Main Teri Heer – 34
Main Teri Heer – 34
अनु को जवैलरी शॉप में देखकर मुरारी के पैरो तले जमीन खिसक गयी। उर्वशी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा उलटा उसे तो अनु को जलाने का मौका मिल गया। मुन्ना बाहर अपनी बाइक पर था वह अंदर आया ही नहीं। मुरारी गिरते पड़ते अनु के पास पहुंचा और कहा,”अरे अनु ! तुम तुमहू हिया का कर रही हो ? हमारा मतलब हिया ऐसे अचानक,,,,,,,,,,,अरे हमहू तो सारनाथ जी जा रहे थे उह भैया कहे रहे किसी को पेमेंट देने का तो बस हम वही देने आये रहे।”
“अच्छा और ये जो पीतल के लिये जो डायमंड खरीदा जा रहा है वो , अभी अपने इन नाजुक हाथो से तुम्ही ना पहना रहे उनको,,,,,,,,,,,,!!”,अनु ने मुरारी को खा जाने वाली नजरो से देखते हुए कहा
मुरारी बेचारा क्या कहे कुछ समझ में नहीं आया तो जल्दबाजी में कह दिया,”अरे उह डायमंड का सेट तो हम तुमरे लिये ही देख रहे थे , अब कोई लेडी थी नहीं हिया तो उनसे रिक्वेस्ट किये कि उह पहनकर दिखा दे , और इतने में तुम हिया आ गयी हमरे सारे सरप्राइज का सत्यानाश कर दिया।”
अनु ने सूना तो उसे मुरारी की बात पर यकीन तो नहीं हुआ लेकिन डायमंड सेट का नाम सुनकर अनु का लहजा थोड़ा नरम पड़ गया और उसने कहा,”सच कह रहे हो ?”
“लौंगलत्ता की कसम , झूठ काहे कहेंगे ? तुमहु भी ना यार अनु मतलब आजकल बात बात पर शक करती हो।”,मुरारी ने मासूम बनने की कोशिश करते हुए कहा। अनु ने उर्वशी की तरफ देखा जो कि गहने देखने में लगी थी।
“अगर तुम यहाँ मेरे लिये आये हो तो वो तुम्हारी मेहमान यहाँ क्या कर रही है ?”,अनु ने पूछा
मुरारी फिर फंस गया लेकिन वह हार मानने वालो में थोड़े था। राजनीती करते करते इतना झूठ बोलना तो मुरारी सीख ही चूका था।
“मूंगफली खाने आयी है,,,,,,,,,,,,,,,अरे गहने की दुकान है तो गहने ही खरीदने आयी होंगी ना यार , और बनारस की सारी दुकाने का हमरे चचा की है जो हमको पता होगा कौन कब कहा आ रहा है ?”,मुरारी ने थोड़ा गुस्सा होकर कहा
“ऐसा है मुरारी मैं अब वो मुंबई वाली अनामिका शर्मा नहीं हूँ बल्कि मैं भी पिछले 28 साल से तुम्हारे साथ इसी बनारस में रह रही हूँ। तुम्हे मुझसे बेहतर भला कौन जान सकता है ?”,अनु ने मुरारी को घूरते हुए कहा
“मतलब तुमको हमरे पर भरोसा नहीं है। ए शॉपकीपर इधर आओ ज़रा,,,,,,,,,,जे हमारी धर्मपत्नी को बताओ ज़रा कि हम हिया अकेले आये थे या नहीं ?”,मुरारी ने एक सेल्समेन को अपनी तरफ बुलाकर आँख मारते हुए कहा
सेल्समेन मुरारी का इशारा समझ पाता इस से पहले ही दुकान के ओनर ने आकर कहा,”मुरारी भैया जे आपका बिल,,,,,,,,,,!!”
