Main Teri Heer – 39
राजन अपने पिताजी के सामने खड़ा था। उसका चेहरा ढका हुआ था जिस से प्रताप उसे पहचान नहीं पाया और कहा,”हाँ भाई ! जे छोरी छुपे कहा जा रहे हो ?”
राजन ने कुछ नहीं कहा वह बस खामोश रहा , प्रताप ने उसे खामोश देखा तो उसके चेहरे पर लगा कपड़ा हटाया और हैरानी से कहा,”राजनवा तुम ? तुमको अपने ही घर मा ऐसे छोरी छुपे आने की जरूरत काहे पड़ी ?”
राजन थोड़ा सा आगे आया तो रौशनी उसके चेहरे पर पड़ी , चेहरे पर लगी चोट देखकर प्रताप ने हैरानी से कहा,”अरे ! जे का है ? जे चोट कैसे लगी तुमको और तुम्हरे हाथ मा का है ?”
प्रताप की बात सुनकर राजन ने अपने हाथ में पकडे लिफाफे को पीछे छुपा लिया और कहा,”क क कुछ नहीं पिताजी , कुछ भी तो नहीं है,,,,,,,,,,,,और जे चोट थोड़ी है मामूली सी खरोच है बस ,, आते बख्त मोटर साइकिल स्लिप हो गयी तो बस गिर गए”
“खरोच नहीं बौआ , गहरा निसान पड़ा है तुमहू आओ हमरे साथ,,,,,,,,,,,!!”,कहते हुए प्रताप राजन की बाँह पकड़कर उसे अपने साथ ले जाने लगा। हाथ में पकडे लिफाफे को पिताजी देख न ले सोचकर राजन ने चलते चलते लिफाफे को बरामदे में पड़ी टेबल पर रख दिया और प्रताप के साथ आगे बढ़ गया।
प्रताप राजन को लेकर अपने कमरे में आया और बिरजू को आवाज दी,”बिरजू ! ज़रा उह दवाई वाला डिब्बा लेकर आना”
राजन बिस्तर पर आ बैठा और प्रताप कुर्सी लेकर उसके सामने , कुछ देर बाद बिरजू हाथ में दवाई का डिब्बा लेकर अंदर चला आया।
प्रताप ने दवाई का डिब्बा बगल में पड़ी टेबल पर रखा और उसमे से दवा निकालकर राजन की मरहम पट्टी करने लगा। बीच बीच में वह राजन को हवा करते हुए ध्यान भी रख रहा था कि उसे दर्द ना हो।
अपने पिताजी को मरहम पट्टी करते देखकर राजन की आँखों में नमी उभर आयी। बचपन में माँ के गुजर जाने के बाद से ही राजन अपने पिताजी से कटा कटा ही रहा हालाँकि प्रताप ने अपने प्रेम में कभी कोई कमी नहीं दिखाई लेकिन राजन कभी उनके साथ आकर नहीं बैठा ना ही कभी प्रताप से कभी अपने मन का हाल बांटा पिता और बेटे के बीच जो एक दिवार रहती है प्रताप और राजन के बीच भी हमेशा वही रही।
“बचपन में जब तुमको खेलते खेलते चोट लग जाती थी तब तुम्हरी अम्मा तुम्हायी मरहम पट्टी किया करती थी , तब ना तुमहू बहुते रोया करते थे और खूब बढ़ा चढ़ाकर बताते थे कि तुमको चोट चोट कैसे लगीं ?”,कहते हुए प्रताप ने राजन की तरफ देखा तो पाया राजन नम आँखों से उन्हें ही देख रहा है
राजन को अपनी ओर देखता पाकर प्रताप ने कहा,”फिर अब हमे काहे नहीं बताते कि जे चोट कैसे लगी ?”
