Sakinama – 21
Sakinama – 21
कुछ निवाले खाकर मैंने दवा ली और ऊपर अपने कमरे में चली आयी। क्या हो रहा था ? क्यों हो रहा था ? कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं बिस्तर पर आकर लेट गयी। मैं अब कुछ सोचना नहीं चाहती थी , ना किसी को समझाना ,
एक दर्द था जिसके साथ जीने की अब आदत डालनी थी मुझे,,,,,,,,,,,,इस रिश्ते में कुछ सही नहीं हो सकता था क्योकि ये रिश्ता ही एकतरफा था।
राघव ने इस रिश्ते को कभी कुछ समझा ही नहीं। उसने बस लोगो को दिखाने के लिए ये शादी की थी और वह दुनिया को दिखा भी रहा था कि वह कितना अच्छा पति है जबकि सच कुछ और था। दवा के असर से मेरी आँखे मूंदने लगी थी। बाहर खम्बे पर लगे लाइट की रौशनी बालकनी के दरवाजे से सीधा मेरे चेहरे पर आ रही थी मैंने अपनी बाँह अपनी आँखों पर रख ली , जैसा मैं हमेशा किया करती थी।
कुछ देर बाद राघव कमरे में आया और दूसरी तरफ मुँह करके लेट गया। ना मैंने कुछ कहा न उसने,,,,,,,,,,,,हमारे बीच अक्सर ऐसी खामोशियाँ देखने को मिल जाती थी एक तो मुझे इन खामोशियो की आदत हो चुकी थी। एक ही शहर , एक ही मोहल्ले , एक ही घर और एक ही कमरे में रहते हुए हमारे बीच दिवार थी,,,,,,,,,,,,,,
दिवार मौन की ,, मुझे याद ही नहीं है कि शादी के बाद कभी मैंने और राघव ने साथ बैठकर कुछ बात की थी। शादी के बाद मेरी उस से जुडी कोई अच्छी याद नहीं थी।
मेरी आँख लगी ही थी कि राघव ने एकदम से मेरी कलाई पकड़ी और उसे देखते हुए कहने लगा,”ये सब मेरी वजह से हुआ है ?”
मैंने कुछ नहीं कहा बस खाली आँखों से उसे देखने लगी। वो चेहरा आज भी उतना ही प्यारा था जितना पहली बार था। मुझे खामोश देखकर वह कहने लगा,”तुम्हारी मम्मी का फोन आया था , वो कह रही थी कि मेरी वजह से तुम्हारा वजन कम हुआ है और तुम बीमार हो। मैंने क्या किया है ?”
“आपने कुछ नहीं किया ये मेरे बीमार होने की वजह से हुआ है”,मैंने धीरे से कहा
आज वो रोजाना से शांत था उसने मेरे सिरहाने बैठते हुए कहा,”मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि थोड़ा टाइम लगेगा लेकिन धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा पर तुमने रूम की बातें बाहर करके घर का माहौल ख़राब कर दिया। ये सब अब तुम्हे ही ठीक करना होगा”
“इन सब में मेरी क्या गलती थी ? मुझे अगर कुछ परेशानी होगी तो मैं किस से कहने जाउंगी ? सबसे पहले आपसे ही कहूँगी लेकिन आपने कभी मेरी बात सुनी ही नहीं,,,,,,,,,,,
सुनना तो दूर कभी ये तक जानने की कोशिश नहीं की मैं यहाँ खुश हूँ भी या नहीं ? अपने माँ बाप से मैं कुछ कह नहीं सकती , आपके मम्मी पापा से आप कहने नहीं देते , आपकी बहनो से नहीं कह सकती , भैया भाभी से नहीं कह सकती , अपने दोस्तों से नहीं कह सकती , तो फिर मैं किस से कहू ?