“हमरा बिल ? अरे हमने तो अभी तक कुछो खरीदा ही नहीं है।”,मुरारी ने बिल देखते हुए कहा जो कि ढाई लाख का था। ढाई लाख का बिल देखते ही मुरारी की सांसे ऊपर चढ़ गयी।
“आपने नहीं आपके साथ जो मैडम आयी थी उन्होंने खरीदा है और उन्होंने कहा बिल आप देंगे।”,ओनर ने कहा।
मुरारी को काटो तो खून नहीं कहा वो अनु के गुस्से से बचने के लिये झूठ बोल रहा था और कहा ओनर ने उसकी सारी पोल खोल दी।
“अनु हम समझाते है,,,,,,,,,,!!”,मुरारी ने जैसे ही कहना चाहा अनु ने बिल मुरारी के मुंह पर मारा और कहा,”इन गहनों के साथ एक धोती और खरीद लेना हमारी तेहरवी में पहनने के लिये”
“अरे अनु , अनु अरे हमरी बात सुनो,,,,,,,,,,,,,,अरे हम समझाते है यार,,,,,,,,,,,,,,!!”,मुरारी ने कहा लेकिन अनु वहा से चली गयी।
मुरारी भी अनु के पीछे जाने लगा तो ओनर ने कहा,”मुरारी भैया जे बिल ?”
मुरारी ओनर के पास आया और कहा,”जे बिल की बत्ती बनाये के डाल दो हमरे गले में,,,,,,,,,,,,,,,साला आज का दिन ही खराब है।”
मुरारी को परेशान देखकर ओनर ने कहा,”आपके लिये कुछो मँगवाय दे ठंडा गर्म ?”
“हमरे लिये मंगवाओ एक तलवार और हिया , चलाय दयो हमरी गर्दन पर,,,,,,,,,,,,का है कि हमको हमरी चिता आँखों के सामने दिख रही है।”,मुरारी ने कहा और जेब से क्रेडिट कार्ड निकालकर ओनर की तरफ बढ़ा दिया।
लुटे हुए आशिक़ की तरह मुरारी दुकान से बाहर चला आया। सुबह सुबह अनु उस से नाराज हो गयी और साथ ही ढाई लाख का चुना लग गया। उर्वशी का भी कुछ अता पता नहीं था ना ही मुरारी के पास उसका नंबर था जो वह उसे फोन करे। मुरारी अपनी जीप में आकर बैठा और बड़बड़ाने लगा,”जे तुमहू हमरे साथ ठीक ना की उर्वशी , अरे हम तुमको का समझे थे तुम का निकली,,,,,,,,,,,,,,,,,
हमको , मुरारी मिश्रा बनारस वाले को ढाई लाख का चुना लगा के चली गयी , ऊपर से हमरे घर में भी आग लगा दी,,,,,,,,,,,,,,,,,अरे पर जे सब में उनका का कसूर ? कितनी मासूम दिखती है उह शक्ल से ना ना मुरारी उह ऐसा काहे करेगी ? साला तुमरी गलती है तुम उनको साथ लेकर हिया आये ही काहे ? खैर अब जो हो गया सो हो गया लेकिन मैगी को कैसे समझाये ? उह बहुते गुस्से में है , महादेव अब तुम्ही कोई रास्ता दिखाओ,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
मुरारी ये सब बड़बड़ा ही रहा था कि तभी उसका फोन बजा मुरारी ने देखा फोन शिवम् का था।
मुरारी ने फोन उठाया और कहा,”हाँ भैया !”
“मुरारी पेमेंट लिया के नहीं ? उनका फोन आ रहा है तुम अभी तक वहा पहुंचे ही नहीं हो,,,,,,,,,,,,,हो कहा जे बताओ ? कही रास्ते में कुछो खाने के लिये तो ना रुक गए ?”,शिवम् ने मुरारी को डांट लगाते हुए कहा
“अरे भैया बस जा रहे है , उह गाड़ी पंचर हो गयी थी वही बनवा रहे है।”,मुरारी ने शिवम् से बचने के लिये झूठ कह दिया।
“ठीक है उनसे पेमेंट लेकर सारनाथ पहुंचो।”,शिवम् ने कहा और फोन काट दिया
मुरारी ने फोन डेशबोर्ड पर डाला और कहा,”साला जिंदगी अस्सी घाट की नौका हो गयी , किधर भी घूम रही है। विधायक थे तब ही ठीक थे जबसे विधायकी छोड़ी है जिंदगी उथल पुथल हो गयी है।”
मुरारी अपनी ही सोच में उलझा था कि उर्वशी की आवाज कानो में पड़ी,”अरे आप बिना बताये वहा से क्यों चले आये ?”
