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Pasandida Aurat – 30

Pasandida Aurat – 30

Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal

सिद्धार्थ और अवनि की ये दूसरी मुलाकात थी और दूसरी मुलाकात में कुछ ऐसा हुआ जिस से सिद्धार्थ ने अवनि का ध्यान अपनी तरफ खींचा। अवनि ने कुछ नहीं कहा वह बस ख़ामोशी से सिद्धार्थ को देखती रही और सिद्धार्थ उन लोगो को जिनकी वजह से अवनि उसके इतना करीब थी। सिद्धार्थ अवनि से दूर हटा और कहा,”आप ठीक है ?”
“हाँ,,,,,,!!”,अवनि ने कहा
सिद्धार्थ हाथ से आगे बढ़ने का इशारा किया और अवनि के साथ साथ चल पड़ा। सिद्धार्थ से क्या बात करे अवनि को कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी सिद्धार्थ ने ही पूछ लिया,”तो आप बनारस अकेले आयी है ?”


“नहीं दोस्त के साथ और आप ?”,अवनि ने भी पूछ लिया
“मैं अक्सर बनारस अकेले ही आता हूँ , मेरा मानना है अकेले आप इस शहर में खुद को बेहतर तरीके से जान पाते है”,सिद्धार्थ ने कहा
“अक्सर ! तो क्या आप पहले भी बनारस आ चुके है ?”,अवनि ने सिद्धार्थ की बातो में दिलचस्पी लेते हुए पूछा
“जब दिखावटी दुनिया से थक जाता हूँ तो साल में एक बार बनारस जरूर आता हूँ,,,,,,,,!!”,सिद्धार्थ ने सधे हुए स्वर में कहा


अवनि ने सुना तो उसे अच्छा लगा कि कोई और भी है जो उसकी तरह बनारस से इतनी मोहब्बत करता है। दोनों साथ साथ चलते , बाते करते एंट्री गेट तक चले आये और इस बीच दोनों ने ना एक दूसरे से नाम पूछा ना ही कोई निजी जानकारी बस दोनों बनारस को लेकर कुछ ना कुछ बाते किये जा रहे थे।
मंदिर घूम कर अवनि भी एंट्री गेट पर आ चुकी थी और फोन पर किसी से बात कर रही थी। अवनि ने उसकी तरफ इशारा किया और कहा,”मेरी दोस्त,,,,,,!!”


सिद्धार्थ ने मुस्कुराते हुए जैसे ही सामने देखा उसे सुरभि दिखाई दी और सिद्धार्थ के होंठो से मुस्कराहट गायब हो गयी। फ़ोन पर बात करते हुए सुरभि जैसे ही पलटी सिद्धार्थ बाहर जाते जाते एकदम से पलट गया और उलटे कदम वापस जाते हुए बड़बड़ाया,”हाह ! इसे इसी लड़की का दोस्त होना था , अगर इसने मुझे अपनी दोस्त के साथ देख लिया तो हो सकता है मैं दोबारा इस लड़की से मिलने का मौका खो दू , इस से अच्छा मैं उसके सामने ही ना जाऊ”


सुरभि अवनि की तरफ आयी
और जैसे ही सिद्धार्थ की तरफ पतली सिद्धार्थ वहा नहीं था। अवनि इधर उधर देखने लगी लेकिन सिद्धार्थ उसे कही दिखाई नहीं दिया। सुरभि ने देखा तो अवनि के पास आयी और कहा,”ओह्ह्ह हेलो ! मैं यहाँ हूँ किसे ढूंढ रही हो ?”
“अरे वो लड़का,,,,,,,,,!!”,अवनि ने मंदिर की तरफ देखकर परेशानी भरे स्वर में कहा
“कौन लड़का ?”,सुरभि ने पूछा और अवनि के साथ साथ चल पड़ी। अवनि ने सुरभि को बीती रात वाली बात बताई और सिद्धार्थ के बारे में बताया जो उसे अभी अभी मंदिर में मिला था।


“ओह्हो क्या बात है अवनि मैडम तो फाइनली बनारस में तुम्हे कोई मिल ही गया जिसे तुम्हारी नजरे ढूंढ रही है , वैसे नाम क्या है उसका ?”,सुरभि ने एक्साइटेड होकर    पूछा और चमकती आँखों से सिद्धार्थ को देखने लगी।
“मैंने उसका नाम नहीं पूछा”,अवनि ने कहा
“कहा से है , यही बनारस से है क्या ?”,सुरभि ने बेसब्री से पूछा
“नहीं बनारस से नहीं है पर उसने बताया कि वह हर साल बनारस आता है , बाकि कहा से है ये नहीं पूछा”,अवनि ने धीरे से कहा


