Kashmir Ki Panaho Me – 3
“लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” ने अपने ही साथियो के साथ गद्दारी की और “केप्टन देवाशीष राठौर” को गोली मार दी। देवाशीष नीचे खाई में जा गिरा। मुरली कृष्ण पर किसी को शक ना हो इसलिए मुरली कृष्ण ने जान बूझकर अपने आपको जख्मी कर लिया और वही गिर गया। कुछ देर बाद वहा सेना की एक टुकड़ी पहुंची। जवानो ने जब लेफ्टिनेंट मुरली को घायल देखा तो उसे तुरंत रेजीडेंसी भेज दिया गया। लेफ्टिनेंट सूरज ने देखा केप्टन कही नजर नहीं आ रहे है उन्होंने बाकी जवानों को आदेश दिया की वे केप्टन को ढूंढे साथ ही खुद भी उन्हें ढूंढने लगा।
आतंकी के नाम पर जो कुछ कश्मीरी जवान थे वो सेना के हाथो मारे गए। हाईकमान को सुचना मिलने पर सेना की एक बड़ी टुकड़ी खाई के पास वाले इलाक़े में भेजी गयी। शाम तक ये खबर आग की तरह फ़ैल गयी की कुछ कश्मीरी लोग आतंकियों से मिल गए है और सेना के खिलाफ जंग की तैयारी कर रहे है। उस इलाके में रहने वाले सभी लोगो के लिए रेड अलर्ट जारी कर दिया गया की कोई भी घर से बाहर ना निकले। देवाशीष की टीम से कुछ जवान शहीद हो चुके थे और बाकि जो बचे थे वो रेजीडेंसी लौट आये लेकिन उनमे देवाशीष नहीं था। सभी हैरान परेशान थे की आखिर देवाशीष है कहा ?
मेजर साहब को पता चला की “केप्टन देवाशीष” वापस नहीं लौटे है तो किसी अनहोनी के डर से उनका मन घबरा गया। उन्होंने सेना की एक टुकड़ी को उस इलाके में फिर से भेजा और देवाशीष की खोज करने को कहा।
“लेफ्टिनेंट सूरज , आखरी बार आपने केप्टन देवाशीष से क्या बात हुई थी ?”,मेजर साहब ने पूछा
“सर जवान कश्मीरियों को आजाद करवाते वक्त हम सब साथ थे , उसके बाद अचानक से हमला हुआ और केप्टन ने हम सभी जवानों को आगे बढ़ने का आदेश दिया और अकेले ही दुश्मनो से लड़ते रहे। उस वक्त “लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” उनके साथ ही थे और वे दोनों काफी बहादुरी से दुश्मनो का सामना कर रहे थे। उसके बाद मैं कुछ जवानों के साथ दूसरी तरफ चला गया। केप्टन के साथ क्या हुआ है ये शायद लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण जानते हो,,,,,,,,,,,,,,,!!”,सूरज ने कहा
“ठीक है , मैंने सेना की एक टुकड़ी को वहा भेजा है ,, कुछ देर बाद रात हो जाएगी और उसके बाद केप्टन को ढूँढना मुश्किल हो जाएगा,,,,,,,,,,,,,,हमे अन्धेरा होने से पहले उन्हें ढूंढना होगा,,,,,,,,,,,,,,वो दुश्मनो के हाथ नहीं लगने चाहिए”,मेजर साहब ने कहा
“यस सर , मैं अभी अपनी टीम के साथ वापस निकलता हूँ”,कहते हुए लेफ्टिनेंट सूरज ने मेजर साहब को सेल्यूट किया और वहा से निकल गया। सूरज से बात करने के बाद मेजर साहब लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण के टेंट में आये। मुरली अपने बिस्तर पर लेटे हुए था मेजर साहब को देखते ही वह धीरे से उठकर बैठ गया। उसने अपनी पीठ बक्से से लगा ली। उसके सर और हाथ पर पट्टी बंधी थी और हल्की सी खरोच के निशान चेहरे पर भी थे।
“अब तुम्हारी तबियत कैसी है मुरली कृष्ण ?”,मेजर साहब ने पूछा
“मैं ठीक हूँ सर,,,,,,,,,,,,,,आहह क्या मैं अपनी टीम के साथ वापस जंग पर जा सकता हूँ मुझे उन दुश्मनो का खातमा करना है”,लेफ्टिनेंट मुरलीकृष्ण ने दिखावा करते हुए कहा हालाँकि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था।
“नहीं मुरली कृष्ण तुम्हे अभी आराम की जरूरत है , मैंने सेना की कुछ टुकड़ियों को उस इलाक़े में भेजा है वो जल्द ही हमे सूचना देगी। मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है”,मेजर साहब ने गंभीरता से कहा
“जी सर कहिये”,मुरली कृष्ण ने कहा
“केप्टन देवाशीष के बारे में कोई खबर नहीं है , इस जंग पर जाने के बाद से ही वो लापता है। जवानों ने बताया की आखरी बार वो आपके साथ थे , क्या केप्टन ने तुम्हे किसी तरह की कोई सुचना दी ? क्या तुम्हे पता है केप्टन कहा है ?”,मेजर साहब ने पूछा
देवाशीष का नाम सुनते ही मुरली कृष्ण राव की आँखों की पुतलिया एकदम से सिकुड़ गयी और फिर उसने अपने मगरमछी आँसू बहाते हुए कहा,”मुझे ये बताते हुए बहुत ही दुःख हो रहा है सर की दुश्मनो से लड़ते हुए , केप्टन देवाशीष शहीद हो गए”
“क्या ? ये तुम क्या कह रहे हो मुरली कृष्ण राव ? क्या तुम होश में तो हो ?”,मेजर साहब को मुरली कृष्ण की बात से धक्का सा लगा
