Love You Zindagi – 43
नैना ने कुर्सी पर रखा अपना दुपट्टा उठाया और गले में डाल लिया। तैयार होकर नैना नीचे चली आयी हॉल में चौधरी साहब और विपिन जी बैठे थे। विपिन जी ने नैना को इस अवतार में देखा तो बस देखते रह गए। उनकी आँखे नैना पर जम सी गयी और होंठो पर बरबस ही मुस्कान तैर गयी। किचन से आते भोला भैया के हाथ में ट्रे देखकर नैना ने कहा,”भोला भैया लाईये मुझे दीजिये , मैं सर्व कर देती हूँ”
भोला ने नैना को देखा तो बस देखता रह गया उस लाल रंग के सूट में वह बहुत ही प्यारी लग रही थी। भोला को अपनी तरफ देखते पाकर नैना ने अपनी भँवे उचकाई तो भोला ने कहा,”आज आप बहुत सुन्दर लग रही है नैना मेडम”
“थैंक्यू भोला भैया”,नैना ने मुस्कुरा कर कहा और ट्रे हाथो में उठाये हॉल में चली आयी। नैना ने ट्रे टेबल पर रखा और चाय का कप उठाकर चौधरी साहब के सामने रखते हुए कहा,”पापा आपकी चाय”
“थैंक्यू बेटा”,चौधरी साहब ने कहा
नैना ने दुसरा कप उठाया और अपने पापा की तरफ बढ़ाया लेकिन विपिन जी तो अभी भी नैना को एकटक देखे जा रहे थे।
“डेड,,,,,,,,,,डेड”,नैना ने धीरे से कहा तो विपिन जी की तंद्रा टूटी और उन्होने नैना के हाथ से चाय का कप लेते हुए कहा,”गुड मॉर्निंग नैना”
“गुड मॉर्निंग डेड,,,,,,,,,,,,,,,आप मुझे ऐसे देखकर शायद थोड़ा हैरान है”,नैना ने विपिन जी को आँखे पढ़ते हुए कहा
“हाँ,,,,,,,हाँ आप काफी अच्छे लग रहे हो बेटा जी’,विपिन जी ने कहा
“थैंक्यू डेड,,,,,,,,,,!”,कहते हुए नैना चौधरी साहब की तरफ पलटी और कहा,”पापा आप भी हमारे साथ चल रहे है न ?”
“नहीं बेटा मैं नहीं जा पाऊंगा मुझे किसी जरुरी काम से टाउन से बाहर जाना होगा , हाँ अवि और बाकि सब जा रहे है”,चौधरी साहब ने चाय का घूंठ भरते हुए कहा
“पापा ये कोई बात नहीं होती लास्ट टाइम आपने प्रॉमिस किया था कि आप साथ में जायेंगे और इस बार आप फिर केंसल कर रहे है”,नैना ने नाराजगी जताते हुए कहा
“हाँ मैंने कहा था बेटा लेकिन आज सुबह ही जरुरी कॉल आने के कारण मुझे जाना ही पडेगा,,,,,,,,,,,,,,,,विपिन जी आई ऍम सो सॉरी आप लोग बुरा मत मानियेगा”,चौधरी साहब ने कहा
“अरे नहीं नहीं भाईसाहब इसमें माफ़ी की क्या बात है ? मैं समझ सकता हूँ”,विपिन जी ने कहा
“देखा नैना तुम्हारे पापा कितने समझदार है”,चौधरी साहब ने कहा
“लेकिन मैं नहीं हूँ पापा , आप अपना प्रॉमिस तोड़ रहे है बस,,,,,,,,,,,,,,,आप चाहते है मैं मम्मी और अवि के साथ बाहर जाऊ और उनकी बातो से बोर हो जाऊ ,, आप साथ होते तो हम किसी अच्छे टॉपिक पर बात करते,,,,,,,,,,लिखे आपके नए बिजनेस के बारे में,,,,,,,,,,,,,,और मम्मी की साइड के रिश्तेदारो के बारे में भी,,,,,,,,,,,!!”,आखरी बात नैना ने दबी आवाज में कही लेकिन विपिन जी ने सुन लिया था।
