Sanjana Kirodiwal

साक़ीनामा – 29

Sakinama – 29

Sakinama
Sakinama by Sanjana Kirodiwal

Sakinama – 29

मृणाल की कलाई थामे सागर नम आँखों से उसे एकटक देखे जा रहा था। वही मृणाल अपने सामने खड़े उस शख़्स को देखकर हैरान थी। उसने सागर के हाथ से अपनी कलाई छुड़ाई और उठकर वहा से जाने लगी।
“मृणाल,,,,,,,,,,,,मृणाल रुको,,,,,,,,,,,,,मृणाल”,कहते हुए सागर उसके पीछे आया।

मृणाल जल्दी जल्दी सीढिया चढ़कर आगे बढ़ने लगी। सागर भागकर उसके सामने आ खड़ा हुआ और कहा,”किस से भाग रही हो ? मुझ से या अपने आप से ?”
“तुम यहाँ क्यों आये हो ?”,मृणाल ने बेचैनी भरे स्वर में कहा
सागर ने सूना तो उसे एक सुकून का अहसास हुआ कि वह मृणाल को अभी भी याद है। हालाँकि सागर की मृणाल से एक दो बार बात हुई थी पर उसने कभी सोचा नहीं था मृणाल उसे याद रखेगी।

सागर को खामोश देखकर मृणाल ने कहा,”यहाँ से चले जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो”
“मैं तुम्हे लेने आया हूँ मृणाल,,,,,,,,,,,मेरे साथ चलो”,सागर ने मृणाल की आँखों में देखते हुए कहा 
“मुझे कही नहीं जाना,,,,,,,,,तुम,,,तुम जाओ यहाँ से”,मृणाल ने पलटते हुए कहा
“तुम खुद को ऐसी सजा क्यों दे रही हो ? जो हुआ उसमे तुम्हारी गलती नहीं है मृणाल”,सागर ने एक बार फिर मृणाल के सामने आकर कहा


“वो सब झूठ है,,,,,,,,,,,,झूठ है सब”,कहते हुए मृणाल के चेहरे पर दर्द के भाव उभर आये
“तो फिर ये क्या है ?”,कहते हुए सागर ने मृणाल की लिखी किताब अपने जैकेट से निकाली और उसके सामने कर दी। मृणाल ने एक नजर किताब को देखा और नजरे घुमाकर कहा,”लेखक थी ना मैं तो बस ऐसे ही लिख दिया”
“ये ऐसे ही नहीं है मृणाल,,,,,,,,,,,,,,,कुछ तो बात होगी ना इस किताब में लिखे शब्दों में जिनका दर्द मुझे यहा तक खींच लाया।

तुम सब से झूठ बोल सकती हो , खुद से झूठ बोल सकती हो पर अपने महादेव से नहीं और अपने महादेव का जिक्र तुमने इस किताब में बार बार किया है। राघव ने तुम्हारे साथ जो किया उसकी सजा तुम खुद को क्यों दे रही हो ?”,सागर ने तड़पकर कहा
“तुम क्या जानते हो उसके बारे में ?,,,,,,,,,,,,,,,उसने वही किया जिसके लायक मैं थी , बहुत गुरुर था मुझे मोहब्बत के नाम पर उसने उस गुरुर को तोड़ दिया और मैं कोई सजा नहीं दे रही खुद को,,,,,,,,,,,,,,

बस कुछ वक्त अकेले रहना चाहती हूँ ,अपने लिए जीना चाहती हूँ”,मृणाल ने गुस्से से सागर को पीछे धक्का देते हुए कहा जिस से सागर गिरते गिरते बचा।
सागर एक बार फिर मृणाल के सामने आया और कहा,”खुद पर तरस खाना बंद करो मृणाल,,,,,,,,,,,मैंने तुम्हारी माँ से वादा किया है , जिया से वादा किया है तुम्हे वापस घर लाने का,,,,,,,,,,,घर चलो मृणाल , वो घर , उस घर के लोग , वो शहर आज भी तुम्हारा है।”


“किस हक़ से तुम मुझे ये कह रहे हो ? क्या रिश्ता है हमारा हाह ? मेरे अपनों को मेरी कोई फ़िक्र नहीं है,,,,,,,,,,,,फिर तुम क्यों चले आये यहाँ ? जाओ यहाँ से चले जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो”,मृणाल ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा
मृणाल की आँखों में आँसू देखकर सागर का कलेजा कटने लगा। उसे बहुत तकलीफ हो रही थी उसने अपने निचले होंठ को दाँतो तले दबाकर आँखे बंद कर ली और फिर धीमे स्वर में कहा,”इस वक्त मेरे पास तुम्हारे इन सवालों जवाब नहीं है मृणाल,,,,,,,,,,,,,