“यस सर मैं सच कह रहा हूँ , मैं और केप्टन देवाशीष कश्मीरी जवान लड़को को आजाद करने के बाद बर्फीले इलाके की तरफ गए थे। हाईकमान को इसकी जानकारी शायद नहीं थी वहा 8-10 आतंकी हथियारों के साथ मौजूद थे। हम हाईकमान या अपने जवानों को सुचना दे पाते इस से पहले ही दुश्मनो ने गोलीबारी शुरू कर दी और जवाब में हमे भी उन पर गोलिया चलानी पड़ी। 6 आतंकी वही ढेर हो गए लेकिन उस वक्त तक हमारे पास हथियार कम ही बचे थे और इसी का फायदा उठाकर दो आतंकियों ने केप्टन को घेर लिया मैंने अपनी जान पर खेलकर उन दोनों को वहा से हटाया था और ऐसा करते हुए मुझे काफी चोटे भी आयी ( कहते हुए अपने हाथ पर लगी चोट दिखाता है और आगे कहता है ) केप्टन का गुस्सा आप जानते है मेजर , जब उन दोनों आतंकियों ने मुझ पर हमला किया तो केप्टन ने उन्हें खदेड़ दिया और इसी बीच वो खाई की तरफ चले आये। मैं घायल था और अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था की मैंने देखा एक आतंकी ने केप्टन के सीने पर गोली चला दी और वे उस गहरी खाई में जा गिरे। गिरते हुए उन्होंने उन दोनों आतंकियों को भी अपने साथ खींच लिया ,,,,,,,,,,,,,,,,जाते जाते भी हमारे केप्टन ने अपने दुश्मनो को मौत के घाट उतार दिया और देश के लिए शहीद हो गए,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं शर्मिन्दा हूँ मेजर की मैं उन्हें नहीं बचा पाया और कुछ देर बाद बेहोश हो गया”,एक झूठी कहानी सुनाकर लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव सुबकने लगे ताकि मेजर को उसकी इस कहानी पर यकीन हो जाये।
मेजर ने जब सूना तो उन्हें एक बार फिर धक्का सा लगा वे धीमे कदमो से टेंट से बाहर जाने लगे
“सर चिंता मत कीजिये सर मैंने “केप्टन देवाशीष” को वचन दिया है मैं उनके अधूरे कामो को पूरा करूंगा। उनके बलिदान का मैं बदला लूंगा सर”,लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव ने तेज आवाज में कहा लेकिन मेजर साहब ने कोई प्रतिक्रया नहीं दी। उन्हें अपने केप्टन देवाशीष को खो देने का दुःख था। बाहर आकर उन्होंने रेजीडेंसी में मौजूद जवानों को जब केप्टन के ना रहने की खबर दी तो पूरी सेना में दुःख का माहौल छा गया। सभी के चेहरे मुरझा गए और हर कोई केप्टन के बारे में बात करने लगा।
मेजर साहब ने हाईकमान में सूचना भिजवा दी। केप्टन देवाशीष के बारे में ये खबर आग की तरह फ़ैल गयी। सेना के उच्च अधिकारियो ने तुरंत मेजर को ये आदेश दिया की वह केप्टन देवाशीष को जल्द से जल्द ढूँढे। रेजीडेंसी में गम का माहौल था तो वही सेना के जवान देवाशीष के मृत शरीर को ढूंढने में लगे हुए थे। लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव की बात पर यकीन करना मुश्किल था लेकिन अभी जो कश्मीर के हालात थे उन्हें देखते हुए सेना अधिकारियो को उसकी बात पर यकीन करना पड़ा।
रात होने की वजह से जवानो ने अपनी तलाश रोक दी और वही जंगल में रुककर सुबह होने का इंतजार करने लगे। केप्टन देवाशीष की बची हुयी टीम “लेफ्टिनेंट सूरज” के साथ उन्हें ढूंढ रही थी। रात होने की वजह से उन्हें भी अपनी तलाश रोकनी पड़ी। सभी वही चट्टानों के पास आग जलाकर बैठ गए। लेफ्टिनेंट आर्या और लेफ्टिनेंट विक्रम , लेफ्टिनेंट सूरज के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। उन दोनों को सूरज पहले ही खो चुका था और आज केप्टन देवाशीष को खोने का दर्द भी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था।
रेजीडेंसी से सेनिको के लिए खाना आया , कुछ सेनिको ने खा लिया लेकिन सूरज और उसकी टीम ने खाने को छुआ तक नहीं। लेफ्टिनेंट सूरज उठा और घाटी की तरफ आकर खड़ा हो गया। वह सामने फैले इलाक़े को देखते हुए खुद से ही कहने लगा,”आखिर आप ऐसे कैसे जा सकते है सर ? आपने कहा था एक दिन आप इस जगह को भी देश की सब से सुरक्षित जगह बनाकर रहेंगे फिर आप अपने इस सपने को अधूरा छोड़कर कैसे जा सकते है सर ? आप हमारे केप्टन होने के साथ साथ हम सब जवानों का होंसला भी थे सर,,,,,,,,,,,,,,,,,,आपको ऐसे नहीं जाना था सर”
“सीनियर थोड़ा खाना खा लीजिये सुबह फिर से जल्दी निकलना होगा”,सेना के जवान ने आकर लेफ्टिनेंट सूरज से कहा
“इन सब लोगो के गले से खाना नीचे भी कैसे उतर सकता है ? क्या इन लोगो के मन में किसी की सहादत को लेकर जरा सा दुःख नहीं है। वो हमारे केप्टन थे क्या नहीं किया उन्होंने हमारे लिए ? अपनी जान की परवाह किये बिना वो हमेशा हर जंग में सबसे आगे खड़े रहे , उन्होंने कभी किसी जवान में छोटे बड़े का भेदभाव नहीं किया , उन्होंने कभी अपने पद और सम्मान पर घमंड नहीं किया वो हमेशा देश के बारे में पहले सोचते थे ऐसे जवान की सहादत पर दुःख व्यक्त करने के बजाय तुम सब खाना खा रहे हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ले जाओ इसे”,लेफ्टिनेंट सूरज का दर्द गुस्से के साथ फूट पड़ा।
“सेना में आने के बाद जवानों को दुःख व्यक्त करने का हक़ नहीं होता है लेफ्टिनेंट सूरज,,,,,,,,,,इसलिए तो उन्हें जवान कहते है। कितने ही जवान अपनी आँखों के सामने अपने साथी जवानों को शहीद होते देखते है और इसके बावजूद वे दुश्मनो को खदेड़ते हुए आगे बढ़ते है इसी को कहा जाता है इंडियन आर्मी,,,,,,,,,,,,,केप्टन को खो देने का दुःख हर जवान को है लेकिन उनका ये बलिदान व्यर्थ ना जाए इस फर्ज को हमे निभाना होगा लेफ्टिनेंट सूरज,,,,,,,,,,,,, केप्टन ने अपने साथियो के लिए जो किया है उस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है”,सूरज के एक साथी लेफ्टिनेंट ने आकर कहा
उसकी बात सुनकर सूरज के चेहरे के भाव पहले से ज्यादा कठोर हो गए और उसने सामने देखते हुए,”उनके अधूरे कामो को हम सब मिलकर पूरा करेंगे,,,,!!”
