Pakizah – 9
Pakizah – 9
पाकीजा के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही था सामने बैठा अधेड़ उम्र का सख्स खुद को उसका शौहर बता रहा था l पाकीजा ने सर पर ओढ़ा दुपट्टा उतार फेका ओर बिस्तर से उतर कर दरवाजे की तरफ़ जाने लगी l अधेड़ आदमी ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए कहा – कहा जा रही है ?
“देखिए खुदा के वास्ते हमे छोड़ दीजिए , आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई हैं l
युवान जी बाहर है हमे उनके पास जाने दीजिए”,पाकीजा ने उस आदमी के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा
“तुझे जो यहां छोड़कर गया है वो आदमी ?”,आदमी ने हैरानी से पूछा
“जी , जी वो हमारे शौहर है कल ही उनके साथ हमारा निकाह हुआ है”,पाकीजा की आंखों से आंसू बहने लगे
“वो हरामी तुमको अपना नाम युवान बताया , अरे उसका नाम मनीष है बहुत ही चालाक लड़का है वो तुमको मैंने उस से पूरे 2 लाख में खरीदा है”,आदमी ने कहा l
“आप झूठ बोल रहे है वो नीचे ही है , मुझे जाने दीजिए उनके पास”,पाकीजा ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
“अरे वो तुमको बेवकूफ बना के गया है रुको अभी बताता हूं”,कहकर आदमी ने अपने जेब से फोन निकाला और युवान का नम्बर डायल किया
“क्या सेठ माल ठीक है ना”,दूसरी तरफ से युवान की आवाज उभरी
“लड़की तो मेरे को पसन्द आ गयी लेकिन ये बहुत नाटक कर रही है”,आदमी ने कहा
“नई लड़की है ना सेठ थोड़ा तो करेगी ही कोई ना एडजस्ट करने का ओर एन्जॉय”,युवान ने फिर कहा
“वो तो ठीक है पर तुम इस लड़की को लाया किधर से ?”,आदमी ने युवान का सच पाकीजा के सामने लाने के लिए ऐसा कहा
“हिहिहिहिहि करे सेठ बहुत मुश्किल है ऐसी कच्ची कली ढूंढ के लाना , शादी का नाटक करना पड़ा मेरेको तब जाकर ये बुलबुल मेरे हाथ लगी ,, अभी मैं रखता है किसी काम से बाहर आया है अपनी आइटम के साथ”,कहकर युवान ने फोन काट दिया
पाकीजा फटी आंखों से कभी अधेड़ आदमी को देखती तो कभी हाथ मे पकड़े उस फोन को l आंसू उसकी आँखों मे जम गए उसका दिल किया धरती फटे ओर वह उसमे समा जॉए l इतना बड़ा धोखा वो भी कुछ रुपयों के लिए पाकीजा को यकीन ही नही हो रहा था कि जिस आदमी पर भरोसा करके उसके साथ वह इतना डोर आयी है वह इस तरह उसके साथ धोखा करेगा l उसे किसी गैर मर्द के हाथ बेच देगा l
पाकीजा बुत बनी वही खड़ी रही l उसके जिस्म में जैसे जान थी ही नही आदमी ने उसकी बांह पकड़ी ओर घसीटते हुए बिस्तर तक ले गया l आदमी ने उसके कंधे को धक्का दिया और पाकीजा निढाल सी बिस्तर पर जा गिरी l उसे होश ही नही था l वह चिल्लाना चाहती थी लेकिन आवाज उसके हलक में जमकर रह गयी l
आदमी ने अपने कपड़े उतारे ओर पाकीजा के जिस्म को नोचने लगा l
पाकीजा बेजान सी बिस्तर पर पड़ी विरोध नही कर पाई करती भी कैसे कीमत जो अदा की थी उसने l
