Sakinama – 10
एक दोपहर राघव ने बताया कि वह अपनी मम्मी के साथ राजस्थान आ रहा है। मैंने जैसे ही सूना ख़ुशी से मेरा चेहरा खिल उठा। उसने बताया कि उसके मामाजी की तबियत खराब है उन्ही से मिलने मम्मी गांव आ रही है।
“आप मिलने आओगे मुझसे ?” मैंने लिखकर भेजा
“टाइम मिला तो जरूर आऊंगा , वैसे भी वापसी की ट्रैन कल शाम को ही है तो थोड़ा मुश्किल है” राघव ने भेजा
“कोई बात नहीं आप फ्री रहो तो आ जाना वरना परेशान मत होना” मैंने लिखकर भेजा
“हम्म्म ठीक है” राघव ने मैसेज किया और फिर ऑफलाइन हो गया।
अगले दिन राघव पुरे दिन बिजी रहा , ना उसने मुझे मिलने को कहा ना ही कोई जवाब दिया और फिर शाम में उसके जाने का टाइम हो गया और वह अपनी मम्मी के साथ स्टेशन चला आया। थोड़ा बुरा भी लग रहा था लेकिन मैंने उस से कुछ नहीं कहा।
“मैं वापस जा रहा हूँ” राघव का मैसेज आया
“ठीक है ध्यान से जाईयेगा” मैंने उदास मन से लिख भेजा
“आप भी चलो” राघव ने भेजा
“कहा ?” मैंने लिख भेजा
“मेरे साथ” राघव ने लिख भेजा
“मैं बाद में आउंगी” मैंने लिख भेजा
“आप हमेशा ऐसे ही बोलते हो” राघव ने लिख भेजा
“आप भी तो हमेशा ऐसे ही करते हो” मैंने लिख भेजा
“खाना खाया ?” राघव ने बात बदलते हुए भेजा
“नहीं , आप खा लीजियेगा सफर लंबा है” मैंने लिख भेजा
“जाने का मन नहीं कर रहा है यार” राघव ने भेजा
“लेकिन जायेंगे नहीं तो वापस कैसे आएंगे ?” मैंने भेजा
“हम्म्म !” राघव ने भेजा
आज पहली बार राघव से आगे बात करने का मन नहीं हुआ। मैं ऑफलाइन हो गयी और फोन साइड में रखकर सोचने लगी “क्या वो सच में इतना बिजी था कि मुझसे मिलने भी ना आ सका”
मैं उसके बारे में सोच ही रही थी कि तभी उसका कॉल आ गया। इस बार नॉर्मल कॉल नहीं था बल्कि विडिओ कॉल था और ये पहली बार ही था। मेरी शक्ल पर 12 बजे थे और मैं नहीं चाहती थी वो मुझे ऐसे देखे इसलिए मैंने कॉल अटेंड नहीं की और लिख भेजा “विडिओ कॉल क्यों कर रहे है आप ?”
“बस ऐसे ही आपको देखने का मन कर रहा था” राघव ने लिख भेजा
“आपने मुझे पहले भी बहुत बार देखा है” मेरा गुस्सा मेरे शब्दों से साफ झलक रहा था
“लगता है आपका मूड ठीक नहीं है , एक काम करते है कल बात करते है। गुड नाईट” राघव ने भेजा और ऑफलाइन हो गया
कभी कभी उसका ये बर्ताव अजीब लगता था लेकिन मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और सोने चली गयी।
अगली सुबह घर पहुँचने के बाद राघव ने गुड मॉर्निंग मैसेज किया लेकिन मैंने बदले में सिर्फ मॉर्निंग लिखकर भेज दिया क्योकि आज की सुबह गुड नहीं थी। राघव समझ गया इसलिए आगे कोई बात नहीं की। आज संडे था और ऑफिस की छुट्टी थी इसलिए मैं घर में ही थी।
राघव से मेरी बात नहीं हो रही थी इसलिए उसने दोपहर में फ्री होकर फोन किया। मुझसे कुछ देर बात करने से ही वह समझ गया कि मैं कल की वजह से थोड़ी अपसेट हूँ। उसने बहुत ही प्यार से मुझसे बात की लेकिन आज मुझे ये भी अच्छा नहीं लग रहा था।
“मैं आना चाहता था यार लेकिन वही मामाजी के घर में टाइम लग गया और फिर ट्रेन भी शाम में ही थी”,राघव ने कहा
“कोई बात नहीं”,मैंने बुझे मन से कहा
“अगर कोई बात नहीं है तो फिर इतना अपसेट क्यों हो ?”,राघव ने एकदम से पूछ लिया