साथी लेफ्टिनेंट ने सूरज के कंधे पर हाथ रखा तो उसकी बांयी आँख से आँसू की एक बूंद निकलकर गाल से लुढ़ककर नीचे जा गिरी।
अगली सुबह जवान फिर केप्टन देवाशीष की खोज में निकल पड़े। दोपहर बाद लेफ्टिनेंट सूरज अपने कुछ साथियो के साथ बर्फीले पहाड़ो से होकर खाई के निचले हिस्से में आया। उस जगह केप्टन को खोजने के समय एक जवान को केप्टन देवाशीष की घडी मिली। घडी मिलते ही सभी सतर्क हो गए और खोजबीन जारी रखी लेकिन केप्टन देवाशीष का कुछ पता नहीं चला। दो दिन हो चुके थे और केप्टन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
थल सेना के केप्टन दो दिन से लापता है और सेना उन्हें ढूंढने में व्यस्त है ये खबर जैसे ही दुश्मन सेना को मिली उन्होंने मोके का फायदा उठाते हुए कश्मीर घाटी के पॉश इलाकों में जंग का ऐलान कर दिया। अचानक इस ऐलान से सेना फिर हरकत में आ गयी। कुछ जवानों के जरिये केप्टन को ढूंढने की कोशिश जारी रखी और बाकि सेना जंग के लिए निकल गयी।
केप्टन के ना होने से सेना में इस वक्त तनाव का माहौल था और यही वजह थी की दूसरे लेफ्टिनेंट ठीक से सेना का नेतृत्व नहीं कर पा रहे थे। ना ही उन के पास कोई रणनीति थी ना ही दुश्मनो पर हमला करने के लिए पर्याप्त हथियार। तीन दिन तक लगातार सेना और आतंकियों के बीच जंग जारी रही जिसमे कई जवान शहीद हुए। दुश्मन जब सेना पर भारी पड़ने लगे तो खुद मेजर को जंग उतरना पड़ा। मेजर अपनी एक सैन्य टुकड़ी के साथ उन इलाकों में पहुँच गए थे और देखते ही देखते उन्होंने दुश्मनो पर धावा बोल दिया। दो आतंकी ढेर हो गए , मेजर के जोश को देखकर सेना के बाकी जवानों में भी जोश आया और वे भी पूरी बहादुरी के साथ आगे बढ़ते हुए दुश्मनो पर गोलिया चलाने लगे।
घायल होने की वजह से “लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” इस जंग का हिस्सा नहीं थे। वे अपने टेंट में आराम कर रहे थे। मेजर पूरी बहादुरी से लड़ते हुए दुश्मनो का सफाया कर रहे थे की एक गोली आकर उन्हें लगने ही वाली थी की किसी ने उनका हाथ थामकर उन्हें अपनी तरफ खींचते हुए सामने खड़े आतंकी पर गोली चला दी। गोली सीधे जाकर आतंकी के सर पर लगी और वह वही ढेर हो गया। मेजर ने देखा उन्हें बचाने वाला कोई और नहीं बल्कि “लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” है। मुरली को वहा देखकर उन्हें हैरानी भी हुई और ख़ुशी भी की जवान अपने देश के लिए हर परिस्तिथि में तैयार थे।
लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव अपनी बन्दुक उठाये आगे बढ़ गए और मेजर भी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!
मेजर अपनी सेना के साथ दुश्मनो का सफाया करते हुए आगे बढ़ रहे थे। लेफ्टिनेंट “मुरली कृष्ण राव” भी चले आये और दुश्मनो का सामना किया। लेफ्टिनेंट राव घायल थे लेकिन फिर भी जंग में आये उनकी इस हरकत ने सबका ध्यान अपनी और खींचा। दोपहर बाद ही दुश्मन सेना ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए। शाम तक लगभग सभी दुश्मन मारे जा चुके थे और कुछ भाग खड़े हुए। जिन इलाको पर दुश्मनो ने कब्जा जमाया हुआ था वो अब सुरक्षित थे। मेजर ने घाटी पर तिरंगा लहराया लेकिन जब मुड़कर देखा तो पाया की इस जंग में उनके कितने ही जवान शहीद हो थे।
उसी शाम सभी जवानो के मृत शरीर को रेजीडेंसी लाया गया। सेना में गम का माहौल था,,,,,,,, “केप्टन देवाशीष” का कुछ पता नहीं चला। 3 दिन बाद भी जब सेना उन्हें नहीं ढूंढ पायी तो आर्मी ने मान लिया की वो अब उनके बीच नहीं रहे। जंग में शहीद हुए जवानों के साथ साथ “केप्टन देवाशीष” को भी श्रद्धांजलि दी गयी। सूरज की आँखों से आँसू बहने लगे उसने बहते आँसुओ के साथ शहीद हुए जवानों को सेल्यूट किया। जवानों के शवों को तिरंगे में लपेट कर उन्हें घर के लिए रवाना कर दिया गया। रेजीडेंसी में आज दुःख और गम का माहौल था , इतनी बड़ी जंग के बाद भी कोई खुश नहीं था सबसे बड़ा गम था “देवाशीष” का ऐसे चले जाना।
अगली सुबह चित्रलेखा घर के बाहर बैठी अपने मैंने को घास खिला रही थी। आज उसने अपने हरे नगीने वाले अपने नए झुमके पहने थे जो की उसके कानो में झूल रहे थे। बालों की लटे चेहरे पर झूल रही थी जिन्हे वह बार बार पीछे करती और वे फिर उसके चेहरे पर चली आयी। मेमने को घास खिलाते हुए उसकी नजर बार बार पहाड़ी से नीचे सड़क पर चली जाती जहा से देवाशीष अपनी जीप लेकर गुजरता था। देवाशीष का ख्याल आते ही चित्रलेखा के होंठो पर बरबस ही मुस्कान तैर गयी। उसके गाल गुलाबी होने लगे। उसने अपने सर पर एक चपत मारी और घास उठाकर मेमने को खिलाने लगी। कुछ देर बाद उसकी नजर सामने से आती अरिका पर गयी। अरिका अपने हाथ में अख़बार का टुकड़ा थामे चित्रलेखा की तरफ दौड़ी चली आ रही थी।
“लेखा क्या तुमने आज की खबर पढ़ी ?”,अरिका ने चित्रलेखा के सामने आकर हाँफते हुए पूछा
चित्रलेखा उठ खड़ी हुई और कहा,”नहीं मैं तो कुछ देर पहले ही घर से बाहर आयी हूँ , क्या हुआ ?”
