Sanjana Kirodiwal

मनमर्जियाँ – 88

Manmarjiyan – 88

Manmarjiyan - 88

मनमर्जियाँ – 88

गुड्डू के गुस्से की वजह से शगुन एक बार फिर उस से नाराज थी। गुड्डू ने उसे मनाने की कोशिश की लेकिन शगुन वहा से चली गयी प्रीति ने देखा तो उसे भी शगुन का व्यवहार थोड़ा अजीब लगा। गुड्डू ने तो शगुन के लिए ही उन लड़को को पिटा था। प्रीति गुड्डू के पास आयी और कहा,”यार जीजू दी तो कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी अब ?”
“अब का सुनेंगे उनके लेक्चर,,,,,,,,,,,,,,चलो”,गुड्डू ने कहा और प्रीति के साथ वहा से बाहर चला आया। गुड्डू ने देखा शगुन रिक्शे वाले के पास खड़ी उस से कही चलने का कह रही है गुड्डू उसके पास आया और उसकी बाँह पकड़ कर अपनी और करते हुए कहा,”इह सब का है यार शगुन ? ऐसा भी का कर दिया हमने तुम्हाये लिए ही तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!
“मेरे लिए आपको किसी पर हाथ उठाने की जरूरत नहीं है गुड्डू जी”,शगुन ने गुस्से और दर्द भरी भावना के साथ कहा
“दीदी आप बैठ रही है की रुके”,पास खड़े साईकल रिक्शा वाले ने कहा
गुड्डू ने गुस्से से उसकी और देखा और कहा,”साले बात कर रहे है ना दिखाई नहीं देता , जाने की जल्दी पड़ी है”
“गुरु हम तो पूछत रहे बस”,आदमी ने कहा
गुड्डू ने फिर गुस्से से देखा तो आदमी दूसरी और देखने लगा। गुड्डू ने शगुन की और देखा और कहने लगा,”यार हमहू जान बूझकर थोड़े ना हाथ उठाये है उन पर उह सब बदतमीजी कर रहे थे पहिले प्रीति के साथ फिर तुम्हाये साथ , हमायी जगह कोई और भी होता तो उह भी यही करता”
“दीदी भाड़ा छूट रहा है हमारा , चलेंगी के नहीं चलेंगी ?”,आदमी फिर बोल पड़ा
“साले अभी धर देंगे दो कंटाप कान के नीचे दिखाई नहीं दे रहा इम्पोर्टेन्ट बात चल रही है , इन्होने पहिले से हमायी बत्ती लगा रखी है तुमहू हो के और आग लगाय रहे हो,,,,,,,,,,,,,,,निकलो यहाँ से”,गुड्डू ने गुस्से से कहा तो बेचारा रिक्शा वाला वहा से निकल गया
“देखा ये प्रॉब्लम है आपकी किसी ओर का गुस्सा आप किसी और पे निकाल रहे है”,शगुन ने कहा तो गुड्डू ने अपने गुस्से को कंट्रोल करने के लिए एक गहरी साँस ली और कहा,”ठीक है तुम्ही बताओ का करे हम ?”
शगुन ने गुड्डू की और देखा और कहा,”आज के बाद आप किसी पर हाथ नहीं उठाएंगे”
“ठीक है नहीं उठाएंगे”,गुड्डू ने सहजता से कहा
“ऐसे नहीं हाथ पर हाथ रखकर वादा कीजिये की आप दोबारा किसी पर हाथ नहीं उठाएंगे ना ही ऐसे किसी पर गुस्सा होंगे”,शगुन ने कहा जो की करना गुड्डू के लिए मुश्किल था। गुड्डू ने प्रीति की और देखा तो उसने भी गुड्डू से वादा करने का इशारा कर दिया। शगुन के गुस्से को देखते हुए गुड्डू ने वादा कर लिया। गुड्डू के वादा करते ही प्रीति उन दोनों के पास आयी और शगुन से कहा,”अब मान जाओ ना दी , चलो ना चलकर कुछ खाते है”
