Manmarjiyan – S46
मनमर्जियाँ – S46
अमन की बाते सुनकर चाची का गुस्सा बढ़ गया उन्होंने जैसे ही अमन पर हाथ उठाना चाहा चाचा बीच में आ गए और चाची को एक थप्पड़ मारते हुए कहा,”खबरदार जो अब तुमने इस घर में अपनी मर्जी चलाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा , बस बहुत हो गया तुम्हारी वजह से मैं इतना गिर गया की मैंने मेरे अपनों को ठेस पहुंचे , मैं और अमन प्रीति की सगाई में जायेंगे ये कान खोलकर सुन लो तुम समझी”
चाची ने सूना तो उनका सारा घमंड चूर चूर हो गया , चाचा की आँखों में उन्हें बगावत साफ नजर आ रही थी , अपने गाल से हाथ लगाए चाची वही खड़ी अमन और चाचा को देख रही थी। चाचा ने अमन की तरफ देखा और कहा,”चलो अमन”
अमन अपने पापा के साथ वहा से चला गया और चाची पैर पटक कर रह गयी। घर से बाहर आकर चाचा ने अमन को किसी काम से भेज दिया और खुद गुप्ता जी के घर की तरफ चले आये। घर में कदम रखते हुए एक बार उनके पैर काँपे लेकिन उन्होंने हिम्मत की और अंदर चले आये। विनोद को घर में आता देखकर शगुन का मन घबराने लगा कही फिर से वो कोई परेशानी ना खड़ी कर दे। शगुन ने देखा गुप्ता जी कुछ ही दूर लड़के को घर की सजावट के बारे में समझा रहे थे , जैसे ही विनोद उनकी तरफ जाने लगा शगुन विनोद के सामने आयी और कहा,”चाचाची दो दिन बाद प्रीति की सगाई है मैं आपसे हाथ जोड़ कर विनती करती हूँ ये सगाई हो जाने दीजिये पापा से इस वक्त किसी तरह की बहस या लड़ाई झगड़ा मत कीजिये”
विनोद ने सूना तो उसे बहुत दुःख हुआ उसकी एक गलती की वजह से आज उसके अपने कितनी परेशानी में थे उन्होंने शगुन के हाथो को थामते हुए कहा,”तुमने क्या मुझे इतना गिरा हुआ समझ लिया शगुन की मैं अपनी ही बेटी सगाई में कोई बाधा डालूंगा। मैं तो बस यहाँ भाईसाहब से अपने किये गए बुरे कर्मो की माफ़ी मांगने आया हूँ”
शगुन ने सूना तो हैरानी से चाचा को देखने लगी। शगुन को खामोश देखकर चाचा ने कहा,”हां बेटा मैं तुम सबसे माफ़ी मांगने आया हूँ , तुम्हारी चाची की बातो में आकर मैंने तुम सबको बहुत दुःख पहुंचाया है , मैं अपने पापा का प्रायश्चित करने आया हूँ ,,,,,,,,,,,हो सके तो मुझे माफ़ कर देना बेटा” कहते हुए चाचा की आँखों में आंसू भर आये। गुप्ता जी ने अपने भाई को वहा देखा तो उसकी तरफ चले आये। बड़े भाई को अपनी ओर आता देखकर विनोद उनके पैरो में जा गिरा और माफ़ी मांगते हुए कहा,”मुझे माफ़ कर दीजिये भाईसाहब मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। मैंने आपको बहुत दुःख पहुंचाया है आपको तकलीफ दी है मुझे माफ़ कर दीजिये,,,,,,,,,,,,,मैं बहुत बुरा इंसान हूँ भाईसाहब”
विनोद को रोता देखकर गुप्ता जी का दिल पिघल गया उन्होंने उसे उठाते हुए कहा,”चुप हो जाओ विनोद मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है ,, इंसान कभी गलत नहीं होता वक्त गलत होता है। तुम्हे अपनी गलती का अहसास हो गया यही काफी है”
“नहीं भाईसाहब मैंने बहुत गलतिया की है अपनी फूल जैसी बच्चियों का दिल दुखाया शायद इसलिए भगवान ने आज तक मुझे बेटी नहीं दी।”,विनोद ने अपने आंसू पोछते हुए कहा
“शगुन और प्रीति भी तुम्हारी ही बेटी है विनोद , मैंने तुम्हे माफ किया”,गुप्ता जी ने अपने भाई को गले लगाते हुए कहा। दोनों भाई फिर से एक हो गए शगुन ने देखा तो उसकी भी आँखे भर आयी इतने में अमन भी चला आया उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था उसने मिठाई का डिब्बा अपने पापा को दिया तो उन्होंने एक टुकड़ा उठाकर गुप्ता जी को खिलाते हुए कहा,”आज से आपके और मेरे बीच की सारी कड़वाहट दूर कर दीजिये भाईसाहब और आप चिंता मत कीजिये प्रीति की सगाई का सारा जिम्मा मेरा”
“तुमने अपना गुस्सा भुला दिया मेरे लिए इतना ही काफी है विनोद”,गुप्ता जी ने कहा तो विनोद ने अमन से कहा,”अरे खड़े क्या हो जाओ जाकर मिठाई खिलाओ सबको ?”
