Ranjhana – 3
Ranjhana By Sanjana Kirodiwal
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Ranjhana – 3
दो अलग अलग शहरो में , मिलो दूर , रात के तीसरे पहर में , दो दिलो में एक जैसा ही अहसास था l उन दो जोड़ी आँखों में कुछ था तो सिर्फ इंतजार l ये इन्तजार अगर इधर था तो शहर से मिलो दूर उस तरफ भी था l अकेले सारिका ने ही ये 14 साल का बनवास नहीं काटा था कोई और भी था जो बनारस के घाट की सीढ़ियों पर बैठकर अकसर उस शाम का इंतजार किया करता था जिस शाम उसकी मोहब्बत लौट कर आनी थी l इंतजार मोहब्बत का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है l
ये इंतजार ही बताता है की मोहब्बत की जड़े कितनी गहरी है l सारिका के साथ साथ कोई और भी था जो जाग कर बीते वक्त के बारे में सोच रहा था l सुनसान घाट की सीढ़ियों पर लेटा वह सख्स नज्म की उन लाईनो को गुनगुना रहा था जो कुछ देर पहले उसने अपने फोन पर पढ़ी थी l लाईने गुनगुना कर वह उठ बैठा और उदास आँखों से पानी की लहरों को देखते हुए बुदबुदाया
“इंतजार से थकी इन आँखों में एक ख्यालात चाहता हु
इन नज्मो को लिखने वाले मैं तुझसे एक मुलाकात चाहता हु”
लड़का वही बैठा रहा l हाथ में बंधी घडी पर नजर गयी तो पाया रात के 2 बज रहे है l
लड़का अभी बैठा ही था की ऊपर सीढ़ियों से उतरता हुआ एक पतला सा लड़का निचे आया और उसके सामने आकर कहा,”तो तुम यहाँ हो , गुरु पुरे बनारस की खाक छान आये तुम्हारे लिए और ये क्या बेहूदा शौक पाले हो तुम जब देखो तब आकर यहाँ बैठ जाते हो , उधर तुम्हारे अम्मा बाउजी परेशान है तुम्हारे लिए l अरे हम कछु बोल रहे है सुनाये दे रहा है के नहीं तुमको ?”
“बाबा सो चुके”,लड़के ने शून्य में तांकते हुए कहा
“हां मालूम है पर तुमरी अम्मा उनको कहा नींद आएगी , माँ का दिल तो जानते ही हो न तुम”,लड़के ने हुए कहा
“ह्म्म्मम्म !!”,लड़के ने धीरे से कहा
“फिर से उनकी कोई नज्म आई ?”,लड़के ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा
“हां ! उसे पढ़ते हुए खो गया था मैं”,लड़के ने कहा
“साला मोहब्बत ना हो गयी रतजगा हो गया , कर तुम रहे हो जागना हमको पड़ता है”,लड़के ने उसकी बगल में बैठते हुए कहा
“मुरारी ! हमको एक बार इनसे मिलना है यार , इनकी लिखी नज्मो की ही बदौलत आज भी वो बचपन वाला इश्क़ जिन्दा है , उसे भूल नहीं पाए है यार और इस बात के लिए इन्हे थैंक्यू बोलना चाहते है”,लड़के ने सहजता से कहा
“कीन्हे भैया ? और किस से मिलोगे जिनका कोई नाम नहीं , कोई पहचान नहीं तो क्या इन घाट की सीढ़ियों से बोलोगे थैंक्यू”,मुरारी ने चिढ़ते हुए कहा
“नाम क्यों नहीं है ? हमने रखा है ना उनका नाम”,लड़के ने कहा
“अच्छा क्या नाम रखे हो जरा हमे भी बताओ ?”,मुरारी ने कहा
“मैडम जी”,लड़का मुस्कुरा दिया
“मैडम जी ? ये कैसा नाम हुआ ?”,मुरारी ने चौंककर कहा
“मैडम जी इसलिए क्योकि हमने उनकी नज्मो से ही सीखा है , इश्क़ को ज़िंदा रखना l उनके शब्दों में इतनी गहराई होती है लगता है उन्होंने भी किसी को टूटकर चाहा होगा l वरना इस सिद्द्त से लिखना किसी के बस की बात नहीं”,लड़के ने एक बार फिर शून्य में तांकते हुए कहा l
“ख्वाबो की दुनिया से बाहर आ जाओ शहजादे , तुम जो सोच रहे हो न वो मुमकिन नहीं है l ये बनारस और यहाँ के घाट ही अपनी दुनिया है इसलिए यहाँ से बाहर जाने का सोचना भी मत”,मुरारी ने उँघते हुए कहा