अपने पिता की आँखो में अपने लिये प्रेम और परवाह देखकर राजन का मन भारी हो गया और उसने कहा,”ऐसा कुछो नहीं है पिताजी , ज़रा सी चोट है कल तक तो ठीक भी हो जायेगी,,,,,,,,,,,,रात बहुत हो गयी है , आप सो जाईये हम भी अपने कमरे मा जाते है।”
कहते हुए राजन उठा और वहा से चला गया। वह प्रताप के सामने इस कमरे में ज्यादा रुकना नहीं चाहता था। बिरजू वही खड़ा था राजन की बात सुनकर प्रताप ने मायूसी से अपना सर झुका लिया।
राजन के अलावा प्रताप की जिंदगी में और कोई था भी तो नहीं , शादी के कुछ साल बाद ही उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गयी। राजन की परवरिश और अपने काम काज के चलते उसने कभी दूसरी शादी भी नहीं की और देखते ही देखते वक्त इतना गुजर गया कि प्रताप को अकेले रहने की आदत पड़ गयी पर वह हमेशा चाहता था कि उसका बेटा राजन दूसरे लड़को की तरह उसके साथ बैठे ,
उस से बतियाये , अपनी परेशानी सांझा करे लेकिन ऐसा कभी हुआ ही नहीं और अब बढ़ती उम्र के साथ प्रताप को ये चिंता सताने लगी थी कि उसके जाने के बाद राजन का क्या होगा इसलिये वह चाहता था राजन शादी कर ले और अपना घर बसा ले ताकि प्रताप के जाने के बाद भी इस घर में उसे सम्हालने वाला कोई हो।
बिरजू प्रताप का सबसे वफादार नौकर था उसने जब प्रताप को मायूसी से सर झुकाये देखा तो उदास हो गया। वह ख़ामोशी से वही खड़ा रहा। कुछ देर बाद प्रताप ने सर उठाया और अपनी आँखों के किनारे साफ कर बिरजू की तरफ आते हुए कहा,”अरे बिरजू ! तुम यही हो , जाओ जाकर खाना खाय ल्यो”
“और आप , आप नहीं खाएंगे मालिक ?”,बिरजू ने पूछा
“हमे भूख नहीं है , तुमहू खाय ल्यो और राजनवा के कमरे मा भी खाना भिजवाय दयो,,,,,,,,,,हमहू ज़रा बाहर टहलकर आते है।”,प्रताप ने बिरजू के कंधे पर हाथ रख वहा से जाते हुए कहा
आज से पहले बिरजू ने प्रताप को इतना उदास और मायूस कभी नहीं देखा था। वह कमरे से बाहर आया और रसोईघर की तरफ चला गया।
राजन अपने कमरे में आया और अपना सर झटकते हुए खुद में ही बड़बड़ाया,”छह ! जे का हो गवा है हमको , आज पिताजी की बातो में अपने लिये परवाह देखकर हमरी आँखों में नमी काहे उतर आयी ? और तो और हम उनके सामने कुछ बोल भी नहीं पाये ,, कितने बेकार लड़के है हम , हमरे सामने उह इतना मायूस होये रहय और हम उनको रोक भी ना पाये,,,,,,,,,,,,,,
ऐसा नहीं है कि हम उनको प्यार नहीं करते पर उनके और हमरे बीच कबो ऐसा रिश्ता ही नहीं रहा कि हम अपने मन का हाल उनके सामने कह पाये , जब से अस्पताल से लौटे है सब अजीब लगता है , ऐसा लगता है जैसे हमहू कुछो , कुछो भूल गए हैं,,,,,,,,,,,,,,जैसे हमरी जिंदगी का कोनो बहुते बड़ा हिस्सा हो जो हमरी जिंदगी से मिट गवा हो , और उह हिस्से में कुछो ऐसा रहा हो जो बहुत ख़ास हो,,,,,,,,,
मुन्ना ने हमको सगाई में नहीं बुलाया हमको इस बात का ज़रा भी दुःख नहीं है पर आज अपने पिताजी को मायूस देखे इस बात का दुःख है , हमने कभी कुछो अच्छा नहीं किया उनके लिये फिर भी उह कितना प्रेम करते है हम से,,,,,,,,,,,,,!!”
कहते हुए राजन उदास हो गया। कमरे के बाहर दरवाजे के पास खड़ा बिरजू सब सुन रहा था वह राजन के लिये खाना लेकर आया था लेकिन राजन को खुद से बातें करते देखकर दरवाजे पर ही रुक गया।
राजन जब खामोश हो गया तो बिरजू ने दरवाजा खटखटाते हुए कहा,”राजन बौआ ! खाना लेकर आये है तुम्हरे लिये,,,,,,,,!!”