किसे बताऊ कि मुझे कितनी तकलीफ होती है जब मुझे कोई सुनने वाला नहीं होता”,कहते कहते मेरा गला भर आया मैं उसके सामने रोना नहीं चाहती थी इसलिए अपने आंसुओ को अपनी आँखों में ही रोक लिया।
राघव उठा और बिस्तर पर मेरी तरफ आकर बैठ गया और कहा,”चलो उठो बैठकर बात करते है”
मैं उठकर बैठ गयी वह मेरे सामने आ बैठा और अपने दोनों हाथो से मेरी बाँह थामकर कहने लगा,”ठीक है आज से इस कमरे की जिम्मेदारी मेरी , आज के बाद यहाँ से बात बाहर नहीं जानी चाहिए।
तुम्हे पता भी है लोग बाहर तुम्हारे बारे में कैसी बाते कर रहे है ? तुम सब जगह बदनाम हो चुकी हो , घर में , परिवार में रिश्तेदारी में और सिर्फ इतना ही नहीं अब बातें खुलेगी तो तुम्हारा पास्ट भी सामने लाया जाएगा,,,,,,,,,,,,
कि पास्ट में तुमने क्या किया है क्या नहीं ? मैंने कहा था ना मैं सही करूंगा तब भी जवाब तुम्हे देना है , गलत करूंगा तब भी जवाब तुम्हे ही देना है। मेरा क्या है अगर मुझसे कोई ये सब के बारे में सवाल करेगा तो फिर मैं भी सब बाते बाहर बोलूंगा अपने रिश्ते को लेकर,,,,,,,,,,,,,उस से तुम्हारी और बदनामी होगी , सिर्फ थोड़ी सी इज्जत बची है तुम्हारी घर में,,,,,,,,,,वो जो भाभी है ना जिसे तुम अच्छा समझती हो , नफरत करती है वो तुम से , आज कैसे ताना मारा था उन्होंने मुझे तुम्हे वही समझ जाना चाहिए था”
“मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए , ये जो कुछ हुआ है उसमे गलती आपकी भी है अकेले मेरी नहीं,,,,,,,,,,,,!!”,मैंने हिम्मत करके कहा तो वह मेरी तरफ देखने लगा और गुस्से से दबी आवाज में कहा,”मैंने अपने फ्रेंड सर्कल में बताया नहीं है तू कैसी है ? , मैं बस ये कह रहा हूँ ये जो हुआ है ना वो तुझे ठीक करना है कैसे भी कर ? कुछ भी कर मैं तेरे पर छोड़ता हूँ”
“मुझे कुछ दिन मेरे घर भेज दीजिये , हम कुछ दिन दूर रहेंगे तो शायद हमारी गलतफहमी दूर हो जाये”,मैंने कहा
“नहीं राजस्थान तो नहीं भेजूंगा मैं तुम्हे और जाओगी तो मुझसे पूछकर जाओगी,,,,,,,,,,,,दिसंबर में गांव में शादी है तब चली जाना”,राघव ने बिस्तर से उठते हुए कहा और दूसरी तरफ चला आया। मेरी आँखों में नमी तैरने लगी और मैंने कहा,”मेरे साथ ये सब मत करो , मैं ये सब नहीं सह पा रही हूँ , मुझे बहुत तकलीफ होती है”
“अभी तो तुमने देखा ही क्या है ? ये सिर्फ मेरे गुस्से का 10 प्रतिशत है,,,,,,,,अभी तो और देखना चाहोगी ?”,राघव ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कहा
मेरी आँखों से आँसू बहने लगे , मैंने बहुत कोशिश की लेकिन आख़िरकार मैं कमजोर पड़ गयी और कहा,”नहीं मुझे नहीं देखना , ऐसे तो मैं मर जाउंगी”
“नहीं मरोगी , इतनी जल्दी मरने नहीं दूंगा तुम्हे”,उसने हँसते हुए कहा
एक वक्त था जब उसकी हंसी मेरे लिए सुकून थी पर अब यही हंसी मुझे चुभ रही थी। उसे मेरे बहते आँसू नहीं दिखे , मेरा दर्द से तड़पना नहीं दिखा वह बस देख रहा था मेरी गलती जो मैंने की ही नहीं थी।
गलतिया उसकी थी और सजा मुझे मिल रही थी। मैंने अपने आँसू पोछे और करवट बदलकर वापस लेट गयी। आँखों से बहते आँसू कनपटी से होकर तकिये को भिगाने लगे। राघव मेरे जख्मो पर मरहम नहीं लगा सकता था लेकिन बार बार उन्हें कुरेदकर चला जाता। कुछ देर बाद उसने कहा,”आइस क्रीम खाओगी ?”
