Sanjana Kirodiwal

मनमर्जियाँ – 95

Manmarjiyan – 95

Manmarjiyan - 95

गोलू पिंकी को लेकर अपनी भावनाये अभी क्लियर भी नहीं कर पाया था की उसके पिताजी ने उसकी शादी करने का मन बना लिया। गोलू को लगा मिश्रा जी ने उसके पिताजी को शादी की सलाह दी है इसलिए वह गुड्डू के घर चला आया लेकिन मिश्रा जी का जवाब सुनकर गोलू का मुंह उतर गया। वह जानता था उसके पिताजी बहुत जिद्दी इंसान है उसकी एक नहीं सुनेंगे , लेकिन शादी नहीं करने के पीछे कोई ठोस कारण भी तो नहीं था उसके पास। गोलू गुड्डू के पीछे आया और कहा,”गुड्डू भैया मतलब तुमहू हमायी मदद नहीं करोगे ?”
“गोलू इसमें मदद का करनी है , अच्छा है तुम्हायी शादी हो रही है हमायी भी हो चुकी है”,गुड्डू ने कहा
“अरे यार भैया तुमहू समझ नहीं रहे हो , जिसे जानते नहीं उस से शादी कैसे कर सकते है भला ?”,गोलू ने कहा
“हमने भी तो की है शगुन से हम कहा जानते थे उन्हे और देखो आज वो हमारी सबसे अच्छी दोस्त है”,गुड्डू ने शगुन के बारे में सोचते हुए कहा
“उसके लिए लड़की का शगुन भाभी जैसा होना भी जरुरी है,,,,,,,,,,,,,,,छोडो यार भैया तुम नहीं समझोगे”,कहते हुए गोलू घर चला गया
“पगला गया है शादी के नाम से , पर याद रखना गोलू जिस दिन तुम्हायी जिंदगी में अच्छी लड़की आएगी ना तुम्हे भी उस से प्यार हो जाएगा”,गुड्डू खुद में बड़बड़ाया
“गुड्डू”,नाश्ते के लिए बैठे मिश्रा जी ने गुड्डू को आवाज दी
“जी पिताजी”,अगले ही पल गुड्डू उनके सामने हाजिर था। मिश्रा जी ने गुड्डू को ऊपर से लेकर नीचे तक देखा और फिर कहा,”काम कैसा चल रहा है तुम्हारा ?”
“ठीक चल रहा है पिताजी अभी शादी का सीजन नहीं है तो कल रात पार्टी का अरेजमेंट करने गए थे , अच्छा पैसा मिला है”,गुड्डू ने कहा।
“तुम बता रहे थे लखनऊ में तुम्हारे किसी दोस्त के यहाँ शादी का काम तुम देख रहे हो ?”,मिश्रा जी ने पूछा
“हां पिताजी वो हमारा दोस्त है ना नवीन उसकी बहन की शादी है लखनऊ में , कल शाम निकल जायेंगे हम और गोलू”,गुड्डू ने कहा
“शगुन से बात हुई तुम्हायी ?”,मिश्रा जी ने सीधे सीधे पूछ लिया तो गुड्डू को याद आया की कानपूर आने के बाद उसने एक बार भी शगुन को फोन नहीं किया लेकिन मिश्रा जी के सामने उसने झूठ बोल दिया की आज सुबह ही की।
“लखनऊ से आते वक्त शगुन को भी अपने साथ ले आओ , उसके बिना घर सूना सुना लगता है”,मिश्रा जी ने कहा तो गुड्डू ने हाँ में गर्दन हिला दी और चला गया। अपने कमरे में आकर गुड्डू ने सबसे पहले अपना फोन उठाया और शगुन का नंबर डॉयल किया। जैसे जैसे रिंग जाने लगी गुड्डू के दिल की धड़कने भी तेज हो गयी उसने फोन काट दिया। एक बेचैनी का अहसास उसे हो रहा था , उसने फोन को अपने होठो से लगाया और एक बार फिर शगुन का नंबर डॉयल किया इस बार भी जैसे जैसे रिंग जा रही थी गुड्डू के दिल की धड़कने बढ़ने लगी लेकिन उसने फोन नहीं काटा और अपने निचले होंठ को अपने दांतो तले दबा लिया। शगुन शायद किसी काम में बिजी थी इसलिए प्रीति ने फोन उठाया और कहा,”हेलो जीजू कितने सेल्फिश हो आप कानपूर जाने बाद एक बार भी फोन नहीं किया ?”