“हाँ पापा”,कहते हुए अमन ने सबसे पहले शगुन को मिठाई खिलाई। शगुन तो बहुत खुश थी ये सब देखकर वह विनोद और अपने पापा के पास आयी और उनसे बाते करने लगी। अमन ने वहा काम कर रहे सभी लोगो को मिठाई खिलाई और फिर सामने से आती प्रीति की तरफ आकर उसे अपने हाथ से मिठाई खिलाते हुए कहा,”मुंह मीठा करो प्रीति दी पापा और ताऊजी में झगड़ा खत्म हो गया”
“मैं नहीं मानती जो इंसान अपने बड़े भाई को मरता हुआ छोड़कर जा सकता है वो इतनी जल्दी कैसे बदल गया ? कही फिर से ये चाचा को कोई चाल तो नहीं ?”,प्रीति ने कहा
“नहीं प्रीति पापा सच में अपने किये के लिए शर्मिन्दा है”,अमन ने कहा
“अगर ऐसा है तो फिर ये मिठाई सबसे पहले तुम खाओ”,प्रीति ने अमन के हाथ से मिठाई का टुकड़ा लेकर उसे ही खिला दिया और वहा से चली गयी। अमन डिब्बा हाथ में पकडे आगे बढ गया और सामने से आती वेदी से जा टकराया मिठाई का डिब्बा जैसे ही उसके हाथ से छूटा वेदी ने थाम लिया और कहा,”अरे अमन देखकर अभी तो मिठाई के साथ साथ आप भी गिर जाते”
अमन ने खुद को सम्हाला और कहा,”क्या करू ख़ुशी ही इतनी है की पैर जमीन पर नहीं टिक रहे लीजिये मिठाई खाइये , पापा और ताऊजी में अनबन खत्म हो चुकी है”
“ये तो बहुत ही ख़ुशी की बात है लेकिन हम दो पीस लेंगे”,वेदी ने कहा
“एक काम कीजिये आप ये डिब्बा ही रख लीजिये”,कहते हुए अमन ने डिब्बा वापस वेदी को थमाया और वहा से चला गया। डिब्बा देते हुए सहसा ही दोनों की उंगलिया एक दूसरे की उंगलियों से टकरा गयी एक खूबसूरत अहसास दोनों को छूकर गुजर वेदी मिठाई खाने में बिजी थी। जाते जाते अमन ने उसे पलटकर देखा और फिर बाकि लोगो के साथ मिलकर घर की सजावट बटाने लगा।
कानपूर , उत्तर-प्रदेश
गुड्डू ने रमावतार के घर का आर्डर ले लिया और गोलू के साथ चल पड़ा उनके घर में अरेजमेंट करने। गोलू क्या पूरा मोहल्ला जानता था रमेश और गुड्डू के झगड़े के बारे में और आज गुड्डू उसी के घर में काम करने जा रहा था। गोलू ने रोकना चाहा लेकिन गुड्डू पर इस बार मिश्रा जी की बातो का बहुत इफेक्ट हुआ था और इस बार वह सुधारना चाहता था। कुछ देर बाद दोनों रमेश के घर के सामने पहुंचे अब लड़के तो थे नहीं इसलिए गुड्डू और गोलू को ही सब टेंट लगाना था।
“गोलू तुम अंदर चलो हमहू सामान लेकर आते है”,गुड्डू ने डम्पर से सामान उतारते हुए कहा
“अरे गुड्डू भैया हम है ना हम करते है”,गोलू ने कहा
“अरे कोई बात नहीं गोलू तुम बाकि सब काम देखो ना जे हम ले आते है चलो जाओ”,गुड्डू ने बड़ा सा कालीन उठाते हुए कहा। गोलू अंदर चला गया और रमेश के पिताजी से बातचीत करने लगा। कालीन उठाये गुड्डू जैसे ही अंदर आया रमेश की नजर उस पर पड़ी उसे गुड्डू को वहा देखकर बड़ी हैरानी हुई की वह यहाँ कैसे ? लेकिन ख़ुशी भी थी गुड्डू की ऐसी हालत देखकर , उसे अपनी सारी बेइज्जती याद आ गयी जो गुड्डू ने की थी। वह गुड्डू के पास आया और अफ़सोस जताते हुए कहा,”च च च च का हालत हो गयी है तुम्हायी गुड्डू मिश्रा ? वैसे जे काम सूट कर रहा है तुम पर ,, बड़ी बड़ी बाते करते थे हम जे हम वो कहा गयी तुम्हायी रंगदारी ?”