“नहीं,,,,,,,,,,!!”,मैंने अपने आँसू पोछते हुए कहा ये पहली बार था जब उसने मुझसे कुछ खाने के लिए पूछा था।
“भाभी कह रही थी कि तुम्हे ठंडी चीजे खिलानी है डॉक्टर ने बताया , मैं लेकर आता हूँ”,उसने उठते हुए कहा
“नहीं मुझे नहीं खानी,,,,,,,,,,,!!”,मैंने कहा
“खा लेना मैं लेकर आता हूँ”,उसने कहा और कमरे से बाहर चला गया। मैं उसे समझ नहीं पा रही थी , वो बदल गया था या बदलने का नाटक कर रहा था। आधे घंटे बाद राघव आईस क्रीम लेकर आया। मुझे दी और खुद बाहर बालकनी में जाकर खाने लगा।
कुछ देर बाद वह अंदर आया और बिस्तर पर बैठते हुए कहा,”दो दिन बाद करवाचौथ है और तुम्हारी मम्मी तुम्हे लेने आ रही है , उन्होंने कहा है कि वो यहाँ आकर बात करेगी”
धीरे धीरे समझ आ रहा था कि राघव ने आज मुझ पर इतनी मेहरबानी क्यों की वह चाहता था मैं अपनी मम्मी से बात करू और उन्हें यहाँ आने से मना कर दू। मैंने राघव से सो जाने को कहा और खुद भी अपनी जगह लेट गयी।
अगली सुबह तबियत ठीक नहीं लग रही थी लेकिन जिस घर में मैं थी वहा ये सब बातें मायने नहीं रखती थी। मैं तैयार होकर नीचे चली आयी। मम्मी किचन में ही थी आज दूधवाला नहीं आया था इसलिए मैंने पूछ लिया,”मम्मी दूध नहीं आया आज ?”
उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और वहा से चली गई। मैंने फ्रीज में रखा दूध का पैकेट निकाला और चाय बना दी।
पापा को चाय देकर मैंने मम्मी के लिए चाय का कप टेबल पर रख दिया लेकिन उन्होंने चाय नहीं पी और मंदिर जाने चली गयी। सुबह से ही उनका बर्ताव अजीब था। राघव ऑफिस चला गया और पापा भी मार्किट चले गए। सुबह से दोपहर होने को आयी लेकिन मम्मी घर नहीं आये। मैंने भाभी को फोन करके पूछा तो उन्होंने बताया मम्मी उनके घर पर है , मैंने बात करनी चाही तो उन्होंने बात तक नहीं की और कहा वो घर बाद में आएंगे।
दोपहर से शाम हो गयी लेकिन वो घर नहीं आयी , आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। शाम में पापा घर आये तो मैंने उनसे आकर कहा,”पापाजी वो सुबह से घर नहीं आयी , भाभी के घर पर ही है। मैं उन्हें लेकर आती हूँ”
“कोई बात नहीं वो भी तो घर ही है जब उसका मन करेगा आ जाएगी वापस”,पापा ने कहा
“मैं फिर भी उन्हें ले आती हूँ”,मैंने कहा और पापा की स्कूटी लेकर भाभी के घर चली आयी।
मम्मी घर के बाहर गैलरी में बैठी थी। मैंने उनके पास आकर कहा,”घर चलिए , सुबह से आप घर नहीं आयी”
“कौनसा घर ? मैं तो तेरी वजह से मरने गयी थी वो तो मेरे बेटे ने देखा तो मुझे वापस ले आया”,उन्होंने नफरत भरे स्वर में कहा
“मेरी वजह से क्यों ? मैंने ऐसा क्या किया है ? आप घर चलिए प्लीज ,,!”,मैंने उनसे रिक्वेस्ट करते हुए कहा
“मैं कही नहीं जाउंगी तू रह उस घर में तेरी माँ ने कहा मैं तो झूठी हूँ , झूठ बोलती हूँ ,, मैं नहीं आउंगी तुम सम्हालो अपना घर”,उन्होंने कहा