“अच्छा बनास में कहा रुका है ये तो बताया ही होगा ?”,सुरभि ने पूछा
“नहीं मैंने ये भी नहीं पूछा,,,,,,,!!”,अवनि ने मासूमियत से कहा
“अरे तो फिर तुमने उस से बात क्या की ? हाह ! कितनी अजीब लड़की हो तुम अवनि , तुम्हे कोई पसंद आया और तुमने उसका नाम तक नहीं पूछा,,,,,,!!”,सुरभि ने हताश होकर कहा


“आँखों का क्या है सुरभि इन्हे तो हर खूबसूरत चीज अच्छी लगती है , मसला तो मन का है मन को कोई भाये तब आगे बढ़ना चाहिए। वो अच्छा लड़का था , मेरी तरह उसे भी बनारस से बहुत प्यार है और उसे मंदिर आना भी बहुत अच्छा लगता है”,अवनि ने मुस्कुराकर कहा
सुरभि ने सुना तो अवनि की तरफ देखने लगी और मायूस होकर कहा,”क्या यार अवनि ! पहली बार कोई लड़का तुम्हे तुम्हारे जैसा मिला और तुमने उसे जाने दिया। मुझे उस से मिलना चाहिए था , वैसे वो दिखता कैसा है ?”


“अच्छा दिखता है और उसकी आँखे तो इतनी गहरी है जैसे कोई समंदर हो,,,,,,खुशमिजाज है और सहज भी”,अवनि ने सिद्धार्थ के बारे में सोचते हुए कहा
“तुमने उसे इतनी गौर से देखा है मतलब तुम्हारे दिल में उसने थोड़ी सी जगह बना ली है , क्या पता वो ही हो तुम्हारा परफेक्ट वन”,सुरभि ने सामने खड़े ऑटो में आकर बैठते हुए कहा
“ऐसा कुछ नहीं है , हम इत्तेफाक से मंदिर में टकरा गए और क्या पता इसके बाद दोबारा कभी मिले भी ना”,अवनि ने आकर उसके बगल में बैठते हुए कहा


“इत्तेफाक नहीं अवनि इसे तुम अपने महादेव का आशीर्वाद ही समझो , तुम्हारे पसंदीदा शहर में तुम्हे तुम्हारे जैसा कोई मिला जिस से तुम दो बार टकराई , ये इत्तेफाक तो नहीं हो सकता,,,,,और अगर महादेव ने सच में तुम्हारी जिंदगी में कुछ अच्छा लिखा है तो देखना तुम उस लड़के से बहुत जल्द मिलोगी तब तो तुम यकीन करोगी ना कि ये इत्तेफ़ाक नहीं है,,,,,,,!!”सुरभि ने कहा
“ठीक है बाबा मान लुंगी , अब चले ? हमे बाकी मंदिरो में भी दर्शन करना है वरना मंदिर बंद हो जाएगा।”,अवनि ने कहा और दोनों दुर्गा मंदिर के लिए निकल गए और मुस्कराहट थी जो अवनि के होंठो से जाने का नाम नहीं ले रही थी।  

पिकासो होटल , वाराणसी
सुबह के 10 बज रहे थे लेकिन नकुल और पृथ्वी अभी तक सो रहे थे। कुछ देर बाद पृथ्वी की नींद खुली वह उठकर बैठ गया उसका सर दर्द से फटा जा रहा था। उसने साइड में पड़े अपने फोन को उठाया और देखा सुबह के 10 बज रहे है तो वह उठा और बाथरूम में चला आया। पृथ्वी ने गर्म पानी का एक शॉवर लिया और बाहर चला आया। ठण्ड थी लेकिन कमरे में हीटर की वजह से ज्यादा अहसास नहीं हो रहा था। पृथ्वी ने जींस टीशर्ट पहना और बिस्तर के कोने पर बैठकर अपने बालों को पोछने लगा।

पानी के छींटे नकुल पर गिरे तो वह हड़बड़ा कर उठा। उसने देखा पृथ्वी नहा चुका है तो मसलते हुए उठा और उबासी लेकर कहा,”हहहहहह तुम कब उठे और तुम नहा भी लिए,,,,,,,!!”
“बस थोड़ी देर पहले , कल रात कुछ हुआ था क्या शयन आरती के बाद ?”,पृथ्वी ने गंभीर स्वर में पूछा
“अगर मैंने इसे बताया कि कल रात मैंने इसे ठंडाई के नाम पर भांग पिलाई है तो ये मुझे कुत्ते की तरह मारेगा। नहीं नहीं मैं रिस्क बिल्कुल नहीं लूंगा”,नकुल ने मन ही मन खुद से कहा


