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Pasandida Aurat – 31

Pasandida Aurat – 31

Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

सुबह सुबह नकुल पृथ्वी को लेकर आस पास के मंदिरो में घूमने चला गया और आज अवनि और सुरभि भी सारनाथ के लिए निकल गयी और इस तरह चारो एक बार फिर एक दूसरे से नहीं मिल पाए। मंदिरो में घूमने के बाद पृथ्वी और नकुल ने नाश्ता किया और अपना सामान लेकर स्टेशन चले आये क्योकि सुबह 11 बजे उनकी ट्रेन थी। नकुल बनारस की इस ट्रिप से बहुत खुश था तो वही पृथ्वी बनारस आने से पहले चिढ़ा हुआ था लेकिन जब बनारस से जाने की बारी आयी तो उसका मन उदास हो गया

ट्रेन पूरा डेढ़ घंटा लेट थी आने में अभी वक्त था इसलिए नकुल पृथ्वी को सामान का ध्यान रखने को कहकर खुद खाना पैक करवाने बाहर चला गया। पृथ्वी ने खाली पड़ी बेंच पर बैग रखे और खुद भी वही आकर बैठ गया। प्लेटफॉर्म पर किसी गाने की धुन बज रही थी जिस पर पृथ्वी का ध्यान पड़ा तो उसे अहसास हुआ कि ये उसके पसंदीदा गाने की धुन थी। सामने खड़ी ट्रेन चलने लगी और धीरे धीरे आगे बढ़ी इसी के साथ बनारस में बिताये पल एक एक करके पृथ्वी की आँखों के सामने आने लगे।

उसका बनारस आना , अस्सी घाट की चाय , नकुल के पीछे भागना , घाट पर लाशों को जलते देखना , बाबा की कही बाते , काल-भैरव मंदिर का अहसास , बनारस की गलिया , काशी-विश्वनाथ मंदिर में मिला फूल और पायल , शयन आरती , नाव पर घूमना , और अवनि,,,,,,,,,!!


अवनि के ख्याल के साथ ही ट्रेन आगे बढ़ गयी लेकिन अवनि का ख्याल पृथ्वी के जहन से नहीं गया। उसकी आँखों के सामने बार बार हाथ जोड़े आँखे मूंदे अपने होंठो से कुछ बुदबुदाती अवनि आ रही थी और जैसे ही पृथ्वी ने सामने देखा उसे अवनि सामने खड़ी दिखाई दी। हैरानी की बात तो ये थी कि उसे सब याद आया लेकिन सुरभि से हुई मुलाकात नहीं जिसका साफ मतलब था कि बाकि लोगो और घटनाओ की तरह पृथ्वी के लिए सुरभि का होना मायने नहीं रखता था।
   
पृथ्वी का मन बेचैनी से घिर गया , जब उसने अवनि को देखा था तब उसका दिल वैसे ही धड़का था जैसे रिक्शा और काशी विश्वनाथ मंदिर में लेकिन अवनि को देखने के बाद दोबारा उसका ख्याल पृथ्वी के जहन में आया ही नहीं फिर अब जब वह बनारस से वापस जा रहा है तो क्यों उस लड़की का ख्याल उसके जहन से जाने का नाम नहीं ले रहा।

पृथ्वी ने सामने देखा अवनि उसे अब भी नजर आ रही थी वह उठा और धीमे कदमो चलते हुए सामने बढ़ गया। पृथ्वी को अपने आस पास सब धुंधला दिखाई दे रहा था और सामने अवनि दिखाई दे रही थी।

पृथ्वी आगे बढ़ता जा रहा था उसे ये भी नहीं पता था कि सामने नीचे रेल की पटरिया है और गहरा खड्डा है। पृथ्वी ने जैसे ही कदम बढ़ाया नकुल ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा,”ए पृथ्वी ! कहा जा रहा है अभी तो नीचे गिर जाता”
पृथ्वी होश में आया देखा अवनि का अक्स भी हवा में किसी धुएं की तरह गायब हो चुका है। उसने अपने बगल में खड़े नकुल को देखा और फिर नीचे तो पाया कि वह प्लेटफॉर्म के बिल्कुल किनारे खड़ा था। अगर एक कदम और आगे बढ़ाता तो सीधा नीचे जा गिरता।