“अगर भावना सच्ची हो तो मिलो की दूरिया भी इक दिन कम हो जाती है”,लड़के ने दार्शनिक आवाज में कहा
“भावना और सच्ची , अरे एक नंबर की झूठी है वो l
उसका तो तूम नाम ही न लो , प्यार का इजहार हमसे और सिनेमा देखने वो पानवाले के साथ जाती है l हम बताय रहे है भावना के चक्कर में तो तुम ना ही पडो”,मुरारी ने उछलकर कहा
“यार तुम ना निपट मुर्ख हो , अरे हम फीलिंग्स की बात कर रहे है”,लड़के ने मुरारी के सर पर चपत लगाते हुए कहा
“हाँ तो तुम समझाओ ना , वैसे भी उस भावना के पीछे हमारा इतना रुपया बर्बाद हो गया और तुम्हारी इस भावना के पीछे तुम्हारी जवानी बर्बाद हो रही है , 28 के हो गए हो ……….. कुछ सोचो !”,मुरारी ने लड़के को ताना मारते हुए कहा
“मुरारी उनके अलावा कुछ सोच नहीं सकते , वो कैसी है ? कहा है ? किस हाल में है एक बार ये जान ले उसके बाद अपने बारे में सोचेंगे”,लड़के ने कहा
“तुम ना इश्क़ में पगला गए हो , जो है ही नहीं उस से प्यार करते हो वो भी पिछले 14 सालो से l अरे अब तक तो वो भूल भी चुकी होगी तुमको और क्या प्यार शादी करके घर बसा लिया हो , उसके इंतजार में कब तक अपना वक्त बर्बाद करोगे अरे एक से बढ़कर एक लड़किया है अपने बनारस में तुम कहो तो कल ही बात चलाये”,मुरारी ने कहा
“मुरारी प्यार है कोई खेल नहीं जो आज इसके साथ कल इसके साथ , हमे भरोसा है अपने भोलेनाथ पर वो हमे उनसे जरुर मिलायेंगे ये 14 साल का बनवास यु जाया ना होगा l रामजी को भी तो उनकी सीता मिली थी ना बनवास के बाद तो फिर हम काहे उम्मीद छोड़ दे”,लड़के ने सहजता से कहा l
“अच्छा तो फिर इतने सालो में तुमसे मिलने काहे नहीं आई वो ?”,मुरारी ने लड़के की आँखों में देखते हुए कहा l
मुरारी के इस सवाल से लड़का खामोश हो गया तभी पीछे से एक चप्पल आकर मुरारी की पीठ पर लगी और वह पीछे पलटकर जोर से चिल्लाया,”कौन है बे ?
“हम है तुम्हारी अम्मा !”,ऊपर सीढ़ियों पर खड़ी औरत चिल्लाई और बड़बड़ाते हुए निचे उतरने लगी
“जीना हराम कर दिया है इन लौंडो ने हमारा , एक तो था ही ये मुरारिया भी इसके जइसन हो गवा l
इसको यहाँ लड़के को बुलान खातिर भेजे थी और इह यहाँ बैठकर उसी के साथ पंचायती लगाय रहा है l आज इन दोनों की खैर नहीं , चप्पल से मार मार के मुंह सुजा देइ इनाका”
“मर गए मुरारी , अम्मा चली आय रही है भाग यहाँ से”,लड़के ने अपनी माँ को वहा देखकर कहा और भाग गया
“अरे तो हमको काहे अकेले छोड़ के जा रहे हो रुको हम भी आते है , अरे रुक भी जाओ साला जिंदगी को भौकाल बना के रख दिए है ,
तुमरी दोस्ती भारी पड़ रही है हमको , इश्क़ तुम करो तुमरी अम्मा की चप्पल हम खाये”,कहते हुए मुरारी भी लड़के के पीछे भागा
“रुक जाओ तूम दोनों आज खैर नहीं है तुम्हारी , नाक में दम करके रखे हो हमारे”,चप्पल हाथ में उठाये अम्मा ने भी उनके पीछे दौड़ लगा दी l
बनारस की गलियों में आधी रात को वो नजारा देखने लायक था l मोहब्बत का मारा लड़का आगे उसके पीछे मुरारी और उन दोनो के पीछे अम्मा ! ऐसा हफ्ते में एक दो बार देखने को अक्सर मिल ही जाता था l पर वह लड़का उसे कुछ समझ नहीं आता और बीते वक्त की यादे उसे अपने साथ घाट पर ले आती l इन तन्हा रातो में उसकी साथी वो यादें और उसकी मैडम जी की नज्मे ही थी जिन्हे बनारस के घाटों पर बैठकर वह अक्सर गुनगुना लिया करता था l
