Sakinama – 2
Sakinama – 2
सुबह सुबह सागर ऑफिस के लिए निकल गया। सितम्बर का महीना चल रहा था। सागर ने अपने सभी जरुरी काम निपटाए और ऑफिस से 4 दिन की छुट्टी लेकर फ़्लैट पर चला आया। शाम 6 बजे की ट्रैन की टिकट थी जिसे सागर ने सुबह ही बुक करवा दिया था। सागर ने अपने बैग में कुछ कपडे और जरुरी सामान रख लिया।
सभी खिड़किया दरवाजे अच्छे से बंद किये और दूसरे कमरे में चला आया। वह एक बार फिर उसी दिवार के सामने खड़ा था। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद सागर ने सर्द आवाज में कहा,”माँ ने घर बुलाया है वो चाहती है मैं प्रिया को पसंद करू और उस से शादी कर लू। तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी हो और उम्मीद करता हूँ खुश भी होंगी इसलिए मुझे भी इन एकतरफा अहसासों को भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिए।
अगर मैं ये जानता की तुम कहा हो तो मैं तुम्हे जरूर इन्वाइट करता , मैं हमेशा दुआ करूंगा कि तुम जहा भी रहो खुश रहो।”
इतना कहकर सागर जाने के लिए वापस मुड़ गया कि अचानक नजर बुक रेंक की ओर चली गयी। न चाहते हुए भी सागर के कदम उस ओर बढ़ गए। उसने किताबो को देखा और उनमे से एक किताब उठा ली। अक्सर जब भी सागर किसी सफर पर निकलता तो उन किताबो में से कोई एक किताब पढ़ने के लिए अपने साथ रख लेता था। आज भी उसने ऐसा ही किया और फिर कुछ सोचकर किताब वापस रेंक में रखते हुए कहा,”तुम से जुड़ा रहा तो तुमसे जुड़े अहसासों को कभी दूर नहीं कर पाऊंगा”
सागर तेज कदमो से कमरे से बाहर निकल गया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने अपना बैग उठाया और फ्लैट को लॉक करके वहा से निकल गया।
सागर रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन आने में अभी वक्त था सागर वही स्टेशन पर चक्कर काटने लगा। वह ख़ामोशी से वहा आते जाते लोगो को देखता रहा। स्टेशन पर खड़े खड़े उसके जहन में मृणाल की किताबो में लिखे रेलवे स्टेशन के सीन आने लगे। सागर फीका सा मुस्कुरा उठा वह जितना इन सबसे दूर जाने की सोचता उसका दिल उसे फिर वही ले आता। प्यास का अहसास हुआ तो सागर पानी लेने दुकान की ओर चला आया।
उसने दुकानवाले से पानी की बोतल देने को कहा तभी नजर पास के बुक स्टॉल पर चली गयी। ना चाहते हुए भी सागर की आँखे उस एक नाम को ढूंढने लगी लेकिन वो नाम उसे कही दिखाई नहीं दिया सागर ने बोतल ली और जाने के लिए वापस मुड़ गया। वह जैसे ही जाने को पलटा उसकी नजरे बुक स्टॉल के कोने पर रखी किताब पर चली गयी। सागर किताब लेना नहीं चाहता था लेकिन किताब के टाइटल को देखकर वह उस तरफ चला आया।
सागर ने उस किताब को उठाया और पलटकर राइटर का नाम देखा लेकिन राइटर के नाम की जगह सिर्फ “अज्ञात” लिखा था।
सागर ने किताब को पलटकर एक बार फिर उसके टाइटल को देखा “साक़ीनामा” , ये नाम देखते ही सागर का मन बैचैन हो गया और कानों में मृणाल की कही बात गुंजी “अगर मैंने कभी अपनी लव स्टोरी लिखी तो मैं उसका नाम “साक़ीनामा” रखूंगी , साक़ीनामा का मतलब होता है “मुझसे जुड़ी बातें”
सागर का मन और परेशान हो गया उसने एक बार फिर राइटर का नाम देखा और मन ही मन खुद से कहा,”अगर ये ‘मृणाल’ की कहानी है तो फिर उसने राइटर की जगह अज्ञात क्यों लिखा ? और ये किताब भी दो महीने पहले पब्लिश हुयी है लेकिन मृणाल के सोशल मिडिया पर इसकी कोई जानकारी नहीं है।”