पृथ्वी का दिल धड़कने लगा उसके साथ ऐसा क्यों हुआ वह नहीं समझ पाया। पृथ्वी को परेशान देखकर नकुल उसे लेकर बेंच पर आया और सामने से गुजरते चाय वाले को दो चाय देने को कहा।
नकुल ने एक कप पृथ्वी की तरफ बढ़ा दिया और दूसरा खुद लेकर पीते हुए कहा,”तुम वह किनारे पर क्या कर रहे थे ?”


“देखने गया था कितना गहरा है ?”,पृथ्वी ने चाय का घूंठ भरकर कहा
नकुल ने सुना तो हैरानी से उसे देखने लगा और अगले ही पल हंसकर कहा,”हाहाहा तुम भी न , हम्म चिप्स खाओ”  
पृथ्वी ने नकुल के हाथ में पकड़े पैकेट से चिप्स निकाला और खाकर कहा,”कितना अजीब है ना दो दिन पहले मैं इस शहर में आना तक नहीं चाहता था और अब जाने का वक्त हुआ तो मन भारी हो रहा है,,,,,!!”
“यही तो इस शहर की सबसे खूबसूरत बात है। लोग इस शहर से चले जाते है लेकिन उनके दिल से फिर ये शहर कभी नहीं जाता”,नकुल ने चिप्स खाते हुए कहा


“हम्म्म,,,,,,या फिर लोग इस शहर में अपना मन इसलिए छोड़ जाते होंगे क्योकि उनके जीवन में दुःख की वजह उनका मन है”,पृथ्वी ने दार्शनिक अंदाज में कहा
“तुम कभी कभी एक Writer की तरह बात करते हो , क्या कभी तुम्हारे जहन में किताब लिखने का ख्याल आया है ?”,नकुल ने गंभीर होकर कहा
 पृथ्वी ने नकुल की तरफ देखा और कहा,”अगर मैने किताब लिखी तो वो दुनिया की सबसे बेकार किताब होगी जिसे कोई पढ़ना पसंद नहीं करेगा”


“हम्म्म , अच्छा मैंने लंच के लिए कुछ सिम्पल पराठे और सब्जी पैक करवाई है बाकि कुछ सूखा नाश्ता भी ले लिया है। रात का खाना हम स्टेशन से ऑनलाइन आर्डर कर लेंगे बस अब ट्रेन आ जाये , मैं अब सच में बहुत थक चुका हूँ,,,,,,,,,!!”,नकुल ने बुझे स्वर में कहा
पृथ्वी ने उसका सर अपने कंधे पर रखा और थपथपा कर कहा,”तब तक यहाँ सो सकते हो , ट्रेन आएगी तो मैं उठा दूंगा”


नकुल ने आँखे मूंद ली और मुस्कुरा उठा , पृथ्वी को बनारस लाने का उसका जो मकसद था वो पूरा जो हो चुका था। कुछ समय बीता और ट्रेन आ गयी। पृथ्वी ने नकुल को उठाया और दोनों अपना अपना सामान लेकर ट्रेन में चढ़ गए। पृथ्वी ने सीट देखी और दोनों अपनी अपनी सीटों पर आ बैठे इस बार दोनों को लोअर सीट मिली थी। ट्रेन कुछ देर स्टेशन पर रुकी और फिर आगे बढ़ गयी।

पृथ्वी उठकर गेट पर चला आया और पीछे छूटते बनारस को देखने लगा। उसका मन भारी होने के साथ साथ अब उदास भी हो गया और जैसे ही ट्रेन ने गति पकड़ी वह उदास आँखे लिए अंदर चला आया और आकर अपनी सीट पर बैठ गया।