“अरे प्रितिया तुम हो , उह का है की बिजी हो गए थे थोड़ा,,,,,,,,,,,,,,शगुन है क्या ?”,गुड्डू ने आखरी तीन शब्द मुश्किल से कहे
“दी ऊपर है अपने कमरे में रुको बात करवाती हूँ पहले ये बताओ आप उस दिन दी को किस करने के बाद भाग क्यों गए ?”,प्रीति ने पूछा
गुड्डू ने सूना तो बेचारा चुप ऐसी बाते आज तक उसने शगुन के सामने नहीं की प्रीति को क्या जवाब देता ? उसे खामोश पाकर प्रीति ने कहा,”क्या हुआ चुप क्यों हो गए आप ? आये हाय शरमा रहे होंगे नई,,,,,,,,,,,,,,,,!!
“यार तुम ना हमायी टांग ना खींचो”,गुड्डू ने कहा
“हक़ है हमारा वैसे आज सुबह सुबह दी की याद कैसे आ गयी आपको ?”,प्रीति बात करते हुए ऊपर छत पर आयी शगुन ने उसकी बातो में दी सूना तो पूछ लिया,”किसका फोन है प्रीति ?”
शगुन की आवाज सुनते ही गुड्डू के दिल की धड़कने एकदम से बढ़ गयी। प्रीति पलटी और शगुन ने झूठ ही कह दिया,”मेरी कॉलेज की फ्रेंड है दी आपके बारे में पूछ रही है”
“ए प्रीति झूठ काहे बोल रही हो यार बात करवाओ ना उनसे ?”,गुड्डू ने कहा
“हाये ये बेसब्री , मैं दी को फोन एक शर्त पर दूंगी इस बार आप आओगे तो दी को अपने दिल की बात बोल देना”,प्रीति ने कहा
“क क कोनसी दिल की बात ?”,गुड्डू ने कहा
“अरे जीजाजी इतना तो समझ आता है मुझे , प्यार हो गया है न मेरी दी से ?”,प्रीति ने कहा तो गुड्डू खामोश हो गया और फिर धीरे से कहा,”तुमसे झूठ नहीं कहेंगे “हां” हो गया है और इह बहुत देर से समझ आया हमे”
“ओह्ह जीजू मैं बता नहीं सकती मैं कितना खुश हूँ , मैं अभी जाकर दी को ये बात बताती हूँ वो तो खुश हो जाएगी”,प्रीति ने एक्साइटेड होकर कहा
“अरे रुको अभी नहीं हम चाहते है की हम खुद उसे ये बात बताये , कल शाम लखनऊ जा रहे है उसके बाद सीधा वही आकर शगुन से अपने दिल की बात कह देंगे”,गुड्डू ने कहा
“ये भी सही है मुझे तो बस वो रोमांटिक मोमेंट देखना है जब आप दी को प्रपोज करोगे”,प्रीति ने कहा
“पहले वादा करो शगुन से ये सब नहीं कहोगी ?”,गुड्डू ने कहां
“वादा जीजू”,प्रीति ने विश्वास के साथ कहा
“अब तो बात करवा दो उनसे”,गुड्डू ने बड़ी मासूमियत से कहा
“सॉरी अभी करवाती हूँ कहकर प्रीति कमरे में आयी और शगुन की और फ़ोन बढाकर इतराते हुए कहा,”आपके उनका फ़ोन है”
शगुन ने फोन लिया तो प्रीति वहा से चली गयी। शगुन ने फोन कान से लगाया और कहा,”हेलो”