“आपसे ठीक से बात नहीं होती तो फिर अच्छा नहीं लगता अजीब सा लगने लगता है।”,मैंने फिर उदास होकर कहा
“एक बात पुछु ?”,राघव ने कहा
“हम्म्म्म”,मैंने कहा
“रहने दो नहीं पूछता पता नहीं आपको अच्छा ना लगे”,राघव ने कहा
“अरे ये क्या बात हुई पूछिए”,मैंने कहा
“आदत हो गयी है ना मेरी ?’,राघव ने जैसे ही कहा मेरा दिल धड़क उठा , मैं कुछ देर के लिए खामोश हो गयी और कहा,”नहीं ऐसा नहीं है”
“तो फिर प्यार हो गया है मुझसे ?”,राघव ने फिर पूछा
“नहीं,,,,,,,,,,,मुझे नहीं पता , बस आप ठीक से बात नहीं करते तो अच्छा नहीं लगता”,मैंने अपनी भावनाओ को दबाते हुए कहा जबकि मुझे उसकी आदत हो चुकी थी और ये बात शायद वो भी जानता था।
“अच्छा कोई बात नहीं ये बताओ कल अपसेट क्यों थी ? मैं मिलने नहीं आया इसलिए ?”,राघव ने बड़े प्यार से पूछा
“आप क्यों मिलने आएंगे आप तो बिजी इंसान है आपके पास वक्त कहा ?”,मैंने उखड़े स्वर में कहा तो राघव मेरे उदास होने की वजह समझ गया
“ठीक है इस बार मैं सिर्फ आपसे मिलने आऊंगा”,राघव ने कहा
“आप नहीं आएंगे”,मैंने कहा
“मैं सच में आऊंगा , सिर्फ आपके लिए”,राघव ने कहा
“आप मुझे तसल्ली देना बंद करे , यहाँ होकर आप मुझसे मिलने नहीं आये , इतनी दूर से आ जायेंगे”,मैंने चिढ़ते हुए कहा
“ठीक है जब आउ तब देख लेना , अब अपना मूड सही करो और मुझसे अच्छे से बात करो”,राघव ने कहा
उस से बात करते हुए मैं अपना गुस्सा भूल चुकी थी। उस दिन के बाद से हमारे बीच कुछ ज्यादा ही बातें होने लगी थी। दोनों को जब भी वक्त मिलता दोनों एक दूसरे को फोन लगा देते थे।
जुलाई महीने का पहला हफ्ता खत्म हो चुका था और उसी के साथ शुरू हुआ महादेव का सावन महीना। मैं महादेव को बहुत मानती थी और हर साल पुरे एक महीने महादेव का उपवास रखती थी।
सावन का पहना उपवास था महादेव की पूजा कर मैं ऑफिस चली आयी। दोपहर में मैंने कॉल करके राघव से खाने का पूछा तो उसने कहा”,आज मैंने उपवास रखा है”
“आप भी सावन के उपवास रखते हो ?”,मैंने हैरानी से पूछा
“नहीं इस साल पहली बार रखा है , पुरे एक महीने के लिए”,राघव ने कहा तो मुझे ख़ुशी हुई कि वो भी मेरी तरह महादेव को मानते है।
“आपने क्यों रखा ? अब आपको उनसे क्या मांगना है ?”,मैंने शरारत से पूछा
“बिन मांगे ही सब मिल चुका है , अब तो बस उनका शुक्रिया अदा करना है जो उन्होंने मुझे आपसे मिलाया। पता है मैंने 10 लगातार माता के उपवास भी रखे है और अब जाकर लगता है कि उनका फल मिल चुका है आपके रूप में”,राघव ने सहजता से कहा
उसकी बात सुनकर उस वक्त मैं खुद को खुशनसीब समझ रही थी। मैंने मुस्कुराते हुए कहा,”हाँ वैसे ही जैसे मेरे महादेव ने आपको मेरी जिंदगी में भेजा है। आप मेरी जिंदगी में “छोटे महादेव” बनकर आये हो”
“ये “छोटे महादेव” क्या है ?”,राघव ने पूछा
“मैं महादेव को बहुत मानती हूँ। अपना सुख-दुःख , ख़ुशी , परेशानी सब उनसे शेयर करती हूँ पर अब से सब आपके साथ शेयर करुँगी। मुझे यकीन है जैसे उन्होंने मुझे हमेशा हिम्मत दी , मेरा ख्याल रखा वैसे आप भी रखेंगे इसलिए आज से आप मेरे लिए “छोटे महादेव” है”,मैंने सहजता से कहा
“खुद से भी ज्यादा ख्याल रखूंगा आपको”,राघव ने कहा