सागर किताब को हाथ में लिए ये सब सोच ही रहा था कि तभी ट्रैन के हार्न की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। मृणाल ने देखा उसकी ट्रैन आ चुकी है। उस किताब के टाइटल और राइटर के नाम ने उसे उलझन में डाल दिया था।
सागर ने दुकानवाले को उस किताब के पैसे चुकाए और ट्रैन की तरफ बढ़ गया।
अंदर आकर सागर अपनी सीट पर बैठ गया। उसे खिड़की वाली सीट मिली थी। ट्रैन कुछ देर स्टेशन पर रुकी और फिर आगे बढ़ गयी। सागर की नजरे किताब के टाइटल पर थी। सागर ने किताब को खोला और पढ़ने लगा
“साक़ीनामा”
बनारस शहर के अस्सीघाट की सीढ़ियों पर खड़ी मैं एकटक सामने बहते माँ गंगा के पानी को निहारे जा रही थी। मेरे चेहरे पर जो सुकून था उसे देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि इस शहर से मुझे कितनी मोहब्बत है। “बनारस” मेरा ख्वाब था और आज ये ख्वाब हकीकत बनकर मेरे सामने खड़ा था। शाम का वक्त था और सूरज ढलने को बेताब अपनी लालिमा आसमान में बिखेर रहा था। वो नजारा देखने लायक था , ऐसा कि सीधा दिल में उतर जाये।
मंदिर में बजते शंख से मेरी तंद्रा टूटी मैंने पलटकर देखा ऊपर सीढ़ियों पर माँ गंगा की आरती शुरू होने वाली थी। मैं अपने दोस्तों के साथ वहा चली आयी और आरती में शामिल हो गयी। मैंने अपने दोनों हाथ जोड़े , आँखे मुंदी और मेरे होंठ धीरे धीरे बुदबुदाने लगे
“महादेव ! अब तक आपने जो दिया , जितना दिया सब बेहतर था। आपने हमेशा मेरी परेशानियों को दूर करके मुझे सही राह दिखाई।
आज फिर यहाँ आपके घाट पर खड़े होकर मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूँ महादेव। मेरी जिंदगी में एक ऐसे इंसान को भेज दीजिये जो बिल्कुल आपकी ही तरह मुझे सम्हाल सके। मेरी भावनाओ को समझ सके , मुझे समझ सके। जो हर सुख दुःख में मेरे साथ मेरा हमदर्द बनकर खड़ा रहे। मैं जानती हूँ आप मेरे लिए बेहतर ही चुनेंगे , मुझे आप पर खुद से ज्यादा भरोसा है महादेव”
“चलो चलते है , ट्रैन का वक्त हो गया है हम लोगो को वापस भी जाना है”,दोस्त ने आकर कहा तो मेरी तंद्रा टूटी और मैं महादेव का शुक्रिया अदा कर उनके साथ चल पड़ी। चलते चलते मैंने उस घाट को एक बार फिर देखा और मन ही मन कहा,”मैं बनारस फिर आउंगी महादेव लेकिन इस बार उस शख्स के साथ जिसे आप मेरी जिंदगी में लाएंगे,,,,,,,,,,,,,मैं उसके साथ बनारस आउंगी आपका शुक्रिया अदा करने”
ये सब सोचते हुए सहसा ही मेरे होंठ मुस्कुरा उठे। बनारस से जुडी खूबसूरत यादें समेटे में मैं अपने शहर अपने घर चली आयी। अपने शहर में आते ही मैं एक बार फिर व्यस्त हो गयी। ऑफिस , किताबें , सोशल मिडिया और परिवार इन सब में मैं वो बात भी भूल गयी जो मैंने महादेव से कही थी क्योकि मेरा मानना था एक सही इंसान सही वक्त पर आपकी जिंदगी में आ ही जाता है। साल का आखरी महीना था और मैं खुश थी आने वाले नए साल में मेरे पास करने के कई नए काम थे।
नया साल शुरू हुआ बीते सालों के मुकाबले इस साल मैंने खुद को पहले से ज्यादा खुश और आत्मविश्वास से भरा पाया। मैं अपने काम में व्यस्त थी लोगो का काफी प्यार और प्रोत्साहन मिल रहा था।
