Manmarjiyan – 58
Manmarjiyan – 58
गुड्डू के मुंह से शगुन की तारीफ सुनकर गोलू को बड़ा मजा आ रहा था वह तो यही चाहता था की गुड्डू की जिंदगी से पिंकी जाये और शगुन आये। गोलू गुड्डू के सामने आया और कहा,”गुड्डू भैया शगुन भाभी की तारीफ का बात है बड़ा इम्प्रेस हो रहे हो हमायी भाभी से ?”
गोलू की बात सुनकर गुड्डू झेंप गया और उस से नजरे चुराते हुए कहा,”अरे नहीं मतलब,,,,,,,,,,,,,हमहू तो बस ऐसे ही,,,,,,,,,,,,,छोडो इह सब तुमहू बताओ का करने का सोचे हो ?”
“कुछो नहीं सोचे है यार भैया,,,,,,,,,,,,,,,,,पिताजी तो कह रहे है दुकान पर बैठो और मामाजी किसी ऑफिस में क्लर्क का काम दिलवा रहे लेकिन हमारा ना कुछो खुद का करने का मन है , हमसे किसी की गुलामी नहीं होती”,गोलू ने कहा
“वही तो हमारा हाल है , शोरूम में मन नहीं लगता यार हमे ना हमारा सपना पूरा करना है खुद का कुछो करना है जिस पर बड़के मिश्रा जी प्राउड फील करे”,गुड्डू ने कहा
“अरे भैया कभो बताते तो हो नहीं अपना सपना,,,,,,,,,,,,,,,,,पता नहीं कब पूरा होगा”,गोलू ने कहा
“अरे गोलू होगा और जब भी शुरुआत करेंगे ना सबसे पहले तुमको ही बताएंगे,,,,,,,,,,,,,,,हम तो सोच रहे क्यों ना दोनों मिलकर ही करे ज्यादा मजा आएगा,,,कभी कभी तुम मालिक बनना कभी कभी हम बनेंगे”,गुड्डू ने आंखे चमकाते हुए कहा
“चलो फिर तय रहा , जो भी काम जैसा भी काम 50-50 ,,,,,,,,अब चलो यार बहुते भूख लग रही है कुछ खाते है और आज की ट्रीट हम देंगे”,गोलू ने कहा
“तुम काहे दोगे बे ?”,गुड्डू ने चलते हुए कहा
“अरे बस ऐसे ही आज खुश है हम”,गोलू ने कहा और गुड्डू के साथ चल पड़ा। दोनों वहा से निकलकर jk मंदिर के पास पावभाजी वाले के आपस पहुंचे और गोलू ने दो प्लेट लगाने को कहा। दोनों पास ही दिवार पर बैठकर अपने आर्डर का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद गोलू ने कहा,”तो भाभी घर पर अकेली है ?”
“हां पिताजी सबको ही अपने साथ ले गए”,गुड्डू ने मासूमियत से कहा
“मिश्रा जी भी ना कमाल करते है का कमाल का प्लान बनाये है”,गोलू ने मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचा उसे मुस्कुराते देख गुड्डू ने कहा,”का हुआ ऐसे काहे मुस्कुरा रहे हो ?”