गुड्डू ने रमेश को नजरअंदाज करना ही ठीक समझा और साइड से जाने लगा लेकिन रमेश तो उसे नीचा दिखाने का मन बना चुका था उसने फिर से कहा,”क्यों गुड्डू मुंह में जबान नहीं है या तुम्हारे पिताजी ने मना किया है बड़े लोगो के मुंह लगने से ?”
गुड्डू मुस्कुराया और रमेश की तरफ देखकर कहा,”हाँ पिताजी ने कहा था की बड़े लोगो से दूर रहना मुंह मत लगना (गुड्डू के इतना कहते ही रमेश खुश होकर मुस्कुराने लगा तो गुड्डू ने आगे कहा ) उह का है ना बहुते बड़े वाले चू#या जो हो तुम”
इतना कहते ही रमेश के चेहरे से ख़ुशी गायब हो गयी उसने गुड्डू को देखा तो गुड्डू आगे बढ़ गया वह गुड्डू को रोकता लेकिन उस से पहले किसी ने उसे बुला लिया रमेश वहा से चला गया।
गुड्डू अब किसी भी तरह की लफड़े में पड़ना नहीं चाहता था इसलिए चुपचाप वहा चला गया और अपना काम करने लगा। गुड्डू पूरी मेहनत से सब काम कर रहा था उसकी आँखों में कुछ पाने का जूनून गोलू को साफ नजर आ रहा था। वह गुड्डू को देखकर बहुत खुश हुआ और मन ही मन सब ठीक हो जाने की दुआ करने लगा। रमेश के घर में सब अरेजमेंट करके गोलू और गुड्डू वहा से निकल गए। शाम हो चुकी थी बाइक चलाते हुए गुड्डू ने कहा,”यार गोलू एक बात कहे ?”
“हाँ कहो ना भैया”,पीछे बैठे गोलू ने कहा
“मन ना बहुते बैचैन है ऐसा लग रहा है जैसे कुछो छूट गया है हमसे , कही मन ही नहीं लगता है। हमे लगता है हम पहले वाले गुड्डू है ही नहीं कुछ अधूरा सा लगता है हमे खुद में”,गुड्डू ने कहा तो गोलू समझ गया की गुड्डू शगुन को मिस कर रहा है लेकिन खुलकर बोल नहीं पा रहा तो उसने गुड्डू की बात सम्हालते हुए कहा,”हम समझ सकते है भैया , इतनी सारी परेशानियों में है आप तो मन तो अशांत रहेगा ही पर हमारे पास इसका समाधान है”
“वो का है गोलू ?”,गुड्डू ने पूछा
गोलू मुस्कुराया और कहा,”नए आर्डर के लिए कल हम दोनों जा रहे है बनारस , महादेव की शरण में जायेंगे तो सारी परेशानिया अपने आप दूर हो जाएगी , चलोगे ना ?”