उनका ये नया तमाशा देखकर मुझे अजीब लगने लगा था। मैंने उनसे बहुत रिक्वेस्ट की , गलती ना होने के बावजूद माफ़ी मांगी लेकिन वो घर आने को तैयार नहीं थी। राघव का छोटा भाई वही था उसने देखा तो कहा,”तुम घर जाओ इन्हे मैं ले आऊंगा”
मैं अपनी तरफ से जो कर सकती थी मैंने वो किया लेकिन वो क्या चाहती थी मैं नहीं जान पायी। मैं वापस घर चली आयी , परेशानिया मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी।
मैंने पापा और राघव के लिए खाना बनाया और दूसरे काम करने लगी। राघव घर आया तो मैं उसके पास चली आयी और कहा,”आपकी मम्मी भैया के घर पर है , मैं उन्हें लेने भी गयी लेकिन उन्होंने मना कर दिया। वो शायद हम दोनों की वजह से नाराज है। आप,,,,,,,,,,,,आप जाकर उन्हें ले आईये ना”
“खुद ही आ जाएगी”,राघव ने रूखे स्वर में कहा और सोफे पर आकर लेट गया
“ये कैसी बातें कर रहे है आप ? आप चलिए ना मैं साथ चलती हूँ , उन्हें घर ले आते है”,मैंने सोफे पर बैठते हुए कहा
“वो भी उनका ही घर है जब मन होगा तब आ जाएगी , तुम जाओ यहाँ से”,राघव ने कहा
मैं उठकर किचन में चली आयी और खाना बनाने लगी। खाना बनाते हुए दिमाग में वही सब चलने लगा। क्या राघव में थोड़ी सी भी इंसानियत नहीं है , मेरे साथ वो जैसा बर्ताव करे ठीक है पर अपनी माँ के लिए भी ऐसी सोच,,,,,,,,,,,,,,,!
मैंने राघव के लिए खाना परोस दिया। पापा ने भी खाना खाया और अपनी दवा लेकर कमरे में चले गए।
उन्हें भी मम्मी के ना आने की कोई परवाह नहीं थी ना राघव को। सब काम खत्म करके मैं हॉल में आयी देखा राघव फोन पर किसी से बात कर रहा था। मैं आकर हॉल में बैठी तो राघव ने फोन साइड में करते हुए कहा,”यहाँ क्यों बैठी हो ? जाओ ऊपर”
“आप मेरे सामने भी बात कर सकते है”,मैंने उसकी तरफ देखकर कहा
फोन बड़े जीजाजी का था राघव उन्ही से बात कर रहा था और शायद मेरे ही बारे में बात कर रहा था इसलिए उसे मेरे वहा होने से थोड़ी प्रॉब्लम हुई।
मैं वही बैठी रही तो उसने फोन मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा,”जीजाजी बात करना चाहते है”
मैंने फोन लिया तो वो बिना सर पैर की बातें करने लगे। राघव और राघव की फॅमिली सिर्फ और सिर्फ मुझे गलत साबित करना चाहते थे पर अब तक मैं ये समझ चुकी थी और शायद जवाब देना भी इसलिए जैसे ही मैंने उन्हें दो बातें कही राघव ने मुझसे फोन छीन लिया और उनसे बात करने के बाद फोन काट दिया।
बीती रात के बाद मुझे लगने लगा था कि राघव बदल चुका है पर मैं गलत थी। मैंने जैसे ही उस से बात करने की कोशिश की उसने गुस्से से कहा,”कल तेरी माँ आ रही है ना तो कल उनके सामने ही बात होगी”
मैंने कुछ नहीं कहा , मैं वहा से उठी और ऊपर कमरे में चली आयी। राघव वही निचे हॉल में सो गया।