“बस इतना काफी है। मेरे महादेव ने हमेशा मुझे बेहतर दिया लेकिन इस बार बेहतरीन दिया है”,मैंने मुस्कुराते हुए कहा
काफी देर तक दोनों में बातें होती रही और फिर मैं अपने काम में लग गयी।
सावन के दिन गुजरते जा रहे थे। हर रोज मैं अपने महादेव का शुक्रिया अदा करती , उनसे राघव की बाते करती , उनसे दुआ मांगती की वो उसे हर ख़ुशी दे , उसके सपने पुरे करे उसे एक अच्छी जिंदगी दे।
अभी कुछ ही दिन गुजरे थे कि राघव और मेरे घरवालो ने मिलकर हमारी शादी की डेट फिक्स कर दी।
जुलाई चल रहा था और इस वक्त शादी का कोई सीजन
नहीं था लेकिन न जाने किस पंडित ने मम्मी से कह दिया कि अगस्त महीने की गोगा नवमी को शादी हो सकती है बस फिर क्या था मेरे और राघव के घरवालो ने मिलकर वही तारीख रख ली और सब हमे शादी के लिए मनाने लगे। मैंने और राघव ने पहली मुलाकात में तय किया था कि अगर हमारी शादी होती भी है तो हम दिवाली के बाद या अगले साल करेंगे लेकिन घरवाले मानने को तैयार ही नहीं थे।
सबने मिलकर उसे और मुझे समझाना शुरू कर दिया। एक हफ्ते दोनों के पीछे पड़ने के बाद आख़िरकार राघव और मुझे हाँ कहना पड़ा। राघव के पापा की तबियत खराब थी और वो चाहते थे कि जल्द से जल्द ये शादी हो जाये और मैं बहू बनकर उनके घर चली जाऊ। यही एक वजह थी जिसके लिए मुझे इस शादी के लिए हाँ कहना पड़ा।
शादी में पूरा एक महीना था मैं और राघव चाहते थे कि शादी बिना किसी ताम-झाम के बिल्कुल सिंपल तरीके से हो लेकिन घरवाले तो ठहरे घरवाले उन्होंने हमारी कोई बात नहीं सुनी और कहा कि हम बस अपनी शादी एन्जॉय करे।
एक दोपहर मैं ऑफिस में बैठी अपना काम कर रही थी कि तभी फोन बजा। फोन राघव का था मैंने फोन से लगाया और कुछ कहती इस से पहले ही राघव ने पूछा,”झुमके कौनसे लेने है ?”
“हाँ ?”,मैंने हैरानी से कहा क्योकि राघव जैसा था उस से मुझे ऐसी किसी बात की उम्मीद नहीं थी
“अरे आपको झुमके बहुत पसंद है ना तो मेरा मतलब कैसे झुमके चाहिए आपको ? यहाँ दो है छोटे और बड़े तो आप बताओ कौनसे चाहिए ?”,राघव ने कहा
राघव की बात सुनकर मेरे होंठो पर मुस्कुराहट तैर गयी। मैंने कभी सोचा नहीं था वो मेरे लिए झुमके खरीदने की बात करेगा। ये पल बिल्कुल वैसा ही था जैसा मैं अपनी कहानियो में लिखा करती थी। मुझे खामोश देखकर उसने फिर पूछा,”बताओ ना मैं यहाँ शोरूम में हूँ , मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा”
“छोटे वाले चलेंगे”,मैंने कहा
“हाँ बड़े वाले तो मुझे कुछ ठीक नहीं लगे , छोटे वाले आर्डर कर देता हूँ”,राघव ने कहा
“आर्डर क्यों करने है ? अभी लेकर चले जाईये”,मैंने कहा
“गोल्ड में है ना तो ऑनलाइन पेमेंट ये लेंगे नहीं और केश पेमेंट अभी नहीं कर सकता”,राघव ने कहा
“अरे नहीं मुझे गोल्ड में नहीं चाहिए , आप रहने दीजिये। मुझे लगा आप लोकल में ले रहे है इसलिए मैंने कह दिया। आप उन्हें छोड़ दीजिये”,मैंने कहा
“क्यों ? मैं आपको ये नहीं दे सकता ?”,राघव ने सवाल किया
“ऐसी बात नहीं है आप दे सकते है। आप शादी के बाद देना ना अभी तो आप नार्मल ही ले लीजिये ना”,मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा
“ठीक है फिर एक काम करेंगे शादी के बाद मैं आपको यहाँ ले आऊंगा तो आप अपनी पसंद से ही ले लेना”,राघव ने कहा
“हाँ ठीक है”,मैंने कहा
“मैं थोड़ी देर में फोन करता हूँ आपको”,कहकर राघव ने फोन काट दिया
मैं वापस अपने काम में लग गयी। थोड़ी देर बाद फिर राघव का फोन आया और उसने कहा,”यार मैंने देखे पर ये बहुत सस्ते है”
“आप ले लीजिये , आप मुझे ये देंगे तो ये मेरे लिए दुनिया के सबसे महंगे झुमके होंगे”,मैंने कहा
“मैंने कभी सोचा नहीं था मुझे आप जैसी लड़की मिलेगी , जो मेरी इतनी परवाह करेगी”,राघव ने कहा
“हमारी किस्मत में जो लिखा होता है अक्सर वो हमे मिल ही जाता है”,मैंने कहा
“हाँ आप ही मेरी किस्मत हो।”,राघव ने कहा और फिर अपनी पसंद के झुमके खरीद लिए।
“वैसे आज ये अचानक से झुमके खरीदने का ख्याल क्यों आया ?”,मैंने एकदम से पूछा
“कल आपसे मिलने आ रहा हूँ ना इसलिए तोहफा लिया है आपके लिए ?”,राघव ने कहा
“आप मजाक कर रहे है ना ?”,मैंने हैरानी भरे स्वर में कहा क्योकि मुझे यकीन नहीं हो रहा था
“नहीं बिल्कुल नहीं , मैं सच में आ रहा हूँ , सिर्फ आपसे मिलने कल का पूरा दिन आपके लिए”,राघव ने सहजता से कहा और कुछ देर बात करने के बाद फोन काट दिया।
ख़ुशी से मेरा चेहरा खिल उठा। राघव इतनी दूर से सिर्फ मुझसे मिलने आ रहा था जानकर ही अच्छा लग रहा था।
मैंने ऑफिस से अगले दिन की छुट्टी ले ली। सुबह 7 बजे ही राघव मेरे शहर पहुँच चुका था। शादी से पहले घर नहीं आ सकता था इसलिए बाहर ही होटल में अपने लिए रूम बुक कर लिया। राघव फ्रेश हुआ , नहा-धोकर तैयार हुआ और मुझे मैसेज कर दिया “दर्शन कब देंगी आप ?”
“बस थोड़ी देर में आते है” मैंने लिख भेजा
सावन चल रहा था और हम दोनों का उपवास भी था लेकिन फिर भी वो मुझसे मिलने इतनी दूर आया था। मम्मी ने राघव के लिए फलाहारी नाश्ता दिया उन्हें राघव की चिंता मुझसे भी ज्यादा थी। मैंने आज सूट नहीं पहना , कुछ दिन पहले ही नयी जींस और सफ़ेद शर्ट खरीदा था वो पहन लिया। बाल खुले रखे और होंठो पर हल्की लिपस्टिक लगाकर मैं तैयार थी। अकेले जाने में थोड़ा अजीब लग रहा था इसलिए मैंने जिया को भी अपने साथ ले लिया और राघव से मिलने जा पहुंची।
मैं और जिया वेटिंग एरिया में पड़े सोफों पर आ बैठे। मैंने राघव को फोन करके बताया कि हम लोग आ चुके है और नीचे वेटिंग एरिया में है। कुछ देर बाद गैलरी से आते हुए राघव दिखाई दिया। उसने ब्लू जींस के साथ लाइट ग्रे हाफ स्लीवस टीशर्ट पहना था जिसके किनारे सफ़ेद रंग के थे। सावन होने की वजह से दाढ़ी थोड़ी बढ़ा रखी थी लेकिन अच्छा लग रहा था। उसने जैसे ही मुझे देखा उसके चेहरे से ख़ुशी झलकने लगी और होंठो पर मुस्कुराहट तैर गयी। वह आकर मुझसे और जिया से मिला और मेरे बगल में पड़े सोफे पर आ बैठा।
फोन पर उस से ढेरो बाते करने वाली मैं उसके सामने बिल्कुल चुप थी और बस मुस्कुरा रही थी। उन्होंने ज्योति से कुछ बातें की इतने में मेरा एक कजिन वहा आ पहुंचा। वह राघव से पहले भी मिल चुका था इसलिए राघव ने उसे देखते ही पहचान लिया। वह अपनी बाइक देने आया था जिस से हमे बाहर घूमने या आने जाने में कोई दिक्कत ना हो क्योकि राघव नहीं चाहता था मैं उसके साथ उस होटल में रुकू। वह अपनी मर्यादा समझता था शायद इसलिए उसने मना कर दिया।