मैं भले तुम्हारा कोई नहीं लगता पर मैं तुम्हे यहाँ इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकता”
कहते हुए सागर ने दिवार के पास पड़ा मृणाल का बैग उठाया और मृणाल की उसकी कलाई पकड़कर आगे बढ़ गया लेकिन मृणाल वही खड़े रही। सागर ने पलटकर मृणाल की तरफ देखा और नम आँखों के साथ कहा,”तुम्हे तुम्हारे महादेव की कसम”
मृणाल ने सूना तो उसने अपनी आँखे मूँद ली आँसुओ की बुँदे गालों पर लुढ़क आयी। सागर मृणाल की कलाई थामे आगे बढ़ गया और मृणाल उसके पीछे पीछे चल पड़ी। कंधो पर पड़ी शॉल वही सीढ़ियों पर गिर गयी।

सागर उसकी कलाई थामे चलता रहा उसके चेहरे पर कठोरता थी। उसके पीछे चलती मृणाल के कानों में सागर से हुई बातों के अंश गूंजने लगे
“अगर मैं तुम से मिलने कभी तुम्हारे शहर आउ तो क्या तुम मुझसे मिलोगी ?”
“हाँ जरूर ! मैं हर उस इंसान से मिलना चाहूंगी जो मेरी लिखी कहानिया पढता है”
“पर मैं चाहूंगा किसी शाम मैं तुम से बनारस में मिलु , किसी शाम बनारस के किसी घाट पर”
“ये सब सिर्फ मेरी कहानियो में होता है असल जिंदगी में नहीं”


“कितना अच्छा होता अगर असल जिंदगी भी कहानियो जैसी होती”
“हा हा हा हा तुम अजीब हो”

गाडी के हॉर्न से मृणाल की तंद्रा टूटी उसने देखा सामने रिक्शा खड़ा है। सागर ने मृणाल से उसमे बैठने को कहा और खुद उसके बगल में आ बैठा। सागर खामोश था और मृणाल भी खामोश बैठी मन ही मन सोचती रही कि आखिर क्यों वह एक अजनबी के साथ इस तरह से चली आयी। अन्धेरा हो चुका था
सागर ने देखा मृणाल के कपडे काफी मैले और जगह जगह से फट चुके है। ना जाने वो कब से यहाँ थी ? ऑटोवाला होटल के सामने आकर रुका।

सागर मृणाल के साथ नीचे उतरा ऑटोवाले को पैसे दिए और मृणाल को लेकर अंदर चला आया। सागर ने मृणाल को वेटिंग एरिया में बैठने को कहा और खुद ऊपर चला गया। वहा मौजूद लोग मृणाल को अजीब नजरो से देखे जा रहे थे। मृणाल घबरा रही थी और अपने फ़टे कपड़ो को सही करने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर बाद सागर अपना बैग लिए निचे आया उसने रिसेप्शन पर आकर चेक आउट किया और मृणाल को लेकर बाहर चला आया।

बनारस में इस वक्त हल्की ठंड थी सागर की नजर मृणाल के कपड़ो पर पड़ी तो उसने अपना जैकेट उतारा और मृणाल की तरफ बढ़ाकर कहा,”इसे पहन लो”
“तुम मेरे लिए खुद को परेशानी में क्यों डाल रहे हो ? यहाँ से चले जाओ मैं यहाँ ठीक हूँ,,,,,,,,,,,,,,मैं खुश हूँ यहा”,मृणाल ने कहा
मृणाल सागर की बात नहीं मान रही थी बार बार उसे जाने को कह रही थी ये सुनकर सागर को थोड़ा गुस्सा आ गया।

वह मृणाल के पास आया और उसकी बाँह पकड़ कर कहा,”क्योकि मैं,,,,,,,,मैं नहीं चाहता तुम यहाँ रहो,,,,,,,,,,,,,,चुपचाप मेरे साथ घर चलो”
सागर को गुस्से में देखकर मृणाल की आँखों में आँसू भर आये ये देखकर सागर को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने तुरन्त मृणाल की बाँह छोड़ते हुए कहा,”आई ऍम सॉरी,,,,,,,,,,आई ऍम रियली सॉरी,,,,,,,,,,,,,,,आई ऍम सॉरी”
मृणाल ने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप सागर का जैकेट पहन लिया।