मुरारी की तंद्रा टूटी। उसने देखा उर्वशी खड़ी है तो एकदम से उसके चेहरे के भाव बदल गए और उसने कहा,”और तुम जो बिना बताये हमको ढाई लाख का चुना लगे दी उसका क्या ? अरे यार तुमरे चक्कर में हमरी अनु नाराज हो गयी,,,,,,,,,,,,,,,,अब उनको कौन समझाए तुमरे हमरे बीच कुछो नहीं है।”
मुरारी के मुंह से ढाई लाख की बात सुनकर उर्वशी को गुस्सा आए और उसने कहा,”मिस्टर मुरारी मैं कोई आपके ढाई लाख लेकर भाग नहीं गयी थी ,
मैं बस वाशरूम गयी थी , वापस आयी तो देखा आप वहा है ही नहीं पूछने पर पता चला बिल आपने भर दिया है। ये पकड़ो अपने ढाई लाख,,,,,,,,,,,!!”
कहते हुए उर्वशी ने बैग से 500 के नोटों की गड्डिया निकाली और जीप की सीट पर रख दी।
मुरारी को अहसास हुआ कि उसने उर्वशी को गलत समझ लिया वह कुछ कहता तभी दूसरी तरफ खड़ी अनु की आवाज उसके कानों में पड़ी,”ओह्ह्ह तो तुम अभी तक यही हो ? ओह्हो हां अपनी मेहमान को घर भी तो छोड़कर आना होगा ना।”
अनु को दोबारा वहा देखकर मुरारी को हार्ट अटैक आते आते बचा। उसने अनु की तरफ पलटकर कहा,”तुम अभी तक यही हो ? हमरा मतलब,,,,,,,,,,!!”
मुरारी अपनी बात पूरी करता इस से पहले ही अनु ने उसकी बात बीच में काटकर कहा,”हाँ हाँ तुम तो चाहते ही यही हो मैं चली जाऊ और तुम अपनी रंगबाजी कर सको। तुम,,,,,,,,,,भाड़ में जाओ तुम और ढाई लाख के गहनों के साथ एक मंगलसूत्र और खरीद लो अपनी इस मेहमान के गले में बांधने के लिये,,,,,,,!!”
“अरे का अंट शंट बके जा रही हो तुम यार,,,,,,,,,,,,,,हम काहे बांधेंगे इनके गले में मंगलसूत्र ? पगलाय गयी हो अनु,,,,,,,,,,,,,हमरी बात सुनो”,मुरारी ने कहा
अनु ने अपना हाथ आगे कर मुरारी को बोलने से मना कर दिया और कहा,”तुमको जितने खाते खोलने है खोलो मुरारी पर जे याद रखना तुम्हरे सारे खाते बंद करने हमे बहुत अच्छे से आते है।”
अनु वहा से पैर पटकते हुए चली गयी। अनु के जाते ही मुरारी ने अपना सर पकड़ लिया।
उर्वशी वही खड़ी थी उसने मुरारी से कहा,”क्या आप हमे बंगले तक छोड़ देंगे ?”