वह आदमी सारी रात उसके जिस्म से खेलता रहा l कहते है शादी की पहली रात सबसे यादगार रात होती है पाकीजा के लिए भी ये रात न भूलने वाली रात थी l उसकी इज्जत तार तार हो चुकी थी l दर्द की इंतहा थी लेकिन उस दर्द के आगे वो दर्द कुछ भी नही था जो उसे युवान से मिला था l
सुबह पाकीजा की आंख खुली खुद को बुरी हालत में पाकर वह उठी लड़खड़ाती हुई कमरे में बने दबड़ेनुमा बाथरूम की तरफ बढ़ी l अंदर जाकर उसने कुंडी लगाई और धूल से सने आईने में खुद को देखा l गर्दन से लेकर छाती तक निशान हो चुके थे l आंखे लाल हो चुकी थी पाकीजा ने खुद का चेहरा देखा तो उसे अपना ही चेहरा बहुत भयानक लगने लगा l
उसने नल चालू किया और जल्दी जल्दी अपना मुंह हाथ गर्दन धोने लगी l वह उन निशानों को मिटाना चाहती थी लेकिन मन पर लगे धब्बो को कैसे मिटा पाएगी ये सोचकर उसने नल बंद कर दिया
पानी से भीगे बाल और चेहरे को एक बार फिर आईने में देखा तो आंखों ने साथ नही दिया और बरस पड़ी l पाकीजा फुट फुट कर रोने लगी l
उसका रुदन इतना दर्दभरा था कि सुनने वाले का दिल चीर दे रोते हुए पाकीजा वही घुटनो के बल गिर पड़ी l युवान ने जो किया वह सोच भी नही पा रही थी l किस मुंह से वह घर जाएगी , अम्मी अब्बू से क्या कहेगी ? आखिर उसी के साथ ये सब क्यों हुआ ?
घंटेभर बाद पाकीजा बाथरूम से बाहर आई l
कमरे में वह अधेड़ नही था पाकीजा ने इधर उधर देखा ओर दरवाजे की तरफ लपकी लेकिन दरवाजा बाहर से बंद था l पाकीजा खिड़की की तरफ गयी मदद की उम्मी से उसने खिड़की ख़ोला लेकिन बाहर सब जगह सुनसान था l कोई नही दिखा पाकीजा को कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे ?
तभी कमरे का दरवाजा खुला ओर वह अधेड़ उम्र का आदमी कमरे में आया l उसे देखकर पाकीजा सहम गई l आदमी ने अपने हाथ मे एक पालीथिन पकड़ी हुई थी उसने थैली को टेबल पर रखते हुए कहा
“इसमें खाना है चल आकर खा ले रात से कुछ खाया नही होगा”
“मुझे कुछ नही खाना , मुझे यहां से जाना है मुझे जाने दीजिए”,पाकीजा ने दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए कहा l
“कहा जा रही है ? अब तू मेरी है पूरे दो लाख दिए है तेरे ऐसे थोड़े जाने दूंगा “,आदमी ने पाकीजा के सामने आकर कहा
“देखो मुझे जाने दो वरना मैं चिल्लाऊंगी”,पाकीजा ने कहा
“हहहहहहह चिल्ला जितना मर्जी चिल्ला इधर तेरी मदद करने कोई नही आएगा “,आदमी ने कहा
पाकीजा की आंखों से आंसू बहने लगे l वह क्या करे समझ ही नही पा रही थी वह एक ऐसे जाल में फस चुकी थी जहां से निकलना बहुत मुश्किल था पाकीजा अभी खड़े खड़े ये सब सोच ही रही थी कि अधेड़ आदमी ने उसे अपनी तरफ खींचा ओर लाकर बिस्तर पर पटक दिया l
आदमी एक बार फिर वहशीपन पर उतर आया l पाकीजा रोती चिल्लाती रही लेकिन उस निर्दयी को दया नही आई जब नही सह पायी तो बेहोश हो गयी l आदमी उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया l खाना खाकर पाकीजा को उसी हालत में छोड़कर वह बाहर निकल गया l दरवाजे को बाहर से ताला लगा गया l