“कमाल करते हो यार गोलू जे भी कोई पूछने की बात है जरूर चलेंगे , अब जब तुम्हाये साथ काम शुरू कर ही दिया है तो जहा तुम जाओगे वहा हम भी जायेंगे लेकिन उस से पहले चलेंगे बाबू गोलगप्पे वाले के पास , बहुत दिन हो गए हमने गोलगप्पे नहीं खाये”,कहते हुए गुड्डू ने बाइक चौक की तरफ मोड़ दी और कुछ देर बाद ही दोनों बाबू गोलगप्पे वाले के सामने थे।
गुड्डू गोलू को देखते ही बाबू मुस्कुरा उठा और कहा,”अरे गुड्डू भैया , गोलू भैया बड़े दिनों बाद आये”
“हां यार बाबू जिंदगी के झमेलों में इतना उलझे हुए है की सब छूट गया , दुई प्लेट लगाओ”,गोलू ने कहा
“हाँ हाँ भैया अभी लगाते है आप बइठो ना”,बाबू ने कहा तो गुड्डू अपनी बाइक पर ही बैठ गया और गोलू कुर्सी लेकर गुड्डू के सामने। इन दिनों गोलू का पिंकी से भी मिलना नहीं हो पा रहा था ना बात हो रही थी पर गोलू खुश था की पिंकी और उसके बीच अब कोई नहीं आ सकता। बाबू ने दो प्लेट बनाकर दोनों को दिया और फिर दूसरे कस्टमर में लग गया। गुड्डू खाने लगा तो उसका मन टटोलने के लिए गोलू ने कहा,”भैया आजकल पिंकी
का नाम नहीं ले रहे हो तुमहू ?”
पिंकी का नाम सुनते ही गुड्डू खाते खाते रुक गया और फिर गोलू की तरफ देखकर कहा,”उह हमसे प्यार नहीं करती है गोलू अब जबरदस्ती तो हम किसी को अपना बना नहीं सकते है। हमायी किस्मत में जे प्यार व्यार नहीं लिखा है”
गुड्डू का उदास चेहरा देखकर गोलू को बुरा लगा लेकिन मन ही मन में ये जानकर ख़ुशी भी हुई की गुड्डू अब पूरी तरह से पिंकी को भूल चुका है। वह उठा और गुड्डू के पास आकर कहा,”किसने कहा नहीं लिखा ? अरे देखना एक दिन आपकी जिंदगी में भी कोई ऐसी आएगी जो आपको बहुते ज्यादा प्यार करेगी , आपका ख्याल रखेगी,,,,,,,,,,,,,,,और का पता आ गयी हो जिसे आप देख ना पा रहे हो या देखकर भी नजरअंदाज कर रहे हो”
गोलू की बात सुनकर गुड्डू खाते खाते फिर रुक गया लेकिन इस बार उसकी आँखों के सामने शगुन का चेहरा आ गया , जिस तरह शगुन उस से बात करती थी , उसका ख्याल रखती थी वैसे आज तक किसी ने नहीं रखा। गुड्डू को खोया हुआ देखकर गोलू ने उसके सामने अपना हाथ हिलाते हुए कहा,”का अभी से शादी के सपने देखने लगे ?”