“उसके लिए मैं अलग से वक्त निकलूंगा अभी के लिए तो तुम्हे इन्ही के साथ जाना होगा और इस बार तुम बिल्कुल बोर नहीं होने वाली तुम्हारे पापा है ना साथ में”,चौधरी साहब ने कप रखते हुए कहा
“चलिए ना प्लीज,,,,,,,,!”,नैना ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा और चौधरी साहब उसे समझा रहे थे। नैना और चौधरी साहब की बॉन्डिंग देखकर विपिन जी मन ही मन खुश हुए। वे मुस्कुराते हुए चाय पीने लगे। कुछ देर बाद नैना को आख़िरकार चौधरी साहब की बात माननी पड़ी और वह किचन की तरफ चली गयी क्योकि आज मंदिर में चढ़ने वाला प्रशाद उसे खुद ही बनाना था।
“हाँ भोला भैया बताईये क्या करना है ?”,नैना ने किचन में आकर कहा
“नैना मैडम पहले आपको ये बूंदी बनानी है और फिर उनसे लड्डू बनाने है। मैंने सारा सामान रख दिया है आप शुरू करो”,भोला भैया ने कहा
“बूंदी,,,,,,,,,,,,,,,,लड्डू ये तो मैंने कभी जिंदगी में नहीं बनाये,,,,,,,,,,,,,,,,नैना बजाज तुमने तो बैठे बिठाये अपने L लगा लिए है,,,,,,,,,,,,,,,क्या जरूरत थी मॉम के सामने ये कहने की के मंदिर का प्रशाद तुम बना लोगी। प्रशाद का पता नहीं तुम्हारी बूंदी जरूर बिखर जाएगी ये सब करते करते,,,,,,,,,,,,,,लेकिन अब जब बोल ही दिया है तो करना भी होगा वरना तुम्हारी खैर नहीं और फिर तुम्हारे अपने मॉम-डेड भी यहाँ है उनके सामने इज्जत का फालूदा नहीं होना चाहिए,,,,,,,,,,!!”,नैना अपने नाख़ून चबाते हुए मन ही मन बड़बड़ाई
“नैना मैडम,,,,,,,,,,,,,,नैना मैडम”,भोला ने नैना को खोये हुए देखा तो उसके सामने आकर कहा
“हाँ,,,,,,,,,,!”,नैना जैसे नींद से जागी
“आप कर लोगी ना ये ?”,भोला ने पूछा उसे भी नैना को ऐसे चुप देखकर शक हो रहा था कि नैना ने ये सब कभी नहीं किया है।
“अरे बिल्कुल,,,,,,,,,,,,,,लड्डू बनाना तो बहुत मामूली सी बात है,,,,,,,,,,,,,,,यूँ यूँ चुटकियो में कैसे लड्डू बनते है तुम बस देखते जाओ”,नैना ने चुटकी बजाकर कॉन्फिडेंस से कहा
“ठीक है मैं तब तक दूसरे काम देखकर आता हूँ”,भोला भैया ने कहा और वहा से चला गया। घर के नौकर भी अपने अपने कामो में लग गए। नैना किचन में थी और उसके साथ उसकी हेल्प करने के लिए था घर का रसोईया,,,,,,,,,,,,,,,,,नैना कुछ देर सब सामान को देखते रही। उसने अपने कुर्ते के बाजू को ऊपर चढ़ाया और रसोईये से एक एक सामान देने को कहने लगी। नैना ने पतीले में बूंदी बनाने के लिए घोल तैयार किया लेकिन आगे क्या करना है उसे कुछ नहीं पता था। उसने आसभरी नजरो से रसोईये को देखा और कहा,”आगे क्या करना होगा ?”