मिलो दूर , मुंबई शहर
मुंबई जहा कभी राते नहीं होती थी , लोग दिन रात अपने सपनो को पूरा करने में जी जान से लगे रहते l अक्सर कितने ही लोग अपनी किस्मत बदलने हर रोज अपने घरो से निकलकर मुंबई आते थे l पर यहाँ किस्मत सबका साथ नहीं देती थी l सारिका की किस्मत ने उसका साथ दिया और आज मुंबई के सभी बड़े बिजनेसमैन उसे जानते थे , उसके काम की तारीफ करते थे l
बहुत कम उम्र में सारिका ने वो मुकाम हासिल का लिया था जिसे हासिल करने में कई लोगो को सालो लग जाते है l उसके हमउम्र लड़को ने कई बार उसके सामने दोस्ती , प्यार और शादी तक का प्रस्ताव रखा पर सारिका हर बार सहजता से इस बात को टाल देती l उसकी जिंदगी में कुछ था तो वो था उसका काम और दुसरा उसका “रांझणा” l
रश्मि के घर से निकलकर सारिका सीधा अपने ऑफिस पहुंची l आज वह ऑफिस एक घंटे पहले ही आ गयी l
उसने सभी जरुरी काम निपटाए और नवीन को बुलाकर आने वाले कुछ दिनों का काम समझा दिया l सारिका ने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली l सारिका ने अकाउंट्स चेक किये अपना लेपटॉप और कुछ जरुरी डॉक्युमेंट्स बेग में रखे l रेंक में लगी कुछ किताबो को निकाला और उन्हें भी बाकि सब सामान के साथ बेग में रख लिया l सब सामान रखने के बाद उसने टेबल की दराज को खोला और उसमे से वो चैन निकालकर अपने बैग में रख ली l 14 साल बाद वो उस से मिलने जा रही थी l
सारिका जैसे ही ऑफिस से निकली पूरे ऑफिस में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी सबने राहत की साँस ली l अब कुछ दिनों के लिए सभी बिना किसी रूल्स और रेगुलेशन के काम करेंगे l सबसे ज्यादा पूजा खुश थी एक बार फिर उसे नवीन के करीब आने का मौका मिल जायेगा l l
सारिका ने ड्राइवर से घर चलने को कहा l सारिका को इस वक्त देखकर मीना ने कहा,”हओ दीदी तुम , इस वक्त ? चलो अंदर आजाओ हम अभी खाना लगाते है”
“नहीं मीना इसकी कोई जरूरत नहीं है , हमने सुबह रश्मि के घर नाश्ता कर लिया था l हम कुछ दिनों के लिए इंदौर जा रहे है माँ पापा के पास , आज शाम को ही निकलेंगे इसलिए आज जल्दी आ गए”,सारिका ने अपने साथ लाये बेग को सोफे पर रखते हुए कहा l
“हओ दीदी ये बहुत अच्छी खबर सुनाई हो तुम , तुमको जरूर जाना चाहिए और हो सके तो अम्मा बाबूजी को हिया लेइ आओ कुछ दिन के लिए l”,मीना ने कहा
“हम्म्म्म , मीना ये आपकी इस महीने की और अगले महीने की तनख्वाह एडवांस में है”,सारिका ने बंद लिफाफा मीना कि और बढ़ाते हुए कहा l
“दीदी एडवांस पर काहे ? वापस आन का इरादा नहीं है या हमको काम से निकाल रही हो , देखो दीदी हमसे कोनऊ गलती हो गयी तो हमको बताय दयो पर जे अड़बांस बेड़वांस की बात ना कहो हमसे”,मीना ने रोआँसा होकर कहा l
मीना की बात सुनकर सारिका हसने लगी और कहा,”अरे आप भी ना कुछ भी सोचने लगती है , हम भला ऐसा क्यों करेंगे और आपको क्यों निकालेंगे ? वो तो हम इस लिए दे रहे है की हमे आने में वक्त लग सकता है इसलिए आपको परेशानी ना हो इसलिए दिया है और एडवांस होता है अड़बांस नहीं”
“हओ दीदी जो भी हो पर हम बताय रहे है हम तो तुमको छोड़ के कही न जाये”,मीना ने अधिकार जताते हुए कहा