भागने की वजह से अरिका की सांसे फूलने लगी थी इसलिए उसने कुछ ना कहकर अख़बार चित्रलेखा की तरफ बढ़ा दिया। चित्रलेखा ने अख़बार लिया और देखा तो पहले पन्ने पर देवाशीष की तस्वीर थी और नीचे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “कश्मीर घाटी पर दुश्मनो से लड़ते हुए “केप्टन देवाशीष राठौर” हुए शहीद , देश के लिए दिया बलिदान”
चित्रलेखा ने जैसे ही पढ़ा उसका दिल एक पल को धड़कने से रुक गया , उसका गला सूखने लगा , पैर काँपने लगे , उसकी बाँयी आँख से निकलकर आँसू की एक बून्द अख़बार पर आ गिरी। चित्रलेखा की आँखों के सामने वो पल आने लगे , जब वह पहली बार देवाशीष से मिली थी , उसका बार बार देवाशीष को देखकर सेल्यूट करना , बाजार में देवाशीष को मफलर खरीदते देखना सब किसी फिल्म की तरह चित्रलेखा की आँखों के सामने चल रहा था। चित्रलेखा ने भीगी आँखों से अरिका की तरफ देखा और अख़बार फेंककर तेजी से वहा से भागने लगी।
“लेखा रुको,,,,,,,,,,,,,,,लेखा रुको कहा जा रही हो ?,,,,,,,,,,,,,,,,लेखा सुनो”,अरिका ने उसे आवाज दी लेकिन लेखा नहीं रुकी। वह भागते हुए पहाड़ी से नीचे जाने लगी। ठंड होने की वजह से रास्तो में बर्फ जमी हुई थी लेकिन चित्रलेखा को महसूस नहीं हुआ वह बस भागे जा रही थी। भागते हुए वह नीचे सड़क पर चली आयी और हाँफने लगी। आँसुओ से भरी आँखों से वह उस खाली पड़ी सड़क को देखने लगी , उसका गला भारी हो चला था और नथुने फूलने लगे। आँखे लाल हो चुकी थी और सीने में एक चुभन का अहसास हो रहा था। वह यकीन नहीं कर पा रही थी की देवाशीष अब नही रहे। चित्रलेखा कुछ देर वही खड़ी रही और फिर थके कदमो से वापस पहाड़ी की ओर जाने लगी। बर्फ से ढके रास्तों पर भागने वाली चित्रलेखा के लिए आज चलना मुश्किल हो रहा था। वह देवाशीष को चाहने लगी थी और बहुत जल्द वह उस से मिलकर उसे वो मफलर देना चाहती थी जो उसने अपने हाथो से बना था। चित्रलेखा देवाशीष से नहीं मिल पायी उसे इस बात का बहुत दुःख था। चलते चलते देवाशीष के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे “तुम्हारे हाथ बहुत ठन्डे है लो इन्हे पहनो और अपने घर जाओ”
चलते चलते चित्रलेखा का पैर उलझा और वह नीचे आ गिरी , उसकी आँखों से आँसू फिर बहने लगे। उसके चेहरे और हाथो पर बर्फ आ लगी चित्रलेखा ने देखा दूर दूर तक बर्फ से ढके पहाड़ थे और कुछ नहीं था। उसने अपना चेहरा अपने हाथो में छुपाया और फूटफूटकर रोने लगी। जिस लड़के से उसने प्यार किया उसके आखरी वक्त में वह उस से मिल भी नहीं पायी सोचकर उसका दिल दुःख और पीड़ा से भर गया।
चित्रलेखा का मेमना उसके पास चला आया और उसके इर्द गिर्द चक्कर काटने लगा। रोते हुए चित्रलेखा को महसूस हुआ जैसे कोई उसके आस पास है उसने अपने चेहरे को अपने हाथो से हटाया और देखा उसका मेमना था। चित्रलेखा ने उस मेमने को गोद में उठा लिया और रोते हुए कहा,’केप्टन नहीं रहे कोंग्पोश , वो हम सबको हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर चले गए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं आखिरी बार उनसे मिल नहीं पायी। सेना के जवानों की जिंदगी की क्या कोई कीमत नहीं होती ? अख़बार में छपा था की वे दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए आखिर इस मुल्क को कब तक अपना बलिदान यू ही देना होगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं केप्टन को पसंद करती हूँ मैं कई दिनों से उन्हें ये बताना चाहती थी लेकिन नहीं बता पायी और अब वो है ही नहीं,,,,,,,,,,,,,,,ऐसा क्यों हुआ कोंग्पोश ? ऐसा क्यों हुआ ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मुझे बहुत बुरा लग रहा है , मैं रोना चाहती हूँ”
बेचारा मेमना अपनी बड़ी बड़ी चमकदार आँखों से चित्रलेखा को देखता रहा , उसे रोता देखकर मेमना भी उसकी गोद में दुबक गया शायद किसी के छोड़ जाने के गम को मेमना महसूस कर सकता था।
चित्रलेखा वही ठण्ड में बैठी देर तक सुबकती रही , उसका चेहरा और उसका नाम लाल हो चुका था , उसके हाथ ठण्ड में सफ़ेद पड़ चुके थे , उसके बालों की लटें बिखरकर चेहरे पर झूल रही थी। कुछ देर बाद बर्फ गिरने लगी , ठण्ड की वजह से मेमना चित्रलेखा की गोद में दुबकने लगा लेकिन चित्रलेखा उसे जैसे कुछ होश ही नहीं था। जैसे किसी अपने के चले जाने का गम होता है चित्रलेखा को भी वही दर्द महसूस हो रहा था। ठण्ड में लगातार रहने की वजह से उसके शरीर का तापमान गिरने लगा और कुछ देर बाद वह बेहोश होकर वही लुढ़क गयी। मेमने ने देखा तो चित्रलेखा की गोद से निकला और फिर से उसके इर्द गिर्द घूमने लगा। किसी अनजान खतरे को भांपकर मेमना वापस ऊपर की तरफ भागने लगा। वह चित्रलेखा के घर के बाहर आया , चित्रलेखा के पिता घर के बाहर वाले बरामदे में ही आग जलाने के लिए लकडिया लगा रहे थे। मेमना उनके पास आकर उनके पैरो के आस पास चक्कर काटने लगा। उसे ऐसा करते देखकर चित्रलेखा के पिता ने कहा,”हे कोंग्पोश आज तुम्हारी वो दोस्त कहा गयी ? दिखाई नहीं दे रही ,, और दिन वह तुम्हारे साथ फुदकती रहती है लेकिन आज कही नजर नहीं आ रही,,,,,,,,,,,,,,,,,लेखा की माँ ? चित्रलेखा कहा है दिखाई नहीं दे रही ?”
“बाहर ही होगी मैंने उसे काफी देर से देखा नहीं है”,अंदर से चित्रलेखा की माँ ने कहा
“सच में ये लड़की शैतान हो गयी है कोंग्पोश , ऐसी बर्फ़बारी में भी ना जाने कहा होगी ? चलो उसे देखकर आते है”,कहते हुए चित्रलेखा के पिता ने अपने लम्बे कोट को पहना और एक मोटा ऊन का मफलर अपने गले के चारो ओर लपेट लिया ,वे पहाड़ी से नीचे जाने वाले रास्ते की और बढ़ गए। मेमना भी उनके साथ साथ चला आया।
“लेखा,,,,,,,,,,,लेखा,,,,,,,,,,,,,,,लेखा क्या हुआ तुम्हे ? तुम इस हालत में यहाँ कैसे ? लेखा उठो , होश में आओ मेरी बच्ची ? तुम्हे क्या हुआ है ? हे ईश्वर मेरी बच्ची को ये क्या हो गया ?”,पहाड़ी से नीचे आते हुए जब चित्रलेखा के पिता की नजर बेहोश पड़ी अपनी बेटी पर गयी तो उन्होंने उसे सम्हालते हुए कहा
चित्रलेखा को होश नहीं था , ठण्ड की वजह से उसका शरीर सफ़ेद पड़ चुका था। चित्रलेखा के पिता ने अपना कोट निकालकर उसे ओढ़ाया , गले के मफलर को भी निकालकर चित्रलेखा की गर्दन पर लपेट दिया जिस से उसे कुछ आराम मिले। उन्होंने उसे गोद में उठाया और घर की तरफ जाने लगे। उसके पिता उसे लेकर अंदर आये और बिस्तर पर सुलाकर उसकी माँ से कहा,”लेखा की माँ इसे जल्दी से गर्म कपडे ओढाओ मैं अभी हाकिम साहब को लेकर आता हूँ”
“इसे क्या हुआ है ? लेखा लेखा उठ मेरी बच्ची तुझे क्या हुआ है ? हे भगवान इसका शरीर कितना ठंडा है , ये क्या हो गया इसे ?”,चित्रलेखा की माँ ने रोते हुए अपनी बेटी को सम्हाला और तुरंत उसे गर्म कंबलों से ढक दिया। वे रोते हुए वही उसकी बगल में बैठकर उसके ठन्डे पड़ चुके हाथ को अपने गर्म हाथो से मसलने लगी। उनकी आँखों से आँसू लगातार बहते जा रहे थे। कुछ देर बाद ही चित्रलेखा के पिता अरिका के पिता के साथ अंदर आये जो की उस इलाक़े में हकीम थे , साथ में अरिका भी आयी थी। चित्रलेखा को बेहोश देखकर अरिका के पैरों के पास आ बैठी और उसके पैरो के तलवे घिसते हुए कहा,”चचा मैंने इसे रोकने की कोशिश भी की थी लेकिन इसने नहीं सूना और ये पहाड़ी से नीचे चली गयी,,,,,,,,,,,,,,,,इसे क्या हुआ है ? ये ठीक तो हो जाएगी ना ?”
