Pasandida Aurat – 28
सिद्धार्थ की कोलर पृथ्वी के हाथ में थी और वह खमोशी से सिद्धार्थ को घूरे जा रहा था तो वही गुस्से से भरे सिद्धार्थ की आँखों में भी पृथ्वी के लिए नफरत साफ़ झलक रही थी। दोनों एक दूसरे को देख जा रहे थे। आस पास खड़े लोग भी उन्हें देखने लगे। नकुल ने देखा तो जल्दी से अपनी प्लेटो को साइड में रखा और पृथ्वी की तरफ आकर कहा,”ए पृथ्वी ! तू काय करतोयस ? जाऊ दे। ( क्या कर रहा है ? जाने दे ना )”
पृथ्वी किसी तरह का तमाशा नहीं चाहता था इसलिए उसने सिद्धार्थ को कोलर समेत नीचे गिरे पैसो की तरफ धक्का मारा और गुस्से से कहा,”चल उठा और इज्जत से पैसे चुका”
पृथ्वी में ना किसी का डर था ना ही वह कमजोर था उसके एक हलके से धक्के से ही सिद्धार्थ एक तरफ से दूसरी तरफ चला आया। सिद्धार्थ भी जानता था कि गलती उसकी है इसलिए उसने चुपचाप पैसे उठाये और काका को देकर जाने लगा। वह पृथ्वी के बगल में आकर रुका और नफरत भरी नजरो से देखकर धीमे स्वर में कहा,”शुक्र मना तू बनारस में है , गलती से भी कभी राजस्थान में मत दिख जाना वरना वो हाल करूंगा तेरा अपने पैरो पर खड़ा नहीं हो पायेगा”
पृथ्वी ने सुना तो हल्का सा मुस्कुराया और कहा,”,मी मुंबईचा आहे ( मैं मुंबई से हूँ ) और मुझे अपना बैकग्राउंड बताने की जरूरत नहीं , दिन में तेरे जैसे 400 लोग निकलते है मेरे सामने से और रही बात राजस्थान की तो तू दुआ करना कि मैं कभी राजस्थान न आउ”
पृथ्वी की अकड़ देखकर सिद्धार्थ का खून जल गया लेकिन वह यहाँ किसी तरह का तमाशा नहीं चाहता था इसलिए चुपचाप वहा से चला गया लेकिन पृथ्वी को लेकर उसके मन में नफरत और दुश्मनी का बीज पड़ चुका था।
“अरे बिटवा ! काहे हमरे लिए बा से झगड़ा किये रहय ? अरे जे बनारस है हिया आवत रहा हर इंसान मेहमान समान है,,,,,,खामखा हमरी वजह से तुम दोनों के बीच झगड़ा हुई गवा”,ठेलेवाले काका ने कहा
पृथ्वी आदमी की तरफ पलटा और पर्स से पैसे निकालकर उन्हें देते हुए कहा,”काका ! मेहमान को सर आँखों पर रखना चाहिए पर जब वही मेहमान अपनी तमीज भूल जाए तो उसे नीचे गिराना भी जरुरी होता है,,,,,,,ऐसा शहर जहा खुद महादेव ने “माँ अन्नपूर्णा” से अन्न की भीख मांगी थी उस शहर में अगर कोई खाने का अपमान करे तो फिर वो मेहमान नहीं है काका”
पृथ्वी की बात सुनकर आदमी मुस्कुराने लगा और नकुल अवाक था कि पृथ्वी को ये सब बाते कैसे पता ? आदमी ने पृथ्वी की बाँह छुई और मुस्कुरा कर कहा,”कौन गांव से हो बिटवा ?”