“ठीक है”,कहकर शगुन प्रीति और गुड्डू के साथ वापस रेस्टोरेंट चल पड़ी। तीनो ने वहा बैठकर नाश्ता किया और उसके बाद तीनो बाहर चले आये। प्रीति शगुन और गुड्डू को लेकर बनारस के बाजार की और चल पड़ी। शगुन ने अपने साथ साथ मिश्राइन , वेदी और लाजो के लिए भी कपडे लिए। अम्मा के लिए गर्म शॉल भी ली। गुड्डू बनारस कई बार आया था पर बाजार में कभी नहीं घुमा लेकिन शगुन और प्रीति के साथ घूमना पड़ रहा था। बाजार में घूमने के बाद गुड्डू काफी तक चूका था तीनो पैदल चलते हुए इतना दूर निकल आये थे की वापसी में उन्हें रिक्शा करना पड़ा। रिक्शा चलाने वाला भी ऐसा मरियल सा आदमी की किसी भी वक्त बेहोश होकर गीर जाये। शगुन और गुड्डू आगे बैठे और प्रीति बैग उठाये पीछे। रिक्शा वाला बहुत धीरे धीरे चला रहा था गुड्डू को ये देखकर झुंझलाहट हो रही थी उसने कहा,”ए भैया रिक्शा रोको”
रिक्शा वाला रुका तो गुड्डू नीचे उतरा और कहा,”तुमहू उतर के पीछे बैठो हमहू चलाते है”
“अरे बिटवा हम चला लेंगे”,आदमी ने कहा
“ऐसे चलाओगे तो कल शाम तक घर पहुंचेंगे हम , तुमहू उतरो यार”,गुड्डू ने कहा तो आदमी नीचे उतर गया और जाकर शगुन की बगल में बैठ गया। गुड्डू साइकिल पर आ बैठा और आगे बढ़ा दी। शगुन बस हैरानी से गुड्डू को देखे जा रही थी वह कब क्या कर दे कोई नहीं जानता था लेकिन ये करते हुए गुड्डू बहुत ही प्यारा लग रहा था। रिक्शा चलाते हुए वह कोई गाना भी गुनगुना रहा था। कुछ देर पहले वो गुस्से में था और अब एकदम से शांत , उसके जितना मस्तमौला इंसान ना तो वहा कोई था ना शायद कोई होगा। जिसका रिक्शा था वह भी मुस्कुराते हुए गुड्डू को देख रहा था , उसने शगुन की और देखकर कहा,”कोन गाँव से है बाबूजी ?”
“कानपूर से है चाचा”,शगुन ने प्यार से गुड्डू की और देखते हुए कहा
“किस्मत वाली भई उह लड़की जोन इनसे शादी करी है , कितने खुशमिजाज दिखाई पड़ते है”,आदमी ने कहा तो शगुन मुस्कुराते हुए उस आदमी की और देखने लगी और फिर गुड्डू की और देखकर मन में कहा,”किस्मत वाले तो है चाचा तभी तो ये मिले मुझे”
रिक्शा घर के सामने पहुंचा शगुन के पास पड़ोस वाले ने गुड्डू को रिक्शा चलाते देखा तो हैरान रह गए। जहा दामाद सूट बूट पहने अकड़ दिखाते घूमता है वही हमारे गुड्डू भैया ये सब कर रहे थे। रिक्शा घर के सामने आकर रुका गुड्डू निचे उतरा , शगुन प्रीति भी नीचे उतर आये। रिक्शा वाला भी नीचे उतरा तो गुड्डू उसके पास आया और पर्स से 500 का नोट निकालकर उनकी और बढ़ाते हुए कहा,”हम इंसानो का बोझा ना थोड़ा कम ढोया करो चाचा , जे उम्र में खुद का ख्याल रखने की जरूरत है”
“अरे बबुआ इह का कर रहे हो ? एक तो तुम्ही हम सबको लेकर आये हो ऊपर से जे पैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,ना ना बाबूजी हम ना लेइ है”,आदमी ने मना करते हुए कहा
गुड्डू उनके पास आया और पैसे उनकी शर्ट के जेब में रखते हुए कहा,”रख लीजिये दया करके नहीं दे रहे है बच्चो के लिए दे रहे है”
आदमी ने सूना तो उसकी आँखों में नमी तैर गयी और उसने कहा,”बाहर से हिया आने वाला हर कोई हम रिक्शा वालो को छोटा महसूस करवा कर चला जाता है बबुआ तुमहू पाहिले इंसान हो जिस से मिलकर हम खुद को बड़ा महसूस कर रहे है,,,,,,,,,,,,,,,,,,सदा खुश रहो”
“का चचा तुमहू भी बड़े इमोशनल हो , हिया आओ”,कहते हुए गुड्डू ने उन्हें गले लगाया और पीठ थपथपाते हुए कहा,”दुनिया में कुछो अगर सबसे पड़ा है ना उह है इंसानियत उस से बड़ा कुछ नहीं है , और हां महादेव् की नगरी में रहते हो तुमहु से बड़ा तो साला कोनो हो भी नहीं सकता है”
आदमी गुड्डू की बातो से खुश हो गया और ख़ुशी ख़ुशी वहा से चला गया। गुड्डू का एक और रूप देखकर शगुन हैरान थी , गुड्डू ने शगुन के हाथ से बैग लिए और कहा,”अंदर चले”