अस्सी घाट की सीढ़ियों पर बैठी अवनि उदास आँखों से सामने बहती माँ गंगा के उस पास देख रही थी। अवनि की आँखों में भरी उदासी उसके चेहरे पर उतर आयी और उसने अपनी धीरे से अपनी आँखे बंद कर ली। बनारस में बिताया एक एक पल उसकी आँखों के सामने आने लगा।

अस्सी घाट , काल भैरव मंदिर , महामृत्युंजय मंदिर , साड़ी पहनकर बनारस की गलियों में घूमना , साइकिल रिक्शा की सवारी , काशी विश्वनाथ दर्शन और शयन आरती , बनारस का लजीज खाना , हनुमान मंदिर की परिक्रमा , सुरभि को छेड़ना उसके साथ खिलखिलाना और आखिर में अवनि का ख्याल पृथ्वी के चेहरे पर आकर रुक गये।

अस्सी घाट पर गंगा आरती के उस पार हाथ जोड़े आँखे मूंदे खड़े पृथ्वी का चेहरा उसे नजर आ रहा था और इसी के साथ अवनि का दिल धड़कने लगा।  बनारस में बिताये उन सेंकडो पलो में अवनि को एक बार भी सिद्धार्थ का चेहरा नजर नहीं आया जबकि उस से वह दो बार मिली थी जबकि पृथ्वी की उसने बस एक झलक देखी थी लेकिन फिर भी उसे पृथ्वी का वो मासूम चेहरा याद रह गया। अवनि ने अपनी आँखे खोली दिल अभी भी धड़क रहा था साथ ही उन ख्यालो  की जगह अब बेचैनी ने ली।


सुरभि अपने हाथो में दो कागज के कोन भेलमुरी लेकर आयी और अवनि के बगल में बैठकर एक उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा,”क्या हुआ अवनि ? जाने का दिल नहीं कर रहा ना ?”
अवनि ने सुना तो सुरभि की तरफ देखा उसकी आँखों में आँसू थे और चेहरा हलकी रंगत के साथ गुलाबी हो चुका था ये देखकर सुरभि ने कहा,”अरे ये क्या ? क्या अवनि इतना अच्छा वक्त बिताया यहाँ और अब आँखों में आँसू बल्कि तुम्हे तो ख़ुशी ख़ुशी अपने बनारस को फिर से आने के वादे के साथ अलविदा कहना चाहिए और मैं महादेव से प्रार्थना करुँगी इस बार तुम दोनों यहाँ आओ”


“दोनों कौन ?”,अवनि ने अपनी आँख के किनारे को साफ करके पूछा
“वो मेरी महादेव से बात हो चुकी है उनके और मेरे बीच की बात है , अब ये खाओ और फिर होटल चलते है , बैग्स भी तो पैक करने है और फिर स्टेशन निकलना है। मैंने टिकट चेक कर ली है कन्फर्म है”,सुरभि ने अपने कोन से भेलमुरी खाते हुए कहा
अवनि भी भेलमुरी खाने लगी और कुछ देर बाद दोनों वहा से उठकर होटल के लिए निकल गयी। आज रात उनकी जोधपुर के लिए वापसी जो थी।

मरुधर सोसायटी , मकान नंबर 154 , सिरोही , राजस्थान
सिद्धार्थ सुबह जल्दी अपने घर चुका था , थकान की वजह से उसे नींद आ रही थी इसलिए वह घर सो गया। दिनभर सोने के बाद शाम में उठा। गर्म पानी से अच्छे से नहाया और गर्म कपडे पहनकर कमरे से बाहर चला। गिरिजा जी ने शाम की चाय चढ़ा दी , जगदीश जी भी वही हॉल में बैठे थे। सिद्धार्थ दोनों के लिए बनारस से जो जो खरीदा था वह निकालकर रखने लगा।

गिरिजा को तो बनारसी साड़ी बहुत पसंद आयी और जगदीश जी को भी गर्म शॉल अच्छा लगा। घर के लिए भी सिद्धार्थ कुछ सामान लेकर आया था उसने सब गिरिजा को दिया और फिर चाय पीने लगा।
गिरिजा ने जगदीश जी को चाय दी और अपनी चाय लेकर खुद भी हॉल में आ बैठी। सिद्धार्थ अपने फोन में बिजी था और बनारस में खींची तस्वीरें देख रहा था