“अरिका बिटिया तुम साइड हो जाओ मुझे लेखा को देखने दो”,हाकिम साहब ने कहा तो अरिका उठकर चित्रलेखा के माँ बाप के बगल में आकर खड़ी हो गयी। हाकिम साहब चित्रलेखा के बगल में आ बैठे और उसकी नब्ज देखने लगे। उन्होंने अपने साथ लाये कुछ काढ़े और दवाईया चित्रलेखा को पिलाया और फिर उसे आराम करने देने को कहा।
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चित्रलेखा के पिता ने अपनी पत्नी को लेखा का ख्याल रखने को कहा और खुद हाकिम साहब के साथ बाहर चले आये। लेखा के पिता को घबराया देखकर हाकिम साहब ने कहा,”घबराने की बात नहीं है ज्यादा देर ठण्ड में रहने की वजह से उसके शरीर का तापमान गिर गया जिस वजह से वो बेहोश हो गयी थी , मैंने उसे कुछ दवा दी है थोड़ी देर में उसे होश आ जाएगा”
“शुक्रिया हाकिम साहब”,चित्रलेखा के पिता ने कहा , हाकिम साहब कुछ देर रुके और फिर अपने घर चले गए। दोपहर बाद चित्रलेखा को थोड़ा थोड़ा होश आया वह नींद में थी और शायद कोई बुरा सपना देख रही थी। उसने देखा वह केप्टन का हाथ पकडे हुए है और उसे बचाने की कोशिश कर रही है , एकदम से उसके हाथ से केप्टन का हाथ छूट जाता है और वो चिल्लाती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,”केप्टन”
“लेखा , लेखा तू ठीक है ना , तू चिल्लाई क्यों और ये केप्टन कौन है ?”,चित्रलेखा की चीख सुनकर उसकी माँ ने उसके पास आकर घबराये स्वर में पूछा
चित्रलेखा ने देखा वो अपने घर में है , अपने बिस्तर पर हैं और उसकी माँ घबराई हुई उसके सामने बैठी है,,,,,,,,,,,,,,,,,चित्रलेखा को एकदम से फिर याद आया की केप्टन देवाशीष अब नहीं रहे तो उसकी आँखो से आँसू बहने लगे और उसने रोते हुए कहा,”केप्टन नहीं रहे माँ , वो देश के लिए शहीद हो गए”
चित्रलेखा की माँ ने उसे गले लगा लिया और उसे चुप कराने लगी हालाँकि वो नहीं समझ पाई की चित्रलेखा किसकी बात कर रही थी।
एक हफ्ता यू ही गुजर गया। रेजीडेंसी में जवानों की दिनचर्या फिर पहले की तरह चलने लगी लेकिन मेजर और लेफ्टिनेंट सूरज को हमेशा देवाशीष की कमी खलती रहती थी। कश्मीर में अब सीमाओं पर पहले से ज्यादा कड़ी सुरक्षा कर दी गयी। सेना के नेतृत्व के लिए आर्मी ऑफिसर्स ने “लेफ्टिनेंट मुरली कृष्ण राव” को सेना का नया केप्टन चुन लिया। केप्टन बनते ही मुरली कृष्ण राव के तेवर बदल गए। वे अब सेना के जवानों पर धौंस जमाने लगे , नए जवानों के छोटी छोटी गलतियों पर भी उन्हें बड़ी बड़ी पनिशमेंट देते रहते थे। केप्टन मुरली कृष्ण राव ने भी अपनी खुद की 20 जवानों की टीम तैयार की उन्होंने लेफ्टिनेंट सूरज को भी अपनी टीम में रखा लेकिन वे देवाशीष की तरह टीम का नेतृत्व नहीं कर पा रहे थे ना ही उनके साथ अच्छे रिश्ते कायम कर पा रहे थे। मुरली कृष्ण राव जो चाहते थे वह उन्हें मिल चुका था उनके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा “देवाशीष” हट चुका था। हफ्ते निकले , महीने निकले और गुजरते वक्त के साथ केप्टन मुरली कृष्ण राव का घमंड भी बढ़ने लगा। वे अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझते थे। जवानों ने उनकी शिकायत भी की लेकिन इन कुछ महीनो में मुरली कृष्ण राव ने कश्मीर के बड़े लोगो से अच्छे संबंध बना लिए थे इसलिए शिकायते सिर्फ शिकायत बनकर रह गयी।
6 महीने देखते ही देखते गुजर गए चित्रलेखा अब भी देवाशीष को भूली नहीं थी अपने कमरे में बैठी वह खत लिख रही थी। उसने एक खत लिखा और उसे समेटकर अपने छोटे बक्से में रख दिया। उसका हाथ कानों पर गया तो उसने वो हरे रंग के झुमके निकालकर भी उस बक्से में रख दिए और उसे हमेशा हमेशा ताला लगाकर चाबी को दूर फेंक दिया। उदास सी वह कमरे की खिड़की के पास अपने मेमने को गोद में लिए बैठी रहती , ना किसी से ज्यादा बात करती ना अब पहले की तरह शैतानिया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कितने महीने बीत गए लेकिन चित्रलेखा ने घर से बाहर जाकर बर्फ तक नहीं देखी। वह घर में ही रहकर अपनी माँ की घर के कामो में मदद कर देती या अपने पिता को कपडे बुनने में। चित्रलेखा की बढ़ती उदासी देखकर उसके पिता ने कश्मीर छोड़ने का सोचा,,,,,,,,,,,,,,,उन्हें लगा की अगर वो कश्मीर छोड़कर चले जायेंगे तो शायद चित्रलेखा केप्टन को भूल जाए और अपनी जिंदगी को पहले की तरह जीना शुरू कर दे लेकिन चित्रलेखा ने जाने से साफ मना कर दिया।