नकुल को खामोश देखकर पृथ्वी ने कहा,”अह्ह्ह एक्चुली मुझे याद नहीं आ रहा हम लोग होटल कब आये और मेरा सर भी दर्द से फटा जा रहा है”
नकुल उठा और अपने बैग से कपडे निकालते हुए कहा,”अरे वो तो इसलिए क्योकि कल तू शयन आरती में सबसे आगे खड़ा था और फिर तुझे ये सब की आदत भी नहीं है , मैं नहाकर आता हूँ उसके बाद बाहर चलते है और एक कड़क चाय पिलाता हूँ तुझे तेरा सरदर्द चुटकी में गायब हो जाएगा”
“हम्म्म,,,,,,!!”,पृथ्वी ने कहा वह अभी भी इसी सोच में था कि कल शयन आरती में उसने जो महसूस किया वो सब क्या था और क्यों था ?

नकुल नहाकर आया , तैयार हुआ और दोनों नीचे चले आये। होटल से बाहर आकर नकुल ने देखा हलकी सुहावनी धुप निकल आयी है तो उसने पृथ्वी की तरफ देखकर कहा,”लगता है हम लेट हो गए,,,,,,,,सनराइज तो कबका हो चुका होगा”
“हम्ममम इट्स ओके वो हम कल देख लेंगे , यहाँ कुछ ऐसा है जो इस शहर की हिस्ट्री के बारे में बताता हो ?”,पृथ्वी ने पूछा
इस शहर में बढ़ती पृथ्वी की दिलचस्पी को देखकर नकुल को अच्छा लगा।


“मान मंदिर घाट पर “वर्चुअल एक्सपेरिमेंटल म्यूजियम” है जहा तुम्हे गंगा का इतिहास , देवताओं की कहानियाँ , लकड़ी के शिल्प ,लेजर लाइट शो और उसके ऊपर से बनारस के सब घाट और गंगा नंदी को देख सकते हो। कुछ लोग इसे ” मान महल” के नाम से भी जानते है जिसे “राजा सवाई जय सिंह” ने बनवाया था। इसमें तुम्हे बनारस से जुडी बहुत सारी जानकारी मिल जाएगी”,नकुल ने कहा
“और तुम्हे ये सब कैसे पता ?”,पृथ्वी ने पूछा


“अरे अपनी उस किताब से , ये सब भी उस किताब में लिखा है और वो भी डिटेल में”,नकुल ने खुश होकर कहा
“इंट्रेस्टिंग,,,,,,,!!”,पृथ्वी ने कहा
“अरे उस से भी ज्यादा इंट्रेस्टिंग है उस किताब की Writer , लड़की होकर भी उसने उस किताब को इतनी गहराई से लिखा है कि पढ़ने के बाद लगता है जैसे हम बनारस की गली गली जानते हो,,,,,,,जितनी खूबसूरती से उसने ये किताब लिखी है आई थिंक वो खुद भी इतनी ही खूबसूरत होगी,,,,,मैं मुंबई जाकर इंटरनेट पर उसे ढूंढने वाला हूँ,,,,,,,,,तुम्हे भी वो बहुत पसंद आएगी देखना”,नकुल ने कहा


पृथ्वी नकुल की तरफ पलटा और कहा,”मैंने इंट्रेस्टिंग किताब में लिखी डिटेल्स के लिए कहा Writer के लिए नहीं और वैसे भी मैं ऐसी बोरिंग किताबे नहीं पढता”
“अरे बोरिंग नहीं है और उसने और भी कई किताबे लिखी है उसकी लिखे “फिक्शनल नोवेल्स” को लोग बहुत पसंद करते है,,,,,,,,!!”,नकुल ने कहा
“ठीक है अब चले ?”,पृथ्वी ने कहा जिसे किताबे पढ़ने और उनके बारे में बाते करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी होती तो आज वह अपने कॉलेज का टॉपर होता , सिर्फ वही जानता है उसने कैसे पढाई की है ?

दोनों ने पहले बढ़िया अदरक वाली चाय पी उसके बाद नाश्ते में बनारस का फेमस नाश्ता पूड़ी सब्जी और जलेबी खाकर दोनों “मान मंदिर घाट” निकल गए। नकुल ने दोनों के लिए टिकट ली जिसकी कीमत 25 रूपये थी और अंदर चले आये। दोनों मान महल म्यूजियम घूमने लगे। नकुल को तो सब देखकर बड़ा ही मजा आ रहा था और पृथ्वी हर चीज को बड़े ध्यान से देख रहा था जैसे वहा अपने सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहा हो,,,,,,,,,,!!”