माफ़ करना मैं बताना भूल गयी मैं एक राइटर हूँ , कहानिया लिखती हूँ। ज्यादा अच्छी नहीं पर हाँ लोग उन्हें पढ़ना पसंद करते है।
देखते ही देखते 3 महीने कब गुजर गए पता ही नहीं चला। सन्डे को ऑफिस की छुट्टी होती थी इसलिए आज मैंने देर तक सोने का प्लान बनाया। सुबह के 11 बज रहे थे कि मम्मी कमरे में आयी और कहा,”मृणाल ! उठो और तैयार होकर बाहर आओ”
“क्या है यार मम्मी सोने दो ना”,मैंने नींद में ऊंघते हुए कहा
“उठो ! जीजाजी ने तुम्हारे लिए लड़का बताया था उसके पापा तुमसे मिलने आये है। जल्दी उठो और ढंग के कपडे पहनकर बाहर आओ”,मम्मी ने धीमी आवाज में कहा
लड़का देखा है सुनकर ही मेरी नींद उड़ गयी। मतलब घर में मेरे लिए लड़का देखा जा रहा है और मुझे पता तक नहीं। मैं एकदम से उठकर बिस्तर पर बैठ गयी और गुस्से से मम्मी को देखते हुए कहा,”आपने मुझे पहले बताया क्यों नहीं ? और ऐसे अचानक कोई बिना बताये किसी के घर आता है क्या ?”
मम्मी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और कहा,”क्या परेशानी है ? वो बस तुम्हे देखने आये है , चलकर उनसे मिल लो कोनसा आज ही रिश्ता पक्का कर रहे है ?”
मुझे मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था। मैं अक्सर समझ नहीं पाती थी कि मेरे अपने ही माँ-बाप मेरे साथ ऐसा क्यों करते थे ? माना कि शादी जीवन का हिस्सा है पर क्या लड़की की जिंदगी कुछ नहीं होती। मम्मी वही खड़ी होकर मुझसे लड़के के पिताजी से मिलने की जिद करने लगी। माँ-बाप के सामने किस की चली है जो मेरी चलती।
“ठीक है आप चलो मैं आती हूँ”,कहकर मैंने उन्हें वहा से भेजा और अपना सर पकड़कर वापस बिस्तर पर बैठ गयी।
अभी मैं इस सिचुएशन को सम्हाल पाती इस से पहले ही छोटी बहन जिया ने आकर कहा,”मम्मी ने कहा है सूट पहनकर आना और दुपट्टा ले लेना सर पर”
मैंने बहन को घूरकर देखा तो वह वहा से चली गयी। मेरा बिल्कुल मन नहीं था कि मैं बाहर जाकर उस आदमी से मिलू और इसका एक ही कारण था जो आदमी रिश्ता लेकर घर आया था वो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था।
मैंने बेमन से अलमारी से सबसे बुरे कपडे निकाले और साथ में बिना मैचिंग का दुपट्टा सर पर डाल लिया ताकि लड़के के पिताजी मुझे देखते ही रिजेक्ट कर दे। सोकर उठी थी इसलिए मेकअप तो दूर मुंह तक नहीं धोया था। बहन एक बार फिर कमरे में आयी और मुझसे चलने को कहा।
“मुंह तो धो ले”,जिया ने मेरे साथ चलते हुए कहा
“धूल गया मुंह”,मैंने मुंह बनाकर कहा और कमरे से बाहर चली आयी।
घर के आँगन में लड़के के पिताजी और मम्मी के जीजाजी बैठे थे। उन्होंने मुझे बैठने को कहा। शादी को लेकर जो सवाल मेरे मन में थे वो मैंने उसी वक्त लड़के के पिताजी के सामने रख दिए जिन्हे सुनकर उन्होंने कहा,”हमे कोई दिक्कत नहीं है , तुम्हे अपनी रायटिंग से जुड़ा जो काम करना हो करना मुझे और मेरे बेटे को कोई दिक्कत नहीं है”
हालाँकि इस रिश्ते को लेकर मैं अभी तक सहमत नहीं थी। कुछ देर बाद मुझे वहा से जाने को कह दिया और मैं अंदर चली आयी।
लड़के के पिताजी ने लड़के को अपना बॉयोडाटा और फोटो भेजने को कह दिया। मैं कमरे में यहाँ से वहा घूमते हुए जिया से कहे जा रही थी “मुझे इतनी जल्दी शादी नहीं करनी , मम्मी
इतनी जल्दी किसी पर भरोसा कैसे कर सकती है ?”