मुरारी ने एक नजर उर्वशी को देखा और अपने हाथ जोड़कर कहा,”माफ़ करो देवी तुम्हरे चक्कर में हमरी लंका लग चुकी है , अब तुमको अपनी जीप में बैठा लिये तो हमरा तलाक पक्का समझो। एक ठो काम करो रिक्शा से चली जाओ,,,,,,,,,,,,,,और हाँ अनु की बातो का बुरा ना लगाना , उह दिल की बुरी नहीं है।”
प्रताप का घर , बनारस
घर के आँगन में मचिया पर उलटा लेटा राजन हाथ में पकडे लकड़ी के टुकड़े को मिटटी पर घुमा रहा था। प्रताप राजन को घर से बाहर जाने नहीं देता था ना ही बाहर से किसी को अंदर आने देता था। हर वक्त 2 आदमी राजन की देखभाल करते थे और ध्यान रखते थे वह घर से बाहर ना जाये। लेटे लेटे राजन मुन्ना के बारे में सोचने लगा। भूषण और उसके आदमियों से ज्यादा राजन को मुन्ना का स्वाभाव अच्छा लगा।
एक मुलाकात में ही वह मुन्ना को अपना दोस्त मान बैठा। राजन मुन्ना से मिलना चाहता था उसके बारे में और जानना चाहता था लेकिन बाहर जाये बिना वह मुन्ना से कैसे मिलता ?
राजन को घर में प्रताप का फोन मिला जिसमे मुन्ना का नंबर देखकर उसने मुन्ना को फोन भी मिलाया और उस से बात की,,,,,,,,,,,,,!!
लकड़ी का टुकड़ा मिटटी में घुमाते हुए राजन मन ही मन खुद से कहने लगा,”मुन्ना का नंबर पिताजी के फोन में कैसे आया ? मुन्ना ने कहा उसके पापा विधायक थे इस वजह से पर हमरे पिताजी जैसे एक आम आदमी के फ़ोन में मुन्ना का नंबर कैसे आ सकता है ? का पिताजी हम से कुछो छुपा रहे है या हम ही जे सब के बारे में ज्यादा सोच रहे है।”
“बस करो बेटा का जमीन में खड़ा कर दोगे ?”,प्रताप की आवाज राजन के कानो में पड़ी तो वह अपने ख्यालो से बाहर आया। उसने देखा बगल की कुर्सी पर उसके पिताजी बैठे है तो उसने लकड़ी का टुकड़ा फेंक दिया।
“का बात है बिटवा इतना उदास काहे हो ?”,प्रताप ने पूछा
“पिताजी आपसे एक्को बात पूछे ?”,राजन ने कहा
“हाँ पूछो !”,प्रताप ने कहा
“आप हमको बाहिर क्यों नहीं जाने देते ? हमरा भी मन करता है हम घर से बाहर जाये , इह सहर घूमे , कुछो अपनी पसंद का खाये , जब से हम घर आये है तब से हम जे घर मा कैद है इह से अच्छा तो हमहू हॉस्पिटल में ही रह जाते,,,,,,,,,,,,,,,वहा कम से कम 4 लोग तो होते थे बात करने के लिये।”,राजन ने उदास लहजे में कहा
प्रताप ने सूना तो राजन की तरफ देखने लगा और कहा,”हम समझते है बेटा पर का है अभी अभी तुमहू ठीक होकर आये हो हम नहीं चाहते फिर से कोनो संकट तुम पर आये।”
राजन ने सूना तो अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया। वह जानता था उसके पिताजी उसकी बात नहीं मानेंगे इसलिए उसने आगे कुछ नहीं कहा।
प्रताप का आदमी जो कई सालो से उसके यहाँ काम कर रहा था वह प्रताप के पास आया और धीरे से कहा,”मालिक राजन बिटवा सही कह रहा है , जब तक उह इह घर से बाहर नहीं निकलेगा ठीक कैसे होगा ? राजन बिटवा वैसे भी सब भूल चुके है ,
शिवम और मुरारी के बच्चो से उनको अब कोई खतरा नहीं है क्योकि शिवम का बिटवा तो मुंबई जा चुका उह पता नहीं कब वापस आएगा और बचा मुन्ना तो वो इतना समझदार है कि बेवजह किसी से उलझता नहीं। हमरी बात मानिये राजन बिटवा को बाहर जाने दीजिये ताकि इनका जीवन पहले जैसा सामान्य बने वरना आप कब तक इनकी देखभाल करेंगे ?”