“अरे वाह नैना तुम तो अपनी बात की पक्की निकली , आज का प्रशाद तुम खुद बना रही हो देखकर ही आँखों को सुकून मिल गया”,सौंदर्या जी ने आराधना के साथ किचन में आते हुए कहा
“इनको भी अभी आना था”,नैना मन ही मन फिर बड़बड़ाई और पास खड़े रसोईये से कहा,”तुम जाओ जाकर भोला की हेल्प करो”
“ओके मैडम”,रसोईये ने कहा और चला गया
“नैना ये मैं क्या देख रही हूँ तुम किचन में हो और प्रशाद बना रही हो,,,,,,,,,,,,,ओह्ह ये देखने के लिए मेरी आँखे कब से तरस गयी थी”,आराधना जी को तो अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ कि नैना किचन में है वो भी इन कपड़ो में
“ये कुछ ज्यादा ही हो गया ना मॉम”,नैना ने अपनी गर्दन खुजाते हुए धीमी आवाज में आराधना जी से कहा तो वे मुस्कुरा उठी
“देखा आराधना जी ससुराल आते ही नैना सब सीख गयी है आप तो खामखा ही चिंता कर रही थी,,,,,,,,,,,,,,,,,अच्छा आप वो अपनी किसी रिलेटिव के बारे में बात कर रही थी , उनको कोई हार्ट डिजीज है बता रही थी आप”,सौंदर्या जी ने बातो बातो में दूसरी बात याद करते हुए कहा
“हाँ वो मेरी मौसेरी बहन की लड़की के बारे में,,,,,,,,,,,,,,,आप हार्ट की ही डॉक्टर है न”,आराधना जी ने पूछा
“हाँ हाँ बिल्कुल आईये हम बाहर लॉन में चलकर बात करते है थोड़ी सैर भी हो जाएगी”,सौंदर्या जी ने कहा
“हां चलिए,,,,,,,,,,,,,,,,नैना अच्छे से बनाना”,आराधना जी ने नैना के गाल को छूकर कहा और सौंदर्या जी के साथ वहा से चली गयी।
बेचारी नैना एक उम्मीद थी उसे रसोईये से मदद लेने की लेकिन उसे भी सौंदर्या जी अपने साथ लेकर चली गयी। नैना अब किचन में अकेले थी और ऊपर वाले को याद कर रही थी क्योकि बूंदी से लड्डू बनाना उसके बस की बात तो बिल्कुल नहीं थी।
बीकानेर , रुचि का बैंक
अपने डेस्क पर बैठी रुचिका पिछले कई घंटो से लगातार काम कर रही थी और इसी वजह से उसकी कमर अकड़ने लगी थी। उसने घडी में टाइम देखा लंच टाइम होने में अभी 15 मिनिट बाकी थे। रुचिका ने काम बंद किया और पानी की बोतल भरने के बहाने उठकर बैंक का एक चक्कर लगा आयी। पानी के फ्रीज के पास आकर रुचिका अपना बोतल भरने लगी तभी पास वाले केबिन से आती हसने की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा। रुचिका ने पहली बार उसे इग्नोर कर दिया और दोबारा से अपना ध्यान बोतल पर जमा लिया लेकिन एक बार फिर हंसी की आवाज उसके कानो में पड़ी और रुचिका जिज्ञासावश फ्रीज के पास वाले केबिन की तरफ चली आयी। रुचिका ने अधखुले दरवाजे को खोला तो सामने का नजारा देखकर थोड़ा असहज हो गयी और साथ ही हैरान भी,,,,,,,,,,,,,,रुचिका ने देखा उसकी क्लीग मधु बैंक मैनेजर के साथ उस केबिन में थी और हैरानी की बात ये थी की मधु उसके बहुत पास में बैठी थी और दोनों किसी बात पर हंस रहे थे।
रुचिका को वहा देखकर दोनों ही हैरान रह गए। मधु जल्दी से मैनेजर से दूर हटी वह रुचिका से कुछ कहती इस से पहले ही रुचिका सॉरी कहकर वहा से चली गयी। मधु ने घबरा कर मैनेजर को देखा और फिर रुचिका के पीछे आते हुए कहा,”रुचिका,,,,,,,,रुचिका”
मधु की आवाज सुनकर वहा मौजूद सबने उसे देखा तो वह थोड़ा झेंप गयी और रुचिका के पास आकर उसे रोककर धीमी आवाज में कहा,”रुचिका सुनो तुमने जो देखा वो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!”