अभी हमारी बात चल ही रही थी कि जिया के फोन पर लड़के का फोटो और बॉयोडाटा आया और उसने मुस्कुराते हुए कहा,”लड़का तो ठीक ही है”
मैंने उसके हाथ से फोन लिया और फोटो देखा। पहली नजर में लड़का मुझे विलेन लगा। मैं समझ सकती हूँ ये सुनना थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन हाँ वो उस फोटो में वैसा ही दिख रहा था। मैंने जिया को देखकर कहा,”थोड़ा अजीब लग रहा है”
“आगे इसकी एक फोटो और है”,उसने उलझनभरे स्वर में कहा
मैंने अगली तस्वीर देखी , हाफ स्लीव्स शर्ट और हलकी दाढ़ी में वो पहले से थोड़ा ठीक लग रहा था लेकिन मन अभी भी उलझन में था
मैंने तस्वीर साइड कर लड़के का बॉयोडाटा देखा। सबसे पहले नजर उसके नाम पर पड़ी “राघव शर्मा” , मुझे उसका नाम अच्छा लगा। लड़को के अच्छे नाम हमेशा मुझे अट्रेक्ट करते है। मैं आगे पढ़ने लगी। वह उम्र में मुझसे 5 साल बड़ा था। ग्रेजुएशन किया था और साथ में उसके पास L.L.B. की डिग्री भी थी। पढाई करने के बाद भी वह कंस्ट्रक्शन के फॅमिली बिजनेस में अकाउंट्स का काम सम्हालता था।
उस बॉयोडाटा में उसने अपनी सेलेरी भी मेंशन की थी जिसे देखकर मैं मुस्कुरा उठी क्योकि फॅमिली बिजनेस में सेलरी कोई मायने नहीं रखती। मैंने फोन जिया की तरफ बढ़ा दिया। कुछ देर बाद राघव के पिताजी वहा से चले गए। उनके जाने के बाद मम्मी कमरे में आयी और कहा,”लड़का पसंद आया ?”
कभी कभी मुझे समझ नहीं आता था कि मम्मी को हमेशा इतनी जल्दी क्यों रहती है ?
मैंने बिस्तर पर लेटते हुए कहा,”फोटो से कुछ पता नहीं चलता मैं लड़के से मिलूंगी , अगर मुझे सही लगा तो ही हाँ कहूँगी वरना ये रिश्ता केंसल”
मम्मी समझ गयी या शायद समझने का नाटक करते हुए बिस्तर पर बैठी और जिया से लड़के की तस्वीर दिखाने को कहा। मम्मी को एवरेज लड़के भी सफ़ेद घोड़े वाले राजकुमार नजर आते थे इसलिए फोटो देखकर कहा,”लड़का तो अच्छा ही है , और फिर अच्छा सम्प्पन घर है।
शादी करके तुम्हे गुजरात जाना है किसी तरह की परेशानी नहीं है। इस से अच्छा रिश्ता तुम्हे नहीं मिलेगा और वैसे भी किसी रिश्ते में सारे गुण नहीं मिलते कही न कही थोड़ा एडजस्ट करना ही पड़ता है।”
मम्मी के मुँह से निकला वो “एडजस्ट” शब्द उस वक्त चुभा और मन में ख्याल आया कि क्या शादी का मतलब सिर्फ “एडजस्ट” करना है। खैर मुझे उनसे किसी तरह की बहस नहीं करनी थी इसलिए मैंने कहा,”हाँ ठीक है पहले लड़के से मिलते है उसके बाद देखते है , तब तक के लिए मुझे चैन से जीने दो”
मैं कमरे से बाहर चली आयी , मेरा संडे पूरा बर्बाद हो चुका था।
कुछ दिन बीत गए मैं राघव के बारे में भूल चुकी थी और एक बार फिर अपने ऑफिस और काम में व्यस्त हो गयी। अप्रैल का महीना चल रहा था और ऐसे में ऑफिस में काम भी बहुत बढ़ जाता है। शाम में थककर जब मैं घर आयी तो जिया ने आकर कहा,”कल लड़का और उसकी फॅमिली तुम्हे देखने घर आ रहे है”