“हां जीजू , वरना ये पड़ोस की औरते नजरो से ही खा जाएँगी आपको,,,,,,,,,,,,,,,कैसे घूरे जा रही है सब की सब तबसे”,पास खड़ी प्रीति ने कहा तो गुड्डू मुस्कुराते हुए उसके साथ आगे बढ़ गया। शगुन वही खड़ी गुड्डू को देखती रही। आज जो गुड्डू ने रिक्शेवाले के साथ किया उसके बाद से शगुन के दिल में गुड्डू के लिए इज्जत और बढ़ चुकी थी। वह भी प्रीति और गुड्डू के पीछे चल पड़ी। तीनो अंदर चले आये गुप्ता जी ने उनके खाने का इंतजाम करवा दिया था। सबने साथ बैठकर खाना खाया और फिर गुड्डू ऊपर कमरे में चला आया। शगुन नीचे किचन में थी। प्रीति ने देखा तो उसके पास चली आयी और कहा,”दी मैं आपसे बहुत नाराज हूँ”
“जानती हूँ”,शगुन ने बिना प्रीति की और देखे कहा
“आपको आज जीजू पर इस तरह गुस्सा नहीं करना चाहिए था , उन लड़को ने पहले बदतमीजी की थी जीजू की इसमें कोई गलती नहीं थी”,प्रीति ने कहा
शगुन ने सूना तो प्रीति की और पलटी और कहने लगी,”सच क्या है ये मैं भी जानती हूँ प्रीति ? गुड्डू जी में कोई बुराई नहीं है बल्कि वो बहुत अच्छे है बस एक कमी है और वो है उनका गुस्सा , अपने गुस्से की वजह से पहले भी वो कई परेशानियों में फंस चुके है। इस गुस्से की वजह से कही उनके साथ कुछ गलत ना हो जाये ये सोचकर डर लगता है मुझे इसलिए मजबूरन आज मुझे उन पर गुस्सा होना पड़ा। प्रीति हर किसी की बात पर ध्यान देना या फिर उस पर हाथ उठाना कहा सही है। मैंने माजी से वादा किया है मैं गुड्डू जी को एक अच्छा इंसान बनाउंगी और उसके लिए मुझे उनके साथ थोड़ा सख्त होना पड़ेगा”
“जीजू बहुत अच्छे है इस बात में तो कोई डाउट ही नहीं है दी , देखा ना आज आपने किस तरह वो रिक्शा वाले चाचा को गले लगा रहे थे , जीजू में बिल्कुल घमंड नहीं है और तो और वो आपकी हर बात मान लेते है,,,,,,,,,,,,,,मुझे तो लगता है जीजू को भी आपसे प्यार हो गया है बस वो कहते नहीं है”,प्रीति ने किचन के प्लेटफॉर्म पर बैठते हुए कहा।
शगुन ने प्रीति की और देखा तो प्रीति ने सामने देखते हुए कहा,”ऐसा मुझे लगता है बाकि जीजू के मन की बात आप जाने”
“प्रीति ऐसा कुछ नहीं है”,शगुन ने कहा और वापस काम में लग गयी
“अच्छा अगर ऐसा नहीं होता ना तो आज जीजू उन लड़को को नहीं पीटते , जीजू ने उन्हें मेरे लिए नहीं मारा था बल्कि जब उनमे से किसी ने आपके लिए गलत कहा तब जीजू ने उन्हें मारा,,,,,,,,,,,,,आपके इतना गुस्सा होने के बाद भी जीजू ने आपकी बात मान ली,,,,,,,,,,,,वो आपको बहुत पसंद करते है दी”,प्रीति ने बड़े ही प्यार से कहा तो शगुन एक पल के लिए फ्लेशबैक में चली गयी जब गुड्डू उन लड़को को पीट रहा था , गुड्डू की आवाज शगुन के कानो में गूंजने लगी “अगर कोई तुम्हाये बारे में गलत कहेगा तो उह तो पिटेगा हमसे” शगुन को अब समझ आ रहा था की उसने गुड्डू पर खामखा इतना गुस्सा किया। शगुन को खामोश देखकर प्रीति ने कहा,”दी मैं बस आप दोनों को खुश देखना चाहती हूँ , भले आप दोनों सारी जिंदगी ऐसे झगड़ते रहे , एक दूसरे को मनाते रहे पर कभी जीजू का साथ मत छोड़ना,,,,,,,,,,,,,,वो बहुत अच्छे है दी”