“मुंबई से लाया गया हूँ काका”,पृथ्वी ने मुस्कुरा कर कहा
“अरे नाही बिटवा ! काशी हर कोई नहीं आ पापा , महादेव जिसको हिय बुलाना चाहते है सिर्फ वही आ पाता है फिर चाहे उह्ह अपनी मर्जी से आये चाहे भटक कर”,आदमी ने कहा
“हम्म्म ऐसा ही समझ लीजिये कि भटक कर आया हूँ,,,,,,,चलता हु”,पृथ्वी ने कहा और नकुल के साथ वहा से आगे बढ़ गया
सिद्धार्थ नंदी चौराहा चला आया जो चार रास्तों में बंटा था। पूर्व दिशा की तरफ जाने वाली सड़क शिवाला और अस्सी की तरफ जाती है , पश्चिम दिशा की तरफ जाने वाली सड़क काल भैरव और काशी विश्वनाथ मंदिर की तरफ जाती है ,
दक्षिण की तरफ वाली सड़क रेलवे स्टेशन और उत्तर दिशा वाला रास्ता गोदौलिया मार्किट और आगे दशाश्वमेध घाट की तरफ जाता है जहा से कुछ देर पहले पृथ्वी और नकुल लोटे थे। पृथ्वी ने जो किया उस से सिद्धार्थ बहुत गुस्से में था।
एक अनजान लड़के ने इतने लोगो के सामने उसकी कोलर पकड़ी सिद्धार्थ ये बर्दास्त नहीं कर पा रहा था लेकिन बनारस में वह अकेला था और ऐसे में वह किसी तरह की मुसीबत नहीं चाहता था लेकिन पृथ्वी ने पहली मुलाकात में ही सिद्धार्थ के दिल में नफरत पैदा कर दी। वह चौराहे पर बनी एक दूकान पर आया और वहा से एक कोल्ड ड्रिंक खरीद कर पीने लगा। हर एक घूंठ के साथ सिद्धार्थ का गुस्सा कुछ कम हो रहा था लेकिन अब शयन आरती में जाने और अवनि से मिलने का उसका मूड खराब हो चुका था। उसने कोल्ड ड्रिंक खत्म की और वहा से पैदल ही अपने होटल की तरफ बढ़ गया।
रात के 10:25 हो रहे थे। अवनि सुरभि के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में खड़ी थी साथ ही वहा और भी बहुत लोग थे जो महादेव की “शयन आरती” के लिए आये थे। सुरभि पहली बार आयी थी तो उसके लिए सब नया था लेकिन अवनि पहले भी कई बार यहाँ आ चुकी थी। दोनों मंदिर के बिल्कुल नजदीक आकर खड़ी हो गयी। आरती शुरू हुई और सबके साथ मिलकर सुरभि और अवनि ने भी तालियाँ बजाकर उस भव्य आरती का आनंद उठाना शुरू कर दिया। भव्य इसलिए कि इस वक्त मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा 100 गुना बढ़ जाया करती थी।
सिद्धार्थ से हुई बहस के बाद पृथ्वी का मन थोड़ा अजीब हो गया। वह नकुल के साथ चौराहे तक चला आया लेकिन जाना कहा है दोनों को ही नहीं पता था क्योकि सुबह के बाद नकुल उस किताब को दोबारा पढ़ ही नहीं पाया था जिसे पढ़कर वह बनारस घूमने आया था। दोनों ने चारों दिशाओ को देखा और फिर पृथ्वी उसे लेकर पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ गया जिसका अंदाजा खुद पृथ्वी को नहीं था। चलते चलते नकुल ने कहा,”तुमने वो काका को महादेव और माँ अन्नपूर्णा वाली बात बताई थी वो तुम्हे कैसे पता ? तुम्हे तो इन सब में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है”
नकुल की बात सुनकर पृथ्वी खुद हैरान हुआ क्योकि ये बात ना उसने कही पढ़ी थी ना ही कही सुनी थी फिर उसने काका के सामने यही बात क्यों कही ? अगले ही पल पृथ्वी को वो पल याद आया जब हरिशचंद्र घाट पर बाबा ने उसके माथे पर भस्म लगायी थी। वो पल याद आते ही पृथ्वी को एक सिहरन महसूस हुई और उसने कहा,”अह्ह्ह पता नहीं,,,,,,,,,,!!”