“अंदर आ जाओ , वहा रख दयो हमहू खा लेंगे”,राजन ने खोये हुए स्वर में कहा
“ठीक है !”,कहकर बिरजू ने खाने की प्लेट टेबल पर रखी और वहा से चला गया राजन अपने ही ख्यालो में खोया था और आकर बिस्तर पर बैठ गया , उसे खाने का याद नहीं रहा और वह बिस्तर पर लेट गया कुछ वक्त बाद उसे नींद आ गयी।
इंदौर , पुलिस स्टेशन
शक्ति के कहने पर पंकज ने आसिफ के साथ काम करने वाले सभी लड़को के खिलाफ FIR दर्ज की और उन्हें हवालात में डाल दिया। शक्ति आसिफ को लेकर अपनी गाडी से आने वाला था इसलिये पंकज उसका इंतजार करने लगा। कच्ची बस्ती से साथ में निकली गाड़ियों में से पुलिस जीप कब का पुलिस स्टेशन आ चुकी थी लेकिन शक्ति की गाडी नहीं आयी थी। पंकज को चिंता होने लगी उसने शक्ति का नंबर डॉयल करने के लिये जैसे ही अपना फोन निकाला शक्ति का सामने से कॉल आ गया।
“हेलो ! जय हिन्द सर , सर आप अभी तक,,,,,,,,,,,,,,!!”,पंकज ने इतना ही कहा कि दूसरी तरफ से शक्ति की दर्दभरी आवाज उभरी,”पंकज ! क्या तुम अभी ट्राइटन रोड आ सकते हो,,,,,,,,,,,,आह्ह्ह्ह”
“सर सर क्या हुआ है आपको आप ठीक तो है ना ? आप वही रुकिए मैं अभी पहुंचता हूँ”,पंकज ने घबराये हुए स्वर में कहा
“हम्म्म्म !”,कहकर शक्ति ने फोन काट दिया
“सर के साथ शायद कुछ हादसा हुआ है ,,,,,,,,,,,,!”,पंकज ने वहा मौजूद अपने स्टाफ से कहा और वहा से निकल गया
पंकज शक्ति के बताये एड्रेस पर पहुंचा उसने देखा शक्ति सड़क किनारे बैठा था उसके हाथ और चोट लगी थी सर से भी खून बह रहा था। पंकज दौड़कर शक्ति के पास आया और उसे सम्हालते हुए कहा,”सर सर ये कैसे हुआ ? आप ठीक तो है,,,,,,,,,,ओह्ह्ह आपको तो गोली लगी है,,,,,,,,!!”
पंकज का ध्यान शक्ति की बाँह पर गया जिस पर गहरा जख्म लगा था , शक्ति इस वक्त बहुत दर्द में था वह कुछ बोल पाने की हालत में नहीं था ,, उसने बहुत मुश्किल से पंकज से कहा,”आसिफ , आसिफ भाग गया ,, हमने उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन,,,,,,,,!!”
“सर आप कुछ मत कहिये , मैं पहले आपको हॉस्पिटल लेकर चलता हूँ,,,,,,,,,,,मेरे साथ चलिए , आईये”,पंकज ने शक्ति को उठाते हुए कहा
शक्ति उठा और पंकज के साथ जीप तक आया। पंकज ने शक्ति को जीप में बैठाया और उसे लेकर हॉस्पिटल के लिये निकल गया। शक्ति ने अपना सर सीट से लगा लिया और आँखे मूंद ली। कितनी मुश्किल से उसने आसिफ को पकड़ा था और वह भाग गया ,, मंजिल के इतना पास होकर भी दूर जाने का दर्द शक्ति के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था।
पंकज शक्ति को लेकर पास ही एक क्लिनिक में पहुंचा और उसकी मरहम पट्टी करवाई , डॉक्टर ने कुछ दवाईया लिखकर दी और शक्ति को आराम करने को कहा। पंकज शक्ति को लेकर उसके घर आया। शक्ति के हाथ में पट्टी बंधी थी , ललाट पर भी बेंडेज लगी थी और गिरने की वजह से गाल पर भी कुछ चोट के निशान थे। पंकज शक्ति को सहारा देकर अंदर लाया और हॉल में पड़े सोफे पर बैठा दिया।
पंकज ने गिलास में पानी भरा और शक्ति की तरफ बढ़ा दिया। शक्ति ने पानी पीया और कहा,”हम अपने मकसद में कामयाब होने ही वाले थे पंकज लेकिन,,,,,,,,,,,,!!”
“अभी इस बारे में मत सोचिये सर , आसिफ को हम लोग फिर पकड़ लेंगे लेकिन आप सही सलामत है ये ज्यादा जरुरी है। मैं आपके लिये कुछ खाने का ले आता हूँ उसके बाद आप दवा लेकर आराम कीजिये,,,,,,,,!!”,पंकज ने कहा और जैसे ही किचन की तरफ जाने लगा शक्ति ने कहा,”पंकज ! किचन में इस वक्त तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा,,,,,,,,,,,!!”