शगुन के मुंह से ये एक शब्द सुनकर ही गुड्डू का दिल धड़क उठा ऐसा नहीं था की इस से पहले उसकी शगुन से बात नहीं हुई या उसने उसकी आवाज नहीं सुनी पर इस वक्त अहसास कुछ और थे। गुड्डू ने अपनी भावनाओ को सम्हाला और कहा,”हैलो कैसी हो ?”
“मैं ठीक हूँ आप कैसे है ?”,शगुन ने बुझे मन से कहा जबकि उसके दिमाग में दो दिन से घर की परेशानिया चल रही थी
“हम भी ठीक है”,कहकर गुड्डू खामोश हो गया , शगुन ने भी कुछ नहीं कहा उसे चुप देखकर गुड्डू ने कहा,”अच्छा वो हम कल शाम लखनऊ जा रहे है , उसके बाद वही से सीधा बनारस आ जायेंगे तुम्हे लेने”
“हम्म्म”,कहकर शगुन ने मन ही मन कहा’चाचा चाची ने जो किया है उस बारे में गुड्डू जी को बताये या नहीं ? नहीं नहीं वो इस वक्त अपने काम में उलझे होंगे मैंने बताया तो और परेशान हो जायेंगे”
“शगुन”,गुड्डू ने कहा
“हां”,शगुन की तंद्रा टूटी
“तुम ठीक हो ना ?”,गुड्डू ने शगुन की चिंता करते हुए कहा
“आप पक्का बनारस आ रहे है ना ?”,शगुन ने सवाल किया
“हां तुम्हे लेने और तुमसे कुछो कहना भी है”,गुड्डू ने धड़कते दिल के साथ कहा
“क्या ?”,शगुन ने कहा
“उह बनारस आने के बाद , अपना ख्याल रखना”,गुड्डू ने कहा तो शगुन के दिल को एक तसल्ली मिली की अब कोई और भी है जिसे उसकी परवाह है उसने कहा,”आप भी”
“ठीक है अभी हम रखते है हमे किसी जरुरी काम से निकलना होगा , लखनऊ पहुंचकर फ़ोन करते है”,गुड्डू ने कहा और फोन काट दिया
शगुन ने भी फोन टेबल पर रख दिया और खिड़की के पास चली आयी
शगुन का मन कल से बहुत उदास था चाचा चाची ने जो किया उसके बाद से शगुन के दिमाग में बस एक ही ख्याल आ रहा था की अब उसके पापा और प्रीति कहा जायेंगे ? गुप्ता जी ने शगुन से मना किया की वह प्रीति को ये सब के बारे में ना बताये क्योकि वे जानते थे प्रीति को ये सब पता चला तो वह चाची से झगड़ पड़ेगी। शगुन प्रीति के सामने नार्मल रहने की कोशिश कर रही थी और गुप्ता जी नए घर की तलाश में जुट गए। प्रीति तैयार होकर अपनी क्लासेज के लिए चली गई और शगुन अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ी सामने बहते पानी को देखे जा रही थी और मन ही मन कहने लगी,”जल्दी आ जाईये गुड्डू जी यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है , मुझे
आपसे बात करनी है , बहुत कुछ है जो आपसे कहना है , परिस्तिथिया ऐसी हो गयी है की मैं चाहकर भी आपको ये सब नहीं बता पा रही हूँ गुड्डू जी , मैं नहीं चाहती की इन सब से आपके काम पर असर पड़े , लेकिन आपके बिना बहुत अकेली भी पड़ चुकी हूँ पापा को इस हाल में देखकर बहुत बुरा लग रहा है”
शगुन की आँखो से बहते हुए आंसू उसके गाल पर चले आये।