पृथ्वी के साथ ये सब क्यों हो रहा था वह खुद नहीं जान पा रहा था , धीरे धीरे इस शहर और यहाँ के लोगो के लिए उसकी भावनाये बदल रही थी जबकि कल तक पृथ्वी यहाँ आना भी नहीं चाहता था। बाते करते करते दोनों “काशी विश्वनाथ मंदिर” के गेट नंबर 4 पर चले आये। पृथ्वी ने देखा घूम फिरकर वे लोग एक बार फिर महादेव की शरण में चले आये है तभी उन दोनों के बगल से गुजरते हुए एक बाबा ने कहा,”यहाँ खड़े रहने से बाबा ना मिले है अंदर जावा और शयन आरती मा महसूस करा ओह्ह्ह का”
पृथ्वी को कुछ समझ नहीं आया वह नकुल की तरफ देखने लगा तो पास ही खड़े लड़के ने कहा,”शयन आरती में शामिल होने के लिए कह रहे है ,अभी 10:35 हुए है तुम लोग जाकर देख सकते हो”
“अरे हाँ पृथ्वी ! उस किताब में शयन आरती का भी जिक्र है और ये भी लिखा था कि अगर महादेव की मौजूदगी सच में महसूस करनी है तो एक बार तुम्हे शयन आरती में शामिल होना चाहिए और देखो महादेव खुद हमे यहाँ लेकर आये है,,,,,,,आओ चलते है”,नकुल ने खुश होकर कहा
पृथ्वी नकुल के साथ आगे बढ़ गया और दोनों मंदिर के अंदर गर्भ गृह के ठीक सामने चले आये हालाँकि आरती अभी शुरू ही हुई थी। पृथ्वी और नकुल भी सबके साथ आकर खड़े हो गए। नकुल तो हाथ जोड़ आँखे मूंदकर आरती में खो गया लेकिन पृथ्वी के लिए सब नया था वह ख़ामोशी से सब देख रहा था। उसने जब सबको हाथ जोड़े देखा तो अपने हाथ जोड़े और आँखे मूँद ली। “काशी विश्वनाथ मंदिर” में महादेव की शयन आरती में सबसे ख़ास बात ये होती है कि यहाँ भक्तों की आवाज इतनी तेज और जोश से भरी होती है कि किसी माइक या स्पीकर की जरूरत नहीं पड़ती ,
भक्तों की तालियाँ के सामने हर संगीत हर धुन फीकी , चारों तरफ एक ऐसी ऊर्जा लगे जैसे महादेव स्वयं सोने से पहले अपने हर भक्त के पास से होकर गुजर रहे हो। आँखे मूँदे पृथ्वी उस ऊर्जा को समझने
की कोशिश कर रहा था। उसे बस “हर हर हर महादेव” समझ आ रहा था और उसी ऊर्जा के साथ पृथ्वी वहा शांत खड़ा था। यकायक पृथ्वी को ने महसूस किया जैसे उसके दांये कान में कोई बहुत जोर से शंभो चिल्ला के गया है।
एक सिहरन के साथ उसके दिल की धड़कने बढ़ गयी , और अगले ही पल उसी चीख़ के साथ उसके बांये कान में “साधू” शब्द पड़ा। पृथ्वी चाहकर भी अपनी आँखे नहीं खोल पाया। उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था सिवाय आरती के बोल के और इसी के साथ उसे एक नयी ऊर्जा अपने अंदर महसूस हो रही थी। 10-15 मिनिट की आरती गायन के बाद उसके कानों में मंत्रो का स्वर पड़ा तब उसने धीरे से अपनी आँखे खोली। वह गर्भ गृह के ठीक सामने खड़ा था और आँखे खोलते ही उसे फूलों से सजे “काशी विश्वनाथ शिवलिंग” के दर्शन हुए।