“अरे कुछ नहीं भैया बस ऐसे ही,,,,,,,,,,,,,,,,,ल्यो पावभाजी आ गयी जल्दी से सुलटाय ल्यो”,गोलू ने एक प्लेट गुड्डू को पकड़ाते हुए कहा
गुड्डू और गोलू ने पावभाजी खायी और ख़ुशी ख़ुशी में थोड़ी ज्यादा खा ली , पेट फूल हो चुका था और खाने के लिए अब जगह नहीं बची थी ,,,,,,, रही सही कसार गोलू ने केसर दूध पीला कर पूरी कर दी। रात के 8 बज चुके थे गुड्डू को शगुन का ख्याल आया तो उसने कहा,”यार गोलू चलते है”
“हां हां भैया चलो”,कहकर गोलू गुड्डू के पीछे आ बैठा और दोनों घर की और चल पड़े। बाइक घर के सामने आकर रुकी गोलू ने शगुन को बाहर से ही नमस्ते कहा और चला गया। गुड्डू अंदर आया हाथ मुंह धोया ,, कुछ देर बाद शगुन ने कहा,”खाना लगा दू आपके लिए”
गुड्डू बाहर से ठूसकर आया था , शगुन के मुंह से खाने का नाम सुनकर गुड्डू खामोश हो गया। शगुन ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और डायनिंग टेबल की और जाते हुए कहने लगी,”आपको खाने में क्या पसंद है मुझे नहीं पता इसलिए अपनी पसंद से ही खाना बना दिया , कढ़ी है , सब्जी है , चावल है , चपाती है , आप वहा क्यों खड़े है बैठिये ना”
“अगर हमने इसे कहा की हम बाहर से खाकर आये है तो इसे बुरा लगेगा एक काम करते है खा लेते है थोड़ा”,गुड्डू ने मन ही मन सोचा और आकर कुर्सी पर बैठ गया। शगुन ने प्लेट साफ करके गुड्डू के सामने रखी और उसमे खाना परोसने लगी। गुड्डू ने खाना शुरू किया खाना बहुत टेस्टी था लेकिन गुड्डू का पेट तो पहले से भरा हुआ था ऐसे में बेचारा और कहा से खाता , फिर भी शगुन के लिए उसने 2 चपाती मुश्किल से गटक ली और उठते हुए कहा,”हमारा पेट भर गया अब तुम खा लो”
“हम्म्म्म !”,शगुन ने धीरे से कहा तो गुड्डू वहा से चला गया। शगुन ने खाना खाया और किचन का काम समेटने लगी। गुड्डू जल्दी से ऊपर आया और बिस्तर पर गिर गया। पेट इतना भारी लग रहा था की वह लम्बी लम्बी सांसे ले रहा था। कुछ देर बाद ज्यादा खाने की वजह से उसे पेट दर्द होने लगा था अब ये तो गुड्डू के लिए ये नयी समस्या शुरू हो गयी , वह अपना पेट पकड़ कर कभी इधर तो कभी उधर घूम रहा था। शगुन नीचे सब काम खत्म करके दरवाजे खिड़की बंद कर ऊपर चली आयी। जब कमरे में आयी तो देखा गुड्डू अपना पेट पकड़ कर बैठा है
“क्या हुआ ?”,शगुन ने पूछा
“कुछ कुछ नहीं”,गुड्डू ने एकदम से नार्मल होते हुए कहा
“आप ठीक है”,शगुन ने गुड्डू की आँखे पढ़ ली जिनमे साफ दिखाई दे रहा था की गुड्डू झूठ बोल रहा है
“हां हां हम ठीक है , तुम बैठो”,गुड्डू ने कहा तो शगुन आकर अपने सोने की जगह को ठीक करने लगी , गुड्डू को ना जाने क्या सुझा की वह एकदम से उठा और सोफे पर बैठते हुए कहा,”यहाँ हम सोयेंगे”
“आप यहाँ क्यों सोयेंगे ? आप वहा सोईये ना अपनी जगह”,शगुन ने हैरानी से कहा
“नहीं हम यही सोयेंगे”,गुड्डू ने कहा
“हमेशा आप वहा सोते है फिर आज यहाँ क्यों ? उठिये प्लीज मुझे सोना है”,शगुन ने कहा
“हां तो वहा बिस्तर पर सो जाओ ना , काफी जगह है वहा”,गुड्डू ने भी आज जिद पकड़ ली
“लेकिन हम रोज यही सोते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आप उठ जाईये”,शगुन ने कहा