एक सप्ताह तक पाकीजा की इज्जत के साथ साथ उसकी आत्मा भी तार तार होती रही l वो बेबस सी सब अपनी आंखों से देखती रही लेकिन खुद को उस वहसी इंसान से नही बचा पाई l अब तो उसकी हिम्मत भी जवाब दे गई थी दर्द और तकलीफ सहते सहते अब उसे आदत हो चुकी थी l
चेहरे से हंसी जैसे गायब हो गयी आंखों में आंसू सुख गए l उसे होश ही नही था l
आदमी आता और उसके जिस्म से खेलता ओर मन भर जाने पर वहां से चला जाता एक सप्ताह तक पाकीजा उन चार दीवारों में कैद रही उसने धूप तक ना देखी l
एक सुबह आदमी किसी का फोन आने पर उठकर बाहर चला गया l दरवाजा खुला था पाकीजा के पास यही सही मौका था वहां से भागने का पाकीजा ने दरवाजे से झांककर देखा आदमी बाहर नही था
उसने अपना दुपट्टा उठाया उसे सर पर ओढ लिया ओर चुपचाप दरवाजे से बाहर निकल कर नीचे उतर आयी l नीचे आकर वह एक गली में घुस गई और सीधे चलती रही वह डर के मारे बार बार मुड़कर पीछे देख रही थी l उसके बेजान शरीर में न जाने इतनी जान कहा से आई वह भागने लगी l भागते भागते सड़क पर आ गयी जहां इक्का दुक्का लोग नजर आ रहे थे l सब अपने आप मे व्यस्त पाकीजा ने उन लोगो से बात करनी चाही पर किसी ने भी उसकी बात नही सुनी l
पाकीजा सबसे मदद मांगती रही पर कोई सुनने को तैयार ही नही था l ऐसी ही तो होती है बड़े शहरों की लाइफ जहाँ किसी के पास किसी के लिए टाइम नही होता l
“दीदी स्टेशन किस तरफ है ? बता दीजिये बहुत मेहरबानी होगी”,पाकीजा ने सामने से आती महिला को रोककर हाथ जोड़ते हुए कहा
पाकीजा की किस्मत शायद अच्छी थी रेलवे स्टेशन पास ही था महिला ने उसे पता बताया पाकीजा ने महिला का धन्यवाद किया और ओर उसके बताए रास्ते की तरफ बढ़ गयी l
भटकते भटकते आखिर पाकीजा रेलवे स्टेशन पहुंच ही गयी l स्टेशन पर बहुत भीड़ थी पाकीजा किसी को जानती भी नही थी अजनबी शहर , अजनबी लोग उसे कुछ समझ नही आ रहा था कहा जॉए क्या करे l
भीड़ इतनी की पैर रखने तक को जगह नही थी पाकीजा आगे बढ़ी ओर पानी के नल के सामने आ पहुची l भागते भागते थकान से प्यास भी लगने लगी थी पाकीजा ने पहले पानी पिया ओर फिर मुंह धोने लगी l
खूबसूरत तो वह बेइंतहा थी ही मुंह धोते हुए वह ओर भी खूबसूरत लग रही थी l कुछ दूर खड़े दो चार लड़के उसी को देख रहे थे तभी उनमे में किसी ने कहा
“यार क्या मस्त दिखती है , अपने शहर में ये बला कहा से आई”
“हा यार देखकर तो लगता है जैसे बनाने वाले ने बड़ी फुरसत से बनाया है”,दूसरे ने कहा
“चल न यार पटाते है उसे”,तीसरे ने कहा
“अरे नही यार भीड़ है यहां खामखा पंगा हो जाएगा चलो चलते है , सुंदरी के चक्कर मे कही जूते न पड़ जॉए”,पहले वाले लड़के ने कहा
सभी वहां से चले गए l
पाकीजा ने अपने दुपट्टे से मुंह पोछा ओर वही बैठ गयी l हाथ मे एक पैसा नही था जॉए तो कहा जॉए ?