“ह्म्म्मम्म”,कहते हुए शगुन ने प्रीति के गाल को छुआ और फिर वहा से चली गयी। प्रीति भी बाहर चली आयी और आँगन में सुख रहे कपडे उतारने लगी। तभी किसी ने बेल बजायी , प्रीति ने कपडे कुर्सी पर डाले और गेट के और जाकर दरवाजा खोला सामने लड़के ने कहा,”कृष्णकांत गुप्ता जी का घर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
कहते हुए लड़के ने जैसे ही सामने देखा उसके आगे के शब्द मुंह में ही रह गये। ये वही लड़का था जिससे प्रीति पहले ट्रेफिक में और बाद में शगुन की शादी में मिल चुकी थी और दोनों ही मुलाकाते सही नहीं थी। लड़के को देखकर प्रीति ने कहा,”तुम तुम मेरे घर तक चले आये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,एक फोन किया ना थाने में तो उठाकर ले जायेंगे तुमको,,,,,,,,थाने में क्यों रुको अभी मेरे जीजू को बुलाती हूँ”
कहकर प्रीति ने जैसे ही कुछ कहना चाहा लड़के ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसकी पीठ दिवार से लगाते हुए कहा,”तुम पागल वागल हो क्या ? मैं यहाँ तुम्हारे लिए नहीं आया हूँ बल्कि गुप्ता जी ने मुझे बुलाया है पिछले हफ्ते ही उन्होंने मुझे यहाँ भाड़े पर कोई कमरा बताया था उसी के लिए आया हूँ मै,,,,,,,,,,,,,,,,,,,और हां तुम कोई महारानी नहीं हो जिसके लिए मैं यहाँ आऊंगा”
लड़का एक साँस में सब बोल गया प्रीति अपनी बड़ी बड़ी आँखों से बस उसे देखे जा रही थी। उसे अपनी और देखते हुए पाकर लड़के ने कहा,”घूर क्या रही हो ?”
प्रीति ने लड़के का हाथ अपने मुंह से हटाया और इतराते हुए कहा,”हां तो सीधा सीधा बोलो ना क्या काम है ? ज्यादा हीरो बनने की जरूरत नहीं है , पापा अंदर है” कहकर प्रीति मुंह बनाकर वहा से चली गयी। बेचारा लड़का अंदर आया और गुप्ता जी के पास चला गया। गुप्ता जी मुस्कुराते हुए लड़के से बात कर रहे थे और ये देखकर प्रीति मुंह बनाकर वहा से चली गयी। गुप्ता जी से बात करके लड़का वहा से चला गया।
शगुन ऊपर कमरे में आयी तो देखा गुड्डू बेड पर रखे कपडे सूटकेस में रख रहा था। ये देखकर शगुन उसके पास आयी और कहा,”आप कही जा रहे है ?”
गुड्डू ने एक नजर शगुन की और देखा और वापस कपडे रखने लगा।
“आप बताईये आपको क्या चाहिए ? मैं निकालकर देती हूँ”,शगुन ने गुड्डू के हाथ से कपडे लेकर कहा
“कुछ नहीं चाहिए हम जा रहे है”,गुड्डू ने कहा
“कहा ? ऐसे अचानक ?”,शगुन ने कहा
“तो हिया रहके का करेंगे ? सुबह शाम तुम्हाये लेक्चर सुनेंगे और उटपटांग वादे करते रहेंगे तुमसे”,गुड्डू ने मुंह बनाते हुए कहा
शगुन को लगा गुड्डू सुबह वाली बात से हर्ट होकर जा रहा है तो उसने कहा,”सॉरी मेरा आपको हर्ट करने का कोई इरादा नहीं था”
“तुम्हाये इरादे क्या है हमे साफ पता है शगुन गुप्ता”,गुड्डू ने शगुन के करीब आते हुए कहा तो शगुन की पीठ दिवार से जा लगी , उसकी धड़कने तेज हो गयी गुड्डू ने कुछ देर उसे देखा और फिर उस से दूर हटते हुए कहा,”हमारा बख्त बर्बाद मत करो हमे पैकिंग करने दो”
शगुन को ये सुनकर बहुत बुरा लग रहा था वह कहने लगी,”मानती हूँ मैंने आप पर गुस्सा किया लेकिन आप भी तो गुस्से में वो सब,,,,,,,,,,अब आप ऐसे जायेंगे तो पापा को अच्छा नहीं लगेगा , पापा को क्या मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा,,,,,,,,,,,,गुड्डू जी आप आप एक काम कीजिये मुझे वापस डांट लीजिये मैं बिल्कुल बुरा नहीं मान रही लेकिन ऐसे मत जाईये”