हम चारो वही बैठे थे। राघव ने सामने पड़ा अख़बार उठाया और उसे देखने लगा। मैं उसके बगल में बैठी अपना हाथ गाल से लगाए बड़े प्यार से उसे देखे जा रही थी। जिया ने देखा तो उसने चुपके से वो तस्वीर ले ली। कुछ देर बाद जिया और कजिन घर के लिए निकल गए और राघव मेरे साथ बाइक की चाबी लिए बाहर चला आया। सबसे पहले हमने शहर से कुछ ही दूर बने मंदिर जाने का प्लान बनाया और दोनों वहा से निकल गए। शहर से 17 किलोमीटर दूर साई मंदिर था जो कि बहुत ही शांत जगह पर बना हुआ था।
मैं राघव के पीछे बाइक पर आ बैठी , मैं उलझन में थी कि अपना हाथ उसके कंधे पर रखू या नहीं मुझे सोच में डूबा देखकर राघव ने जैसे ही बाइक को आगे बढ़ाया एक हल्का सा धक्का लगा और मेरा हाथ उसके कंधे से जा लगा। मेरा हाथ उसके कंधे पर अच्छा लग रहा था। बातें करते हुए हम मंदिर पहुंचे। हमने प्रशाद लिया और दर्शन करने अंदर चले आये। मैं और राघव ईश्वर के सामने हाथ जोड़े आँखे मूँदे खड़े थे। राघव अपने मन में क्या मांग रहा था ये तो मैं नहीं जानती लेकिन मैं बस ईश्वर से राघव का साथ मांग रही थी , उसकी ख़ुशी मांग रही थी।
दर्शन कर हम दोनों मंदिर से बाहर चले आये। मंदिर के चारो तरफ ऊँची सीढिया और चबूतरे बने हुए थे। मैं और राघव भी वहा आकर बैठ गए। हम दोनों ही खामोश थे , कहा से बात शुरू करे कुछ समझ नहीं आ रहा था और फिर कुछ देर बाद राघव ने कहा,”अब तो यकीन हो गया ना कि मैं आपसे मिलने आया हूँ ?”
“थैंक्यू !”,मैंने राघव की तरफ देखकर कहा
दोनों वही बैठकर बातें करने लगे। कुछ देर बाद मुझे कुछ याद आया और मैंने बैग से एक काला धागा निकालकर राघव से अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाने को कहा। राघव ने अपना हाथ मेरे सामने कर दिया और कहा,”ये क्या है ?”
“ये धागा है , जब मैं बनारस गयी थी तब मैंने वहा के “काल भैरव” मंदिर से लिया था। इस धागे से मेरी आस्था और विश्वास जुड़ा है। ये आपकी हर बुरी नजर से रक्षा करेगा”,मैंने वह धागा राघव की कलाई पर बांधते हुए कहा
“अच्छा है ! अपना हाथ दिखाना”,राघव ने कहा जो कि काफी देर से मेरे हाथ को देख रहा था।
मैंने अपना हाथ राघव की तरफ बढ़ा दिया। उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया। एक खूबसूरत अहसास मेरे दिल को छूकर गुजरा। मेरा हाथ उसके हाथ में बहुत छोटा दिख रहा था , ऐसा लग रहा था जैसे उसने किसी बच्चे का हाथ पकड़ा है। वह मुस्कुराने लगा तो मैंने पूछा,”क्या हुआ आप मुस्कुरा क्यों रहे है ?”
“ऐसा लग रहा है जैसे मैंने किसी बच्चे का हाथ पकड़ा हैं। आपका हाथ आपकी हेल्थ से बिल्कुल मैच नहीं कर रहा। मेरी भतीजी का हाथ भी इस से बड़ा है”,राघव ने हँसते हुए कहा
मैंने जैसे ही उसके हाथ से अपना हाथ हटाने की कोशिश की उसने उसे फिर से थाम लिया। इस बार थोड़ा मजबूती और कहा,”रहने दो मेरे हाथ में अच्छा लग रहा है”
मैंने कुछ नहीं कहा तो राघव ने मेरे हाथ को थामे रखा और फिर ना जाने उसे क्या सूझी उसने अपना फोन निकालकर हमारे हाथो की एक तस्वीर ले ली। मैंने देखा मेरा हाथ उसके हाथ में अच्छा लग रहा था
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