आदमी की बात प्रताप को सही लगी लेकिन एक डर अभी भी था जो मन ही मन उन्हें परेशान कर रहा था इसलिए उन्होंने कहा,”उह सब तो ठीक है लेकिन भूषण का क्या करे ? उह तो कब से राजन से मिलने की ताक में बैठा है।”
प्रताप के आदमी ने प्रताप के कान में कुछ कहा तो प्रताप ने हाँ में सर हिलाया और राजन से कहा,”सुनो बेटा राजन”
राजन प्रताप की तरफ पलटा तो उन्होंने आगे कहा,”तुमको बाहर जाना है ना तो तुम जा सकते हो लेकिन हमरी एक सर्त है।”
“वो का है पिताजी ?”,राजन ने पूछा
“तुम भूषण से दूर रहोगे।”,प्रताप ने कहा
“कौन भूषण ?”,राजन भूषण को जानता था लेकिन जान बूझकर अनजान बनते हुए कहा
“वही जोन उह दिन तुमको अपना दोस्त बताय रहा था।”,प्रताप ने कहा
“अरे हमको उस से का ? हम वैसे भी उसको नहीं जानते और आप कह रहे है तो दूर ही रहेंगे उस से,,,,,,,,,,,,,,पर पिताजी , का हम सच मा बाहर जाए ?”,राजन ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।
“हाँ जाओ बस समय से घर आ जाना,,,,,,,,!!”,प्रताप ने मुस्कुरा कर कहा तो राजन उनके गले आ लगा और कहा,”ठंकु पिताजी आप ना बहुते अच्छे है।”
आज पहली बार राजन प्रताप के गले लगा था ये देखकर प्रताप का दिल खुश हो गया और आँखों में नमी तैर गयी।
मुंबई , वंश का घर
सुबह का सोया वंश दोपहर बाद तक सोता रहा। वंश उठा तो उसे महसूस हुआ कि उसका पूरा बदन दर्द से टूट रहा है। वह हिम्मत करके उठा और किचन एरिया में चला आया। उसे बहुत जोरो से भूख लगी थी। किचन में खाने को कुछ रखा होगा सोचकर वह किचन में आया लेकिन वहा सूखे सामान और और कुछ सब्जियों के अलावा कुछ नहीं था। वंश ने रेंक खोलकर देखा तो वहा भी कुछ नहीं था।
वंश ने नल से एक गिलास पानी लिया और पीकर बाहर चला आया। वंश की सांसे भी काफी गर्म चल रही थी और उसका नाक भी लगभग बंद हो चुका था।
“किचन में तो खाने के लिये कुछ भी नहीं है , नवीन अंकल ने बताया था सामने मार्ट है मुझे वहा से कुछ मिल जाएगा।”,खुद से कहते हुए वंश ने अपना पर्स उठाया और फ्लेट से बाहर निकल गया।
वंश नीचे आया और सामने मार्ट में चला गया।
वहा से वंश ने अपने लिये कुछ किचन का जरुरी सामान खरीदा , साथ में कुछ जूस और सॉफ्ट ड्रिंक्स के केन खरीद लिये , उसने ब्रेड , जेम , अंडे और दूध के डिब्बे खरीदे और काउंटर पर चला आया। बिलिंग करवाकर वंश सब सामान लेकर वापस अपने फ्लेट में आया और ये सब करते हुए वंश काफी थक गया था। वह काफी बीमार महसूस कर रहा था।
उसमे इतनी एनर्जी नहीं बची थी कि वह अपने लिये कुछ खाना बना सके इसलिए उसने जूस का डिब्बा उठाया और उसका ढक्कन खोलकर आधा गिलास भर लिया। वंश का गला ख़राब था उसके बाद उसने वह ठंडा जूस पी लिया और वापस सोफे पर लेट गया। बदन दर्द और बंद नाक होने की वजह से उसे अब नींद भी नहीं आ रही थी। लेटे लेटे वंश को अपनी माँ की याद आने लगी और उसकी आँखे नम हो गयी , उसने अपने फोन की तरफ देखा जो कि पानी में गिरने की वजह से खराब हो चुका था।
Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34
Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34 Main Teri Heer – 34
Continue With Part Main Teri Heer – 35
Read Previous Part Here मैं तेरी हीर – 33
Follow Me On facebook
संजना किरोड़ीवाल