शगुन की बातें सुनकर गुड्डू मुस्कुराया और पलटकर कहा,”जौनपुर जा रहे है भुआ जी के पास पिताजी ने कुछो काम कहा है इसलिए , सुबह तक वापस आ जायेंगे”
गुड्डू की बात सुनकर शगुन ने उसे खा जाने वाली नजरो से देखा। गुड्डू को शगुन का गुस्से वाला चहेरा बहुत अच्छा लग रहा था। शगुन वहा से जाने लगी तो गुड्डू ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया दोनों एक दूसरे की और पीठ किये हुए खड़े थे। दोनों खामोश और फिर गुड्डू कहने लगा,”सिर्फ नाम के लिए शादी नही कीये थे तुमसे , तुम हमायी जिम्मेदारी हो शगुन ,, तुम्हारा सम्मान , तुम्हारी ख़ुशी , तुम्हारी इच्छाएं , तुम्हाये सपने सब मेटर करता है हमाये लिए। ऐसे कोई भी आकर तुम्हारे बारे मे कुछो कहेगा और हम सुनेंगे , नहीं सुन पाएंगे शगुन ,, तुमने सबके सामने हमे डांट लगायी हमे बुरा नहीं लगा कभी लगेगा भी नहीं क्योकि आज अगर हम में थोड़ी सी भी अच्छाई है ना शगुन तो वो तुम्हायी वजह से है”
गुड्डू की बाते सुनकर शगुन बस खामोश थी गुड्डू ने धीरे से उसका हाथ छोड़ दिया और कहा,”थोड़ी देर बाद निकलेंगे जौनपुर के लिए , अगर नाराजगी खत्म हो चुकी हो तो चाय पीला दो”
“लाती हूँ”,शगुन ने कहा और वहा से चली गयी। गुड्डू भी फ्रेश होने चला गया वापस आया और सूटकेस में रखा शर्ट उठाया गुड्डू ने उसे पहनना और जब बटन बंद करने लगा तो जल्दबाजी में ऊपर वाला बटन टूट गया। गुड्डू उसे वापस लगाने लगा लेकिन वह बार बार गिर रहा था। गुड्डू ने दुसरा शर्ट पहनना चाहा लेकिन फिर आईने में खुद को देखा तो याद आया की ये वही शर्ट है जो शगुन ने दिया था। गुड्डू ने उसे नहीं निकाला बाकि बटन बंद किये ऊपर का बटन छोड़ दिया लेकिन सीना झलक रहा था उस से और गुड्डू को फिटिंग वाले शर्ट में बनियान पहनने की आदत नहीं थी। वह शीशे के सामने आया और बालो में हाथ घुमाते हुए खुद से कहने लगा,”अब का करना है गुड्डू मिश्रा ऐसे चौचक बनके तो जाने से रहे जौनपुर , और कानपूर होता तो चल जाता बाबू इह ससुराल है तुम्हारा अच्छा थोड़े ना लगता है ऐसे”
“आपकी चाय”,शगुन ने कमरे में आते हुए कहा। शगुन की आवाज सुनकर गुड्डू उसकी और पलटा तो शगुन की नजर गुड्डू पर गयी और उसने कहा,”ऐसे जायेंगे आप ?”
“अरे उह बटन टूट गया था”,गुड्डू ने जेब से बटन निकालकर कहा
“तो दुसरा पहन लीजिये”,शगुन ने कहा
“नहीं हमे जे ही पहनना है हमारा फेबरेट है”,गुड्डू ने शगुन से नजरे बचाकर कहा। शगुन ने कुछ नहीं कहा सामने अलमारी में रखे डिब्बे से सुई धागा निकाला और गुड्डू के पास आकर कहा,”बटन दीजिये”
गुड्डू ने चुपचाप बटन शगुन को दे दिया। शगुन गुड्डू के करीब आयी और अपने हाथो से उसके शर्ट का बटन लगाने लगी। इस वक्त गुड्डू को वैसा ही महसूस हो रहा था जैसा शगुन को कई बार महसूस हो चुका है ,वही मीठा सा दर्द,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आज से पहले ये सब गुड्डू ने बस फिल्मो में देखा था पर आज उसके साथ सच में हो रहा था। खामोश खड़ा वह बस शगुन को देखता रहा !

क्रमश – मनमर्जियाँ – 89

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संजना किरोड़ीवाल

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