परेशानी मेरे चेहरे पर उभर आयी और मैं सीधा अपने कमरे में चली आयी।
मुझे लगा लड़के के पिताजी इस रिश्ते से इंकार कर देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैंने खुद को समझाया और कहा,”डोंट वरी तुम्हे बस लड़के से मिलना है और बाद में पसंद नहीं आया बोलकर रिजेक्ट कर देना है। इस से ये शादी भी नहीं होगी और मम्मी भी कुछ दिन के लिए शांत बैठ जाएगी”
अपने ही प्लान पर खुश होकर मैं मुस्कुराने लगी। जिया ने देखा तो कहा,”ओह्ह हो लड़के से मिलने की इतनी ख़ुशी”
“देख अगर लड़का मुझे पसंद नहीं आया तो मैं साफ मना कर दूंगी”,मैंने उसके पास आकर दबी आवाज में कहा
“हाँ ठीक है पहले मिल तो लो , कोई जबरदस्ती नहीं है तुम्हे ठीक लगेगा तभी आगे बात होगी वरना नहीं”,जिया ने तसल्लीभरे स्वर में कहा
मैं मन ही मन खुश थी कभी कभी जिया मम्मी से भी ज्यादा समझदारी वाली बातें करती है
सुबह मैं जल्दी उठ गयी। मेरी जिंदगी में अचानक से एक नया मोड़ आ चुका था और इसकी शुरुआत मुझे अपने महादेव के आशीर्वाद से करनी थी।
सुबह सुबह नहाकर मैं मंदिर चली आयी। हमेशा लूज जींस और शर्ट-टीशर्ट पहनने वाली लड़की ने आज सलवार सूट पहना था। आसमानी रंग का सूट , गुलाबी रंग का दुपट्टा , ललाट पर छोटी काली बिंदी और होंठो पर हल्की लिपस्टिक। मुझे बचपन से ही ज्यादा सजने सवरने का शौक नहीं है। अपनी कहानियो में भी मैंने हमेशा सादगी का ही जिक्र किया। मंदिर जाकर बहुत सुकून मिला।
11 बजे तक मैं घर लौट आयी। घर आकर पता चला कि वो लोग एक घंटे में यहाँ पहुँच जायेंगे। मैं अपने कमरे में बैठकर अपने सोशल मिडिया अकाउंट्स चेक करने लगी हालाँकि अंदर ही अंदर एक बेचैनी थी जिसे मैंने अपने चेहरे पर नहीं आने दिया। तय वक्त पर राघव अपने मम्मी पापा के साथ मेरे घर पहुँच गया। राघव और उसके पापा बाकि घरवालों के साथ बैठक में जा बैठे और राघव की मम्मी मौसी के साथ सीधा मेरे कमरे में चली आयी। मैं बिस्तर से उठकर एक तरफ खड़े हो गयी। राघव की माँ मौसी के साथ बिस्तर पर आ बैठी।
मैंने एक नजर उन्हें देखा पहली नजर में वो भी मुझे थोड़ी अजीब लगी। मैंने उन्हें एक बार भी मुस्कुराते हुए नहीं देखा। शक्ल और बातों से वो मुझे थोड़ी खड़ूस और घमंडी लगी लेकिन उस वक्त मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया बस चुपचाप खड़ी सबकी बाते सुनते रही।
जिया और मम्मी मेहमानों की आव भगत में लग गयी। राघव की मम्मी ने मुझसे थोड़ी बात की और फैसला भी सूना दिया कि मैं उन्हें पसंद हूँ।
“आपके पसंद करने से कुछ नहीं होगा आंटी मैं पहले आपके लड़के से मिलूंगी”,मैंने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा
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