“मैं किसी को ना बताऊ यही ना ?”,रुचिका ने सख्त स्वर में कहा
“हाँ लेकिन मुझे तुम्हे कुछ और भी बताना है प्लीज तुम,,,,,,,,,,,,तुम मुझे गलत मत समझो”,मधु ने घबराहट भरे स्वर में कहा
“थोड़ी देर बाद लंच टाइम होने वाला है तब बात करते है”,कहकर रुचिका वहा से अपने डेस्क की तरफ चली गयी। मधु के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आये उसके और मैनेजर के बीच पिछले कुछ दिनों से नजदीकियां बढ़ रही थी लेकिन दोनों ने किसी को इस की भनक तक नहीं लगने दी और आज रुचिका के सामने सब एकदम से आ गया।
मधु भी आकर अपनी डेस्क पर बैठ गयी। कुछ देर बाद ही मधु की डेस्क पर रखा फोन बजा उसने रिसीवर कान से लगाया तो दूसरी तरफ से मैनेजर की दबी हुई सी आवाज आयी,”बैंक में किसी को हमारे बारे में पता नहीं चलना चाहिए। रुचिका ने हमे साथ देखा है वो जरूर कुछ न कुछ करेगी ये बात बाहर नहीं आनी चाहिए अगर ऐसा हुआ तो तुम अपनी नौकरी से हाथ धो बैठोगी”
“लेकिन सर,,,,,,,,,,,,,,,,!”,मधु ने रोआँसा होकर कहा
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं पहले उस रुचिका का मुंह बंद करो तुम समझी”,कहकर मैनेजर ने गुस्से में फोन काट दिया। मधु ने रिसीवर रखा और अपना सर पकड़ लिया।
लंच टाइम में रुचिका केंटीन की तरफ जाने लगी। मधु ने देखा तो जल्दी से अपना टिफिन लिया और रुचिका के पीछे आते हुए कहा,”आज तुम लंच लेकर नहीं आयी ? कोई बात नहीं तुम मेरे टिफिन से खा लेना”
“नो थैंक्यू मैं केंटीन से ले लुंगी,,,,,,,,,,,!”,रुचिका ने एक बार फिर कठोरता से कहा तो मधु का मुंह उतर गया। रुचिका ने अपने लिए केंटीन से कुछ खाने का सामान लिया और आकर बैठ गयी। मधु भी सामने आकर बैठ गईं। वहा बैंक और दूसरे ऑफिस के लोग भी बैठकर खाना खा रहे थे।
रुचिका ने एक नजर मधु को देखा और चुपचाप अपना खाना खाने लगी।
“यार रुचिका तुम एक बार मेरी बात तो सुनो,,,,,,,,,,,,,,,,,इतना क्यों नाराज हो रही हो मैंने क्या गलत किया है ?”,मधु ने पूछा
“मैं तुम से कोई नाराज नहीं हूँ मधु चाहो तो तुम मैनेजर की गोद में बैठो या फिर किसी और के,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे तो तुम पर गुस्सा इसलिए आ रहा है क्योकि उस दिन मोंटी के बारे में तुम क्या कह रही थी कि वो मुझे धोखा देगा,,,,,,,,,,,,,,,,,धोखा तो तूम दे रही हो , खुद को , मैनेजर को और बाकि सब को,,,,,,,,,,,,,,मैनेजर तुम से 15 साल बड़ा है और शादीशुदा है , उसके 2 बच्चे भी है ये सब जानते हुए भी तुम उसके साथ,,,,,,,,,,,छी मुझे तो सोचकर ही शर्म आ रही है,,,,,,,,,,,,,,,तुम ऐसा कैसे कर सकती हो मधु ?”,रुचिका ने गुस्से और नफरत भरे भाव के साथ कहा
“लेकिन मैंने क्या गलत किया रुचिका ? इतने बड़े शहर में अकेले रहकर सब मेंटेन करना आसान नहीं है। घर का रेंट , खाना , कपडे और भी दूसरी चीजे सब की जरूरत होती है और उन सबके लिए चाहिए होता है बहुत सारा पैसा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरी सेलरी इतनी नहीं है कि मैं एक लग्जरी लाइफ जी सकू ऐसे में अगर मैंने मैनेजर से हंसकर चार बाते कर ली और बदले में उसने मुझे ये सब दे दिया तो इसमें क्या गलत है ?”,मधु ने भी गुस्से में आकर कहा
रुचिका ने सूना तो हक्की बक्की रह गयी , मधु की सोच इतनी एडवांस भी हो सकती है जानकर ही रुचिका को हैरानी हो रही थी। उसने हाथ में पकड़ा सेंडविच का टुकड़ा प्लेट में रखा और कहा,”तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना मधु , तुम जानती भी हो इन सब की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है तुम्हे,,,,,,,,,,,,,,तुम्हे उतने ही पैर फ़ैलाने चाहिए जितनी तुम्हारे पास चादर हो”