“नहीं हम नहीं उठेंगे,,,,,,,तुम जाकर वहा सो जाओ”,गुड्डू ने लेटते हुए कहा
“आप ऐसे बच्चो जैसी जिद क्यों कर रहे है ?”,शगुन ने कहा
“ये कमरा हमारा है , ये सोफा भी हमारा है हमारी जहा मर्जी होगी हम वहा सोयेंगे”,गुड्डू ने कहते हुए जबरदस्ती आँखे मूंद ली ! गुड्डू का ऐसा व्यवहार देखकर शगुन हैरान थी। खैर गुड्डू का मूड कब स्विंग कर जाये कोई कह नहीं सकता। शगुन ने बड़ी लाइट बंद की और छोटी लाइट जलाकर बिस्तर पर आकर लेट गयी। शादी के बाद पहली बार शगुन अपने बिस्तर पर सो रही थी। उसे सोते ही नींद आ गयी। सोफे पर लेटे गुड्डू ने महसूस किया की यहाँ सोने में शगुन को हर रोज कितनी तकलीफ होती थी और वह बिना कुछ कहे हर रोज यहाँ सोया करती थी। गुड्डू ने करवट ली और चेहरा शगुन की और घुमा लिया। वह एकटक शगुन को देखे जा रहा था , कमरे में फैली मध्यम रौशनी में शगुन का चेहरा और भी प्यारा लग रहा था। गुड्डू शगुन को देखकर मन ही मन खुद से कहने लगा,”तुम सोच रही होगी की हम ये सब काहे कर रहे है ? तुम्हाये इस सवाल का जवाब तो हमहु भी नहीं जानते बस इतना जानते है की हमने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है और अब हम नहीं चाहते की भूलकर भी हम ऐसा कुछ करे,,,,,,,,,,,,,,,,,,हमने जो कुछ भी किया उसके लिए हमे माफ़ कर देना”
गुड्डू ने सोचते सोचते शगुन की और देखा तो पाया की वह नींद में मुस्कुरा रही है। कुछ देर बाद गुड्डू भी नींद के आगोश में चला गया। सुबह शगुन देर तक सोती रही जब उठी तो देखा घडी में 9 बज रहे थे। शगुन जल्दी से उठी और नहाने चली गयी। नहाकर आयी जल्दी जल्दी तैयार हुई और नींचे आयी। गुड्डू कही नजर नहीं आया। शगुन किचन की और चली आयी किचन में गुड्डू को देखकर शगुन को बहुत हैरानी हुई उसने अंदर आकर कहा,”आपने मुझे उठाया क्यों नहीं ?”
“उह तुम नींद में थी तो सोचा सोने देते है”,गुड्डू ने चाय उबालते हुए कहा
“ठीक है आप हटिये मैं बना देती हूँ”,शगुन ने कहा
“अरे नहीं ठीक है,,,,,,,,,,,,,हम बना लेंगे , तुमहू बाहर चलके बैठो”,गुड्डू ने कहा
शगुन को तो गुड्डू के ये नए नए रूप देखकर चक्कर आने लगे थे। वह जैसे कोई सपना देख रही हो। उसे खोया हुआ देखकर गुड्डू ने उसके चेहरे के सामने अपना हाथ घुमाया और कहा,”कहा खोयी हो ?”
“क क कही नहीं,,,,,,,,,,,,,,!!”,कहकर शगुन वहा से बाहर चली आयी। सोच में डूबी वह चली जा रही थी की टेबल पर रखा उसका फोन बजने लगा। शगुन ने फोन उठाया देखा प्रीति का था – हेलो
प्रीति – हेलो दी कैसी हो ? शादी के बाद तो जैसे भूल ही गयी हो मुझे और पापा को
शगुन – मैं ठीक हूँ तुम कैसी हो ?
प्रीति – मैं बिल्कुल फिट एंड फाइन , अच्छा ये बताओ जीजू को लेकर बनारस कब आ रही हो आप ?
शगुन – अभी कहा प्रीति , घरवाले सब वैष्णो देवी गए है जब वे लोग आ जायेंगे तब पापा से बात करेंगे
प्रीति – अच्छा कोई नहीं पर आपकी बहुत याद आ रही है दी और हां आपको एक खुशखबरी भी देनी है
शगुन – वो क्या है ?
प्रीति – फैशन डिजायनर के लिए मेरा एडमिशन हो चुका है अगले हफ्ते से जाना है
शगुन – अरे वह कॉन्ग्रैचुलेशन ,,, पापा कैसे है ?