म्यूजियम देखने के बाद दोनों बाहर आये और सीढ़ियों से होकर नीचे घाट पर चले आये। घाट पर ज्यादा भीड़ नहीं थी बस कुछ लोग थे जो वहा नहा रहे थे। पृथ्वी और नकुल पैदल ही घाट पर चल पड़े और मान मंदिर घाट से अस्सी की तरफ जा रहे थे। रास्ते में केदार घाट पर आकर पृथ्वी रुका , इसी घाट के बगल में होटल में सिद्धार्थ रुका था। एक बाबाजी गंगा स्नान करके अपना भगवा वस्त्र ओढ़े और झोला सम्हाले पृथ्वी के बगल से गुजरे और कहा,”हिया कहे खड़ा है ऊपर जाकर बाबा केदारनाथ के दर्शन करा”


“केदारनाथ के दर्शन ?”,नकुल ने पूछा
“ये जो घाट के सामने मंदिर देख रहे हो ये है ‘केदारेश्वर शिव मंदिर’ इसका केदारनाथ के समान ही महत्व माना जाता है। जो सामने घाट है ये है ‘गौरी कुंड’ जहाँ भक्त स्नान करते हैं और इसके जल को पवित्र माना जाता है। केदार घाट पर दर्शन-पूजन करने से हिमालय के केदारनाथ के दर्शन करने के समान पुण्य मिलता है। कहते है यहाँ एक बार किया गया दर्शन 7 बार केदारनाथ जाने के बराबर है। बनारस में यही एक मंदिर है जहा माता पार्वती शिवलिंग के रूप में महादेव के साथ दर्शन करने को मिलती है।

बनारस आने वाला हर इंसान यहाँ नहीं आता किस्मत वाले ही यहाँ तक पहुंचते है,,,,,,,,,,,महादेव”,बाबा ने कहा और आगे बढ़ गए। नकुल और पृथ्वी उन्हें जाते हुए देखते रहे हालाँकि पृथ्वी को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ तो उसने कहा,”अगर इस शहर के हर मंदिर गए तो महीनो लग जायेंगे,,,,,,आओ चलते है”
“ए पृथ्वी ! उन्होंने कहा है तो फिर ऐसा होगा न , चल ना चलकर देखते है वैसे भी केदारनाथ तो पता नहीं कब जाना होगा तब तक बनारस के केदारनाथ ही हो आते है”,नकुल ने कहा


“क्या तुम्हे सच में ऐसा लगता है ?”,पृथ्वी ने पूछा
“हाँ और तुम्हे भी इन सब में विश्वास करना चाहिए , अब चलो”,कहकर नकुल ने पृथ्वी की बांह पकड़ी और उसे लेकर सीढ़ियों की तरफ चढ़ गया। मंदिर की खड़ी सीढिया पहाड़ पर चढ़ने के समान ही थी , और इसी के साथ सांसो का उखड़ना ठीक वैसा ही जैसे केदारनाथ जाने वाले किसी सामान्य इंसान को कभी हुआ होगा। मंदिर के अंदर आकर पृथ्वी ने देखा पुरे मंदिर में केवल काले रंग की मुर्तिया थी और तीनो दिशाओ ( पूर्व , दक्षिण और पश्चिम में कई अन्य देवताओ की मुर्तिया भी स्थापित थी।

इस मंदिर की ख़ास बात ये कि यहाँ वैसी ही शांति थी जैसे पहाड़ो पर होती है और एक ऐसा माहौल जो कुछ लोगो में सिहरन पैदा कर दे तो कुछ लोगो को सुकून दे। आगे गर्भगृह था जहा बिल्कुल वैसा ही शिवलिंग था जैसा उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर में है और यही बात पृथ्वी के मन को उलझा रही थी। बनारस में बना ये मंदिर और इसका गर्भगृह केदारनाथ वाला अहसास कैसे दे सकता है ? पृथ्वी के सवाल का जवाब तो खुद उसके पास भी नहीं था इसलिए उसने बस चुपचाप दर्शन किये और नकुल के साथ बाहर चला आया।