कानपूर , उत्तर-प्रदेश
शाम में हॉल के सोफे पर बैठी वेदी टीवी देख रही थी , मिश्राइन अपने हाथ में एक डिब्बा लेकर आयी और कहा,”वेदी सुन जरा ये डिब्बा वंदना के घर तो दे आ”
“अम्मा हम नहीं जायेंगे आप लाजो को भेज दो हम टीवी देख रहे है”,वेदी ने बहाने बनाते हुए कहा
“लाजो अम्मा के पास है तुम उठो और जाकर दे आओ”,मिश्राइन ने कहा और वापस चली गयी। वेदी बेमन से उठी और डिब्बा लेकर चल पड़ी डिब्बे में बेसन के लड्डू थे जो की वंदना ने मिश्राइन से कहकर बनवाये थे अपने भांजे के लिए। वंदना का भांजा दीपक कुछ दिनों से यही रह रहा था। हां ये वही लड़का था जो उस दिन बाइक से गिरा था और जिसे देखकर वेदी हंस पड़ी थी। वंदना का घर उसी गली में तीन घर छोड़कर ही था वेदी घर में आयी और सीधा अंदर चली आयी , मिश्रा जी के घर में वंदना की फेवरेट वेदी ही थी जो की जब चाहे तब उनके घर आ सकती थी लेकिन जबसे दीपक आया था वेदी ने बंद कर दिया। वेदी अंदर आकर सीधा किचन में चली आयी और डिब्बा वंदना को देकर कहा,”चाची इह अम्मा ने भिजवाए है”
“अरे बड़े दिनों बाद आयी हो , रुको अभी मैं तुम्हारे लिए गरमा-गरम डोसा बनाती हूँ”,वंदना ने कहा तो वेदी ख़ुशी ख़ुशी रुक गयी। किचन के किचन के बिल्कुल सामने वाले कमरे का दरवाजा खुला था और परदे लगे थे वेदी की नजर उधर चली गयी कमरे में शायद कोई टहल रहा था और वेदी उसे देखने की नाकाम कोशिश कर रही थी। वंदना ने डोसा बनाकर प्लेट में रखा और वेदी से कहा,”लो वेदी खाकर बताओ कैसा बना है ?”
वेदी ने एक निवाला खाया और कहा,”बहुते अच्छा बना है”
“तुम आराम से खाओ तब तक मैं बिट्टू को देखकर आती हूँ कहते हुए वंदना चली गयी वेदी मजे से डोसा खाने लगी। डोसा खाकर उसने हाथ धोया और जैसे ही जाने को मुड़ी ना जाने उसे क्या सूझी की वह गैस की और चली आयी , उसने गैस ऑन किया और तवे को गर्म करके उस पर डोसा बेटर डालकर खुद डोसा बनाने की कोशिश करने लगी। वेदी ने पहली बार बनाया था इसलिए उसे समझ नहीं आया कैसे बनाना , वो टेढ़ा मेड़ा बना उसने उठाया और देखते हुए कहा,”छी कितना गंदा बना है”
वेदी का इतना कहना था की पीछे दरवाजे पर खड़ा दीपक जोर जोर से हसने लगा। वेदी ने पीछे देखा तो दीपक था उसने मुंह बनाया और डोसा को वापस प्लेट में रख दिया। तब तक वंदना भी चली आयी और पूछा,”अरे दीपक तुम्हे क्या हुआ इतना हंस क्यों रहे हो ?”
दीपक ने कहा तो कुछ नहीं बस अपनी हंसी रोकते हुए वेदी की बगल में आया और उसका बनाया डोसा उठाते हुए कहा,”इसे देखकर”
वंदना ने देखा तो वो भी हसने लगी और कहा,”अरे वेदी ये क्या बना दिया ऐसा डोसा तो हमने पहली बार देखा है”
बेचारी वेदी फीका सा मुस्कुरा दी और कहा,”अच्छा चाची हम जाते है”
वेदी जाने लगी तो दीपक ने उसके बनाये डोसे का एक टुकड़ा तोड़कर खाया और कहा,”डोसा अच्छा बना है वैसे शेफ का नाम क्या है ?”
“इंजीनियरिंग कर रहे हो ना पता लगा लो”,कहकर वेदी ने मुंह बनाया और वहा से चली गयी , उसकी इस अदा पर दीपक मुस्कुराये बिना न रह सका

क्रमश – मनमर्जियाँ – 96

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संजना किरोड़ीवाल

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