सारिका को अच्छा लगा तो वह मुस्कुरा उठी और कहा,”अच्छा तो फिर एक कप कॉफी पीला दीजिये , तब तक हम हमारा बैग जमा लेते है l “
“ठीक है हम अभी फटाफट लेकर आते है”,मीना ने कहा और किचन की और बढ़ गयी lसारिका ने सोफे से बैग उठाये और अपने कमरे की और बढ़ गयी l कमरे में आकर उसने कबर्ड से सुटकेस निकाला और उसमे सामान जमाने लगी l उसने अपने कुछ कपडे और जरुरी सामान रखा l
कुछ केश और जरुरी डाक्यूमेंट्स रखे l लेपटॉप और उससे जुड़ा सामान उसने एक अलग बेग में रख लिया l सारिका ने कबर्ड में रखे दो-तीन बैग्स उठाये और उन्हें लेकर बिस्तर पर सूटकेस के पास आ बैठी कुछ देर तक वह उन तीनो बैग्स को देखती रही और फिर उनमे से एक बेग उठाया उसमे एक बनारसी साड़ी थी जो उसने अपनी माँ के लिए खरीदी थी l सारिका उसे अपने हाथो में लेक देखने लगी और मन ही मन खुद से कहने लगी
“माँ ने एक दिन बताया था की उन्हें बनारसी साड़ी बहुत पसंद है ,
हमेशा से वो ये पहनना चाहती थी पर पापा को पसंद नहीं था l उन्हें साड़ी से नहीं बल्कि उस साड़ी से जुड़े शब्द बनारस से ऐतराज था l और ये ऐतराज हमारी वजह से था l लेकिन फिर भी हमने इसे माँ के लिए ख़रीदा ये जानते हुए भी की पापा इसे स्वीकार नहीं करेंगे l पर हम भी तो उन्ही का खून है , जिद्दी देखते है कब तक इंकार करते है”
सारिका ने साड़ी को सहेजकर सूटकेस के एक कोने में रख लिया l सारिका ने दूसरे बेग से सामान निकाला उसमे सफ़ेद रंग का गूची का कुरता था
जो सारिका ने पिछले महीने लखनऊ से ख़रीदा था जब वो किसी मीटिंग के सिलसिले में वहा गयी थी l बचपन से उसने अपने पापा को सफेद कुर्ते ,चूड़ीदार पाजामे में देखा है l बचपन में सारिका को लगता था की सफ़ेद उसके पापा का पसंदीदा रंग है लेकिन ऐसा नहीं था उसके पापा को रंगो से परहेज था l इसलिए वह हमेशा अपने लिए सफ़ेद रंग ही चुनते थे l
सारिका उस कुर्ते को छूकर महसूस करने लगी और सोचने लगी,”इस बार पापा से जाते ही पूछेंगे की क्यों वो हर बार हमारा दिया तोहफा लेने से इंकार कर देते है ? क्या हमारा कोई हक़ नहीं बनता ? अगर इस बार मना किया तो फिर हम वो सारी शिकायते कर देंगे उनसे जो हमे है l लेकिन उनके सामने जाने पर हमारी आवाज ही नहीं निकलती शिकायत क्या करेंगे ? पर जब वो इसे पहनेंगे तो कितने अच्छे लगेंगे l “
सारिका ने कुर्ते को भी सूटकेस की एक साइड में रख लिया l तीसरे बेग में एक छोटा सा बॉक्स था जिसमे पायल थी सारिका ने उन्हें निकालकर हथैली पर रखा तो उसकी चमक से आँखे चुंधियाने लगी l सारिका ने उन्हें अपनी छोटी बहन अनामिका के लिए खरीदा था l उसे याद था जब एक बार अनमिका ने बाजार में पायल देखकर उन्हें लेने की जिद की थी उस वक्त सारिका के माँ पापा की आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी l तब सारिका ने कहा था,”छोटी जब हमारे पास बहुत सारे पैसे होंगे तब हम तुम्हारे लिए महंगी से महंगी पायल खरीद कर लाएंगे , उनकी चमक इतनी तेज होगी की तुम्हारी आँखे चुंधिया जाएँगी”
10 साल की बच्ची उस वक्त क्या समझती धीरे धीरे वो उस बात को भूल गयी पर सारिका , उसे अपना वादा याद था l उसने अनमिका के लिए महंगी से महंगी डायमंड जड़ी हुई पायल खरीदी थी l उसने मुस्कुराते हुए डिब्बा सूटकेस में निचे रख दिया lसारिका ने बाकि सब सामान जमाकर सूटकेस बंद कर दिया l मीना तब तक कॉफी ले आयी l सारिका को कॉफी देकर वह कमरे में इधर उधर पड़ा सामान व्यवस्थित करने लगी l