गुड्डू अपने ख्यालो से बाहर आया और आखरी गोलगप्पा गोलू के मुंह में ठूसते हुए कहा,”बहुते बकवास करने लगे हो गोलू , चलो चलते है”
गोलू ने बाबू को पैसे देने चाहे तो उसने मना कर दिया कुछ दूर खड़े गुड्डू ने इशारे से पैसे ले लेने को कहा तो बाबू ने पैसे ले लिए और अपने काम में लग गया। गुड्डू ने बाइक स्टार्ट की और गोलू के साथ घर की ओर चल पड़ा। गोलू पीछे बैठा पिंकी के बारे में सोच रहा था अब उन दोनों के बीच कोई नहीं था। वही गुड्डू की आँखों के आगे शगुन का चेहरा आ रहा था , ठंडी हवाएं चल रही थी और गुड्डू के बाल उस से उड़ रहे थे। आँखों में एक कशिश और चमक थी जो की अभी कुछ देर पहले ही उभरी थी। गुड्डू और गोलू अपनी आने वाली जिंदगी के सपने खुली आँखों से देखते हुए घर चले आये
बनारस , उत्तर-प्रदेश
अगली सुबह घर में कुछ खास मेहमान आने शुरू हो गए , कल सगाई थी और ऐसे में बहुत सारे काम बाकि पड़े थे जिन्हे शगुन को ही देखना था। अमन और चाचा के आने की वजह से गुप्ता जी के कंधो का भार भी कम हो गया। सभी बहुत खुश थे वेदी और प्रीति की कुछ खरीदारी अभी बाकि थी इसलिए दोनों मार्किट चली गयी। दिनभर शगुन तैयारियों में लगी रही शाम में अमन के कहने पर शगुन , वेदी , प्रीति और अमन चारो अस्सी घाट जा पहुंचे। शाम का वक्त था और सूरज डूबने को ही था। आरती में अभी वक्त था चारो वहा बैठकर घाट की सुंदरता को निहारने लगे। अमन की नजर बार बार वेदी पर चली जाती और वेदी वो किसी और ही सोच में खोयी हुई थी। आज शगुन घाट पर साड़ी पहनकर आई थी और उस साड़ी में बहुत ही खूबसूरत भी लग रही थी। आरती का समय हुआ तो चारो उठे। प्रीति और वेदी थोड़ा नीचे चली गयी , शगुन ने देखा तो उसने अमन को भी उनके साथ भेज दिया ताकि उनका ख्याल रखे और खुद वही खड़े हाथ जोड़कर आँखे मूंद ली। मंत्रोचारण शुरू हुए जैसे जैसे मन्त्र शगुन के कानो में पड़ रहे थे उसके दिमाग में गुड्डू का ख्याल चल रहा था। आज उसे गुड्डू की बहुत याद आ रही थी , कितने दिनों से उसने गुड्डू को देखा तक नहीं था। शगुन हाथ जोड़े महादेव से कहने लगी,”उनका प्यार तो शायद मेरे नसीब में नहीं है पर काश वो यहाँ होते तो उन्हें जी भरकर देख लेती। ऐसा क्यों होता है महादेव की जिसे पुरे मन से चाहा जाये वही हमे नहीं मिलता और गुड्डू जी तो मेरे होकर भी मेरे नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,उन्हें कुछ याद ही नहीं है फिर कैसे उनके मन में मेरे लिए प्यार होगा , भावनाये होगी ? आज की शाम आपसे कुछ नहीं मांगेगे बस इतना मांगेंगे की एक बार उन्हें देख ले ,, काश हम आँखे खोले और वो हमारे सामने हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पर मेरी किस्मत गुड्डू जी तो इस वक्त कानपूर में है और मैं उनसे दूर यहाँ”
शगुन ने आँखे मूंदे रखी और हाथ जोड़े रखे , माहाआरती शुरू हुई शगुन मन ही मन गुड्डू को याद कर रही थी। अब इसे शगुन का प्यार कहे या महादेव की कृपा। गोलू और गुड्डू उसी शाम बनारस में आये थे और बिल्कुल अस्सी घाट के सामने आकर उनकी गाड़ी खराब हुई। गुड्डू और गोलू नीचे उतरे तो गुड्डू ने कहा,”तुम्हे जे ही गाड़ी मिली थी लाने को ?”
“अरे भैया हमहू सोचे गाड़ी से चलेंगे तो पार्टी को लगेगा बड़ा बिजनेस करते है हम लोग , रुको हम देखते है कोई मेकेनिक”,कहकर गोलू वहा से चला गया। गुड्डू वही खड़ा रहा उसके कानो में आरती का स्वर पड़ रहा था। ना चाहते हुए भी गुड्डू के कदम अस्सी घाट की तरफ बढ़ गए वह सीढिया उतरते हुए नीचे आने लगा , महादेव की कृपा थी की गुड्डू उसी ओर चला जा रहा था जिस ओर शगुन खड़ी थी। गुड्डू घाट की खूबसूरती में खोया आकर बिल्कुल शगुन के बगल में खड़ा हो गया ना उसने शगुन को देखा ना ही शगुन ने उसे दोनों आँखे मूंदे हाथ जोड़े एक दूसरे के अगल बगल खड़े थे। गुड्डू की मौजूदगी से शगुन का दिल धड़कने लगा वही शगुन की मौजूदगी से गुड्डू का मन अब शांत था , जो बेचैनी उसे कानपूर में थी वो एकदम से खत्म हो चुकी थी
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