उसने नकुल से कुछ देर उसी घाट पर रुकने को कहा और मंदिर के साइड में चला आया जहा खाली सीढिया थी। पृथ्वी का मन इस वक्त बैचैन था और क्यों था वह नहीं समझ पा रहा था इसलिए वह सबसे आखरी सीढ़ी पर आकर बैठा और अपने पैरों को पानी में रख लिया। पानी एकदम ठंडा था लेकिन पृथ्वी को अच्छा लग रहा था। नकुल भी यहाँ वहा घूमते हुए फोटोज लेने लगा और कुछ देर बाद एक फ्रूट सेलेड लेकर पृथ्वी के बगल में आ बैठा।  

अवनि और सुरभि दिनभर आसपास के मंदिरो में घूमती रही और सिद्धार्थ गोदौलिया चला आया ताकि मम्मी पापा और अपने लिए कुछ शॉपिंग कर सके तो वही नकुल और पृथ्वी को नहीं पता था उन्हें अब कहा जाना चाहिए और क्या करना चाहिए इसलिए दोनों दोपहर तक घाट पर घूमते रहे और वहा बिकने वाली हर नयी चीज खरीदते खाते रहे , कभी दोनों बहस करते तो कभी साथ में फोटो लेते लेकिन दोनों का वक्त अच्छा बीत रहा था। गंगा आरती दोनों देख ही चुके थे इसलिए आज शाम दोनों ने “काशी विश्वनाथ कॉरिडोर” के बाहर लेजर शो देखने का प्लान बनाया।

दोनों वहा पहुंचे और अपने लिए जगह बना ली। सिद्धार्थ की शाम में सिरोही के लिए ट्रेन थी इसलिए वह स्टेशन चला आया लेकिन स्टेशन आते ही उसे अवनि का ख्याल आया और वह बेंच पर आ बैठा
“हाह ! मैं कितना बेवकूफ हूँ वो मेरे सामने थी , मेरे करीब थी और मैंने उस से उसका नाम तक नहीं पूछा , ना ही उसके बारे में कुछ जानने की कोशिश की उलटा मैं उसकी दोस्त को देखने के बाद उसे अकेला छोड़कर भाग गया। वो मेरे बारे में क्या सोच रही होगी ? लेकिन मैं जानता हूँ इस एक छोटी सी मुलाकात के जरिये ही सही मैंने उसके दिल में दस्तक तो दे ही दी है है।

वो मुझे ढूंढते हुए बनारस फिर से जरूर आएगी और इस बार मैं उसे जाने नहीं दूंगा बल्कि हमेशा हमेशा के लिए अपना बना लूंगा”,सिद्धार्थ मुस्कुराते हुए मन ही मन बड़बड़ाया  
सिद्धार्थ अवनि के ख्यालो में खोया हुआ था कि तभी उसका फोन बजा। सिद्धार्थ ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से सिरोही की सबसे बड़ी आई टी कम्पनी के CEO की सेकेरेट्री ने कहा,”मिस्टर सिद्धार्थ क्या इस मंडे आप मीटिंग के लिए आ सकते है ? एक्चुली हमारी कम्पनी में आपके लिए सीनियर मैनेजर की एक पोस्ट है और सर आपसे मिलना चाहते है”


सिद्धार्थ ने सुना तो उसे अपने कानो पर यकीन नहीं हुआ , 2 साल पहले उसने जिस कपनी में जॉब के लिए अप्लाई किया था वहा से उसे आज सामने से फोन आया था और दो दिन बाद मिलने के लिए बुलाया जा रहा था। ये सुनकर सिद्धार्थ का दिल ख़ुशी से धड़कने लगा और उसने कहा,”स्योर मेम एंड थैंक्यू , थैंक्यू सो मच , मैं मंडे को ऑफिस आकर आपसे मिलता हूँ”


“येह स्योर ! हेव अ गुड डे,,,,,,,!!”,लड़की ने कहा और फोन काट दिया
सिद्धार्थ ने सुना तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा , उसका चेहरा चमकने लगा। सहसा ही उसे अहसास हुआ कि अवनि से वह दो बार मिला दो चीजे उसके साथ अच्छी हुई। पहली बार मिला तब उसका गिल्ट कम हो गया और दूसरी बार उसे ये नयी नौकरी का ऑफर,,,,,,,,,,सिद्धार्थ को पंडित जी कही बात याद आयी और वह बुदबदुआया,”यस ! शी इज द वन”

( क्या सिद्धार्थ बढ़ायेगा अवनि से नजदीकियां और बदल जाएगी उसकी जिंदगी ? क्या बनारस से जाते जाते पृथ्वी को होने लगेगा ईश्वर में विश्वास ? क्या सुरभि बचा पायेगी अवनि को सिद्धार्थ से ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” मेरे साथ )

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संजना किरोड़ीवाल 

Pasandida Aurat by Sanjana Kirodiwal
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