मेरी जिंदगी में अब क्या नया मोड़ आने वाला था ये तो बस महादेव ही जानते थे। अगली शाम मम्मी घर लौट आयी लेकिन मुझसे बात नहीं की। 9 बजे तक मम्मी , भैया और छोटा भाई भी चले आये। इस घर के सब लोग मिले हुए थे। पापा देर रात तक भैया के साथ रहे और राघव की मम्मी ने मेरी मम्मी का साथ नहीं छोड़ा। उन लोगो ने मुझे अपने घरवालों से बात तक नहीं करने दी।
रात 2 बजे मम्मी मेरे पास आये तब मैंने उनसे और भैया से बात की उन्हें सब बताया।
“तुम चिंता मत करो हम उन्हें समझायेंगे”,भैया ने मुझे तसल्ली देते हुए कहा
अगली सुबह मैं जल्दी उठ गयी। शादी के बाद मेरा पहला करवाचौथ था। सब भूलकर मैंने राघव के लिए व्रत रखा। भैया और मम्मी राघव से बात करते इस से पहले ही वह ऑफिस चला गया। भैया को पापा अपने साथ बाहर ले गए और राघव की मम्मी , मेरी मम्मी को लेकर अपने साथ चली गयी। मैं घर की साफ सफाई और दूसरे कामो में लग गयी। व्रत की कथा सुननी थी इसलिए मैंने भाभी को घर बुला लिया।
उनके साथ साथ मम्मी और राघव की मम्मी भी चली आयी। मम्मी मेरे लिए कपडे और व्रत का सामान लेकर आयी थी मैंने उनकी लायी साड़ी पहनी और भाभी के साथ मिलकर कथा सुनकर अपना व्रत शुरू किया। मैं अकेले ही सब कर रही थी लेकिन राघव की मम्मी ने मुझे कुछ नहीं बताया। वे गुस्से में मुंह बनाकर घर में घूमती रही। शाम में मम्मी और भैया को वापस जाना था इसलिए मैंने उनके लिए खाना बनाया और राघव के साथ उन्हें छोड़ने स्टेशन चली आयी।
हालाँकि राघव मुझे साथ लाना नहीं चाहता था लेकिन मैं चली आयी। उनकी ट्रैन आधा घंटे लेट थी बस ये एक वक्त था जब मुझे मम्मी से बात करने का मौका मिला लेकिन उनके चेहरे पर ख़ुशी देखकर मैंने उन से कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि दिवाली के बाद वो भाई को मुझे लेने भेज देगी। इस उम्मीद में कि कुछ दिन बाद मैं अपने घर जा सकुंगी मैंने उन्हें अलविदा कह दिया। वे लोग चले गए। उनके जाने के बाद राघव वहा से चला गया मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ी।
वह इतनी जल्दी चल रहा था कि मुझे उसके साथ होने के लिए लगभग भागना पड़ रहा था। चलते चलते मैं एकदम से रुक गयी और राघव आगे बढ़ गया उसने पलटकर देखा भी नहीं कि मैं उसके साथ हूँ या नहीं। मेरे होने या ना होने से उसे अब कोई फर्क नहीं पड़ता था शायद,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
मेरे जहन में मेरी ही लिखी किसी कहानी की लाइन आ गयी “हमसफ़र का मतलब होता है बराबरी का हक , एक दूसरे के साथ चलना” लेकिन मेरी असल जिंदगी में ये बात गलत साबित हो गयी।
मैंने तेज तेज कदम बढ़ाये और राघव के पीछे चली आयी। उसने गाड़ी निकाली और दोनों घर के लिए निकल गए। रास्तेभर वह चुप रहा फिर मैंने ही पूछ लिया,”आप वापस जायेंगे ?’