“ओह्ह्ह ! तो मैं एक काम करता हूँ बाहर से कुछ ले आता हूँ , आप तब तक आराम कीजिये”,पंकज ने कहा और वहा से चला गया
काशी ने घडी में वक्त देखा और कहा,”ओह्ह्ह हमे तो काफी देर हो चुकी है , गौरी हम चलते है कल सुबह जल्दी आ जायेंगे,,,,,,,,,,!!”
“काशी ! आज रात यही रुक जाओ ना , नानू नानी से मैं बात कर लुंगी,,,,,,,,,!!”,गौरी ने कहा
“हम रुक जाते गौरी लेकिन हमे घर जाना होगा वैसे भी हमारा सारा सामान वही है लेकिन हम वादा करते है कल सगाई के बाद हम सबके साथ यही रुकेंगे,,,,,,,!!”,गौरी ने अपना सामान और फोन बैग में रखते हुए कहा
“ठीक है ! मैं तुम्हे नहीं रोकूंगी पर तुम ऐसे मत जाओ मेरी स्कूटी ले जाओ,,,,,,,,,,चाबी वहा रखी है”,गौरी ने कहा क्योकि उसके पैरो पर मेहँदी लगी थी और उठकर जाने की हालत में नहीं थी
काशी गौरी के पास आयी और उसे गले लगाते हुए कहा,”ठीक है अपना ख्याल रखना , कल से तुम ऑफिसियली हमारी भाभी बन जाओगी,,,,,,,,,!!”
“तुम भी अपना ख्याल रखना और हाँ ध्यान से जाना,,,,,,,,,,,,,तो क्या तुम कल से मुझे भाभी बुलाने वाली हो ?”,गौरी ने कहा
“बिल्कुल नहीं ! हम तुम्हे गौरी ही बुलाएँगे,,,,,,,,अच्छा हम चलते है बाय”,कहते हुए काशी ने स्कूटी की चाबी उठायी और वहा से चली गयी
काशी घर जाने के लिये निकल गयी , आज सुबह से उसकी शक्ति से कोई बात नहीं हुई थी ना ही शक्ति का फोन या मैसेज आया था काशी शक्ति को बहुत मिस कर रही थी। शक्ति का घर दूसरे रास्ते पर पड़ता था लेकिन आज जैसे किस्मत काशी को शक्ति से मिलवाना चाहती थी इसलिये काशी जैसे ही घर जाने वाले रास्ते की तरफ आयी भारी ट्रेफिक देखकर उसे दूसरे रास्ते से जाना पड़ा।
शक्ति के बारे में सोचते हुए काशी उसके घर के सामने चली आयी और स्कूटी से उतरकर खुद में ही बड़बड़ाई,”इस वक्त अगर हम शक्ति से मिलने जायेंगे तो वो हम पर गुस्सा करेगा,,,,,,,,,,,,अह्ह्ह्हह करने दो हम उस से कह देंगे कि हमे उसकी बहुत याद आ रही थी और हम खुद को उस से मिलने से रोक नहीं पाये इसलिये यहाँ चले आये , उसके बाद वो हम पर गुस्सा करे चाहे जो करे,,,,,,,,,,,,,यकीन नहीं होता आजकल हम गौरी जैसे बातें करने लगे है।”
काशी मुस्कुराई और शक्ति के घर की तरफ बढ़ गयी।
काशी अंदर आयी लेकिन जब उसने शक्ति को इस हाल में बैठे देखा तो परेशानी के भाव उसके चेहरे पर उभर आये
काशी को यू अचानक वहा देखकर शक्ति उसके सामने चला आया दरअसल वह अपनी माँ की तस्वीर के सामने खड़ा काशी को ही याद कर रहा था और काशी उसके सामने थी। एक सुकून का अहसास शक्ति को इस वक्त हो रहा था।
“शक्ति ये सब,,,,,,,,,!!”,काशी ने बस इतना ही कहा कि शक्ति ने काशी के सर को अपना हाथ लगाकर उसे अपने तरफ खींच लिया। काशी शक्ति के सीने से आ लगी और शक्ति ख़ामोशी से काशी के वहा होने के अहसास को महसूस करने लगा।
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संजना किरोड़ीवाल