एक शाम सीमा से कुछ आतंकवादी पहाड़ी इलाक़े में घुस आये। ये पहाड़ी इलाके अब तक कश्मीर की सबसे सुरक्षित जगह थे लेकिन पहली बार आतंकवादियों का वहा आना सेना के लिए किसी बड़े खतरे से कम ना था। हाई कमान से सुचना मिली की कुछ कश्मीरियों ने उन्हें अपने यहाँ शरण दी है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सेना के जवान मिशन पर निकल पड़े। जब आतंकवादियों को पता चला की सेना ने पहाड़ी इलाक़े को घेर लिया है तो उन्होंने वहा बसे लोगो को बेरहमी से मारना शुरू कर दिया। जिन कश्मीरियों ने उन्हें पनाह दी उन्होंने उन्हें गोलियों से भून डाला। रात के अँधेरे में वे सभी आतंकवादी उस पहाड़ी क्षेत्र में फ़ैल गए। चित्रलेखा और उसके माता-पिता भी डरे हुए अपने घर में थे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वे मन ही मन ईशवर से प्रार्थना कर रहे थे। अगले ही पल किसी ने खोला , चित्रलेखा के पिता ने मध्यम रौशनी में देखा वो दो आतंकवादी थे जिनके हाथ में हथियार थे। उन्होंने तुरंत चित्रलेखा को जाने को कहा,,,,,,,,,,वह रोने लगी , उसके पिता ने उसे कसम दी की वह भाग जाये और अपनी जान बचाये। आतंकवादियों ने घर में तोड़ फोड़ करनी शुरू कर दी,,,,,,,,,,,,,,! चित्रलेखा घबरा गयी , उसके माता-पिता भी एक कोने में दुबके खड़े थे और जान की भीख माँग रहे थे। एक आतंकवादी ने आकर उन पर बन्दुक तान रखी थी , उसने मुँह ढक रखा था और वह एक लंबा कश्मीरी लबादा पहने हुए था। चित्रलेखा ने अपने माता-पिता को खतरे में देखा तो उनकी तरफ जाने को हुयी लेकिन अचानक से किसी ने चित्रलेखा की बाँह पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा , चित्रलेखा ने देखा ये भी एक आतंकवादी था उसका मुँह ढका था। उसने चित्रलेखा का मुंह बंद किया और घर की के उस संकरे हिस्से में लेकर उसे खड़ा रहा। चित्रलेखा की आँखों के सामने आतंकवादियों ने उसके माता-पिता को गोली मार दी,,,,,,,,,,,,,,,,,,वह बस फटी आँखों से देखते रही !
केप्टन की लापरवाही की वजह कश्मीर इलाकों में आतंकवादियों का दल घुस आया था। कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में मौत का खौफनाक मंजर शुरू हो चुका था। आतंकवादियों ने वहा रहने वाले कश्मीरी लोगो को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया और बड़ी ही बेरहमी से उन्हें मारने लगे। हाई-कमान को जब इसकी सुचना मिली तो उन्होंने सेना को तैनात कर दिया। भारी सख्या में जवानों की टुकडिया पहाड़ी इलाको में फ़ैल गयी। अपनी जान बचाने के लिए कुछ कश्मीरियों ने उन्हें अपने घर में पनाह भी दे दी।
चित्रलेखा की आँखों के सामने उसके माता-पिता को आतंकवादियों ने गोलियों से भून डाला , वह अपने माता पिता को बचा पाती इस से पहले किसी ने उसकी बांह पकड़ी और उसे वहा से ले गया। चित्रलेखा ने रोना चाहा तो नकाब और कश्मीरी लबादा पहने उस आदमी ने चित्रलेखा का मुंह अपने हाथ से बंद किया और उसे घसीटते हुए वहा से ले गया। कुछ देर बाद अँधेरे में वह आदमी गायब हो गया। पूरा इलाका इस वक्त गोलियों की आवाजों से गूंज रहा था , आज अमावस्या की काली रात थी और ऐसे में घुप्प अन्धेरा सेना बहुत मुश्किल से डटी हुयी थी। रात के अँधेरे में आये आतंकवादी अँधेरे में ही गायब हो गए। सेना के कई जवान और कश्मीरी लोग इस अचानक हुए हमले से मारे जा चुके थे। लेफ्टिनेंट सूरज के हाथ में भी चोट लगी थी। चट्टान से पीठ लगाए लेफ्टिनेंट सूरज अपने हाथ पर पट्टी बांधते हुए अपने साथ से कहता है,”आतंकवादियों का यू अचानक से सीमा में घुस आना किसी बड़े खतरे का संकेत है , केप्टन की लापरवाही की वजह से कितने ही बेकसूर लोग मारे जा चुके है और अभी कितने मारे जायेंगे इसका कोई अंदाजा नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,काश केप्टन देवाशीष आज हमारे बीच होते तो इन दुश्मनो की हिम्मत नहीं बढ़ती”
“आप सही कह रहे है सीनियर , पर क्या हमारी टीम खुद अपना नेतृत्व नहीं कर सकती ? क्या हमारी आर्मी इतनी कमजोर है की दुश्मनो का मुकाबला नहीं कर सकती ? मेरे गाँव में एक कहावत कही जाती है सर की जब आपका राजा युद्ध में मरते अपने लोगो को देखकर आँखे मूँद ले तो सेना को स्वयं को अपना राजा समझकर दुश्मन से भीड़ जाना चाहिए,,,,,,,,,,,,,,,अगर दुश्मन के हाथो मरना ही है तो राजा की तरह लड़कर मरो और देश के लिए कुछ अच्छा कर जाओ”,साथी जवान ने कहा तो लेफ्टिनेंट सूरज का होंसला बढ़ा
“तुमने सही कहा हमे केप्टन भरोसे नहीं रहना चाहिए , अब से हमारा एक ही टारगेट होगा दुश्मन का खात्मा बस ध्यान रहे की इसमें किसी बेकसूर को सजा ना मिले”,लेफ्टिनेंट सूरज ने कहा
“सेना से हुयी मुठभेड़ में हमारे 2 साथी मारे गए है सरकार और हमारा एक साथी पॉश नंबर 12 ( आतंकवादियों ने अपने गिरोह के लोगो को नाम के बजाय नंबर से बुलाते थे ताकि अगर कोई पकड़ा भी जाये तो सेना को उस से कोई जानकारी ना मिले ) लापता है”,आतंकवादियों के गिरोह से एक पॉश लड़के ने कहा
“क्या वो सेना के हाथ लग चुका है ? या वो मारा गया ?”,आतंकवादियों के लीडर ने पूछा
“नहीं सरकार सेना हमारे इस अचानक हुए हमले से भयभीत है , पॉश नंबर 12 बहुत ही शातिर है वो इतनी जल्दी सेना के हाथ नहीं आएगा”,लड़के ने कहा
