करती थी अपनी थकान पर अब इन महीनों में वो बरसात नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही साल का अगला महीना जो आजादी का बखान करता है ! वैसे ही जैसे तुम चाहते थे मुझे आजाद कराना समाज के इन खोखले रिश्तों से तुम चाहते थे मैं आजाद कर दु अपने अंदर कैद उन तमाम उम्मीदों को जो सिर्फ मुझे दर्द देने के लिए बनी थी , कैसे तड़प उठते थे जब देखते मुझे रिश्तों के पिंजरों में कैद तुम चाहते थे मेरी आजादी मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करने की आजादी पर देखो ना तुम्हारी यादों से मैं आज भी आजाद नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही
अक्टूम्बर की वो झिलमिलाती राते जब राम लौट आये थे अपने घर अपनो के बीच काश की तुम भी लौट कर आते और देखते की कलियुग की कोई सीता आज भी एक बनवास काट रही है ! मै जलाऊंगी सैकड़ो दिए और उनसे जगमगाती रोशनी में महसूस करूंगी की तुम मेरे साथ हो क्या फर्क पड़ता हैं कि मेरे साथ ये कायनात नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही नवम्बर में अब शामें उदास हो जाया करती है शाम का ढलता सूरज देखकर ना जाने क्यों तुम्हारी कमी खलती है जब देखती हु चांदनी रातो में अपनी खाली हथेलियों को तो अनजाने ही तुम्हारा स्पर्श महसूस हो जाता है ओर एक बार फिर समेट लेती हूं उन सभी यादों को जो बीती हर शाम से जुड़ी है पहले सी अपनी अब मेरी कोई शाम नही नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही उफ्फ ! ये दिसम्बर ! देखो ये वही दिसम्बर है जब हमने सात फेरों के बन्धन में बंधने के ख्वाब देखे थे हमने सोचा था कि साल के अंत मे हम एक खूबसूरत शुरुआत करेंगे लेकिन किस्मत को ये मंजूर नही था और तुम चले गए तुम चले गए कपकपाती रातो में मुझे अकेला छोड़कर दूर बहुत दूर तुम बहुत दूर हो मुझसे पर इस दिल के उतने ही पास हो जितना जाता हुआ दिसम्बर आती हुई जनवरी के पास होता है ! तुम्हे देख सकु खुद से दूर होते इतने मजबूत मेरे हालात नही इस बार भी सिर्फ साल बदला है मेरे जज्बात नही