पृथ्वी एकटक उसे देखता रहा वह अपनी पलकें झपकना भी भूल गया। नकुल उस से कुछ पीछे था। पृथ्वी ने अपने आस पास और मंदिर में मौजूद लोगो को देखा तो उसे अहसास हुआ कि ईश्वर में विश्वास रखने वाले कितने लोग वहा मौजूद थे। सभी लाइन में आ लगे और एक एक करके गर्भ गृह की दहलीज से हाथ लगाकर महादेव के दर्शन कर पूर्व दिशा की तरफ बने मंदिर की तरफ चले आये। वहा भी एक आरती हुई और उसके बाद सभी एक एक कर वहा से जाने लगे।
दक्षिण दिशा की तरफ बने बरामदों में शयन आरती के बाद प्रशाद दिया जा रहा था। नकुल पृथ्वी को लेकर प्रशाद लेने चला आया। प्रशाद में पृथ्वी और नकुल को एक एक चम्मच खीर मिला। पृथ्वी को बचपन से ही खीर पसंद नहीं थी पर उसने उस प्रशाद को खा लिया और उसने महसूस किया इस से अच्छा प्रशाद उसने शायद ही कभी खाया हो। मंदिर प्रांगण से बाहर जाते हुए पृथ्वी ने पलटकर मंदिर के शिखर को देखा और आगे बढ़ गया।
सुरभि शयन आरती की भीड़ में किसी को ढूंढ रही थी ये देखकर अवनि उसके पास आयी और कहा,”क्या हुआ किसे ढूंढ रही हो ?”
“अरे यार वो लड़का,,,,,,,,,!!”,सुरभि ने अवनि पर ध्यान दिए बिना कहा तो अवनि ने उसे अपनी तरफ किया और कहा,”सुरभि मैडम ! अगर तुम काशी आकर महादेव के बजाय लड़को को ढूंढ रही हो,,,,,,,,,,महादेव इसके लिए तुम्हे कभी माफ़ नहीं करेंगे”
अवनि ने सुना तो उसे याद आया कि वह मंदिर प्रांगण में खड़ी है इसलिए उसने जल्दी से अपने हाथ जोड़े और मंदिर की तरफ देखकर कहा,”अरे महादेव ! माफ़ करना , मैं तो बस,,,,,,,,,,!!”
अवनि ने देखा तो हसने लगी और कहा,”कमाल हो तुम भी आओ चलते है”
अवनि और सुरभि वहा से निकल गयी , मंदिर से बाहर आकर अवनि ने कहा,”वैसे तुम अंदर किस लड़के को ढूंढ रही थी ?”
“अरे वही लड़का जो आज शाम अस्सी घाट पर गाना गा रहा था”,सुरभि ने कहा
“लगता है तुम उस लड़के से काफी इम्प्रेस हो गयी हो अगली बार वो तुम्हे मिले तो मुझे बताना मैं भी तो देखू आखिर बनारस में ऐसा कौन है जिसने तुम्हे इम्प्रेस किया है”,अवनि ने सुरभि को छेड़ते हुए कहा
“इम्प्रेस का पता नहीं वो डिप्रेस जरूर कर देंगे , अरे एक नंबर का खड़ूस और अकड़ू है वो”,सुरभि ने मुँह बनाकर कहा
“सिर्फ उसका गाना सुनकर तुमने ये भी पता कर लिया कि वो अकड़ू और खड़ूस है”,अवनि ने पूछा
“सिर्फ गाना सुनकर नहीं वो तो उसने,,,,,,,,,,!!”,कहते कहते सुरभि रुक गयी बेचारी अब अपनी इंस्लट के बारे में अवनि को क्या ही बताती।
“तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो न , चलो बताओ क्या बात है ?”,अवनि ने अपने हाथो को बांधकर सुरभि के सामने आकर कहा
सुरभि ने अवनि को सुबह वाली घटना के बारे में बताया तो अवनि हसने लगी और कहा,”हम्म्म्म तो ये बात है वैसे उसे तुम्हारे साथ इतनी कठोरता से पेश नहीं आना चाहिए था,,,,,,,,,हुँह अकड़ू कही का”