“हाँ , किसी से पेमेंट लेना है”,राघव ने कहा
“ठीक है जाने से पहले 5 मिनिट घर रुक जायेंगे , मुझे व्रत खोलना है उसके बाद आप चले जाईयेगा”,मैंने कहा
“तुम खोल लेना मुझे आने में देर हो जाएगी और खाना मैं बाहर से ही खाकर आऊंगा”,राघव ने कहा
“हम्म्म्म !”,मैंने धीरे से कहा उस पर हक़ जताना मैं अब छोड़ चुकी थी।
उसने मुझे घर के बाहर छोड़ा और वापस चला गया। अंदर आकर मैंने अकेले ही अपना व्रत खोला और ईश्वर से उसकी लम्बी उम्र की दुआ मांगकर अंदर चली आयी। मैंने पानी पीकर अपना व्रत खोला और फिर किचन साफ करने लगी। बर्तन काफी ज्यादा हो चुके थे इसलिए बैठकर उन्हें साफ किया।
सब काम खत्म करते करते रात के 11 बज चुके थे। राघव घर आ चुका था वह किचन की तरफ आया अपने लिए खाना लिया और खाने लगा वह शायद बाहर से खाकर नहीं आया था। उसके खाना खाने के बाद मैंने थोड़ा सा खाना खाया।
ऊपर आकर मैं कमरे में यहाँ वहा बिखरा सामान समेटने लगी। कुछ देर बाद राघव भी चला आया। मैंने सब सामान कबर्ड में रखा। सुबह से काफी थक चुकी थी। आज के दिन मुझे राघव से कोई तोहफा नहीं चाहिए था बस चाहती थी कि वो बस मुझसे ठीक से बात करे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैंने बिस्तर सही किया और अपनी साइड का तकिया लगाकर जैसे ही सोने को हुयी राघव ने कहा,”तुम पापा से जरा कम बात किया करो , उन्हें आदत हो जाएगी बोलने की कल को गांव जायेंगे तो सबके सामने बात करने लगेंगे वो तुम से ,, तुम्हारी तो कोई इज्जत नहीं है उनकी तो है”
राघव की बात सुनकर हैरानी जरूर हुई पर अब तक उस से इस बदसुलूकी की मुझे आदत हो चुकी थी , वो कहता था ना कि आदत डाल लो तो हाँ मैं आदत डाल चुकी थी।
“ठीक है मैं आज के बाद उनसे बात नहीं करुँगी , वो आकर किसी चीज के लिए मुझसे पूछते है तो मुझे हां या ना में जवाब देना होता है”,मैंने धीरे से कहा
“और तुम ना ये मत सोचा करो कि तुम राइटर हो तो तुम्हे सब रानी की तरह ट्रीट करेंगे या सर पर बैठाकर रखेंगे , ऐसा यहाँ कुछ भी नहीं है”,राघव ने एकदम से कहा और इस बार भी हैरानी के साथ साथ दुःख भी हुआ
“मैंने यहाँ आने के बाद कभी ये नहीं दिखाया कि मैं क्या हूँ ? और मुझे लगता है जहा मेरे काम को कोई समझे नहीं वहा मुझे इसे दिखाने की जरूरत नहीं”,मैंने फिर धीरे से कहा हालाँकि मेरे मन में एक तूफान चल रहा था
“हां तो ये पढाई का जो घमंड है वो तुम अपने तक ही रखो , तुम खुद को वो मत समझो कि “i am something” मैं जैसा रखू वैसा रहना पडेगा , वैसे रहोगी तो खुश रहोगी वरना जिंदगीभर परेशान रहोगी”,राघव ने अपने मन में भरे जहर को उगलते हुए कहा
“हम्म्म !”,मैंने कहा और उठकर कमरे से बाहर बालकनी में चली आयी। आज पहली बार उसके साथ बैठने में घुटन महसूस हो रही थी। मेरी नजर आसमान में चमकते चाँद पर पड़ी। मैं एकटक उसे देखने लगी आज मेरी आँखों में आँसू नहीं थे बल्कि अफ़सोस था,,,,,,,,,,,,,,,,,,अफ़सोस एक गलत इंसान चुनने का”
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