“सेना के जवान ये नहीं जानते की इस हमले के बाद कश्मीर के लोग उनके खिलाफ हो जायेंगे,,,,,,,,,,,,,हम उन्ही के लोगो उनके खिलाफ इस्तेमाल करेंगे और जीत जायेंगे ! सबसे पहले हमे सेना के केप्टन को खत्म करना होगा इस से सेना का हौंसला भी टूट जाएगा”,लीडर ने कहा
“सरकार लेकिन केप्टन ने हमारे लोगो को पनाह दी थी , उसे मारकर हमे क्या मिलेगा ? अगर वो ज़िंदा रहे तो हम अपने मिशन में कामयाब होंगे”,लड़के ने कहा
“हमारे गिरोह का उसूल है जो हमारे बारे में जान गया वो या तो हम में शामिल हो जाए या फिर उसे मौत के घाट उतार दिया जाये,,,,,,,,,,,,,,सेना के केप्टन ने अपने लालच के चलते अपने ही लोगो को धोखा दिया लेकिन अब उसकी देशभक्ति फिर से जाग उठी है। हमे सिर्फ उस से खतरा है , इसलिए उसे हमेशा के लिए कश्मीर को अलविदा कहना होगा”,लीडर ने कहा
“जैसा आप कहे लीडर”,लड़के ने कहा और पीछे हट गया
“ठीक है कल सुबह जल्दी ही हमारा गिरोह यहाँ से कश्मीर घाटी के लिए रवाना हो जाएगा , एक बार हमने उस घाटी को कब्जे में लिया उसके बाद जवानों को हमारे सामने घुटने टेकने होंगे,,,,,,,,,,,,,,,और ये कश्मीर हमारा होगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,जीतेंगे हम”,लीडर ने आखरी दो शब्द तेज आवाज में कहे
“लड़ेंगे हम”,बाकि सब जवाब में चिल्लाये उनके गिरोह में जोश की एक लहर नजर आयी।
“इस जंग से हमारे मालिक बहुत खुश होंगे , तुम सब जल्द ही उनसे मिलोगे”,लीडर ने कहा तो सबकी आँखे ख़ुशी से चमक उठी। कुछ देर वहा रुकने के बाद लीडर ने सबको अलग अलग गुट बांटा और सभी वहा से अलग अलग रास्तों की और चले गए
मुँह बंद होने और माता-पिता की मौत का सदमा लगने के बाद चित्रलेखा बेहोश हो गयी। गिरोह से लापता हुआ आतंकवादी शायद वही आदमी था जो चित्रलेखा के साथ था। जब उसे चित्रलेखा के अचेत होने का आभास हुआ तो वह जंगल में एक टूटे हुए पेड़ के तने के पास रुक गया। उसने चित्रलेखा की पीठ तने से लगा दी। अचेत चित्रलेखा बेसुध सी अपनी गर्दन तने पर टिकाये पड़ी थी। रात बहुत हो चुकी थी आदमी ने रात वही गुजारने का सोचा। ठण्ड काफी ज्यादा थी और उसके पास ज्यादा कपडे भी नहीं थे। उसने आस पास से कुछ लकडिया इकट्ठी की और उन्हें जलाने की कोशिश करने लगा। लकडियो में नमी होने के कारण वो जल नहीं रही थी। थककर उसने अपने हाथो में पहने चमड़े के दस्तानो को निकालकर उन्हें लकड़ियों के साथ जलाया। वे जल उठे,,,,,,,,,,,,,,आदमी वही बैठकर आग तपने लगा उसे थोड़ी राहत महसूस हुई , उसका चेहरा अभी भी कपडे से ढका हुआ था।
हाथ तपते हुए उसकी नजर चित्रलेखा पर पड़ी , वह उठा उसने अपना बड़ा सा कोट निकाला और उसे चित्रलेखा को ओढ़ा दिया , वह जैसे ही जाने के लिए पलटा उसका ध्यान चित्रलेखा के गाल पर पड़ी बालों की लट पर चला गया। आदमी घुटनो के बल उसके पास आ बैठा वह एकटक चित्रलेखा को देखने लगा , गोरा रंग , गुलाबी होंठ , बड़ी बड़ी भँवे , लम्बा पतला चेहरा ,, आदमी चित्रलेखा को बहुत करीब से देख रहा था , उसकी आँखों में हवस नहीं बल्कि एक सुकून था। उसने अपनी ठंडी उंगलियों से बालो की लट को हटाया और वापस चला गया।
कुछ देर बाद आदमी भी आकर चित्रलेखा से कुछ दूरी बनाकर तने के पास आ बैठा उस ने भी अपनी पीठ तने से लगा ली। सामने जल रही आग धीरे धीरे कम होने लगी। कुछ वक्त गुजरा और आदमी ने अपनी आँखे मूँद ली।
चित्रलेखा को होश आया उसने खुद को एक अनजान जगह पाया तो अंदर ही अंदर डर गयी। उसने अपने ओढ़ाए जैकेट को हटाया तो उसे जैकेट कॉलर में कुछ महसूस हुआ। चित्रलेखा ने उसे निकाला तो पाया की वो एक छोटा लेकिन धारदार चाकू था। अगले ही पल उसने कुछ दूर अपने बगल में बैठे नकाबपोश आदमी को देखा , एकदम से उसकी आँखों के सामने अपने माता-पिता की मौत का हादसा आ गया। गुस्से से उसकी आँखे उबलने लगी , चेहरा लाल पड़ गया चित्रलेखा के पास अब खोने को कुछ नहीं था इसलिए वह उठी। उसने छोटे चाकू को अपनी मुट्ठी में भींचा और आकर जैसे ही आदमी पर वार किया आदमी पलट गया। चित्रलेखा का वार खाली चला गया। चित्रलेखा ने गुस्से से दुसरा वार किया लेकिन इतने में आदमी ने उसका हाथ पकड़ा और उसे जमीन पर गिराकर उस पर हावी हो गया।
चित्रलेखा का एक हाथ उसने मजबूती से जमीन से लगा रखा था और चित्रलेखा का दुसरा हाथ उस आदमी के सीने पर था। इस वक्त वह चित्रलेखा के बहुत करीब था और एकटक उसने आँखों में देखे जा रहा था। चित्रलेखा ने महसूस किया की आदमी की धड़कने इस वक्त काफी तेज थी , उसकी छुअन से चित्रलेखा को अपनेपन का अहसास होने लगा। वह इस वक्त लाचार थी उसकी आँखों में आँसू भर आये तो आदमी ने उसके हाथ से चाकू लिया और दूर हो गया। चित्रलेखा उठी उसने गुस्से और बेबसी से भरे भाव के साथ कहा,”कौन हो तुम ? और मुझे यहाँ क्यों लाये हो ?”