सागर ने मृणाल को वही रुकने को कहा और खुद पार्किंग से गाड़ी लेने चला गया। कुछ देर बाद वह गाड़ी लेकर आया और नीचे उतरकर पीछे का दरवाजा खोलकर मृणाल को बैठने को कहा।    
मृणाल ख़ामोशी से आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी सागर ने दरवाजा बंद किया और खुद आकर आगे बैठ गया। उसने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।  गाडी बनारस से बाहर निकल चुकी थी। मृणाल की आँख लग गयी सागर ने पलटकर देखा और गाडी की स्पीड बढ़ा दी। रास्तेभर मृणाल सोते रही।

सुबह के 5 बजे गाड़ी कानपूर पहुंची। सागर मृणाल को अपने अपार्टमेंट में ले आया। सुबह सुबह सब सोये हुए थे इसलिए मृणाल को किसी ने देखा नहीं था। सागर उसे लेकर अपने फ्लेट पर आया। मृणाल अंदर चली आयी सागर ने उसे बैठने को कहा और खुद फ्लेट से बाहर आकर किसी को फोन लगाने लगा।
कुछ देर बाद सागर ने कहा,”हेलो हर्ष इसी वक्त ऊपर आ”


कुछ देर बाद हर्ष आँखे मसलते हुए ऊपर आया दरवाजे के बाहर सागर को खड़े देखकर हर्ष ने हैरानी से कहा,”तू कब आया ? और सुबह सुबह मुझे यहाँ क्यों बुलाया है ?”
“तेरे पास जुली का नंबर है ना , उसका नंबर दे”,सागर ने जेब से अपना फोन निकालते हुए कहा
“हाँ ये ले पर तुझे जुली का नंबर क्यों चाहिए ?”,हर्ष ने असमझ की स्तिथि में कहा
सागर ने जुली का नंबर डॉयल किया और दूर जाकर उस से बात करने लगा। हर्ष की नजर हॉल के सोफे पर बैठी मृणाल पर पड़ी तो वह थोड़ा हैरान हो गया और परेशान भी,,,,,,,,,,,,,,

सागर जुली से बात करके वापस आया तो हर्ष ने कहा,”तू अपने साथ लड़की लेकर आया है ?”
अंदर बैठी मृणाल सुन ना ले सोचकर सागर ने उसका मुंह बंद किया और उसे सीढ़ियों से नीचे लाते हुए कहा,”वो सब मैं तुम्हे बाद में बताऊंगा , जुली नीचे कुछ सामान लेकर आने वाली है उसे लेकर तुरंत ऊपर चले आना”
“तू कर क्या रहा है ?”,हर्ष ने पूछा
“मैं तुझे सब बता दूंगा अभी प्लीज तू जा”,कहते हुए सागर वापस ऊपर चला आया और दरवाजा बंद कर दिया।


सागर ने देखा मृणाल बालकनी के शीशे के पास खड़ी बाहर देख रही है। सागर किचन की तरफ चला आया उसने फ्रीज में देखा दूध का पैकेट रखा था। सागर ने दो कप चाय बनायीं और हॉल में पड़ी टेबल पर रखकर कहा,”मृणाल,,,,,,,,,,,,,,,!!”
सागर की आवाज से मृणाल की तंद्रा टूटी,,,,,,,,,,,,,उसने कोई जवाब नहीं दिया और ख़ामोशी से वापस हॉल में चली आयी। उसने टेबल पर रखा चाय का कप उठाया और बैठकर पीने लगी। सागर भी दूसरे सोफे पर आ बैठा और चाय पीने लगा।

उसने एक नजर मृणाल को देखा कितनी बदल चुकी थी मृणाल,,,,,,,,,,,,,,,हमेशा हसने मुस्कुराने वाली मृणाल के चेहरे पर कोई रौनक नहीं थी। मृणाल ने सागर की तरफ देखा तो उसने कहा,”बी कम्फर्टेबल , तुम इसे अपना ही घर समझो”
सागर की बात सुनकर मृणाल के जहन में एकदम से राघव की बात कौंध गयी “अपना बोरिया बिस्तर उठाओ और निकल जाओ इस घर से”