प्रीति – अच्छे है आपको बहुत मिस करते है
शगुन – मैं भी , जल्दी ही बनारस आउंगी
प्रीति – अच्छा ये सब छोडो पहले ये बताओ गुड्डू जीजू कहा है ? शादी के बाद से उन्होंने मुझसे एक बार भी बात नहीं की ,, बात करवाओ
शगुन – वो किचन में है
प्रीति – क्या ? मतलब जीजू तुम्हारे लिए खाना बना रहे ,, हाउ स्वीट मुझे भी ऐसा ही पति चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,,,आप बात करवाओ ना उनसे
शगुन को लगा शायद गुड्डू को अच्छा ना लगे इसलिए वह प्रीति को ना नुकुर करने लगी इतने में गुड्डू बाहर आया और कप रखते हुए कहा,”तुम्हायी चाय”
“दी यार करवाओ ना बात उनसे”,प्रीति ने रिक्वेस्ट करके कहा तो शगुन ने फोन गुड्डू की और बढ़ा दिया। गुड्डू ने भँवे उचकाई तो शगुन ने धीरे से कहा,”प्रीति”
गुड्डू ने फोन लिया और कहा,”हेल्लो”
“हेलो जीजाजी”,प्रीति ने जीजाजी शब्द पर जोर देते हुए कहा
“हेलो सुबह सुबह हमायी याद कैसे आ गयी तुमको ?”,गुड्डू ने कहा
“अरे हम तो आपको रोज याद करते है आपको ही फुर्सत नहीं है बात करने की , अच्छा ये बताईये बनारस कब आ रहे है आप ?”,प्रीति ने कहा
“बनारस,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बनारस आकर का करेंगे ?”,गुड्डू ने कहा
“क्यों ? बनारस में मैं हूँ , पापा है आपका और दी का एक और घर है”,प्रीति ने प्यार से कहा
“नहीं हम नहीं आएंगे,,,,,,पिछली बार आये थे तो पानी फेंक के मारा था किसी ने हमे इस बार पता नहीं का फेंक के मारेंगे”,गुड्डू ने तिरछी नजरो से शगुन की और देखकर कहा जैसे वो जानता हो की वह पानी शगुन ने ही फेंका था।
“अरे क्या जीजाजी मजाक किया होगा किसी ने ? लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा आप आओ तो सही”,प्रीति ने कहा
“अच्छा ठीक है , जब भी वक्त मिला आएंगे”,गुड्डू ने कहा
“ये हुई ना बात”,प्रीति ने कहा
“अच्छा ठीक है हम रखते है थोड़ा काम है”,गुड्डू ने कहा तो प्रीति ने बाय बोलकर फोन काट दिया। गुड्डू ने फोन वापस शगुन की और बढ़ा दिया और वहा से चला गया। शगुन ने चाय पि और फिर घर के कामो में लग गयी। मिश्रा जी ने गुड्डू को घर से बाहर जाने के लिए मना किया था अब ऐसे में गुड्डू घर पर बोर हो रहा था। वह कभी ऊपर तो कभी आँगन में , कभी छत पर तो कभी अपने कमरे में घूमता रहा।
शाम को गली में मोहल्ले के बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे अब क्रिकेट था गुड्डू का फेवरेट तो उसने आकर कहा,”अरे बबुआ हम भी खेलेंगे”
“खिला लेंगे गुड्डू भैया लेकिन पहले फील्डिंग करनी पड़ेगी”,बेट थामे लड़के ने कहा
“अरे यार हम तुमसे ज्यादा बड़े थोड़े है हम भी बच्चे ही है पहले हमे खेलने दो”,गुड्डू ने लगभग लड़के के हाथ से बेट लेते हुए कहा। बेचारा छोटा बच्चा उसमे इतनी हिम्मत कहा की वह गुड्डू से बेट वापस ले सके इसलिए बॉल लेकर चुपचाप बॉलिंग करने लगा। शगुन उस वक्त छत की बालकनी से कपडे ले रही थी गुड्डू को बच्चो के साथ खेलते देखकर वह वही रूककर उसे देखने लगी। गुड्डू ने दो बॉल ही खेले थे की तीसरी बॉल मारी सीधा सोनू भैया के घर की खिड़की पर और शिक्षा चकनाचूर ,,,,,, गुप्ता जी ने डांट लगायी तो सारे बच्चे वहा से भाग गए गुड्डू भी नजर बचाकर जाने लगा तो उनकी नजर गुड्डू पर पड़ गयी और उन्होंने गुड्डू के पास आकर कहा,”कहां चले मिश्रा जी शीशा तोड़कर”
“अरे चचा हम कुछ नहीं किये उह बच्चा लोग खेल खेल में इह सब”,गुड्डू ने कहा
“रहने दो गुड्डू हम खुद देखे है अपनी आँखों से , रुको आने दो मिश्रा जी करते है तुम्हायी शिकायत”,गुप्ता जी ने कहा
“हां तो का डरते है का मिश्रा जी से,,,,,,,,,,,,,,मतलब डरते है पर इतना भी नहीं”,गुड्डू ने कहा
“अच्छा तो आने दो मिश्रा जी को फिर बताते है तुम्हे”,कहकर गुप्ता जी चले गए गुड्डू ने एक चपत अपने ही माथे पर खायी और बड़बड़ाया,”इह सब हमाये साथ ही काहे होता है ?”