अवनि के मुंह से पृथ्वी के लिए अकड़ू सुनकर सुरभि हंस पड़ी और फिर दोनों रिक्शा में आ बैठी और होटल के लिए निकल गयी। आज सुबह से दोनों बहुत घूम चुकी थी और अब उन्हें थोड़े आराम की जरूरत थी।
शयन आरती के बाद नकुल और पृथ्वी पैदल ही नंदी चौराहे की तरफ चल पड़े क्योकि बनारस अभी जाग रहा था और चारों तरफ रोशनी , चमचमाती लाइट्स और सड़को पर घूमते लोग नजर आ रहे थे। शयन आरती के बाद पृथ्वी का मन काफी शांत था। ठण्ड का मौसम था इसलिए चलते चलते दोनों ने एक जगह रूककर गर्मागर्म चाय पी लेकिन पृथ्वी को अब बार फिर वही अस्सी घाट वाली चाय याद आयी।
नंदी चौराहे पहुंचकर नकुल की नजर “बादल ठंडाई” की दुकान पर पड़ी जहा ठंडाई में मिली भांग को भोलेनाथ का प्रशाद बताकर काफी लोग पीते थे और वैसे भी बनारस आकर तुमने अगर ठंडाई नहीं पी तो फिर पीया क्या ? नकुल पृथ्वी को दुकान की तरफ ले आया , छोटी सी दुकान लेकिन काफी भीड़ थी उस पर नकुल ने उस से दो ठंडाई बनाने को कहा। दुकानवाले ने दो गिलास ठंडाई बनाकर नकुल की तरफ बढ़ा दी जिसमे बहुत थोड़ी भांग मिली थी। नकुल ने एक गिलास पृथ्वी को दिया और दूसरा खुद लेकर पीने लगा।
ठण्ड के मौसम में भी यहाँ काफी लोग ठंडाई पी रहे थे। काशी को एकमात्र ऐसा शहर कहा जा सकता है जहा लोगो पर मौसम का असर देखने को नहीं मिलता , ठण्ड में ठंडाई पीना और तपती दुपहरी में उबलती चाय पीना बनारसियों के लिए सामान्य बात है। नकुल पर ठंडाई का कोई असर नहीं हुआ क्योकि मुंबई में रहकर नकुल ने कई बार ड्रिंक और स्मोकिंग की है लेकिन पृथ्वी ने आज से पहले कोई नशीली चीजी नहीं खायी थी , ना वह ड्रिंक करता था और सिगरेट से तो उसे बहुत चिढ थी।
आज पहली बार उसने भांग वाली ठंडाई पी थी और इसका असर धीरे धीरे उस पर दिखने लगा था। उसका सर हल्का हल्का चकरा रहा था और अपने आस पास उसे सब घूमते दिखाई दे रहा था। नकुल का हाथ थामे वह एक साइकिल रिक्शा की तरफ बढ़ गया और चलाने वाले से जिद करने लगा,”आप हटिये इसे मैं चलाऊंगा”
“नहीं पृथ्वी आओ हम पीछे बैठते है”,नकुल ने कहा
“हम्म्म्म ठीक है लेकिन ये शहर गोल गोल क्यों घूम रहा है ? पहले इसे रोको वरना रिक्शा इसमें ही घूमता रह जायेगा और हम होटल नहीं पहुंच पाएंगे”,पृथ्वी ने मासूमियत से कहा
“का बाबू ? भैया को भांग वांग पिला दिए हो का ?”,रिक्शा वाले ने पूछा और नकुल ने मायूसी से हामी में सर हिला दिया।
( सिद्धार्थ और पृथ्वी की ये दुश्मनी क्या रंग लाएगी ? क्या सिद्धार्थ फिर करेगा अवनि से मिलने की कोशिश ? क्या पृथ्वी से पहले सिद्धार्थ बना लेगा अवनि के दिल में अपने लिए जगह ? जानने के लिए पढ़ते रहे “पसंदीदा औरत” )
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संजना किरोड़ीवाल