जगदीश ने गिरिजा से कुछ इशारा किया तो गिरिजा सिद्धार्थ की तरफ पलटी और कहा”सिद्दू ! भुआजी ने तुम्हारे लिए एक रिश्ता बताया है , लड़की अच्छी है और घर परिवार भी अच्छा है। अपने ही शहर से है , कल संडे है तुम कहो तो हम चलकर कल लड़की से मिल ले ?”
“रिश्ते की बात सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे के भाव बदल गए , उसके चेहरे की ख़ुशी एकदम से गायब हो गयी उसने गिरिजा की तरफ देखा और कहा,”मम्मी ! मुझे किसी लड़की से नहीं मिलना और मुझे अभी शादी नहीं करनी,,,,,,,,!!”


“अभी नहीं करनी तो कब करोगे 30+ हो चुके हो , अभी सामने से रिश्ते आ रहे है तो तुम मना कर रहे हो बाद में कोई लड़की नहीं देगा”,जगदीश जी ने कहा
“पापा ! इतनी भी क्या जल्दी है थोड़ा रुक जाईये , मेरे नसीब में जो लड़की लिखी है वो मिल जाएगी तो मैं शादी कर लूँगा बाकि ये रोज रोज लड़किया देखना मुझसे नहीं हो पायेगा”,सिद्धार्थ ने कहा और खाली कप टेबल पर रखकर वहा से बाहर चला गया


“इसके नसीब में कौन लिखी है इसे क्या पता ? गिरिजा समझाओ इस लड़के को आखिर कब तक ये ऐसे ही रहेगा ,, इसे अब अपनी जिम्मेदारिया समझनी चाहिए। मेरे भाईयो के लड़के शादी करके अपनी अपनी जिंदगी में खुश है और एक ये है जो हर रिश्ते को ठुकरा रहा है,,,,,,,,,समझाओ इसे”,कहकर जगदीश जी उठे और अपने कमरे में चले गए।


सिद्धार्थ और जगदीश जी की बात सुनकर गिरिजा परेशानी में पड़ गयी वह बाप और बेटे के बीच फंस जो चुकी थी। कुछ देर वही बैठे रहने के बाद वे उठी और रात का खाना बनाने किचन की तरफ चली गयी। सिद्धार्थ घर के बाहर गैलरी में चला आया और वहा खड़े होकर अवनि के बारे में सोचने लगा।

 रात के 9 बज रहे थे नकुल और पृथ्वी ने खाना खाया इसके बाद नकुल अपनी बर्थ पर लेटकर रिया से बात करने लगा और अपनी सीट पर बैठा पृथ्वी अपने फ़ोन आये मेल्स और नोटिफिकेशन चेक करने लगा जिसमे एक मैसेज जयदीप का भी था। मंडे को पृथ्वी को किसी भी हालत में ऑफिस पहुंचना था क्योकि
एक मीटिंग थी और उसमे पृथ्वी का होना बहुत जरुरी था। पृथ्वी ने ओके लिखकर भेजा और फोन साइड में रख दिया।

मुंबई पहुँचने ही उन लोगो को 20-22 घंटे लगने वाले थे और उसके बाद ऑफिस जाना आसान नहीं था लेकिन पृथ्वी अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को हमेशा अलग अलग रखता था। नकुल तो फ़ोन में बिजी था लेकिन पृथ्वी का मन नहीं लग रहा था। उस कोच में 6 स्लीपर सीट थी क्योकि ये 2nd AC का कोच था।

पृथ्वी नकुल के अलावा ऊपर वाली बर्थ पर एक दम्पति और उनका 5 साल का बेटा था। साइड वाली लोअर पर एक अंकल थे जो उदास आँखों से खिड़की के बाहर देख रहे थे और उनसे ऊपर वाली बर्थ पर 20-22 साल का लड़का कानों पर हेडफोन लगाए अपने लेपटॉप में कोई फिल्म देख रहा था।