तभी पाकीजा की नजर सामने से आते आदमी पर पड़ी तो वह डर के मारे अंदर तक सहम गई वह तुरन्त उठी और चेहरे को दुपट्टे से ढककर वहां से दूसरीतरफ निकल गयी l ये वही अधेड़ था जिसने अब तक पाकीजा को कैद कर रखा था l
पाकीजा तेज कदमो से आगे बढ़ती जा रही थी उसका दिल तेजी से धड़क रहा था उसे पकड़े जाने का डर था l आदमी अभी भी पाकीजा के पीछे ही था लेकिन उसे पहचान नही पाया और आगे बढ़ गया पाकीजा ने चैन की सांस ली और वापस जाने के लिए जैसे ही मुड़ी किसी से टकरा गई l पाकीजा गिरने वाली ही थी कि लड़के ने उसे थाम लिया l
लड़का पाकीजा की आंखों में देखता ही रह गया इतनी खूबसूरत आंखे शायद आज से पहले उसने कभी नही देखी थी l
पाकीजा के चेहरे से खिसककर दुपट्टा नीचे झूलने लगा l लड़का तो बस देखता ही रह गया पाकीजा ने खुद को सम्हाला ओर लड़के से माफी मांगकर वहां से चली गयी l लड़का अभी भी पाकीजा की उन आंखों में ही खोया हुआ था वह मुंह फाडे अभी भी जाती हुई पाकीजा को देख रहा था तब तक जब तक वह उसकी आँखों से ओझल न हो गयी l
“शिवेन चल यहां क्या कर रहा है तू ? “,लड़के के दोस्त राघव ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा l
“वो लड़की ?”,शिवेन धीरे से बुदबुदाया
“अबे ! कौन लड़की ? यहां कोई लड़की नही है”,राघव ने कहा
शिवेन अभी भी उसी दिशा में देख रहा था l राघव ने शिवेन का बैग उठाया और उसे खींचते हुए ले जाने लगा l तब तक मयंक भी वहां आ पहुंचा और फिर तीनो स्टेशन से बाहर निकल गए
पाकीजा ने देखा सामने ट्रेन खड़ी है उसने अपने खुदा को याद किया और ट्रेन में चढ़ गई l ट्रेन यात्रियों से खचाखच भारी हुई थी पाकीजा को जगह नही मिली तो वह एक कोने में सहमी हुई सी खड़ी हो गयी l ट्रेन के बाहर वह अधेड़ आदमी अभी भी शायद पाकीजा की ही तलाश कर रहा था l
पकड़े जाने के डर से पाकीजा उठकर बाथरूम की तरफ चली गयी और वही दरवाजे के पास दुबककर बैठ गयी l
अभी वह बैठी ही थी कि तभी किसी ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा पाकीजा जैसे ही पलटी उसकी सांसे थम गई l
सामने युवान उर्फ मनीष खड़ा था पाकीजा कुछ कहती इस से पहले ही मनीष ने उसके मुंह पर रुमाल जैसा कोई कपड़ा रखा पाकीजा अगले ही छन बेहोश होकर वहां गिर पड़ी l
मनीष ने फोन निकाला और नम्बर डायल किया
कुछ देर बाद वह अधेड़ आदमी वहां आ गया जहां मनीष ओर पाकीजा थे l
“क्या सेठ एक लौंडिया नही सम्हाली जाती तुमसे ? अच्चग हुआ मैंने इसे ट्रेन में देख लिया और इसे बेहोश कर दिया अगर गलती से भी ये कुछ बोल देती तो आपके साथ साथ मैं भी जेल में सड़ रहा होता “,मनीष ने अधेड़ आदमी से कहा
“ये लड़की बहुत चालाक है , तुम इसे वापस ले जाओ और मेरा पैसा वापस करो”,आदमी ने भड़कते हुए कहा
“ये क्या बात कर रहा है सेठ एक तो इतने कम पेसो में तेरे को इतनी अच्छी लड़की दिया अब तू पैसे के बात करके दिमाग खराब न कर”,मनीष ने भी रोब झाड़ते हुए कहा
“तो मैं इसका क्या करेगा वैसे भी अब ये मेरे कोई काम की नही है”,अधेड़ ने कहा
“वो तुम जाओ , मैं चलता है आजसे मैं तेरे को नही जानता तू मेरे को नही जानता हिसाब बराबर”,मनीष ने कहा और बिना अधेड़ की बात सुने वहां से निकल गया