सारिका ने कॉफी पि और फिर तैयार होने चली गई l उसने चूड़ीदार सूट पहना और बालो को क्लिप लगाकर खुला छोड़ दिया l
घडी में देखा तो शाम के 5 बज रहे थे l मीना अपने घर चली गयी थी . सारिका ने अपना सामान निकाला और घर को लॉक करने लगी तो उसे कुछ याद आया और वह दौड़ते हुए अंदर आयी l उसने कमरे में इधर उधर नजर दौड़ाई तो उसे बेड के साइड में रखी टेबल पर खुली पड़ी अपनी डायरी मिल गयी l सारिका ने लपककर डायरी को उठाया और बंद करके सीने से लगा लिया l अपने रांझणा के बिना वो कैसे जा सकती थी l
सारिका अपना सामान रखकर गाड़ी में आ बैठी l ड्राइवर से एयरपोर्ट चलने को कहा गाड़ी अभी कुछ दूर ही आगे बढ़ी थी की सारिका ने कहा,”काका गाड़ी मरीन ड्राइव ले लीजिये”
“ठीक है”,कहकर ड्राइवर ने गाड़ी समंदर जाने वाले रास्ते की और मोड़ दी l कुछ देर बाद गाड़ी समंदर किनारे थी l सारिका अपनी डायरी और पेन लेकर गाड़ी से उतरी और निचे पत्थरो पर आकर बैठ गयी l
ठंडी हवाओ ने बहते हुए उसके गालो को छूआ l अक्सर ये समंदर ऐसे ही उसका स्वागत किया करता था सारिका ने डायरी खोली और लिखने लगी
“आज बहुत हिम्मत जुटाकर घर वापस जा रहे है , वापस जाने की एक वजह आप भी है l हाँ हम बनारस आना चाहते है , बहुत रोक लिया खुद को अब और नहीं रोक पाएंगे l मिलना चाहते है आपसे बहुत कुछ कहना है आपसे l जानते है हमारा ये फैसला पापा को पसंद नहीं आएगा पर एक बार उन्हें मनाने की कोशिश करना चाहते है l आप सोच रहे होंगे इतने साल बाद मुझमें ये हिम्मत कहा से आई l पर क्या करू इस मोहब्बत ने मुझे बागी बना दिया l
जानते है आप भी हमसे नाराज होंगे की हमने आने में इतना वक्त क्यों लगा दिया ? पर आपसे मिलने के बाद जब आपको बताएंगे तो आप समझ जायेंगे l बीती हर बात आपको घाट की सीढ़ियों पर बैठकर बताएँगे क्योकि हमने सूना है वहा बैठकर कोई झूठ नहीं बोलता l l हम भी आपसे झूठ बोलना नहीं चाहते l अब चलते है वरना देर हो जाएँगी , हम इन फ़ासलो में अब और दूरिया नहीं चाहते है l”
सारिका ने डायरी बंद की और उठकर वापस गाड़ी की तरफ बढ़ गयी l एयरपोर्ट पहुंचकर सारिका ने अपनी टिकट कन्फर्म की और प्लेन की और बढ़ गयी l किस्मत से उसे खिड़की के पास वाली सीट मिली थी सारिका आकर वहा बैठ गयी और कानो में हेडफोन लगाकर सर सीट से लगा लिया l
खिड़की से बाहर देखते हुए वह एक बार फिर अतीत की यादो से घिर गयी l हेडफोन पर गाना बजने लगा l
“मांगा जो मेरा है , जाता क्या तेरा है
मैंने कौनसी तुझसे जन्नत मांग ली “
कुछ समय बाद सारिका इंदौर में थी l एयरपोर्ट से बाहर आकर उसने कैब बुक की और घर के लिए निकल गयी l रात के 9 बज रहे थे सारिका ने डोरबेल बजाई l ना जाने क्यों उसका दिल धड़क रहा था l उसने अपनी धड़कनो को सामान्य किया और एक बार फिर डोरबेल बजा दी l दरवाजा अम्बिका ने खोला जैसे ही उसने सामने देखा तो ख़ुशी और हैरानी से सारिका को देखने लगी l उनकी आँखों में नमी तैर गयी और होंठो पर मुस्कराहट तैर गयी l
सारिका को अपने सामने देखकर वे कुछ बोल ही नहीं पाई l उन्हें चुप देखकर सारिका आगे बढ़ी और उनके पांव छूकर कहा,”कैसी है आप ?