राघव की बात याद आते ही मृणाल की आँखों में आँसू भर आये,,,,,,,,,,,,,,उसने कप टेबल पर रख दिया और अपना सर झुका लिया।
“मैंने कुछ गलत कहा ?”,सागर ने धीरे से पूछा
मृणाल सर झुकाये कहने लगी,”मैं आज भी इस सवाल का जवाब नहीं ढूढ़ पायी कि आखिर एक औरत का घर कौनसा होता है ? कभी कभी लगता है वो घर जहा वो जन्म लेती है , अपना बचपन जीती है , उस घर को सजाते-सवारते बड़ी होती है तो कभी कभी लगता है वो घर जहा वो ब्याही जाती है।

जबकि सच तो ये है कि औरत का कोई घर होता ही नहीं , जब वो माँ-बाप के घर होती है तब उनसे कहा जाता है कि उन्हें पराये घर में जाना है और जब ब्याह दी जाती है तब कहा जाता है कि वो पराये घर से आयी है,,,,,,,,,,,,,,,,दोनों ही सूरतो में औरत का घर नहीं होता जिसे वह अपना कह सके फिर आज तुमने ये कैसे कह दिया ?”
सागर के पास मृणाल की बात का कोई जवाब नहीं था। वह ख़ामोशी से मृणाल की तरफ देखता रहा डोरबेल से उसकी तंद्रा टूटी और वह उठकर चला गया।


सागर ने दरवाजा खोला सामने हर्ष खड़ा था उसने बैग सागर को दिए और वापस चला गया। हालाँकि हर्ष के मन में उथल-पुथल मची थी कि सागर के फ्लेट में जो लड़की है वो कौन है और यहाँ क्या कर रही है ? सागर बैग लेकर अंदर आया और उन्हें मृणाल की तरफ बढाकर कहा,”इसमें कुछ कपडे है तुम नहा लो,,,,,,,बाथरूम वहा है”
मृणाल उठी और कपडे लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी। नहाकर मृणाल ने कपडे बदले और बाथरूम से बाहर चली आयी।

उसने देखा सागर वहा नहीं है सुबह हो चुकी थी और बालकनी में धुप देखकर मृणाल वहा चली आयी और बैठकर अपने बाल सुखाने लगी। कुछ देर बाद सागर बाहर से आया और सीधा किचन में चला गया। ऑपन किचन था इसलिए बालकनी में बैठी मृणाल सागर को देख सकती थी। सागर खाना बना रहा था , खाना बनाते हुए कितनी ही बार उसकी उंगलिया जलती और वह उन पर फूंक मारने लगता। सागर को देखते हुए उसे फिर बीते पल याद आने लगे जब खाना बनाते हुए कितनी ही बार उसकी उंगलिया जली।

मृणाल का दिल भर आया और उस ने नजरे घुमा ली।

कुछ देर बाद मृणाल ने अपने बाल समेटे और उन्हें बांधकर अंदर चली आयी। सागर ने हॉल की टेबल पर नाश्ता लगा दिया। मृणाल हॉल में चली आयी और आकर सोफे पर बैठ गयी। सागर ने मृणाल को देखा और कहा,”वैसे मैं कुकिंग में ज्यादा अच्छा नहीं हूँ हाँ पेट भरने जैसा थोड़ा बना लेता हूँ , तुमने एक बार लिखा था तुम्हे पराठे बहुत पसंद है तो मैंने वही कोशिश की,,,,,,,,,,,,पता नहीं कैसा बना होगा ? तुम खाकर देखो”  
“अच्छा बना है”,मृणाल ने बिना खाये कहा


“तुमने बिना खाये कैसे बता दिया कि अच्छा बना है,,,,,,,,,,,,,,!!”,सागर ने झेंपते हुए कहा
“मेहनत से बनायीं हर चीज अच्छी होती है , ये भी अच्छा ही बना है”,कहकर मृणाल ने जैसे ही एक निवाला तोड़ने की कोशिश की उसकी आह निकल गयी। दरअसल मृणाल के सीधे हाथ में घाव था। सागर ने देखा तो वह नीचे जमीन पर घुटनो के बल बैठ गया और प्लेट अपनी तरफ खिसका ली।

उसने एक निवाला तोडा और मृणाल की तरफ बढ़ा दिया। मृणाल को एकदम से वो पल याद आ गया जब कई बार वह बिना खाये सो जाती थी और कोई उसे खाने तक नहीं पूछता था। एक बार फिर मृणाल की आँखों में आँसू भर आये और आँसू की एक बूंद सागर के हाथ पर जा गिरी।

Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29

Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29 Sakinama – 29

Continue With Part Sakinama – 30

Read Previous Part साक़ीनामा – 28

Follow Me On facebook.

संजना किरोड़ीवाल 

Sakinama by Sanjana Kirodiwal
Exit mobile version