पृथ्वी अकेला बोर होने लगा उसने नकुल की तरफ देखा लेकिन नकुल तो अकेला ही चैटिंग करते हुए खुश था तभी पृथ्वी की नजर नकुल के बैकबैग के ऊपरी दराज पर पड़ी जिसमे से किसी किताब का आधा हिस्सा बाहर झांक रहा था। अपनी बोरियत दूर करने के लिए पृथ्वी ने उस किताब को निकाला और देखा। किताब के कवर पेज पर बनारस के अस्सी घाट की बहुत ही सुन्दर तस्वीर छपी थी , ये बिल्कुल वैसा ही था जैसा पृथ्वी ने देखा था। पृथ्वी ने किताब का नाम देखा “बनारस ही क्यों ?”

ये अपने आप में एक सवाल भी था और किताब के रूप में जवाब भी,,,,,,,,,!! किताब के कोने में किताब लिखने वाले का नाम भी लिखा था “अवनि मलिक”  
पृथ्वी ने किताब को पलटकर देखा , किताब के पीछे का कवर और भी इंट्रेस्टिंग था पीछे वाले कवर पर मणिकर्णिका घाट की तस्वीर थी जहा पृथ्वी जा चुका था और उसी तस्वीर के साथ लिखा था “और अंत में तुम्हे यही आना है”
पृथ्वी ने देखा उस किताब में कही भी Writer की कोई तस्वीर नहीं है उसने किताब को खोला और पढ़ने लगा।

किताब जो शुरू भी अस्सी घाट से हुई थी पृथ्वी को बांधने में सफल हुई और पृथ्वी उसे पढ़ने लगा। उस किताब को पढ़ने में पृथ्वी इतना खो गया कि ना उसे वक्त का पता चला ना भूख प्यास का वह जैसे जैसे किताब पढ़ रहा था वैसे वैसे यह उसके लिए और दिलचस्प होती जा रही थी जिसकी वजह थी उस किताब में उन्ही सब जगहों के बारे में लिखा था जहा पृथ्वी गया था।

पृथ्वी ने महसूस किया कि इस किताब में बहुत ही बारीकी और सरलता से सब लिखा गया ठीक वैसा ही जैसा हम अपनी आँखों से देखते है , लेखिका ने इसमें लिखे किस्से और जानकारी अपने अंदाज में लिखी थी और यही बात इस किताब को दिलचस्प बना रही थी।


सुबह के 5 बजे जब ट्रेन किसी स्टेशन पर आकर रुकी तब पृथ्वी की तन्द्रा टूटी वह किताब का 70 प्रतिशत भाग पढ़ चुका था .  नकुल सो रहा था इसलिए पृथ्वी ने उसे नहीं उठाया और किताब को हाथ में थामे ट्रेन से नीचे उतर गया। उसने अपने लिए एक चाय ली और ट्रेन के पास चला आया। चाय पीते हुए पृथ्वी ने किताब पर लिखे “अवनि मलिक” के नाम को देखा और बुदबुदाया “जो इंसान किसी शहर से इतनी मोहब्बत कर सकता है , वो किसी इंसान से कितनी मोहब्बत करेगा , यकीनन ऐसी जो आज तक किसी ने किसी से ना की हो”


पृथ्वी सोच ही रहा था कि ट्रेन ने हार्न मारा और पृथ्वी ट्रेन में चढ़ गया दरवाजे पर खड़े पृथ्वी के हाथ में किताब थी और उस पर लिखा नाम “बनारस ही क्यों ?” चमक रहा था और पृथ्वी की नजरे किताब के कॉर्नर में लिखे नाम “अवनि मलिक” ठहर गयी और पुरे 10 घंटे बाद पृथ्वी मुस्कुराया।

( क्या सिद्धार्थ करेगा कोशिश अवनि को ढूंढने की ?  क्या सिरोही में फिर टकराएंगे अवनि और सिद्धार्थ ? क्या पृथ्वी के दिल में अवनि दे रही है दस्तक ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” मेरे साथ )

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संजना किरोड़ीवाल 

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