“हम ठीक है आप कैसी है ?”,अम्बिका के मुंह से मुश्किल से दो शब्द निकले l
“हम ठीक है , अंदर आने को नही कहेंगे”,सारिका ने उनकी आँखों में देखते हुए कहा
“हां आईये ना सारिका आपका ही घर है”,कहते हुए अम्बिका ने नौकर से सामान अंदर लेकर आने को कहा और खुद सारिका के साथ अंदर चली आई l
सारिका अंदर आयी तो देखा पूरा घर बदल चुका है l पुरानी चीजों की जगह नई चीजो ने ले ली है l कार्पेट , फर्नीचर , घर का रंग , सोफे , कुर्सियां सब बदली जा चुकी है बल्कि इनकी जगह अब महंगे फर्नीचर और कार्टपेट्स ने ले ली है l यहाँ तक के खिड़की दरवाजो के शीशे और परदे भी बदले जा चुके है l
सारिका ने नजर घुमाकर चारो और देखा और फिर अम्बिका से कहा,”पुराना सामान कहा गया ?
अम्बिका – वो आपके पापा ने बदलवा दिया
सारिका – पर क्यों ?
अम्बिका – वो काफी पुराना हो गया था
सारिका – कुछ चीजे कभी पुरानी नहीं होती है माँ (चेहरे पर दर्द उभर आता है)
अम्बिका – सारिका वो आपके पापा ने…………………….अम्बिका ने बात अधूरी छोड़ दी l
सारिका – अब कहा है वो सब ?
अम्बिका – ऊपर स्टोर के पास कमरे में सब व्यवस्थित रखवाया हुआ है
सारिका – हमारा सामान उस कमरे में भिजवा दीजियेगा , कुछ दिन यही रुकेंगे हम
सारिका के मुंह से रुकने की बात सुनकर अम्बिका का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा वह एकदम से सारिका के सामने आई और कहा,”क्या आप सच कह रही है सारिका ? हम बता नहीं सकते आपको यहाँ देखकर हम कितने खुश है l आज सुबह से ही हम आपके बारे में सोच रहे थे और देखिये आप आ गयी l अरे ! आप खड़ी क्यों है ? आईये बैठिये ,,, रमा पानी ले जरा”
उन्होंने किचन में काम करती बाई को आवाज देते हुए कहा l
सारिका आकर सोफे पर बैठ गयी और दीवारों को देखने लगी वो जो ढूंढ रही थी वो उन दीवारों पर नहीं था दिल टूटकर अंदर ही अंदर बिखर रहा था पर उसने अपने होंठो की मुस्कराहट को बरक़रार रखा l रमा पानी ले आई सारिका को पानी देकर रमा जाने लगी तो अम्बिका ने उसे सबके लिए खाना लगा देने को कहा l
“सारिका , रमा खाना लगाए तब तक आप फ्रेश होकर आ जाईये , कल नमन से कहकर हम वो कमरा साफ करवा देंगे तब तक आप गेस्ट रूम में रुक जाईये”,अम्बिका ने अपना हाथ सारिका के हाथ पर रखते हुए कहा l
सारिका मुस्कुरा दी l अपने ही घर में मेहमान की तरह रहना उसे एक बार फिर अंदर तक छलनी कर गया l सारिका उठी और अपना छोटा बेग लेकर गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गयी l अम्बिका कीचन में आई और अपने हाथो से सारिका के लिए उसका पसंदीदा खाना बनाने लगी l सारिका गेस्ट रूम में आई उसने बेग खोला और टी-शर्ट लॉवर निकाला और लेकर बाथरूम की तरफ चली गयी l नहाने से उसे थोड़ा आराम मिला l
सारिका बाहर आई तब तक रमा टेबल पर खाना लगा चुकी थी l सारिका आकर कुर्सी पर बैठ गयी l अम्बिका भी बिलकुल उसके सामने आकार बैठ गयी l रमा ने खाने की दो प्लेट लगा दी l दो प्लेट में खाना देखकर सारिका ने कहा,”पापा नहीं खाएंगे “
“वो हम आपको बताना भूल गए थे , आपके पापा किसी जरुरी काम से शहर से बाहर गए है सुबह तक आएंगे”,अम्बिका ने कहा
“हम्म”,कहते हुए सारिका ने निवाला तोडा और खाने लगी
अम्बिका ने सारिका के लिए नारियल डालकर सूजी का हलवा बनाया था l बचपन से ही सारिका को सूजी का हलवा बहुत पसंद था l आज सारिका पुरे एक साल बाद आई थी इसलिए अम्बिका ने खुद अपने हाथो से सारिका के लिए हलवा बनाया था l उसने चम्मच से हलवा एक कटोरी में निकाला और सारिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा,”ये हमने बनाया है आपके लिए , खाकर बताईये कैसा बना है ?