अधेड़ ने बेहोश पड़ी पाकीजा को देखा वह अब भी उतनी ही खूबसूरत और आकर्षक दिख रही थी l अधेड़ ने उसे अपने कंधे का सहारा देकर उठाया और टीटी को कुछ पैसे देकर सीट का इंतजाम करवाया l
उसके गंदे दिमाग में अब क्या चल रहा था ये तो सिर्फ वो ही जानता था l टीटी ने दोनो को सीट दिलवा दी l अधेड़ ने लोगो के सामने अच्छे बनने का नाटक करते हुए कहा ,” मेरी बेटी है बीमार है इसके इलाज के लिए दूसरे शहर जा रहा हु “
अधेड़ ने मजबूती से पाकीजा का हाथ थाम रखा था और उसका सर अपने कंधे पर ड़ाल रखा था जिससे लोगो को उस पर शक न हो l
ट्रेन चल पड़ी l पाकीजा अपने अंजाम से अनजान बेहोश पड़ी थी l आगे उसके साथ क्या क्या होगा वो नही जानती थी … ये सफर उसे कहा ले जाएगा कुछ कहा नही जा सकता था अंधेरा घिरने लगा और फिर रात हो गयी लेकिन पाकीजा को होश नहो आया और अधेड़ इस बात से खुश था पाकीजा जब तक बेहोश थी उसे कोई डर नही था l रात के आखरी पहर में उसने भी अपना सर खिड़की से लगा दिया और सो गया
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इतना पढ़कर रुद्र ने डायरी को बंद कर दिया l उसकी आगे पढ़ने की हिम्मत नही हो पाई एक महज 18 साल की लड़की इतने दर्द से गुजर रही थी ये सोचकर ही उसका कलेजा फटने लगा l रुद्र खुद को नही रोक पाया उसकी आँखों से आंसू बहकर फर्श पर गिरने लगे वह नही समझ पा रहा था कि ये सब क्या है लेकिन पाकीजा की कहानी पढ़ते हुए वह उसके दर्द से पूरी तरह जुड़ चुका था l जो दर्द पाकीजा ने सहा वो रुद्र महसूस कर रहा था l
सर झुकाए रुद्र काफी देर वहां बैठा रहा और पाकीजा के साथ हुए अन्याय के बारे में सोचता रहा
रुद्र उठा और वाशबेसिन की तरफ बढ़ गया l उसने अपना मुंह धोया ओर शीशे में खुद को देखते हुए सोचने लगा ,”किसी को नही छोडूंगा जिस जिस ने तुम्हे दर्द दिया है किसी को नही छोडूंगा”
रुद्र अपने कमरे में आया और एक दीवार पर नाम लिखा
पाकीजा
रुद्र ने उस नाम के चारो ओर एक गोला खींचा ओर उस नाम से जोड़कर एक गोला ओर बनाकर उसमें लिखा – युवान
कुछ ही दूर एक दूसरा गोला बनाया जिसमे लिखा – सेठ
क्योंकि रुद्र उसका नाम नही जानता था l
रुद्र आकर सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और गुस्से से उस दीवार को घूरने लगा l उसका दिल किया अभी के अभी इन दोनों को ढूंढे ओर जमीन में जिंदा गाड़ दे लेकिन अभी कहानी पूरी नही हुई थी ये तो दर्द की शुरुआत थी पाकीजा को अभी बहुत सा नरक देखना बाकी था l
शाम हो चली थी रुद्र उठा और खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया l बाहर हवा चल रही थी और मौसम भी बारिश का हो चला था खिड़की से आती हवा से टेबल पर पड़े कागज उड़ने लगे तभी एक कागज उड़ता हुआ रुद्र के चेहरे पर आया रुद्र ने उसे हटाकर देखा उस पर मोती जैसे अक्षरों में लिखा था
पाकीजा – एक नापाक जिंदगी
Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9Pakizah – 9
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Sanjana Kirodiwal