गुड्डू अंदर चला आया और बड़बड़ाते हुए ऊपर चला आया , उसे ध्यान नहीं रहा की सामने पानी गिरा हुआ है और जैसे ही गुड्डू का पैर पानी पर पड़ा गुड्डू फिसला। गिरते गिरते उसने कपड़ो वाली तार पकड़ ली और अपने साथ साथ धुले हुए कपडे भी ले गिरा। शगुन ने गुड्डू को गिरे हुए देखा तो ना चाहते हुए भी उसकी हंसी निकल गयी। गुड्डू ने देखा तो उसे गुस्सा आया वह जैसे तैसे करके उठा और अपने ऊपर गिरे कपड़ो को इधर उधर फेंका और शगुन के सामने आकर कहा,”बहुते हंसी आ रही है तुम्हे ?”
शगुन ने तुरंत अपनी हंसी रोक ली और ना में गर्दन हिला दी। लेकिन गुड्डू तो गुड्डू ठहरा वह शगुन को घूरते हुए उसकी और बढ़ने लगा। शगुन की धड़कने बढ़ने लगी पीछे जाते जाते उसकी पीठ दिवार से जा लगी। गुड्डू उसके सामने था शगुन ने साइड से निकलना चाहा तो गुड्डू ने अपना हाथ दिवार से लगा लिया। शगुन की सांसे तो जैसे हलक में ही अटक गयी काजल से सनी आँखों से वह गुड्डू को देखे जा रही थी। बाहर मौसम काफी सुहावना था और शगुन के माथे पर पसीने की बुँदे झलक आयी। गुड्डू एकटक उसे देखता रहा ना कुछ कहा ना ही पलके झपकाई। शगुन ने पलके झुका ली गुड्डू की ये नजदीकियां उसके दिल को धड़का रही थी। गुड्डू कुछ देर वैसे ही खड़ा रहा और फिर साइड हो गया जिस से शगुन वहा से जा सके। शगुन वहा से गयी नीचे गिरे सभी कपडे उठाये और उन्हें बाल्टी में भिगोकर एक एक करके वापस दूसरे तार पर सुखाने लगी। गुड्डू ने देखा तो वह भी उसकी और चला आया और बाल्टी से एक कपड़ा लेकर उसे निचोड़कर छटका और सूखा दिया। शगुन ने कुछ नहीं कहा बस गुड्डू से नजरे चुराते हुए वह एक एक करके कपडे सूखा रही थी की गुड्डू ने एक शर्ट लिया और बिना निचोड़े ही उसे झटका पानी के छींटे शगुन को जाकर लगे और वह भीग गयी। गुड्डू की नजर शगुन पर पड़ी तो गुस्से से शगुन का चेहरा लाल हो चुका था। गुड्डू ने कुछ नहीं किया बस चुपचाप शर्ट को बाल्टी में रखा और वहा से चला गया। शगुन ने सारे कपडे सुखाये और वहा फैला पानी भी साफ किया। गुड्डू कमरे में था जैसे ही शगुन कमरे में आयी तो देखा गुड्डू बिना शर्ट के खड़ा था उसे देखते ही शगुन पलट गयी और कहा,”ये आप हमेशा ऐसा क्यों रहते है ?
“हमारा कमरा है हम जैसे चाहे रहे”,गुड्डू ने शीशे में खुद को देखते हुए कहा
“हां सब आपका ही है तो आपका घर , आपका बेड , आपका कमरा”,शगुन ने झुंझलाकर कहा
“हां तुमहू भी तो हमायी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”,गुड्डू ने कहा लेकिन आगे के शब्द उसके गले में ही अटक गए , वह कुछ बोल नहीं पाया और फिर शर्ट उठाकर पहनी और कमरे से बाहर निकल गया।
क्रमश – Manmarjiyan – 59
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संजना किरोड़ीवाल