सारिका ने कटोरी ली और उसमे से एक चम्मच हलवा लेकर चखा l हलवा अच्छा बना था सारिका ने अम्बिका की तरफ देखकर कहा,”अच्छा बना है ! लेकिन उन हाथो जैसा स्वाद नहीं है इसमें”
सारिका की बात सुनकर अम्बिका का चेहरा एक पल के लिए उतर गया लेकिन उसने मुस्कुराते हुए कहा,”हम फिर से कोशिश करेंगे !!
कहने को बहुत कुछ था दोनों के पास पर उस वक्त ना शब्दों ने साथ दिया ना ही जुबा ने l दोनों चुपचाप खाना खाती रही l खाना खाकर सारिका ने कुछ देर अम्बिका से बात की और फिर फोन आने की वजह से उठकर चली गयी l जब तक सारिका ने बात की तब तक अम्बिका ने गेस्ट रूम में उसके लिए कम्बल और तकिया रखा l टेबल पर पानी की बोतल रखकर आ गई l सारिका कमरे में आई 11 बज रहे थे l उसने बेग से लेपटॉप निकाला और कुछ काम करने लगी l
काम खत्म करते करते उसे रात का 1 बज गया l सफर की थकान से उसका बदन टूटने लगा था l उसने लेपटॉप बंद किया और लेट गयी जल्दी ही नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया l अम्बिका पानी लेने उठी तो गेस्ट रूम की लाइट जली देखकर उस और आयी l उसने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर आई l
सारिका गहरी नींद में थी अम्बिका ने पांवो के पास पड़ी कम्बल को उठाया और सारिका को ओढ़ाकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा l कुछ पल वह उसके मासूम चेहरे को देखती रही और फिर कमरे की लाइट बंद करके चली गयी l काफी वक्त बाद सारिका अपने घर में सुकून की नींद सो रही थी l
सुबह सारिका देर से उठी l अम्बिका ने जानबूझकर उसे नहीं उठाया था l वो जानती थी सारिका दिन रात काम में बिजी रहती है ऐसे में उसे आराम करने के लिए बहुत कम वक्त मिल पाता है l सुबह 8 बजे सारिका की नींद खुली वह उठी और फ्रेश होने बाथरूम की और बढ़ गयी l बाहर आकर वह सोफे पर बैठ गयी और न्यूज़पेपर देखने लगी l अम्बिका उसके लिए कॉफी ले आई और सारिका थमा दी l
“पापा आ गए ?”,सारिका ने कॉफी का मग लेते हुए कहा
“वो तो सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकल गए”,अम्बिका ने कहा
“हमसे मिले बिना ही , आपने उन्हें बताया नहीं हम आये है”,सारिका ने थोड़ा उदासी भरे लहजे में कहा
“बताया था पर आप सो रही थी तो उन्होंने कहा वो आपसे शाम में मिल लेंगे”,अम्बिका ने सारिका से नजरे चुराते हुए कहा
सारिका ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप कॉफी पीने लगी l वह जानती थी यहाँ कुछ रुकने के लिए उसे खुद से कितनी जद्दोजहद करनी पड़ेगी l कुछ देर बाद सारिका उठी और जाने लगी तो अम्बिका ने कहा,”सारिका नाश्ते में क्या लेंगी आप ?”