“ये तुम इसलिए कह रही हो क्योकि तुम्हे घर बैठे सब मिल जाता है। तुम्हारे घर में कमाने वाली तुम हो मोंटी है और क्या खर्चा है तुम दोनों का कुछ भी नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे सर पर कितनी जिम्मेदारियां है क्या जानती हो तुम ?”,मधु ने कहा
“जिम्मेदारियां है तो क्या तुम उन्हें ऐसे निभाओगी ? देखो मधु मुझे तुम्हारी लाइफ में इंटरफेयर नहीं करना लेकिन तुम जो कर रही हो वो गलत है। मैनेजर अच्छा आदमी नहीं है वो बस तुम्हारा फायदा उठाने के लिए ये सब कर रहा है। मैं तुम्हे काफी दिनों से जानती हूँ इसलिए मुझे बस तुम्हारी परवाह हो रही है”,रुचिका ने थोड़ा नरम पड़ते हुए कहा
“क्या तुम्हे सच में मेरी परवाह है ?”,मधु ने रुचिका की आँखों में देखते हुए पूछा
“हाँ मुझे है”,रुचिका ने बेचैनी भरे स्वर में कहा
“तो फिर आज तुम ने जो देखा उस बारे में ऑफिस में किसी को मत बताना। प्लीज रुचिका अगर ऑफिस में पता चला तो मेरी बदनामी होगी और मेरे साथ साथ सर की,,,,,,,,,,,,,,,मेरी नौकरी चली जाएगी प्लीज,,,,,,,,,तुमने अभी कहा कि तुम्हे मेरी परवाह है तो प्लीज रूचि मेरी इतनी सी बात मान लो। जो हुआ उसे भूल जाओ”,मधु ने रुचिका का हाथ अपने हाथो में लेकर रिक्वेस्ट करते हुए कहा
“ठीक है मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी लेकिन आज के बाद तुम उस मैनेजर के आस पास भी नहीं जाओगी”,रुचिका ने कहा
रुचिका की बात सुनकर मधु कुछ देर खामोश रही और फिर कहा,”ओके मैं नहीं जाउंगी,,,,,,,,,,,!!”
“हम्म्म्म , खाना खाओ”,रुचिका ने कहा और वापस अपना सेंडविच खाने लगी। मधु ने भी अपना टिफिन खोला और ख़ामोशी से खाना खाने लगी लेकिन मन ही मन परेशान भी हो गयी। रुचिका उसके और मैनेजर के रिश्ते का सच जान चुकी थी और ये मधु के लिए कही ना कही परेशानी खड़ी करने वाली बात थी।
आशीर्वाद अपार्टमेंट , दिल्ली
सुबह सुबह शीतल अपनी बालकनी में कपडे सूखाने आयी थी। शीतल की बालकनी से लगकर ही मिस्टर आहूजा का घर था। हाँ हाँ वही मिसेज आहूजा जो मिसेज गुप्ता के साथ मिलकर पुरे अपरमेन्ट की जानकारी रखती है। वैसे तो मिस्टर आहूजा बालकनी में बहुत कम आया करते थे लेकिन आज वे भी अपनी बालकनी कपडे सूखा रहे थे।
शीतल ने उन्हें देखा तो मिस्टर शर्मा की कही बात उसके कानो में गुंजी,”किसी से माफ़ी मांग लेने से हम छोटे नहीं हो जाते बेटा”
शीतल मुस्कुराई और हाथ में पकडे चद्दर को बाल्टी में डालकर आहूजा जी की बालकनी के पास आकर कहा,”गुड मॉर्निंग अंकल”
“अरे गुड मॉर्निंग शीतल बेटा , आज सुबह सुबह”,मिस्टर आहूजा ने कहा
“मैं तो रोज ही आती हूँ कपडे सूखाने पर आज आपको कितने दिन बाद देखा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अरे ये क्या आप कपडे सूखा रहे है , आंटी कहा है ?”,शीतल ने झांकते हुए कहा
“वो सो रही है”,कहते हुए आहूजा जी का मुंह बन गया
“हाँ थक जाती है ना दुसरो के घर में ताका झांकी करते करते”,शीतल ने कहा तो आहूजा जी ने खाली बाल्टी उठाते हुए कहा,”मुझे जरा काम है मैं चलता हूँ”
शीतल मुस्कुराई और वहा से चली गयी इस बार उसने मिसेज आहूजा और गुप्ता को सबक सिखाने की ठान ही ली और ये उसका पहला कदम था।
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