आदमी ने चित्रलेखा के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे जमींन पर पड़े अपने जैकेट को उठाया और झटककर पहन लिया , उसने हाथ में पकड़े छोटे चाकू को फिर कोलर में खोंस लिया।
चित्रलेखा ने देखा और फिर घुटनो के बल गिरकर रोते हुए कहने लगी,”जब मेरे माता-पिता को मार दिया तो फिर मुझे ज़िंदा क्यों रखा , मुझे भी उनके साथ ही मार देना चाहिए था। तुम लोगो में जरा भी दया नहीं है , रहम नहीं है। लोगो को मारते हो , उन्हें बेघर कर देते हो , क्यों ? आखिर कश्मीर के लोगो ने तुम्हारा क्या बिगड़ा है ? ये खून खराबा , ये जंग किसलिए ? क्या तुम्हारा देश नहीं है ? अगर तुम्हारी जंग सेना से है तो फिर उन बेकसूर लोगो को क्यों मारते हो ? क्या मिलता है तुम्हे ये करके ? तुम बुजदिल हो इसलिए लोगो को मारते हो ,, अगर ऐसा है तो फिर मुझे भी मार दो,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरे पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं है”
रोते हुए चित्रलेखा आदमी के सामने आ खड़ी हुयी और कहा,”मार दो मुझे , ऐसी जिंदगी का मैं क्या करुँगी ? तुम्हारे लिए किसी को मारना आसान है , तुम्हे दर्द नहीं होता क्योकि तुम लोगो में भावनाये नहीं है,,,,,,,,,,,,,,,,,मार दो मुझे”
“मैं तुम्हे नहीं मार सकता,,,,,,,,,,,,,,!!”,पहली बार आदमी ने अपनी कठोर आवाज में कहा , चित्रलेखा ने सूना तो फटी आँखों से आदमी को देखने लगी।
चित्रलेखा के आँसू आदमी को विचलित करने लगे। वह बस रोते ही जा रही थी आदमी ने जैसे ही अपना हाथ उसके आँसू पोछने के लिए बढ़ाया तेज आवाज के साथ एक गोली बिल्कुल उसके हाथ के करीब से होकर निकली। आदमी ने देखा सेना के दो जवान हाथो में हथियार लिए उनकी ओर चले आ रहे है। आदमी की आँखे फैली और उसने एकदम से चित्रलेखा की कलाई थामी और वहा से भागने लगा।
“रुक जाओ और खुद को हमारे हवाले कर दो”,जवान ने उनके पीछे आते हुए कहा लेकिन आदमी तेजी से भागा जा रहा था। चित्रलेखा नहीं समझ पा रही थी की वह उस आदमी के साथ क्यों भाग रही है ? वह चाहती तो जवानों की मदद ले सकती थी लेकिन वह खामोश थी और आदमी के साथ भागी चली जा रही थी। उसका दिमाग कह रहा था की उसे सेना की मदद लेनी चाहिए लेकिन दिल कह रहा था नहीं उसे इस वक्त सेना से ज्यादा इस आदमी की जरूरत है,,,,,,,,,,,,,,,और आखिर में जीत दिल की हुई। भागते हुए आदमी का हाथ चित्रलेखा से जैसे ही छूटा चित्रलेखा ने उसके हाथ को मजबूती से वापस थाम लिया। आदमी ने एक नजर चित्रलेखा को देखा और फिर ढलान वाले रास्ते पर कूद गया। लुढ़कते हुए दोनों नीचे चले गए। आदमी ने चित्रलेखा को गिरते देखा तो उसे अपनी मजबूत बाँहो में थाम लिया और दोनों बर्फीली सड़क पर आ गिरे। दोनों उठे और फिर भागने लगे , तब तक भागते रहे जब तक जवानों की आँखों से ओझल ना हो गए।
भागते हुए आदमी चित्रलेखा का हाथ थामे खाई के पास चला आया। आदमी ने पलटकर देखा जवान अब उनके पीछे नहीं थे। चित्रलेखा हांफने लगी थी। ठंड की वजह से उसके होंठ सफ़ेद पड़ चुके थे और चेहरा लाल हो चुका था। आदमी ने देखा तो उसके पास आया उसकी नजर चित्रलेखा के हाथो पर पड़ी जो की ठंड में काँप रहे थे। आदमी ने चित्रलेखा के हाथो को अपने हाथो में लिया और रगड़ते हुए सर्द आवाज में कहा,”तुम्हारे हाथ बहुत ठन्डे है , तुम ऐसे बीमार पड़ जाओगी”
ये आवाज सुनते ही चित्रलेखा का दिल धड़का , उसकी आँखों में नमी उतर आयी , एकटक सामने खड़े उस नकाबपोश आदमी को देखती रही। चित्रलेखा कुछ कहती इस से पहले वहा दो और नकाबपोश हाथो में हथियार उठाये आये। उन्हें देखकर आदमी पलटा।
“पॉश नंबर 12 अच्छा हुआ तुम मिल गए , और तुम्हारे साथ ये लड़की कौन है ? क्या तुम्हे गिरोह के नियम नहीं पता ? अगर सरकार ने देखा तो वो तुम्हे और इस लड़की दोनों को मार देंगे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ये लड़की तुम्हारे साथ है मतलब अब हम सबको खतरा है , इस लड़की को मार दो”,सामने खड़े नकाबपोशों में से एक ने कहा
आदमी ने सूना तो कुछ नहीं कहा बस दोनों को देखता रहा। उसके खामोश देखकर दूसरे नकाबपोश ने कहा,”अगर तुमने इसे नहीं मारा तो हम तुम्हे मार देंगे”
चित्रलेखा ने सूना तो उसकी आँखों में बेचैनी उभरी , वह अपने सामने खड़े आदमी को देखने लगी। आदमी चित्रलेखा की तरफ पलटा। उसकी आँखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
“जल्दी करो पॉश नंबर 12 , हमे जल्दी यहाँ से निकलना होगा ,, सरकार आज सबको मालिक से मिलवाने वाले है,,,,,,,,,,,,,,,,,इस लड़की को मारो और चलो यहाँ से”,एक नकाबपोश चिल्लाया
चित्रलेखा ने आदमी को खामोश खड़े देखा तो उसने कोट की कोलर से धारदार चाकू निकाला और आदमी की आँखों में देखते हुए सर्द धीमी आवाज में कहा,”इस देश को आपकी जरूरत है केप्टन , दुश्मनो से जीत कर आईयेगा”
ये शब्द कहते हुए चित्रलेखा की आँखों में ना डर था ना ही बेचैनी , बल्कि वह सामने खड़े शख्स से आँखे मिलाकर ये बात कह रही थी। अगले ही पल उसने हाथ में पकड़ा चाकू अपनी गर्दन पर चलाया और खुद को पीछे खाई में धकेल लिया। वह फ़टी आँखों से चित्रलेखा के गिरते शरीर को देखता रहा। उसकी बांयी आँख से आँसू की एक बूंद निकलकर नीचे जा गिरी और कानों में कुछ शब्द गूंजने लगे
“कोई ऐसी लड़की जो मुझसे भी ज्यादा मेरे इस देश को प्यार करे , जो मेरी तरह इस देश के लिए समर्पित हो , जिसे मेरी कुर्बानी पर गर्व हो ना की वो और लड़कियों की तरह अफ़सोस जताये , जो मुझसे आँख मिलाकर बात कर सके , जो किसी के सामने भयभीत ना हो और खुलकर अपनी बात कहे कोई ऐसी लड़की मिली तो मैं इस बारे में जरूर सोचूंगा”
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क्रमश – “कश्मीर की पनाहों में” – 4
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