सारिका पलटी और मुस्कुराते हुए कहा,”हमारी पसंद नापसंद से अब इस घर में कोई खास फर्क नहीं पड़ता , आपको जो अच्छा लगे बना लीजिये हम खा लेंगे”
सारिका वहा से चली गयी l अम्बिका उस मुस्कराहट के पीछे के दर्द को देख सकती थी पर सारिका का दर्द बाटने में असमर्थ थी वो l
दिन भर सारिका ऊपर वाले कमरे को साफ करने में लगी रही l रमा ने मदद करनी चाही तो सारिका ने मना कर दिया वह अकेले ही सब कर रही थी l हर चीज को वह बड़ी आत्मीयता से साफ करती जा रही थी l ऐसे लगता जैसे उन सभी पुरानी चीजों से उसकी जिंदगी की बहुत खूबसूरत यादे जुडी हो l उस वक्त सारिका के चेहरे पर जो सुकून था वो बहुत कम देखने को मिलता था l
शाम तक सारिका उस कमरे में शिफ्ट हो गयी l शाम को सारिका हॉल में बैठकर लेपटॉप पर कुछ जरुरी मेल्स चेक कर रही थी तभी उसे कोई अर्जेंट मेल मिला l सारिका ने खोलकर देखा l काफी देर तक सोचने के बाद उसने
“ok i’ll be come send location , place and time” लिखकर सेंड कर दिया l
कुछ देर बाद उसे एक मेल मिला जिसमे सब सूचनाएं थी और आने की रिक्वेस्ट की गयी थी l सारिका ने लेपटॉप ऑफ कर दिया और किचन में आकर अम्बिका की हेल्प करने लगी तो अम्बिका ने उसे रोकते हुए कहा,”अरे बेटा हम कर लेंगे आप क्यों परेशान हो रही है ?”
“करने दीजिये ना , हमारा मन है”,सारिका ने इतने प्यार से कहा की अम्बिका मना नहीं कर पाई
सारिका ने अपने पापा की पसंद की दाल बनाई और साथ में पनीर की सब्जी l खाना बनने के बाद अम्बिका के साथ बैठकर वह उनके आने का इंतजार करने लगी l लेकिन अधिराज जी नहीं आये सारिका उठकर कमरे में जाने लगी तो अम्बिका ने कहा,”सारिका आप खा लीजिये वो शायद देर से आएंगे”
“नहीं माँ भूख नहीं है”,कहकर सारिका नम आँखों से वहा से चली गयी l
ये जानते हुए भी की सारिका दो दिन से घर पर है अधिराज जी उस से नहीं मिले l सारिका जानती थी और अम्बिका जानकर भी अनजान बन रही थी l पर सारिका इस बार उन्ही से मिलने आयी थी लेकिन उनके ऐसे बर्ताव से वह बहुत उदास हो गयी और उस रात वह उस तस्वीर के सामने रो पड़ी l उसे कब नींद आयी पता ही नहीं चला l
अगली सुबह , मीलो दूर , बनारस के घाट पर खड़ा वह लड़का पंडित जी के साथ किसी बात चित में उलझा हुआ था l मुरारी हाथ में अख़बार पकडे भागता हुआ आया और लड़के के सामने आकर ख़ुशी से चहकते हुए कहा,”गुरु ऐसी खबर लाया हु सुनते ही ख़ुशी से झूम उठेगा तू”
“ऐसी क्या खबर लाया है ?”,लड़के ने हैरानी से अपनी आँखे फैलाते हुए पूछा
“तेरी वो नज्मो वाली मैडम जी है ना , उनका पता चल गया”,मुरारी ने ख़ुशी भरते हुए कहा
“क्या ? क्या तू सच कह रहा है ?”,लड़के को मुरारी की बात का यकींन नहीं हो रहा था
“अबे ये देख पेपर में आया “बेनाम लेखिका से बातचीत के खास पल” दो दिन बाद आगरा में, मुरारी ने अख़बार लड़के की तरफ बढाकर कहा
लड़के ने जल्दी से वह खबर पड़ी उसका दिल ट्रेन से बह तेज धड़क रहा था होंठो की मुस्कराहट गायब होने का नाम नही ले रही थी उसने मुरारी की तरफ देखा और ख़ुशी से चहकते हुए कहा,”अरे मुरारी जिओ मेरी जान , तुम नहीं जानते तुमने हमको क्या दीया है l इतनी ख़ुशी हो रही है ना हमे की हम तुम्हे बता नहीं सकते”
कहते हुए लड़के ने मुरारी को गले लगा लिया और फिर अलग होकर दौड़ता हुआ सीढिया चढ़कर ऊपर जाने लगा l मुरारी ने उसे इस तरह भागते देखा तो चिल्लाकर कहा,” अरे शिवम ! अब कहा जा रहा है ?
लड़का पलटा और नम आँखों के साथ कहा,”भोलेनाथ को शुक्रिया कहने”
शिवम् की नम आँखों को देखकर मुरारी ने कहा,”हे ! भोलेनाथ इसे इसकी मैडम जी से मिलवा देना”
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संजना किरोड़ीवाल
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